बुधवार, 27 जुलाई 2011


मात्र तीन मुलाकात..पहली याद नहीं

राजीव मित्तल

लेखक...प्रकाशक.....चाचा जी के दोस्त अशोक अग्रवाल.......हापुड़ की धकाधक यात्राओं ने उनके साथ चचा-भतीजा वाला फालतू का सा कनेक्शन जोड़ने का कोई मौका ही नहीं दिया.....बचा-खुचा अपने साथ हमेशा से लगा छुई-मुईपन का जाला उनकी लायब्रेरी ने झाड़ दिया.....उनको भी इस जूनूनी का लफाड़ियापन ज्यादा ही पसंद आ गया..फिर एक बाद एक कई राजदारियों ने दोनों को उस जगह पहुंचा दिया....कि जब नींद की कई गोलियां निगलने के बाद भी सांस नहीं टूटी तो ...कई सारी शर्मिंदगियों से बचाने को.........उन्हें ही लखनऊ भेजा गया था...और तीन दिन का वो साथ गजब का रहा था।

फिर उन्हीं के सौजन्य से एक दिन एक ऐसी मुलाकात.. जिससे जुड़ा कैसे-कहां-क्यों और कब वाला कोई सन्दर्भ याद नहीं........तिब्बत की बौद्ध भिक्षुणी सी कद-काठी.....हिमा कौल.......तो तुम हो...तुम्हारे बारे में सब पता है मुझे......कब सुना रहे हो हेमंत कुमार के गाने... खुद ही से बात कर रही हो जैसा संबोधन ....इसके चलते दो-तीन बार टोका भी गया...मैं तुम्हीं से बात कर रही हूं.....वो साथ कितनी देर का रहा .....यह भी याद नहीं...

कुछ साल बाद चंडीगढ़ में....सब लखनऊ गये हुए थे....ऑफिस में फोन आया...अशोक जी का....हिमा को चंडीगढ़ में कुछ काम है....तुम्हारे पास ही ठहरेंगी.....हाथ से तोते उड़ने जैसी कोई बात नहीं थी...पर उड़ गए......क्योंकि ऐसी मेजबानी पहले कभी की नहीं थी......बहरहाल हिमा दोपहर को 20 सेक्टर वाले घर में थीं....उनका काम दूसरे दिन होना था.....शाम को छह बजे उन्हें पड़ोस के हवाले कर ऑफिस चला गया....दस बजे तक लौट आया...हिमा का खाना उन्हीं के यहां, जिनके यहां छोड़ गया था....दूसरी मुलाकात में ही इतना नामाकूल रवैया!!!!!!!....वो कहां से मेहमानी का लुत्फ उठातीं जब मेजबान ही इस कदर बेहुदा मिला हो.....रात को उनके सोने का इंतजाम किया.....उनको कुछ कहने-सुनने का मौका ही नहीं दे रहा था...हो सकता है वो कई सारी बातें करना चाहती हों...रात को बाहर टहलने जाना चाहती हों...आइसक्रीम खाना चाहती हों.....लेकिन दादागिरी दिखाते हुए सोने का हुक्म सुना दिया...राजीव....आज तो कोई गाना सुना दो...धत्...सो जाइये..कह कर लाइट बुझा दी और बाहर वाले कमरे में किताब लेकर लेट गया....सुबह नाश्ता ठीकठाक करा दिया...हालांकि सब कुछ बनाया उन्होंने ही...अब.....आपका क्या प्रोग्राम है...टालने की गरज.....तुम मेरी वजह से अपना रुटीन मत बदलो...मुझे उस दफ्तर तक छोड़ दो, जहां मुझे काम है...अपने चेहरे पर बला टली का भाव....

तीसरी मुलाकात....फिर कई साल बाद....उस बार हापुड़ रुकते हुए दिल्ली का प्रोग्राम...हापुड़ में अशोक जी ने बताया...हिमा तुमको बहुत याद करती हैं....फलाने दिन श्रीराम सेंटर में उनकी शिल्प कृतियों की प्रदर्शनी है..तुम आओगे तो अच्छा लगेगा हिमा को.....कड़कड़ाती ठंड में पहुंच भी गया श्रीराम सेंटर...हॉल में अशोक जी..हिमा..उनकी बहन और बाबा नागार्जुन मिले...हिमा बहुत लगाव से मिलीं...उन्होंने अपनी बहन से मिलवाया...बाबा तो हापुड़ आते ही रहते थे...अशोक जी ने कहा..बाबा..यह राजीव..प्रभात का भतीजा ...तो बाबा ने फौरन दोस्ती कर ली....हिमा के शिल्प को पहली बार देखा...इस विषय में कोई जानकारी न होने के बावजूद बहुत अच्छा लग रहा था...खास कर हिमा के चेहरे पर की मुस्कान और बेहद अपनापन...काफी देर उन सबके साथ रहने के बाद रुखसत हो गया...तीन महीने बाद ही बीआईटीवी ने फिर दिल्ली का मुंह दिखा दिया...

बच्चों को सेंट्रल स्कूल में एडमिशन कराना था...तो कई बार फोन पर हिमा से बात हुई। उन दिनों हिमा केन्द्रीय विद्यालय में ही थीं..फोन पर ही हर बार यह भी कि कब मिल रहे हो...फिर एक दिन पंचशील में अशोक जी का फोन आया....मैं यहां आया हुआ हूं...इस सनडे को आओ न हिमा के यहां....बहुत मिलना चाहती है तुमसे......लेकिन जाना रह गया...दिल्ली में पूरे सात साल गुजार कर भी मिलना नहीं हुआ.....फिर मुजफ्फरपुर...वहां से जबलपुर....वहीं से एक दिन काफी दिनों बाद अशोक जी को फोन किया....बहुत खफा थे...दो-तीन पेटेंट वाक्य बोल कर मना लिया...तब खुल कर बात हुईं...हिमा का जिक्र आया....पता चला वो बिस्तर से लग गयी हैं...कोई असाध्य बीमारी...जिसमें शरीर का एक-एक अंश दम तