रविवार, 29 मई 2011


चंडीगढ़ में एक बरसाती दोपहर प्रमोद कोंसवाल के घर में प्रवेश करते ही टेपरिकॉर्डर पर गाने की आवाज़ ने पैरों को जकड़ लिया.......यह कौन है....बैठ कर सुनो.....बैठते ही वोदका का पैग.....लेकिन यहां तो पहले से ही मदहोश......गाना खत्म हुआ....पता चला पाकिस्तानी गायक हबीब वली मोहम्मद.....आवाज में हल्का सा मुकेशपन....कोई सिलवट नहीं......मुरकी तो बिल्कुल ही नहीं... खरज मुकेश से ज्यादा....साज के नाम पर सिर्फ हारमोनियम और सारंगी.....पता चला कि त्रिनेत्र जोशी पिछले दिनों चीन गये थे....वहीं किसी घरेलू कार्यक्रम में वली को टेप कर लाए और कई ईष्ट मित्रों को उस आवाज का रसास्वादन कराया....एक कॉपी अभी का अभी दो...तुरंत मिल गयी.....जब तक घर में तो सिर्फ वली की आवाज....रात को ऑफिस से लौटने के बाद 17 सेक्टर जाने वाली बिल्कुल सुनसान सड़क पर अपन वली बन जाते.....बिल्कुल पागल बना दिया था इस आवाज ने....कानपुर में पागलपन सिर पर चढ़ गया..

मेस्टन रोड पर.... राह ए तलब में कौन किसी का

राजीव मित्तल

बस ने रेलवे स्टेशन के पास उतारा..रिक्शा कर मूलगंज चौराहा और नवीन मार्केट होते हुए....कैन्ट रोड पर बहुत बड़े परिसर में स्टेट बैंक .....उसके बगल से नीचे उतरती सीढ़ियां......जमीन के 10-12 फुट अंदर पहले एक कमरा..फिर एक और...उसके बगल में हॉल....सम्पादकीय.....उसी में किनारे छोटा सा कैबिन.....अंदर मुस्कुराते नवीन जोशी.....पुख्ता सम्पादक.....प्रिंट लाइन में नाम वाले.....तुम यहां सेंट्रल डेस्क नहीं लोकल डेस्क संभालो.....लोकल में चीफ रिपोर्टर ने बड़ी धांधली मचा रखी है....उसे काबू में लाना है....चीफ रिपोर्टर अम्बरीष शुक्ला....पंकज जी का मुंहलगुआ....जितना मोटा उतना हरामी.....नवभारत टाइम्स के समय के हे-हे ही-ही वाले संबंध...एक जाना-पहचाना चेहरा और...प्रमोद झा....अमृतप्रभात के कई उस्तादों में एक....नारी के नाम पर शिप्रा दीक्षित....तेज-तर्रार रिपोर्टर...

रात को स्टाफ के ज्यादातर मेस्टन रोड के मिश्रा लॉज में ही सुनते थे लोरी....वहीं अपना भी बिछावन....जिसके बिछते ही चंडीगढ़ की हूक आंसू निकालने पे आमादा....वहीं धीरेन्द्र श्रीवास्तव, शैलेश मिश्रा से गिरह खुली ....किसिम-किसिम की यादों के बीच डूबते-उतराते रात कटी.....लॉज के सबकुछ दाढ़ी वाले बाबा से चाय बोल बाहर का नजारा लिया तो दिल बागबाग.....यहां तो खटिया पे लेटे-लेटे शॉपिंग की जा सकती है.....तैयार हो कर फिर ऑफिस ...रिपोर्टरों की मीटिंग ली....लखनऊ-चंडीगढ़ में कई को किमख्वाब पहना चुका था..अब कानपूर....कई आज भी इस नाम का मर्सिया पढ़ रहे हैं......सब चले गए तो बीटिल टाइप शैलेश चरणों में....भाईसाहब......मुझे अपने साथ रख लीजिये.....किस खुशी में....सर जी दिल का मुआमला है....यानी वो...जी सर....कम से कम दिखायी तो पड़ती रहेगी खबरों के बहाने....सिर पर हाथ रख दिया....नवीन जी को बोला....किस मूर्ख को साथ रख रहे हो....वो मुझ पर छोड़िये...ठीक है तुम जानो...

एक बार फिर चंडीगढ़.....पूरी विदाई के लिये.....नई नौकरी की सुन रोना-गाना शुरू....पड़ोसिनें रुदाली बन ठेका लगा रहीं....डेढ़ साल की मिनी...उसकी टीचर मां....सब बेहद खफा.....कितने प्रोग्राम बनाए थे इस बार....सबसे ज्यादा तो पूर्णिमा.....वैष्णवदेवी की साध फिर रह गयी.....इन पांच सालों में टालता रहा....इस बार पक्का हो गया था दोनों सहेलियों का...घर-घर से खाने की बुलाहट.........किसी तरह सब समेट-सिमूट स्टेशन पर.......सुधांशु की आंखों से निकल पड़े आंसू......परम्परागत रोतड़ू....बस वही था स्टेशन पर.....अंबाला से सुबह लखनऊ के लिये.....दूसरे दिन कानपुर....आना-जाना बस से....सम्पादक का आग्रह कानपुर में ही रुकने और स्टोरी करने का ....पंकज जी सिने-समीक्षा लिखवाने पर उतारू.....मना करने गया तो शानदार मिठाई जीभ के हवाले कर दी.......

लॉज में पता चला कि गंगा बस एक किलोमीटर दूर है....धीरेन्द्र-शैलेश को उठाया कि चलो छपर-छपर को.....किनारे पहुंच बदबू के मारे उबकाई आ रही.....इस देश के लोग कितने बेहूदे हैं कि जिसका हजारों सालों से सुबह उठते ही जाप शुरू कर देते हैं, उसी को नाले से बदतर बना दिया....आस्था के नाम पर ऐसी बेकदरी इस धरती पर और कहीं नहीं.....काफी तलाशने के बाद साफ धारा दिखी तो उतर पड़े....पांच-दस दिन चला आस्थाहीन गंगा स्नान .....

रात दो बजे तक लोकल डेस्क....दिन में.... लहुलुहान ब्लड बैंकों .....पुलिस महकमे में किसी ईमानदार की तलाश...स्वतंत्रता सेनानियों की दुर्दशा..पर स्टोरी ..या पिक्चर हॉल में ओंघाई.....टिकट शुक्ला जी के सौजन्य से.....भाई का रात बारह बजे आना कई सारे लगुए-भगुओं के साथ.....राजू भैया एक शानदार स्टोरी दे रहा हूं.....जल्दी दो...शटर गिरा दिया है....शैलेश को पकड़ नवीन मार्केट में गुलाबजामुन....एक घंटे बाद तीन पेज की स्टोरी......ऊपर की चार लाइन और नीचे की दो लाइन.....बाकी सब भूसा.....अगले दिन.....राजू भैया कहां लगी है वो स्टोरी.....पेज चार पर देखो....ऊपर सिंगिल कॉलम में.....हमारे साथ ही ऐसा करोगे भैया....हां...अखबार को बेचना भी है बचाना भी है...

एक दिन गाज गिरा दी श्रीमान जोशी जी ने.....वापस लखनऊ जा रहा हूं....अब तुम संभालो....और छोड़ गए इस अभिमन्यु को उन महारथियों के बीच....तीर भी गिन कर दिये...यह निर्देश भी कि छाती पर नहीं, पैर पर चलाना..ऑफिस में अरुण अस्थाना, आशुतोष बाजपेई और जावेद बख्तियार से भी रब्त-जब्त...

एक शाम जैसे ही ऑफिस पहुंचा चंड़ीगढ़ वाला सुधांशु मिश्र इंतजार करते मिला.....भारत छोड़ कर अमेरिका जा रहा....मिलने आया था.....तब से मुलाकात तो नहीं हुई कभी-कभार फोन जरूर आते हैं........

धीरेन्द्र ने वली मोहम्मद को गुनगुनाते क्या सुन लिया..धरना दे दिया ॥रात को लॉज पहुंचते ही ओल्ड मोंक खोल दी....खाली करने के बाद मेस्टन रोड की गलियों में किसी दुकान के बाहर तख्ते पर बैठ कर इल्तिजा...शुरू हो जाइये....कानपुर आने के बाद अपने पास भी मात्र दो ही चीजें थी....सीने में चंडीगढ़ की यादें और गले में वली.....तीन पैग अंदर होते ही दोनों जोर मारने लगे ....तो रात को तीन घंटे उन पतली गलियों में वली साहब जलवा बिखेर रहे॥दो-चार जन तो उसी रात॥अगली रात कई ठेले वाले...खोमचे वाले....कबाब-बिरियानी बेचने वाले ......चूड़ी-बिंदी-टिकुली बेचने वाले वहां जमा......पिछली रात का गाया फिर से गवाया गया....रात भर तरन्नुम में .....छुट्टी वाले रोज उनमें से कई लॉज में भी पधार गये.....भाईजान यहीं पर कुछ हो जाए....एकाध के हाथ में बोतल भी.....तो कबाब और बिरियानी भी.......एक महीने तक छाया रहे वली साहेब .....धीरेन्द्र की बीट में नगर निगम भी....तो उसके कई सभासद यार भी दीवाने हो गये......लेकिन पूरी रात के जागरण ने अपने कसबल निकाल दिये.......कुछ महीने के आराम के बाद इस आवाज से कम्पनीबाग हुआ गुलजार......

इधर ऑफिस में कुछ ऐसी सख्ती चलायी कि एकाध को छोड़ कर सारा स्टाफ अपना दुश्मन........हफ्ते में दो-चार का जत्था पंकज जी के पास शिकायत ले कर पहुंच जाता.....सबसे ज्यादा दुखी अम्बरीष शुक्ला.....पंकज जी को यहां तक बताया जा रहा कि लोकल डेस्क पर जम कर धंधा चल रहा है.....कोई भी खबर बगैर पैसे के नहीं छापी जा रही.....आपके नाम पर थू-थू हो रही है.....पर..पंकज जी तो पंकज जी....उन्होंने सबको भगा दिया....और नवीन जी को बोला...एक मीटिंग कर आओ कानपुर जा कर.....

जिस दिन मीटिंग....इत्तेफाक से सुबह किसी काम से शिप्रा लॉज में हाजिर....दोनों ऑफिस
के लिये साथ-साथ निकले....रास्ते में खुराफात सूझी....शिप्रा...आज पता है न क्या होने वाला है....बस अब तुम बची हो...तुमने भी अपन के खिलाफ ऐसी-वैसी गवाही दे दी तो गया काम से.......रास्ते में अमरूद का ठेला दिखा....आधा किलो खरीद कर उसको पकड़ाए....इन्हें रिश्वत समझो.....सड़क पर ही उसका जोरदार ठहाका........मीटिंग शुरू.....अपने बोलने पर पूरी तरह बंदिश....एक के बाद एक आरोप...सुन कर लग रहा कि महानता की तरफ बढ़ रहा हूं....डेढ़ घंटे की तिड़िकझांई के बाद फैसला सुनाया गया....कोई रद्दोबदल नहीं होगा....क्लीन चिट मिलते ही सबके सुर रोमानी........

पैर छुआई का चलन पहली बार इतने पड़े पैमाने पर यहीं देखा....सुना है कि नवभारत टाइम्स में मरहूम विद्यानिवास मिश्र तो बैठते ही इस तरह थे कि मेज के नीचे सिर डालकर पैर छूने वाले को कोई दिक्कत पेश न आए...यहां तो पैर छूना और आसान....खबर देने वाले भी आते तो वाह नामधारी गुटखा मेज पर और हाथ पैरों की तरफ..उनमें ज्यादातर ब्राहमण .....अगले जनम में नरक पक्का...कुम्भीपाक या रौरव...फर्क जान कर क्या करना.....

इस बवालबाजी से घबरा कर पंकज जी ने भेज दिया नवभारत टाइम्स राजपूत घराने के चश्म ए बद्दूर
नरेंद्र भदोरिया को....हमारे समय के स्ट्रिंगर......फौरन लखनऊ आ कर अपने धोबी को हाथ जोड़े ...भैया ऐसा क्यों कर रहे हो....क्या पता कल तुम मेरे सम्पादक बन जाओ, ध्यान रखना....भदौरिया जी ने पुराने दिनों का ख्याल रखते हुए खासा ध्यान रखा....आदमी गऊ तो नहीं पर, गऊछाप जरूर थे यानि सांड़ से थोड़ा कम खतरनाक और बैल से थोड़ी ज्यादा बुद्धि वाले...ठीकठाक निभी उनसे....शुक्ला जी पर अंकुश लगाने को सहारा अपन का ही पकड़ना पड़ा उन्हें भी.....एक सुबह पता चला कि विदा हो गये....बताया जाता है कि पंकज जी की किसी रसभरी डिमांड पर भन्ना गया राजपूती खून.....

स्वतंत्रभारत फिर बिना रास के...... .....इस बीच एमएसटी बनवा ली और रोजाना लखनऊ से आना-जाना.......चित्रकूट एक्सप्रेस के मजे लिये जाने लगे...लौटते में साबरमती....टीटी जान पहचान का॥ तो एमएसटियों को दूर से ही देख भड़क जाने वाली वैशाली का भी सफर....लेकिन लखनऊ उतरते समय सावधानी.....वहां होती छापामारी....उतरते ही एच व्हीलर की शरण में....और मौका देख कर बाहर....लेकिन अपने झा जी उतरते समय इसी सोच में डूबे रहते कि इसको मुझसे ज्यादा तन्खवाह क्यों दी जा रही है.....धर लिये गये.....कुछ घंटे बाद निकल पाए.....

दीवाली निकलते ही फिजां गर्म होनी शुरू.....बाबरी मस्जिद मुद्दे की आंच में ईधन डालना शुरू हो गया था.....कानपुर बेहद संवेदनशील शहर.....मूलगंज से नवीन मार्केट जाने वाले रास्ते में एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी ओर हिंदुस्तान की नीवं रखी जाने लगी..... आने वाले दिनों का तेजाबी सुरूर छाने लगा था.......और लीजिये आ गया वो दिन........

गुरुवार, 26 मई 2011



एक अखबार के ध्वस्त होने का असर महज मालिक, सम्पादक या उसमें काम करने वालों पर ही नहीं पड़ता है....बल्कि समाज का एक हिस्सा उससे काफी हद तक प्रभावित होता है....उसकी सोच पर असर पड़ता है..उसकी सुबह पर असर पड़ता है...उसकी बातचीत पर असर पड़ता है....उसके बीते कल और आने वाले कल पर असर पड़ता है। यह असर दिखायी भले ही न पड़ता हो....पर, क्या बहुत सारी बातों का चांद-सूरज की तरह दिखना जरूरी है? आजाद भारत में मीडियाई विस्फोट था जनसत्ता। देश भर तहलका सा मच गया। प्रिंट आॅर्डर इस हद तक पहुंच गया कि दो साल बाद ही प्रभाष जी को कहना पड़ा कि अब और नहीं छाप पाएंगे। मिलजुल कर पढ़िये...........

त्रासदी

राजीव मित्तल

चंडीगढ़ में जनसत्ता ज्वायन करने के बाद वाली होली में सबको टाइटिल दिये तो प्रभाष जी को क्यों बख्शता......अपनी बगिया को उजाड़ रहा माली.......यह टाइटिल कुछ ही समय बाद बिल्कुल सटीक साबित हुआ......आने के छह महीने बाद ही लगने लगा था कि जनसत्ता गोयनका जी की सनक का परिणाम है....उस सनक में प्रभाष जी की कुछ नया करने की इच्छा भी शामिल हो गयी.....इसलिये जिस अखबार ने कदम धरते ही अखबारों की दुनिया में तहलका मचा दिया था......कुछ ही समय बाद राजीव गांधी को मुंह दिखाने लायक भी न रहने देने की उतावली दिखाने लगा.....पाठकों को दिखायी जाने लगी वीपी सिंह में महात्मा गांधी की मूरत..........चंद्रशेखर का भोंडसी आश्रम का दर्जा साबरमती आश्रम सरीखा.....महान देवीलाल किसानों के महान नेता.......इस खेल में इंडियन एक्सप्रेस का काम पन्ना धाय का....जनसत्ता में अरुण शोरी के नौ-नौ कॉलम के अनुवादित लेख कोई बौद्धिक खुराक न हो कर पाठक के दिमाग का तेल निकालने का काम कर रहे ......

इधर...आतंकवाद के चलते पंजाब बुरी तरह लहुलुहान......पूरे देश पर छींटे पड़ रहे.....सामूहिक हत्याओं का दौर शुरू हो चुका था......रिबेरो के रहते ही पुलिस महकमा क्रूरतम दौर में पहुंच गया था.... 12-14 साल के लड़कों को बेदर्दी से मारा जा रहा था......जनसत्ता वहीं सबसे कमजोर साबित हुआ......क्योंकि पूरे एक्सप्रेस ग्रुप की एकमात्र प्राथमिकता थी राजीव गांधी को सत्ता से बाहर करना....राजीव गांधी से अपनी कोई उन्सियत नहीं.....लेकिन चाणक्य का जामा पहने रामनाथ गोयनका और उनके फरमरदारों अरुण शोरी व प्रभाष जी ने तब पत्रकारिता के कौन से नियमों का पालन किया..यह समझ से परे है......

पंजाब के इतने बुरे हालात के बावजूद हम आतंकवादी घटनाओं की खबरें बना रहे थे एजेंसियों से......जो मरने वालों का आंकड़ा बढ़ाने को सड़क दुर्घटना या आपसी रंजिश में मरों को भी आतंकवाद के खाते में डाल रही थीं....या पुरानी लाशों को ताजा बना रही थीं.......सुशील शर्मा रोजाना सभी एजेंसियों के 50 से 75 तार चेक करके 40 हत्याओं को 8-10 पर लाते .....जबकि अपने आप में बेहद सशक्त एक्सप्रेस न्यूज एजेंसी बोफर्स नाम की प्रतियोगिता स्वीडन...स्विटजरलैंड और यूरोप के पता नहीं किन-किन देशों में करा रही थी.....परिणाम आज तलक सामने नहीं......

कविताई झाड़ते.....चित्रकारी करते..ईमानदारी का बाजारीकरण करने वाले वीपी सिंह जरूर प्रधानमंत्री बन गये.......दो खपच्चियों के सहारे ......एक लाल.....एक गेरुए रंग की.....एक साल बाद ही दोनों टूट गयीं.....फिर भोंडसी बाबा चंद्रशेखर विराजमान........हर हफ्ते चंडीगढ़ चला आ रहा है उनका कारवां....क्यों.....अब यह भी समझाना पड़ेगा.......?

पंजाब में जो हत्याओं का दौर-दौरा चल रहा था.....उसमें खेल कौन कौन से थे.....इस बात को कोई अखबार सामने नहीं लाया....जनसत्ता भी नहीं..एक खबर को सच्चाई सामने लाकर एक्सक्लुसिव बनाया लेकिन किसी ने जुम्बिश भी नहीं ली ...जमीन के नाम पर हत्या कोई नयी बात नहीं...लेकिन पंजाब के आतंकवादी माहौल में जैसे बटेर हाथ लग गयी हो.....गांव-गांव में आंतकवाद के नाम पर बहुतेरी हत्याएं केवल जमीन को लेकर की या करायी जा रही थीं........पुलिस को खासी रकम मिल ही रही थी....हत्यारे की तलाश से उसे कोई मतलब नहीं क्योंकि रिपोर्ट में इतना ही लिखना काफी था.....कि जिंदा नामक कुख्यात आतंकवादी ने फलाने की जान ले ली......फाइल बंद......कलपता रहे पीड़ित परिवार......कई किस्म की दुश्मनाई भी इसी दौर में निकाली गयीं....चंडीगढ़ जनसत्ता और एक्सप्रेस के पास बहुत अच्छे रिपोर्टर थे.....लेकिन जब ऊपर वालों को होश नहीं तो उन्हें क्या कीड़े ने काटा था...............सारी मिशनरी पत्रकारिता का मात्र एक ही लक्ष्य.....

राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रभाष जी इसीलिये बहुत हताश थे... जब एक मीटिंग में चंडीगढ़ आए तो उनके बोलों का शब्दार्थ यही था अब कौन बचा है जिसके कपड़े उतारे जाएं......................

लेकिन कपड़े समय उतारता है......वीपी सिंह डायलसिस पर चले गये.......बाबा को भोंडसी वालों ने धक्के दे कर निकाला.......जिस देवीलाल के लिये एक्सप्रेस ग्रुप ने रातदिन एक कर दिया था......उसके एक महान सम्पादक को चौटाला के खिलाफ लिखने के लिये उन्हीं देवीलाल ने उसकी सातों पुश्तों की ऐसी की तैसी कर डाली.......

जनसत्ता ने देश की क्रीम बटोरने को आईएएसनुमा परीक्षा करा कर जो चौतरफा वाहवाही लूटी थी......अंदर जा कर देखा तो कई लगुए-भगुए रोशनदान से टपके पड़े हैं......बाद में तो संघ के सिफारिशी.....किन्हीं जैन मुनि के शिष्य ......सम्पादक को जन्मपत्री भा गयी तो......आओ जी वाला हाल.....

इसलिये एक दिन अपन पतली गली से निकल लिये........जाने से कुछ महीने पहले ममगाई जी पास आए....मंगलवार को मेरा ऑफ है आप छुट्टी ले लें.....आपको हिमाचल में मीनाक्षी देवी के मंदिर ले चलना है......काहे......मान लीजिये....आप आस्था की तरफ भी ध्यान दीजिये......निकल लिये हम दोनों सुबह-सुबह बस से.......मीनाक्षी देवी तक पहुंचते पहुंचते बूंदें गिरने लगीं.....70 से ज्यादा सीढ़ियां.....रास्ते में कई जगह पकी अमियों की ढेरी लगाए बच्चे...ममगाई जी रोकते रह गए.....पर दो किलो थेले में डलवा लीं.....अब सीढ़ियां चढ़ने में आसानी......मंदिर पहुंचने तक एक किलो खत्म.....अंदर घुसे तो एक हाथ में.....ममगाई जी के तेवर देख फेंक दिया......फिर देवी के दर्शन......जैसे-तैसे अंदाज में......घंटा भी बजाया...प्रसाद भी लिया.......लौटते में बुजुर्गवार बेहद खिन्न........आपको बेवजह लाया.......

फिर दो बार मनमोहन के सौजन्य से कसौली की यात्रा.....भाई ने पता नहीं कितने किलोमीटर चलवा दिया.....शिवालिक की चढ़ाई साथ में.....दूसरी बार की यात्रा...रात भर का जागा हुआ......सारे पूर्वज याद आ गए......किसी तरह कतार के बीच रख घसीटा गया....

एक महीने बाद लखनऊ में पंकज जी के सामने पेशी.....कानपुर का टिकट पकड़ा दिया......जाइये....नवीन जोशी के सम्पादकत्व में स्वतंत्रभारत को चार चांद लगाइये.........

बुधवार, 25 मई 2011


हां जी....कैसी हैं आप.....उसने एक दम से आंखें ऊपर उठायीं.....आप.....तुम....तुम........हां.....तुमको क्या हुआ... नहीं....नहीं.....सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम यहां.....मैं 10 मिनट में फ्री होती हूं.....तब तक तुम....ठीक है ....मैं बाहर निकला......चावड़ी बाजार....भीड़ से लबालब......पूरे बाजार का चक्कर मार कर दस की जगह 15 मिनट बाद वापस....बाहर ही थी ....हाथ पकड़ लिया..... तुमको देख कर चकरा गयी थी....कितने दिन हो गये ना तुमसे मिले....कैसे हो....मेरी याद आती है कि नहीं......आज अचानक कैसे प्रोग्राम बना.....सोनीपत गया था कजिन के पास.....भाभी से सब बक गया...बावली हो गयीं.....फौरन रुपये पकड़ाए....दिल्ली में उससे मिल कर जाना.....तो यह बात है...भाभी जी के कहने पर मिलने आए हो.....ये बताओ कि चलना कहां है.....थोड़ा घूमते हैं....यमुना के किनारे....फिर तुम मुझे कृष्णानगर छोड़ देना....दोनों सहमे-सहमे स्कूल से भागे बच्चों की तरह यहां-वहां टूलते रहे.......फिर फव्वारे के पास से बस पकड़ी......जो कृष्णानगर से तुरंत लौटती भी थी.......बस में भीड़ .....उसके लिये सीट.....बैठी ....फिर उठ खड़ी हुई....मैं तुम्हारे साथ रहूंगी......कृष्णानगर आ गया....उसने हाथ दबाया....हम दोनों उतरे.....मैं चलती हूं घर का कोई देख लेगा..... हापुड़ आयी तो मिलूंगी जरूर से.........उसी बस में जा बैठा...नया टिकट लेकर.......कॉलेज में अरविंद से पता चला कि कई लड़के हॉकी लिये मुझे तलाश रहे थे.....बतरा उनके साथ था.....उसको भी तो पिटवाया था अपने भाइयों से तेरी लैला ने.....अब वो तुझे तलाश रहा है.....मेरे साथ ही रहा कर कॉलेज में......घर छोड़ने और लेने आ जाऊंगा रोज.......


ऐसा
भी होता है


राजीव मित्तल

एक दोपहर कॉलेज लॉन में अरविंद और योगेद्र के साथ हिस्ट्री ऑफ़ इकॉनमिक थॉट वाले सिन्हा साहब पर मजाक चल रहा था कि अचानक नजर घूमी गलियारे में......वाह...क्या अद्भुत अंदाज है चलने का.....गोरा-चिट्टा रंग....लम्बा कद...तभी कानों में अरविंद की आवाज.....अबे देख मत पंजाबन को...कई को पिटवा चुकी है अपने
भाई से.....आठ भाइयों में अकेली है....तेरी तो हड्डी भी नहीं बचेगी.....चलो.... अब की यही सही......

तीसरे सेमेस्टर के एग्जाम......दिसम्बर की सुबह.....दूसरा पेपर......जल्दी पहुंच गया एग्जाम हॉल में ....अपनी सीट तलाशी.......दूर लगी एक मेज पर उसके नाम की चिट देखी.....बिल्कुल खाली हॉल ......वहां से उठा कर अपने आगे जमा दी ......टाइम हो गया....सब आने लगे ......नजर आयी....अपना सीट तलाशते हुए ठीक मेरे सामने बैठ गयी.......पेपर हाथ में... विश किया.....पलटी....आपने कुछ कहा.....फिर विश किया.....मुस्कुरायी...जवाब दिया......टाइम से 15 मिनट पहले कॉपी जमा कर बाहर.......रैलिंग पर बैठा गप मार रहा.... दिखायी पड़ी....दो-तीन चक्कर काटे ... हम सब दोस्त ढाबे की ओर.....

पेपर खत्म......कल रात को ट्रेन में.......उसका पेपर अगले दिन भी .....कॉलेज में ऑफिस के सामने बोर्ड पर लगे नोटिस देख रहा....खूब शोरगुल....तभी पीछे से आवाज......आपने विश तो कर दिया था... पेपर कैसा हुआ यह नहीं पूछा......मुड़ा तो निगाहें मिलीं.......आप यहां के तो लगते नहीं हैं.......लखनऊ से आया हूं...आज जा रहा हूं... अरे वाह....हम एक शादी में फैजाबाद जा रहे हैं लखनऊ पड़ेगा.....आप मिलेंगे स्टेशन पर?......

लखनऊ पहुंचने के दो दिन बाद जल्दी उठा...बाहर अंधेरा.....तैयार हो कर प्लेटफार्म पर ट्रेन का इन्तजार .....जेब में लेटर....लिखा था कि प्रोग्राम एक दिन पहले बन गया....ट्रेन आ गयी.....सब डिब्बे छान मारे पर उसका कोई पता नहीं......समझ गया कि चौकड़ी ने खेल कर दिया.....तो बताने की क्या जरूरत थी सब कुछ....चलो घर वापस...मिठाई का क्या किया जाए.....कनु तो जीना हराम कर देगी कि इतनी सुबह सज-धज कर कहां निकल लिये थे जनाब....और हाथ में मिठाई भी ...वाह क्या बात है....बाहर निकल श्वानों के परिवार को इकट्ठा कर मिठाई सामने रख दी.......

अगली सुबह फिर तैयार हो कर स्टेशन पर..... ट्रेन आयी......डिब्बे खिसक रहे थे ...दरवाजे पर ही खड़ी...उतर कर पास आयी...कितनी सर्दी है....आपको परेशान किया....है न....फिर खिड़की के पास गयी.....किसी महिला के साथ लौटी.....यह मेरी भाभी हैं...इन्हीं के पास रहती हूं हापुड़ में....पांच मिनट बाद गाड़ी चल दी....छुट्टियां खत्म....वापस हापुड़ .....कॉलेज में दोस्तों ने लेटर का जम कर मजा लिया.......मिलने के जुनून में इंग्लिश एम ए की क्लास में.....सबसे आगे बैठी दिखी......मैं आ गया......सारी क्लास की नजरें हम दोनों पर....उसकी निगाहें धरती में समा रहीं.....मैं मिलती हूं आपसे......

अगली सुबह अपनी क्लास की लड़की ने मुड़ा हुआ कागज दिया...लौटते वक्त गली के उस मोड़ पर मिलना......मेन सड़क से बाएं मुड़ते ही घर की तरफ निकलने के बजाए दूसरी तरफ...थोड़ा आगे अपनी दोस्त के साथ खड़ी थी......तुम क्लास में क्यों आ गए..... मजा लिया सबने.....मैं यहीं मिला करूंगी.....दिल ने फौरन हल्ला मचाया ....इस गली में.....छतों से झांकते चेहरों के बीच.....ना बाबा.....कट ले फौरन...लेकिन लड़की हिम्मती है......इस कस्बाई माहौल में......!!!!

खैर.. कॉलेज में ही देखादेखी चलती रही.....उस दोपहर को खाना खा कर ऊपर अपने कमरे में झपकियां ले रहा कि आवाज सुनी.....उठ जाइये न....सामने देखा तो पलंग से गिरते -गिरते बचा.....अंदर आ जाऊं....कितनी देर से खड़ी हूं...कई आवाजें दीं..आ जाओ...... मेरा यहां का पता कैसे चला तुमको....घर तो मालूम था...कमरा आपके यहां नीचे किसी ने बताया........उफ्फ.....अब सबको पता चल गया.....बैठो आराम से.......कुछ बताओ अपने बारे में.....मेरा सारा परिवार दिल्ली.. कृष्णानगर में.....मां नहीं हैं.....आठ भाई.....यहां वाले भइया सबसे बड़े...बैंक में हैं.....तीन गाजियाबाद में......वे सब भी बैंक में....तभी नीचे से आवाज......चाय भिजवायें ?.......मैं आता हूं......साथ में नमकीन और मीठा ......दादी जी रात को करेड़ेंगी....क्यों रे तू चाचा के यहां पढ़ने आया है या ये सब करने.....तेरे बाप को पता चलेगा तो अपना सिर फोड़ लेगा....कितनी नाक कटवाएगा उसकी.......कहां चले गये जी...तुम कुछ बोल ही नहीं रहे.......चेहरे पे चिपक गयी रुआंसी मुस्कान......अब अपने बारे में बताओ......एक घंटा बीत गया ....मैं चलती हूं....यह तुम्हारे लिये.....चांदी की रिंग.....फॅरगेट मी नॉट.....ठीक है...कल मिलते हैं.....उसी जगह......

दो-तीन मुलाकात उसी गली में और......बीच-बीच में चिट्ठी.....दोनों की क्लासमेट मदद कर रहीं .....पूरे कॉलेज में हौले-हौले चरचा .....यार-दोस्त मामले को गंभीरता को समझ रहे....क्लास में हर टीचर मुस्कुराता सा नजर आता.......जाड़े शुरू.......इतवार का दिन... धूप अच्छी लग रही तो छत पर ही किताब खोल ली....बगल में टेपरिकॉर्डर पर गाने......अचानक परली तरफ वाले घर का कोई आया.....नीचे तुम्हें कोई बुला रहा है......ऊपर आ जाती न.....उस दिन घबरा गये थे तुम इसलिये नीचे बुला लिया......मिस्टर....अब नौकरी की सोचिये........फाइनल के बाद ही तो कुछ होगा...... एक सेमेस्टर बाकी है......क्यों कह रही हो....मेरी नौकरी लग गयी है दिल्ली में बैंक की....पढ़ाई छोड़ रही हूं.....जल्दी आना मुझसे मिलने.....लेटर लिखूंगी जवाब जरूर देना.....

सोनीपत से लौटते मुलाकात कर ही ली थी......लेकिन इधर कई दिनों से कोई खबर नहीं.....होली निकल गयी........कोई लेटर भी नहीं.......दो दिन की छुट्टी.......ननिहाल में किसी की बीमारी का बहाना बना कर दिल्ली की बस पकड़ी.....बैंक पहुंचा....नहीं दिखी तो पूछा.......अब वो यहां काम नहीं करतीं.......

लौट कर अरविंद और योगेन्द्र को बताया...दोनों क्या बोलते.....दिन बीत रहे थे किसी तरह.....चौथा सेमेस्टर खत्म होने को.....एक्सट्रा क्लासेज......तुझे पता है.....हाथ में सिगरेट पकड़ाते हुए अरविंद बोला....वो फिर आ गयी है....कल कॉलेज में दिखी थी..... हलक तक उछाल मारी दिल ने ........लौटते समय उसी गली में .....तुम वापस आ गयीं और मुझे बताया भी नहीं......मुझसे मत मिला करो अब.....चेहरा उदास...डबडबायी आंखें.....साइकिल बढ़ा दी.......दसरे दिन किसी के हाथ चिट्ठी भिजवायी.....ठीक है नहीं मिलूंगा....लेकिन कुछ बताओगी?.......खत देने वाली ने लौट कर बताया.....तुम्हारा पत्र पढ़ कर रो पड़ी.....यह क्या हो गया बैठे बिठाए......

एक रात कोई लड़का ऊपर कमरे में आया और लिफाफा पकड़ा गया......लाइट नहीं थी....लालटेन की रोशनी में.....बहुत नाराज हो न मुझसे.......तुम नहीं जानते मेरे साथ क्या-क्या हुआ......सच्ची बताऊं ...उस दिन तुम्हारे कमरे से फोटो उठा लिया था तुम्हारा.. पर्स में रखती थी.....एक दिन भइया ने निकाल लिया......कुछ बोले नहीं.....फिर जब तुम दिल्ली आए तो मुझे छोड़ने कृष्णानगर गए.....रास्ते में किसी ने देख लिया.......तुम्हारे बगैर मन बिल्कुल नहीं लग रहा था....मैंने नौकरी छोड़ दी....सब बहुत नाराज हुए.....मेरा खाना-पीना बंद कर दिया गया....मैं जबरदस्ती हापुड़ अ गयी......तुम पर भइया बहुत नाराज हैं.... एक दिन तुमको पान की दुकान पर सिगरेट पीते देख लिया तो और भड़क गए....तुम संभल कर रहना.....मैं तुम्हारे साथ हूं.....यह लेटर टॉर्च की रोशनी में लिख रही हूं.......भाभी तुमको पसंद करती हैं.....लेकिन अब वो बदल गयी हैं.....

सब ऐसे ही चल रहा था....कभी चिट्ठी.....कभी वही गली.....एक दिन भरी दोपहर में दरवाजे पर खटखट...खोला तो सामने.....कितने दिनों बाद यहां आयी हूं न.......मैं नीचे से पानी ला रहा हूं....तुम पी कर निकलो....किसी ने देख लिया तो....कुछ देर तो बैठने दो पंखे के नीचे...तेज धूप से आयी हूं....सिर चकरा रहा है......चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा....मां की बहुत याद आती है....वो होतीं तो सबको देख लेती.....मां मेरे नाम काफी सोना और जेवरात कर गयी हैं....जल्दी कोई नौकरी न मिली तो कोई परेशानी नहीं.....मैंने लखनऊ मम्मी को तुम्हारे बारे में लिखा था.....पूछती रहती हैं.....अरे वाह....मुझे पता दो मैं लिखूंगी उनको.....तभी बगल वाले कमरे के खुलने की आवाज...दादी जी......कुछ देर बाद चाची....शायद मनाने आयी थीं रूठी सास को.....अब हमारी बातें बिन आवाज...अब तुम जाओ.......तुम चलो मुझे छोड़ने नीचे....मरवाओगी....तो मैं नहीं जाती.....अच्छा बाबा चलो....धीरे से दरवाजा खोल कर सब तरफ देखा.....दबे पांव नीचे उतरे.....सेंडिल हाथ में.......लौटा तो सांस में सांस आयी.....

अब पढ़ाई जोरों पर....लखनऊ से केकेसी की लायब्रेरी से कई किताबें ओरिजिनल....दिमाग से भभूके उठ रहे........स्टेटिस्टिक्स परखच्चे उड़ा रही....ऊपर से वो देवी.. लगता है समाज के सारे बंधन तोड़ने पर तुली थी.....एक दिन रात को फरमान आया कि घर में कोई नहीं है फौरन आ जाओ संदेश वाहक के साथ.....उस भयानक गली में पैर रखने का सवाल ही नहीं......उस दिन जो पीटने आए थे उनका लीडर वो बतरा उसी गली का वासी.......यह सुन दिमाग घूम गया कि संदेशवाहक बतरा का छोटा भाई.....पर उसे कोई चिंता नहीं....मुझे बहुत मानता है...

मैं सुबह तुम्हारा उस गली के पीछे वाले मन्दिर में इंतजार करूंगी......पहुंचा तो गश आने लगा.....बतरा साहब मन्दिर के बाहर.....दिल थाम कर घुस गया अंदर...जो कोई देवता वहां मौजूद था...पकड़ लिये चरण....बाहर निकला...सीढ़ियां उतर कर बतरा से कहा सिगरेट दो.....कश लगाते हुआ लौट रहा.....अब गोली लगी पीठ पर....दो घंटे बाद कॉलेज जाने के लिये दायीं तरफ गली में मुड़ा....तो कोरस में मंदिर वाला कोई प्रेम गीत......अब तो सारा हापुड़ जान गया था ....बतरा को दूर से ही देख मंदिर का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था देवी ने.........

एक दोपहर....मैं फिर आ गयी जी......आज तुम्हारे चाचा जी ने गेट में घुसते देख लिया....कुछ होगा तो नहीं.....अब बचा ही क्या है कुछ होने को........शाम को अशोक जी मिले......उसे घर में तो मत बुलाओ....तुम्हारे चाचा कह रहे थे....उससे कह दो कि अब एग्जाम करीब हैं होश में चले.......हापुड़ के सारे गुंडे उसके पीछे पड़ गए हैं.......कुछ को कॉलेज से निकाले जाने से बचाया था.....इसलिये खामोश चल रहे हैं........

एग्जाम शुरू......चाचा अपने साथ ले जाते लाते.........दोनों दोस्त भी बहुत ख्याल रख रहे कि यह लखनउवा पिट कर ना जाए उनके रहते.......अरविंद भी कभी दादा रह चुका था........पेपर खत्म....अब.....अब हापुड़ छोड़ देना है...कल ही ..उसको पता चला तो रात को नौ बजे आकर बिलखना...किसी तरह चुप कराया...बता रही .....मम्मी ने लखनऊ से साड़ी भेजी है......खूब चिट्ठी-पत्री.....एक दूसरे की पसंद-नापसंद भी पता चल गयी दोनों को.....लीजिये मां की बहु सामने खड़ी है और मैं उसके हाथ जोड़ रहा हूं कि जाओ मेरी मां.......कल कॉलेज में मिलोगे....नहीं.....तो मैं आऊंगी दोपहर में........

घर में कई मेहमान....सोनीपत वाली भाभी .....उससे मिलवा न......चुप करो जी....बाद में....पहले ही नीचे खड़ा हो गया कि ऊपर न आ जाए.....यह मुलाकात ऊपर जातीं सीढ़ियों के पास....तुम्हारे लिये कुछ लाई हूं....मुंह खोलो....चॉकलेट...याद रखोगे न.....मम्मी से यह कहना-मम्मी सो वो कहना....मैंने भी उनको कुछ भेजा है....पूछना उनसे.... अच्छा लगा कि नहीं......भाभी को बताया तो घुमा कर दिया पीठ पर.....नालायक....नीचे से नीचे विदा कर दिया.... मैं देख लेती तो कुछ बिगड़ जाता तुम्हारा.....

लखनऊ...शादी थी घर में......उस हल्ले गुल्ले में याद रहता तो बस यही कि उसका खत आने वाला है.......एक दोपहर घर की सब लड़कियां शोर मचाती मेरी तरफ लपकीं.....भैया.. तुम्हारा खत आ गया.....तो अब सबको मालूम हो गया....जरूर मां ने सबको दिखा दी होगी अपनी बहु की सौगात ..... शादी भी निपट गयी....... विदायी को यमुनानगर जाना पड़ा......चार दिन बाद वापसी.....बहुत खाली-खाली लग रहा.......उसकी याद तो बहुत नहीं सता रही थी....सता तो यह रहा था कि वो याद क्यों नहीं आ रही जोरों से.........

फिर कुछ दिन गुजरे......लखनऊ से भाग जाने का मन.....यह बोझ भी कि आगे क्या करना है.....छोड़ो जी सब.....एक रात फिर ट्रेन में.....सुबह हापुड़.....घर पहुंचा तो चाचा जी अकेले.....चाची बच्चों के साथ मायके और दादी जी उज्जैन बुआ के पास.....तू आ गया बहुत चैन मिला......अम्मा का मोतियाबिंद का ऑपरेशन है उज्जैन में.....तू चला जा......रिजर्वेशन हो जाएगा....दिल्ली से जाना है......तब तक अपनी मार्कशीट ले आओ......पहले योगेन्द्र..फिर अरविंद को पकड़ा....कॉलेज से मार्कशीट ली.....तीनों की फर्स्ट डिवीजन.....लौटते समय ढाबे पर चाय.....तभी रिक्शा रुका....वो उतरी....तुम यहां....मुझे बताया भी नहीं......कई दिन से कोई चिट्ठी भी नहीं.....रोने लगी.....सड़क पर.... हक्का-बक्का....तीन-चार लड़के कहीं से आ गए.....तू ही है वो....आगे बढ़े तो अरविंद बीच में आ गया.....बाद में मिलता हूं कह किसी की साइकिल पर लद लिया......अगले दिन दिल्ली.....फिर उज्जैन....दस दिन बाद लखनऊ.....

वही बेनाम दर्द.....कुछ पता नहीं चल रहा था कि हो क्या रहा है...होने क्या जा रहा है......उसके पत्र मां के पास आते रहते......क्या बात है वो मुझसे नाराज क्यों हैं कुछ बोल नहीं रहे....मां पूछतीं....टाल जाता.....बहरहाल दिन गुजरते गए...साल बीतते गए....सरकारी नौकरी में आ गया.....लिखना शुरू कर ही दिया था.....चंचल से दोस्ती....एक पत्रिका के सम्पादक.....उनके कहने पर कई लेख दिए.....कई दिन बाद मिले तो बुरी तरह नाराज....यार तुमसे यह उम्मीद नहीं थी.....वो लड़की मिली तो रो रो कर पागल हुई जा रही.....गाजियाबाद में जिस दोस्त के घर में रुकता हूं.....उसकी पत्नी की सहेली है वो....एक दिन यही पत्रिका पढ़ रही थी तो तुम्हारा लेख देखा.....मुझसे पूछा कि यह आपके दोस्त हैं.....ये हापुड़ में रहे हैं क्या.....मैंने तुम्हारे बारे में बताया....तो बोली....भाईसाहब... बस एक बार मिल लें वो मुझसे....तो तुम उससे फौरन मिलो......मैं उस दिन गाजियाबाद पहुंच रहा हूं....तुम दिल्ली जा ही रहे हो.....मेरे दोस्त के घर पहुंच जाना शाम को.........

दिल्ली में काम निपटा कर शाम होते-होते गाजियाबाद .....घर तलाशते अंधेरा छा गया था....बाहर गेट पर घंटी बजाई....कोई महिला आयीं.....चंचल जी आ गए हैं.?... मैं उनका दोस्त....उन्होंने यहीं मिलने को कहा था......नहीं...वो तो नहीं आए....आएंगे तो बता दूंगी......बस इतना ही..चली गयीं ..अंदर आने को भी नहीं कहा.....मैं गुम हो गया था कहीं..... काफी देर अंधेरे में खड़ा रहा....शायद कहीं से कोई आवाज ही मिल जाए सुनने को.....तुम कहां थे इतने दिनों से......अब तो मुझे छोड़ कर नहीं जाओगे न....!

मंगलवार, 17 मई 2011

खाड़कुओं के इलाके में





राजीव मित्तल


इसे कहते हैं आ बैल मुझे मार.......सब कुछ बढ़िया चल रहा.......नवभारत टाइम्स भी.....लखनऊ भी....अपने घर में अपने कुटुम्बियों के बीच....छोटे बेटे की किलकारियां....हिपटुल्ला टाइप लेखन... शहर भर में चर्चित बना देने वाला.....ऑफिस में बेहद दोस्ताना माहौल......लेकिन कहीं न कहीं खटक रही थी इतनी सुकून भरी जिंदगी...मेज पर पड़े जनसत्ता पर नजर गयी.... प्रभाष जी न्यौता दे रहे हैं मरजीवड़ी टीम में शामिल होने को.....तुरंत अखबारी कागज पर टकसाली भाषा में अपनी नामुराद राइटिंग का नमूना पेश कर दिया..आश्चर्य... जवाब सामने... देखें तो सही आपको...चंडीगढ़ आइये...

आता हूं जी......घर में थोड़ी चुकुर-पुकुर हुई....घूम आने दो सुन सब शांत....चलने वाली रात किसी करीबी के घर से चंडीगढ़ वाली बिटिया के लिये कुछ सामान...रास्ते में सब बहा दूंगा....साथ में संदेश भी....कि सामान समेत घर में ही घुस जाऊं.....और जब तक चाहूं मेजबानों को झिलाऊं....अंबाला से बस....17 सेक्टर से रिक्शा...18 सेक्टर में घर....अंधेरा छंटने को...हल्की ठंड....चार-पांच बार नीचे के दरवाजे पर धम-धम....ऊपर आहट। दुआ-सलाम के बाद बगैर झिझक बिस्तर में...तगड़ी नींद के बाद तैयारी...ऊपर से फोन गया तो एक के बाद एक प्लेट सीढ़ियां चढ़ रही...नीचे पतिदेव का होटल. ....मिठाई की इतनी किस्में देख आंखों के सामने हलवाई की लड़की ...गहरी सांस लेकर सुताई शुरू....रिक्शे से इंडियन एक्सप्रेस के प्रांगण में.....प्रभाष जी की कार से 15 सेक्टर के किसी भवन के अंदर.....

जनसत्ता की प्रवेश परीक्षा मानो अखंड रामायण..बारह से छह....यानी दो शो लगातार.....सवाल खत्म होने का नाम नहीं..अंधेरा होने को...रात में तम्बू लगने की आशंका....आदतन दस मिनट पहले कॉपी जमा कर बाहर.. ....वहां से फिर उसी घर में....एक बार फिर दिव्य खाद्य सामग्री के दर्शन........

कुछ दिन बाद एक और बुलावा कि अब कुछ बातचीत भी हो जाए। वो भी हो ली...तो इस बार नियुक्तिपत्र भी लेते जाओ भाई....तब तक शहर दीवाना बना चुका था। अब तो लेटर भी हाथ में...

लखनऊ में आखिरी हफ्ता बहुत भारी गुजरा......पिता का मकान मालिक के ड्राइंगरूम में स्यापा ....पत्नी की दोनों बच्चों को गोदी में उठा मायके जाने की धमकी...नवभारत टाइम्स में वीरानी ....समझा-बुझा कर संत मुद्रा में ट्रेन पर सवार....

सलीकेदार एक्सप्रेस वालों ने इस बे-सलीकेदार इनसान पर बड़ी इनायत फरमायी.....हाय-तौबा.....हंसी-ठठ्ठा....चीख-पुकार.....गाना-बजाना....एक डेस्क से दूसरी डेस्क को खबरें उड़ती हुई देखने का पूरा मजा लेते.. पतंग की तरह लहरातीं खबरें कई बार वहां बैठे सम्पादक जी के सिर पर से भी गुजरीं.....वहां पहुंचने के चौथे ही दिन लखनऊ वाले हरजिंदर के साथ मोहाली पहुंच मनोज कुमार की बकवास फिल्म देखी.....मोहाली मतलब पंजाब......हर समय दिल धड़कता रहा कि अब बम फटा.....सिनेमा हॉल में भी केवल हम दो..... और चार गेट कीपर.......

फिल्म इसलिये देखी कि समीक्षा लिखने को मन मचल रहा.......चढ़ा ज्यादा ही दिया था जानी-पहचानी सूरतों ने....जीएम को भी कहीं से खबर लग गयी तो वहां से भी अनुरोध....समाचार सम्पादक भी अपने घराने से परिचित......

प्रभाष जी वहीं डेरा डाले हुए.....पहला दिन......हॉल में घुसा तो सामने आरामकुर्सी पर विराजमान......दशहरी आम तो अभी आए नहीं होंगे......संभालो अपनी थानेदारी.......काम के मामले में पूरी छूट....सीट संभालते ही भीड़ को अलग-अलग डेस्कों पर सटा दिया....और अपने लिये सवा-सवा लाख के बराबर तीन जन छांट लिये......डमी के दौरान एक रात पारा आसमान पर....आवाज उससे भी ऊपर ...जिस पर अपना नजला झड़ रहा....उसने घबराहट में टेबिल पर ही चाय लुढ़का दी....लीड खबर के कागजों का सत्यानाश....तभी प्रभाष जी आ पहुंचे.....इतनी जोर से डांटोगे तो अस्पताल पहुंचाना पड़ेगा इसे...

अखबार शुरू .....लेकिन स्थानीय सम्पादक का पता नहीं.....जिनको आना था वो नरेन्द्र कुमार सिंह नहीं आए.....जबकि अपन को लाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था....हिंदी में इतना स्मार्ट सम्पादक पहली बार नजर आया .....एक्सप्रेस से खींच लाए थे प्रभाष जी....इंडिया टुडे चले गए......दिल भन्ना गया.....एक रात प्रभाष जी के साथ दिखे खद्दरधारी जीतेन्द्र बजाज.....जर्मन अर्थशास्त्री शुमाखर के चेले...हमारे स्थानीय सम्पादक .....सज्जन....लेकिन अखबार और अखबारी दांवपेचों से कतई अनजान..

दो महीने बाद ही खबरों का ताबड़तोड़ हमला.....स्थायी तौर पे रात की इंचार्जी थमा दी गयी..जुलाई की रात.....तूफान और बारिश.....एक बजे का समय...पूरे हॉल में मात्र पांच जन ..तभी मशीन ने चार लाइन की खबर फेंकी.....लाडलू में नरसंहार.....आतंकवादियों ने बस रोक कर सभी गैर सिखों को भून डाला....पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हत्याकांड......हरजिन्दर और मैं....खबर का पता नहीं....फौरन फैसला करना है.....फुटेला जी टहलते नजर आए....अबे इधर आ.....गाड़ी मंगा रहा हूं.....लाडलू जाना है.....35 किलोमीटर दूर....इस मौसम में....फौरन तैयार हो गया....साथ में स्पोर्ट्स वाला अशोक महाजन.....तुम्हारा तीन बजे तक इंतजार करूंगा....उसके बाद एजेंसी जो भी दे.........एक्सप्रेस वाले भी तैयार हो कर बैठ गये अनुवाद के लिये......जब दो बजे तक एडिशन नहीं छूटा तो जीएम का फोन.... एडिशन क्यों नहीं छूटा ....पूरी रामकहानी बतायी.....बहुत देर हो जाएगी.....जनसत्ता बिकेगा कैसे....चाहे जितने बजे छपे, बिक कर रहेगा......आप कैसे कह सकते हैं......सम्पादक जी से बात कीजिये....चार बजे से पहले नहीं छोड़ूंगा....फोन ही पटक दिया.....फुटेला साढ़े तीन बजे लौटा......बीस मिनट में रिपोर्ट तैयार.........सवा चार बजे खत्म हुआ ऑपरेशन लाडलू......अब....चलो सब चलते हैं पीजीआई....लाशें और घायल तो वहीं आएंगे.....पीजीआई में हर तरफ रोने-चिल्लाने का आवाजें.....घबरा कर बाहर आ गया....सामने कार से उतर रहे जीएम......अभी तक जनसत्ता की छपायी शुरू नहीं हुई है....और सभी अखबार बिक रहे हैं.....दस बजे भी छपा तो भी बिकेगा.....ठीक है आप यहीं रुकिये अभी आता हूं.....लेकिन बस सामने...हरजिंदर के साथ चढ़ लिया....सेक्टर बीस में होटल खुला ही था.....फटाफट परांठे बनवा कर खाए...चाय पी....और सेक्टर 21 की बंगलिया में बिस्तर पर ढेर......शाम को तैयार हो कर ऑफिस ....अंदर घुसते ही दिख गये जीएम सुशील गोयेनका .....घनी मूंछों में मुस्कुराहट.....वेल डन......कितना बिका......तीन बार छापना पड़ा......कोई भी अखबार डीसी से ऊपर नहीं जा पाया.....और जनसत्ता में बैनर खबर आधा पेज तक......

अखबार के हर पक्ष से खासा जुड़ाव.....18 घंटे दफ्तर में गुजरते..............काम नहीं तो किसी के साथ कहीं भी निकल लेना....शहर....गांव.....कस्बा....सभी कुछ छान लिया छह महीनों में.....एक रात सुशील सोलन जा रहा अपने घर तो हम दो भी लद लिये साथ......दूसर हरजिंदर...हर जगह का साथ .....लेकिन बस एक साल रहा .....फिर बनारसी सुधांशु मिश्रा.....गुण-अवगुण दोनों की खान.....उसका साथ मन को बहुत भाया....लेकिन उसके शातिरपन से बचने के तगड़े उपाय.....जगमोहन फुटेला......बाप रे.....उसके साथ चलना...मतलब जूते पड़ने की नौबत....मनमोहन सिंह......दो बार कड़ाके की सर्दी में परवाणु से कसौली पैयां-पैयां ले गया और जिंदा वापस ले आया......

चंडीगढ़ में आये दिन धमाके....... बीस सेक्टर भी छूटा.....यात्री निवास में जाते-जाते सात सेक्टर....बहुत सुनसान जगह ...एक बेहद गर्म दुपहरिया...पूरे जहान में बस हम दो....आसमान में चील...सड़क पर यह नाचीज...झपाके से मारुति रुकी.......कार में सात फुटिया सरदार जी........ ओए...चील कित्थे है....होश गायब.....हां भई बत्ता.....ऊपर देखा...चील....चील....चील....चील कित्थे है.....नहीं चील को नहीं पूछ रहे....तो....तो... ओ जी है तो एक चिड़ियाघर, पर वहां दो हिरन और एक तोता है बस......ओए...क्या बक रहा है....मैं चील पूछ रहा हूं चीललललललललल॥ अब दिमाग ने काम शुरू किया.....बेवकूफ चील नहीं झील....झील.....ओ जी झील????? हां ज्जी चील.......जी ऐसे जाकर उधर मुड़ जाना जी......दो मिनट के चील-झील ने खून सुखा दिया था अपना....... जगह

सात सेक्टर में ही मिल गयी वो जाटनी....पूर्णिमा की दोस्ती परवान पर.....किसी सरकारी स्कूल में टीचर....मेटरनिटी लीव पर.....पति हेल्थ इन्सट्रक्टर......बीवी के सामने बेचारा...दो महीने की बच्ची को शिशु सदन में छोड़ने गयीं दोनों सहेलियां.....वहां बच्ची मां से भी तेज निकली....रुकने को तैयार ही नहीं .... पूर्णिमा की दिलदारी....मैं पालूंगी इसको......मां के स्कूल शुरू....जाते समय मेरे पास सुला जाए.....जागते ही किलकारियां शुरू....यहां देर तक सोना पिन ड्रॉप साइलेंस में....दोनों सहेलियों के लिये बद्दुआ निकलती......लेकिन हमने भी उसे डेढ़ साल की करके छोड़ा...

जीतेन्द्र बजाज चले गये....दो महीने के लिये पंडित अच्युतानंद मिश्र .....फिर पधारे ओम थानवी राजस्थान से...जोधपुरी.....शुरू में ही खुद ने ही मान लिया था कि किस्मत ने दिलायी जनसत्ता की सम्पादकी.....सो आज भी किस्मत दामन थामे है......

शनिवार, 14 मई 2011

चौंतीस साल की बादशाहत




राजीव मित्तल

इतिहास गवाह है कि इतने अरसे की सत्ता बिरलों को नसीब हुई है। जिस तंत्र में हर पांच साल में बहुदलीय चुनाव होते हों....उस लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक पार्टी 34 साल राज कर जाए तो इसे ऐतिहासिक कहना भी कमतर होगा। 1977 में देश में आपातकाल हटने के बाद पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में मार्क्सवादी पार्टी सत्ता में काबिज हुई..भले ही गठबंधन के रूप में, जिसमें कई छोटे-छोटे दल शामिल थे। ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने और अगले 24 साल तक वह राज्य का शासन चलाते रहे। 80 से कई साल ऊपर निकल जाने के बाद स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया और बुद्धदेव भट्टाचार्य को कुर्सी थमायी गयी।

बुद्धदेव के नेतृत्व में वामपंथी गठबंधन ने 2004 के चुनाव में पार्टी का 27 साल से चला आ रहा करिश्मा दोहराया। संसद और विधानसभा दोनों में उसे भरपूर सफलता मिली। लेकिन चरम पर बने रहने का आखिरी चुनाव साबित हुआ २००४... शायद कुछ साल और खिंच जाते अगर बंगाल के वामपंथी माहौल में बुद्धदेव बिल्कुल सट न जाते रतन टाटा से। और पार्टी गंडागर्दी इतनी न बढ़ जाती।

यहां पर फिर एक बार इतिहास को बीच में लाना होगा....सन् 1757 तक मराठा अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गये गये थे। उससे पहले के 35 साल उन्होंने दिल्ली के बादशाहों से लेकर देश के अधिकांश राजाओं को अपने घुटनों पर झुकाया। बचे-खुचे उनसे संधि कर ही सांस ले पा रहे थे। लेकिन चार साल बाद ही पानीपत के मैदान में अहमदशाह अब्दाली ने मराठा ताकत को छिन्न-भिन्न कर दिया....ठीक उसी तरह सिंगूर बुद्धदेव के लिये पानीपत साबित हुआ। कई अखाड़े तो पहले से खुदे पड़े थे। अपने अराजक राज्य में बेहतर माहौल बनाये बगैर औद्योगिकीकरण की बहार बहाने को उतावले बुद्धदेव ने सिंगूर के किसानों की जमीन औने-पौने दामों पर टाटा को थमा दी, नैनो कार के निर्माण के लिये।

तीन दशक की वामपंथी बयार में सांस ले रहे सिंगूर के किसानों को अपने ही आका का यह फैसला कतई मंजूर नहीं था। उनके गुस्से को अंजाम तक पहुंचाया ममता बनर्जी ने। एक तरह सिर पे कफन बांध कर ममता ने वहां किसानों का साथ दिया। बुद्धदेव और उनकी पार्टी मशीनरी ने सिंगूर में अपने सारे घोड़े दौड़ा दिये लेकिन किसान और ममता टस से मस नहीं हुए। यहां तक कि रतन टाटा को ममता से चिरौरी करनी पड़ी। लेकिन वह नहीं मानीं। उसके बाद बुद्धदेव ने नंदीग्राम में उद्योग लगाने का मंसूबा बनाया...वहां भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी। टाटा तो राज्य ही छोड़ गए।

इसके अलावा 34 साल के शासन ने मार्क्सवादी मशीनरी को गुंडई में तब्दील कर दिया था। ज्योति बसु ने राज्य के ग्रामीण इलाकों को स्वायत्त बना कर पूरे देश में वाहवाही लूटी थी और जिसकी चरचा पूरी दुनिया में हो रही थी, वे गांव और उनके साथ शहर भी मार्क्सवादी कायकर्ताओं की गुंडागर्दी से आंतक के साये में जीने को मजबूर हो गये थे। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के आने के बाद तो राजनैतिक हत्याओं का ग्राफ तेजी से ऊपर भागने लगा। ममता भी मार्क्सवादियों को उन्हीं के अंदाज में टक्कर दे रही थीं।

प्रदेश की राजधानी कलकत्ता और बंगाल के अन्य बड़े शहर, जो मार्क्सवादी पार्टी का गढ़ हुआ करते थे, पिछले स्थानीय निकायों के चुनाव में बुद्धदेव को अंगूठा दिखा गये। 2009 के संसदीय और विधानसभा चुनाव के नतीजों ने तो साफ संकेत दे दिया था कि अब राज्य में वामपंथियों के दिन गिने-चुने रह गये हैं। जाहिर है कि

मार्क्सवादियों के इस किले को ढहाने में पिछले कई साल से तन-मन से लगीं ममता बनर्जी का बहुत बड़ा हाथ है, लेकिन अपनी कब्र खोदने में वामपंथियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। न वे समय को परख सके और न अपने राज्य की जनता की मन:स्थिति को। कम से कम उन्हें बीस साल पहले हुई सोवियत संघ और कम्युनिस्ट पूर्वी यूरोप की दुर्गति से तो सबक लेना ही चाहिये था। यहां तक कि चीन में भी अब उग्र वामपंथ के मसीहा माओ त्से तुंग का नाम कोई नहीं लेता।

बुधवार, 11 मई 2011

बाबा एक सौ बीस का पान






राजीव मित्तल



चंडीगढ़ में इंडियन एक्सप्रेस ऐसी जगह.....जहां करने को बहुत सारे काम.......मसलन अगर खबरों से जी उचट रहा हो तो लोहा पीट सकते हैं.....बनियाइन सिल सकते हैं.....टीन की चादरों पे टांका लगा सकते हैं......सीधे भट्ठी में मुंह डाल कर बीड़ी सुलगा सकते हैं.....गाली-गलौज कर सकते हैं......डंडे चला सकते हैं.....माल ढोने वाला रिक्शा खींच सकते हैं....रेहड़ी ठेल सकते हैं....ऐसे न जाने कितने काम......पूरा इलाका किसी मिल के बहुत बड़े अहाते जैसा....जो अलग-अलग सेक्टर में बांट दिया गया हो....गंध भी वैसी ही....चलते-फिरते इन्सान भी वैसे ही.....सड़कें टूटी-फूटी.....शानदार कारों वाले शहर के इस इलाके में साइकिलों की भरमार.....

वो पुरानी इमारत......अब तक...सिगरेट का सुट्टा लगाने वालों की.....वो भी मात्र दो-चार.....थोड़े से स्कूटर वालों की.....धीमे-धीमे बात करने वालों की......किसी बात पर मुस्कुरा देने या दांत चमका भर देने वालों की.....चूं-चूं-चीं-चीं करने वाली युवतियों का आफिस हुआ करती थी.......जनसत्ता वालों के घुसते ही बचाओ बचाओ की गुहार मचाने लगी.....सीढ़ियों की दीवारें पान की पीक से रंगने गयीं.....एडिटोरियल हॉल चीख-चिल्लाहट से गूंजने लगा......एक ही हॉल में.......कभी जिसके क्लब जैसे माहौल में खबरें ऐसे बनती थीं जैसे ब्रिज की बाजी लगी हो......उसी में अब हॉकी...फुटबॉल....क्रिकेट.....सब खेला जाने लगा....कुल मिला कर उस भूतिया महल को हम प्रेतों ने गुलजार कर दिया.....नीचे की सुनसान सड़क अंधेरा होने तक भरी भरी रहने लगी.....चार-पांच पान के खोखे कतार में.......दो चाय वाले......एक जगह जलेबियां और समोसों की खुश्बू भी.....

प्रबंधन ने अपनी तरफ से तो पान की पीकों का अगले ही दिन इलाज कर दिया......20 जगह मिट्टी भरे डिब्बे....लेकिन धुआंधार पीकों ने पानी फेर दिया..बेकार की खबरों के तारों का कनस्तर अपना पीकदान....मजबूरन प्रबंधन ने भी मुंह फेर लिया...हां, सीढ़ियां बच गयीं.......एक कैंटीन भी खुल गयी.....

लेकिन उन खोखों के पान अपने लिये लाचारी के सिवा कुछ न थे....जैसे रंगी घास कचरी जा रही हो....कटारी मार्का चूने ने मुंह में कई जगह जख्म बना दिये......बिहारियों और पूर्वी उत्तरप्रदेशियों का तो काम हथेली मसलने से चल जाता था...दो बार फटका मारा और खैनी मुंह में.....दो घंटे की छुट्टी.....लेकिन यह लखनवी क्या करे.....अभियान चला कर मकान और पान की तलाश शुरू......

सेक्टर-30 की होटलनुमा अग्रसेन धर्मशाला में दो महीने मस्ती भरे ....शादियों के समय हम पांच-सात लोगों को भोजन की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं...मैनेजर पूरब का....इसिलये पकवानों की कई प्लेटें हमारे कमरों में......गृहस्थी जमाने के चक्कर में एक दिन हम चार जन दफ्तर से जीप मंगा कर एक पुराने चंडीगढ़िया के पड़ौस में उसी के बताये मकान में घुसे तो मकानमालिक ने इतने लोगों को देख एडवांस में लिया किराया वापस कर दिया......उतारा गया सामान फिर जीप पर..... वापस अग्रसेन में.......लेकिन पान का क्या हो....वही खोखों पर गुजारा...

एक सुबह पत्नी मय बच्चों और अपनी सास के चंडीगढ़ में हाजिर.....अग्रसेन जिंदाबाद......दोपहर को सेक्टर-21 में एक बंगले के पिछवाड़े रह रहा गंगानगरी भूपेंद्र नागपाल सीधे गंगानगर से आ धमका और मेरी गैरमौजदूगी में सबको अपने यहां उठा ले गया........शाम को आफिस में अपना कारनामा बता कर बोला....आप भी वहीं चलोगे मेरे साथ....उसकी रिहायश की जगह कमाल की .....चारों तरफ शानदार छोटे -छोटे बंगले.....प्यारी सी कमनीय सड़क.....कुछ सोच में डूबी हुई सी......पेड़ों के कई कई झुरमुट......हरियाली का अम्बार....गेट के अंदर घुसते ही लॉन....बीच में बंगला....पीछे दो कमरे का आउट हाउस......सब उसमें समा गये...किचन भी.....तो सुबह वो भी महक उठी......कहीं पेड़ आम टपका रहे.....तो कहीं शहतूत.....दो पेड़ लोकाट के भी......हंसता-खेलता खिलखिलाता नजर आने लगा परिवार......

मकानमालिक रिटयर्ड कर्नल फलाने सिंह जब एक दिन दिल्ली से पधारे तो सिर पकड़ के बैठ गये...क्योंकि सारे पेड़ों के फल चूमने-चूमने लायक रह गये थे....भला आदमी खामोशी साध गया अपने किरायेदार के मेहमानों की हरकत पर....

सेक्टर 20 बगल में लगा था...तो वहां दिख गयी वो दुकान...जिसकी तलाश में मारा मारा फिर रहा था ..जितनी हैंडसम दुकान उससे ज्यादा स्मार्ट वो नौजवान दुकानदार...कि अगर टाई बांध कर ब्रीफकेस थाम ले तो आज का एमबीए लगे...यह चकाचक देख घबराहट भी हुई... धड़कते दिल से बतियाया तो भला लगा वो......पान और भी लाजवाब...जी खुश हो गया....पांच पान एक साथ बंधवाए....सुपारी और बाबा एक सौ बीस अलग से भी पुड़िया में....सब माल शानदार पैक में....अब तो उसके यहां दो-तीन चक्कर रोज के.......किसी की भी दुकान पर होता तो देख कर लपकता....

एक महीना 22 सेक्टर में गुजारा....कुछ महीने बाद परिवार समेत 20 में ही बस गया..... अब तो घर से न जाने कितने चक्कर उस दुकान के......कई घरेलू काम उसके जिम्मे.....बिजली वाले से लेकर गैस का सिलेंडर तक.....घर में कोई फंक्शन हो तो सारा इंतजाम भी उसी के सिर......बच्चों से भी उतना ही लगाव .....उससे मिलने के बाद ही आफिस के लिये बस पकड़ता......कोई वाहन मिल जाता तो रात को आठ बजे आफिस से निकल उसके यहां......इस दोस्ती के दो साल बड़े आराम के रहे.......

एक मई को प्रभाष जी चंडीगढ़ जरूर आते और किसी होटल में जनसत्ता वालों को बढ़िया भोजन कराते...लेकिन उस बार दो महीने बाद आए.......दोपहर का प्रोग्राम.......उसके यहां से पान खा और बंधवा कर उस जलसे में शामिल....शाम को सीधे आफिस....रात दो बजे वापसी.....

अगले दिन पंडिताइन का बृहस्पतिवार का व्रत......दही लाने को बोला.....साथ में कुछ और भी....पान को मन मचल ही रहा था....निकल लिया.......देखा तो वो छोटा सा मार्केट बंद.....कुछ समझ में नहीं आया.....बगल के मार्केट से दही ली....और सामान लिया .....फिर उसकी बंद दुकान के सामने....कोई जाना-पहचाना दिख गया....बाजार बंद क्यों है.....आपको नहीं पता....क्या नहीं पता.....कल शाम दर्शन गुजर गया.....नई मारुति में पत्नी-बच्चे को बैठा कर होशियारपुर जा रहा था---रास्ते में पंजाब रोडवेज की बस ने टक्कर मार दी.... वहीं खत्म हो गया.....बेहोश पत्नी को अस्पताल लाए.....उसको पता चला तो वो भी.....बच्चा बच गया है.......
सब सुनाई पड़ रहा.....साथ ही जैसे कोई फिल्म चल रही हो.....दर्शन पान लगा रहा...हंसते हुए कह रहा...आपका पान बहुत मंहगा पड़ता है मुझे.....लेकिन आपको खिलाने में जो मजा आता है ....तो सब भूल जाता हूं......

एक हाथ में दही...दूसरा भी घिरा हुआ....घर लौटते वक्त उस तीन फर्लांग के रास्ते में बहते आंसू पोंछने का कोई साधन नहीं......कोई शर्म भी नहीं आ रही थी पता नहीं क्यों.....कम आवाजाही....फिर भी कोई न कोई रुक कर देखता जरूर.....घर की सीढ़ियां खत्म होते ही कोई नियंत्रण नहीं रह गया था......आंसू भी फूट-फूट कर निकल रहे......पूर्णिमा परेशान.....क्या बताता कि कौन चला गया.....

कई दिन तक जब तब आंखें भर आतीं.......उसकी दुकान के सामने सड़क पार बस स्टेंड....रैंलिंग पर बैठ जाता और उस बंद दुकान के अंदर तक नजरें चली जातीं.....उसकी गोद में मेरा छोटा बेटा और वो उसके मुंह में टॉफी डाल रहा है.....रोज ऐसा ही सबकुछ....बंद दुकान तकलीफ बढ़ाती जा रही....लेकिन उस जगह बैठना बंद नहीं किया.....डेढ़ महीने बाद देखा कि दुकान खुली हुई है....अंदर कोई और...पूछा.....मैं मामा लगता हूं जी दर्शन का....उस दिन दो जोड़ा आंखें गीली हुईं......लेकिन दुकान के खुल गये पटों ने राहत तो पहुंचायी ही ........

रविवार, 8 मई 2011

क्लास रूसी भाषा की


सुबह उठते ही तैयार हो कर स्कूटर दौड़ाया बॉटेनिकल गार्डेन की तरफ.... माली दोस्त को पकड़ा....और एक-एक कर आठ गुलदस्ते बनवा लिये.....अलग-अलग फूलों के....फिर रेलवे स्टेशन....पता किया....ट्रेन तीसरे प्लेटफार्म पर....गुलस्ते इतने कि खुद भी चलता-फिरता गुलदस्ता नजर आ रहा......दो-दो सीढ़ियां फलांदते चढ़ा....उतरा.....एक बोगी के सामने कई सारे लड़के-लड़कियां खड़े थे....और वो दरवाजे पर खड़ी मुस्कुरा रही थीं....उतर कर आयीं ....तुम कितने पागल हो....एक-दो नहीं पूरा बाग खरीद लाए....हांफते हुए ...एक के बाद एक गुलदस्ता उन्हें देता जा रहा....आखिर वो भी कितने थामतीं....बस-बस...अब मैं कितने पकड़ूं......अपना ध्यान रखना...एक ही साल की तो बात है.......

चौदह महीने बाद.......

रवींद्रालय में कोई फंक्शन....खत्म होने के बाद बाहर निकलते ही वो सामने......वही दिलकश मुस्कान ....कैसे हो.....मैं पिछले महीने ही लौटी.....पता चला शादी कर ली.....मैं नाइजीरिया न जाती तो तुम डिप्लोमा तो कर ही लेते.....और............शायद..........मैं समझ गया....वाक्य भी पूरा कर दिया था उन्होंने.....

और दो साल बाद.........

पहले दिल्ली और अब लखनऊ नवभारत टाइम्स में.......एक सुबह कुछ लड़कियां पूछते हुए आयीं....आपके लिये मैडम ने यह कार्ड भिजवाया है......जरूर आइयेगा.......उसी पीजी ब्लॉक में कोई वार्षिक उत्सव.....चुपचाप पीछे बैठ गया....खत्म होने पर उनके सामने......अब तो ज्वायन कर लो हमें... डिप्लोमाधारी हो जाओगे....कितना जुनून था रशियन को लेकर! मुस्कुरा दिया बस .....



राजीव मित्तल

लखनऊ विश्वविद्यालय में घुसने की यह तीसरी कोशिश......इंटर करने के बाद वहां के चार-पांच चक्कर लगा कर कान्यकुब्ज कॉलेज में.....दोबारा..डॉ. एनएन श्रीवास्तव के सौजन्य से पीएचडी में रजिस्ट्रेशन ...बैठने को लायब्रेरी के पीछे लम्बा-चौड़ा हॉल......मॉनेट्री की मोटी-मोटी किताबों में दो महीने झक मार कर हाथ जोड़ लिये....भाग तो पहले ही लेता......लेकिन वहां अपनी सखि दिख गयी काफी दिनों बाद ........एमएड कर रही थी....खूब बतकही....खाना साथ ही खाते....उसके टिफिन में से...फिर वो भी चली गयी......बैंक औफ़िसरी में......... अब सीधे एपीसेन रोड ..... डॉ. सेनगुप्ता के बंगले में......पीएचडी छोड़ नाटक का शौक सवार.......

एक साल बाद नौकरी में...... उन दिनों अपनी बहन जी पता नहीं क्या क्या कर रही थीं.....पीएचडी भी...डबल एम ए भी.....रूसी भाषा में डिप्लोमा भी.........रूसी लेखकों का तो पहले से दीवाना था......सपने में प्रिंस मीश्किन बन सेंट पीटर्सबर्ग में यहाँ वहां टहलता ...न जाने कितनी बार ट्रांस सायबेरियन रेलवे में बैठ मास्को से ब्लादिवोस्तक की सैर......कुप्रीन की ओलस्या तो जहन ही में समायी हुई थी...

काफी मिन्नतों के बाद बहन जी ले गयीं रशियन क्लास में......मैडम........देखते ही..... फूल ही फूल खिल उठे मेरे पैमाने में.....मुगलई चेहरा...छोटे बाल....ठीक कद-काठी.....कुल मिलाकर ऐसी शख्सियत.......कि देखते ही गुनगुनाने का मन करे.....तो आप अपनी बहन जी को लेकर आए हैं सिफारिश के लिये....क्या कर रहे हैं......सूचना विभाग में सब एडिटर.........सरकारी नौकरी में...लगते तो नहीं सर्विस वाले...तब तो आपको नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लाना होगा.....

फार्म और सब कागजात के साथ फिर मैडम के सामने.....पढ़ के ही मानेंगे रूसी....फार्म पर दस्तखत किये......टाइम का एडजस्टमेंट कर लेंगे ना...अब आप मेरे स्टूडेंट हैं.....सब डिप्लोमा वाले बैठे थे तब...अपनी शुरुआत थी प्रोफिशिएंसी से....ये सब आपके सीनियर हैं.....आपकी बहन जी के साथ के.....इज्जत बख्शियेगा इन्हें.....

क्लास का पहला दिन.....पढ़ने .....लिखने की लिपि अलग-अलग......संस्कृत की तरह रूप......सब कुछ अपने मिजाज के खिलाफ......लेकिन क्या स्टाइल था उनका....समझाने का तरीका.... बाप रे बाप....चार-पांच दिन में वाक्य बनाने आ गये....कुछ ही दिन में गलत-सलत बोलना भी.....घर में बहन मंजे हुए अंदाज में रूसी बोलती..... तो भाई क से कबूतर वाले अंदाज में........अब होड़ थी समय से....मैडम के और करीब आना है .....बहन को पछाड़ना है.......पूरा दिन भरा-भरा सा रहता.....

अमृत प्रभात लखनऊ से निकलने लगा था........विदेशी मामलों पर कुछ लिख कर पहुंच गया वहां......सम्पादक को दे दिया.....दो ही दिन बाद छप भी गया......मैडम की नजरों में चढ़ने को जबरदस्त उछाल.......

रूसी भाषा पर अपना हर स्ट्रोक सही पड़ रहा......कुछ दिनों बाद लेकिन मामला गड़बड़ाने लगा.....मैडम कुछ पूछतीं जवाब कुछ होता......कैलाश हॉस्टल के पीछे टीचर्स कॉलोनी......घर बुलाया एक दिन....कॉफी पिलायी...आप बहुत जल्दी ज्यादा से ज्यादा सीखने के चक्कर में पड़ गये हैं...इसलिये यह गड़बड़ी हो रही है.......हम जानते हैं आप बहुत अच्छा करेंगे....लेकिन धीमे-धीमे चलिये.....फिर इधर-उधर की...अपने रीसर्च की.....जो कुप्रीन और राजेन्द्र सिंह बेदी की कहानियों पर.....कई साल साल सोवियत संघ में गुजारे......चलते समय कई सीडी दीं......उच्चारण सही करने को........

जल्द ही यह कठिन विदेशी भाषा बिल्कुल अपनी लगने लगी....सोचना भी शुरू कर दिया......मन ही मन वाक्य बनने लगे.......लेकिन ससुरी इन गर्मी की छुट्टियां का क्या किया जाए .....दो महीने बगैर अपनी टीचर के........ सुबह सात बजे से नौ बजे का टाइम का टाइम काटना मुश्किल....ऑफिस में उनकी याद....रात में बहन से उनकी चर्चा..........दो महीने की शामें गोमती किनारे.... गंजिंग.....जॉन निंग और मेफेयर टॉकीज में किसी तरह खपायीं......

यूनिवर्सिटी खुलते ही फिर सब हरा भरा .....लेकिन अब एग्जाम करीब.......मौखिक परीक्षा में रूसी दूतावास का कोई अफसर.....सामने मैडम की मुस्कुराती आँखें ....घबराना मत बिलकुल... मैं हूं न.......जरूरत से ज्यादा ही झाड़ दी रूसी.......बाद में.....तुम नहीं मानोगे...क्या जरूरत थी इतना सब कहने की....कुछ गलत हो जाता तो.....अब लिखित परीक्षा.....एस्से आया.... मेरा दोस्त.....याद किया था.... मेरा शहर....भाड़ में गयी फिक्र.....अपने दोस्त को स्टेशन से पकड़ पूरा शहर ही घुमा दिया.......

अब...........रिजल्ट आते ही बुलावा ....खूब गुनगुनाते थे न जब मैं सीढ़िया चढ़ती थी.....हाथ में सिगरेट भी...लेकिन....लेकिन तुमने बहुत ही अच्छा किया.......डिप्लोमा भी बढ़िया हो....समझे......फिर एक दिन क्लास में.....अब मैं आप सभी से एक साल बाद मिलूंगी.......बहुत समय बाद इतना अच्छा बैच....जाना तो है...हो सकता है एक साल के लिये डिप्लोमा क्लास न हों.....कोई बात नहीं......एक घंटा भी देंगे तो कुछ भूलेंगे नहीं.....आपस में जब मिलें रूसी जरूर बोलें...........................................................दस्विदानिया.......

सोमवार, 2 मई 2011

मारा जाना लादेन का




राजीव मित्तल

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इतवार रात अपने देश को वो खुशखबरी दी, जिसका उसे बरसों से इंतजार था। रविवार शाम किसी समय अमेरिकी ट्रूपर्स ने इस्लामाबाद के नजदीक अबोटाबाद में छिपे ओसामा बिन लादेन के ठिकाने पर हेलिकॉप्टरों से बम बरसा कर उसे मौत की नींद सुला दिया। हमले में उसका बेटा भी मारा गया। व्हाइटहाउस से हुए प्रसारण में ओबामा ने अंत में कहा जस्टिस हैज बीन डन......व्हाइटहाउस के बाहर खड़ी भीड़ खुशी से झूम उठी। इस खुशी का असर न्यूयार्क में जीरो ग्राउंड पर भी दिखा, जहां कभी अमेरिका की शान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हुआ करता था। ग्यारह सितम्बर 2001 को मुस्लिम जिहादी संगठन अलकायदा ने अमेरिका की इस शान को तहस-नहस कर दिया था। लादेन के आह्वान पर अलकायदा के युवाओं ने अमेरिका में कुछ विमानों को अपने कब्जे में कर उन्हें वर्ल्ड सेंटर की दो विशालकाय इमारतों से टकरा कर जमीनदोज कर दिया था। इस हमले में तीन हजार से ज्यादा इनसान मारे गये थे।

कुछ महीने से अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए लादेन का पता लगाने को दिन-रात एक किये पड़ी थी। उसी दौरान उसके हाथ दो महत्वपूर्ण सूत्र लगे, जो अलकायदा के नेतृत्व से बरसों से जुड़े हुए थे। उन्हीं सूत्रों के हवाले से लादेन की प्रत्येक हलचल का पता लगता रहा..और यह भी कि अफगानिस्तान से निकलने के बाद से लादेन का ठिकाना पाकिस्तान ही रहा है, जहां उसे कई जरियों से हर तरह की मदद हासिल होती रही।

अब सवाल यह उठता है कि अलकायदा कई दिनों की अपनी खामोशी को कौन सा कहर बरपा कर तोड़ेगा और उसका निशाना कौन होंगे..यहीं आकर खुशी से झूम रहे बराक ओबामा से सवाल करने का मन करता है कि ग्यारह सितम्बर की घटना के बाद अमेरिका ने अपनी किलेबंदी कर ली..पर किस बिना पर...पूरी दुनिया को उसके रहमोकरम पर छोड़ कर....क्या उसने कभी अपने गिरहबान में झांका कि ओसामा बिन लादेन को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी बनाने में खुद उसका हाथ कितना बड़ा है। अमेरिका ने 1980 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के कब्जे के बाद जो सबसे घटिया खेल खेला वो था इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा देना। जो इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पहले केवल मध्यपूर्व एशिया में इस्रायल को ही परेशान करने में व्यस्त थे, उनका साथ अमेरिका ने सोवियत सत्ता को अफगानिस्तान से बाहर करने में लिया। यह आतंकवाद के फैलाव को पहली मदद थी।

तलिबान को हर तरह से भरपूर मदद....जैसे-जैसे सोवियत फौजें पिटती गयीं...वियतनाम में अपनी बेहद बुरी हार के जख्मों को सहलाता गया अमेरिका...सोवियत संघ को पूरी तरह परास्त करने के नाम पर 1988 में स्थापित अरब ज़िहादी संगठन अलकायदा को भी गले लगा लिया और लादेन को महादानव बनने का रास्ता तैयार किया। यही अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के साथ किया था। ईरान में शाह पहलवी के पतन के बाद वहां कट्टरपंथ के आते ही सद्दाम हुसैन को ईरान से भिड़ने को उकसाया।

लेकिन यह सारा तमाशा सोवियत संघ का किला ढह जाने के बाद बंद हो गया, जो अब तक अमेरिका की मदद पर पल-पुस रहे ज़िहादी संगठनों को बेहद नागवार लगा और जैसे ही सद्दाम ने 1990 में कुवैत पर हमला किया सारी बाजी पलट गयी। अरब ज़िहादी संगठन अमेरिका के हस्तक्षेप से इस कदर खफा हो गये कि वे उसे अपनी राह का रोड़ा समझने लगे। ग्यारह सितम्बर की घटना के बाद तो सब कुछ उलट-पुलट गया। अमेरिका ने यूरोपीय दोस्तों के साथ मिलकर अफगानिस्तान से तालिबान का सफाया कर दिया....उसके बाद इराक पर हमला बोल सद्दाम हुसैन को खत्म किया....अब बारी आयी लादेन की, तो कई सालों की तलाश के बाद वो भी हाथ आ गया, भले ही लाश के रूप में....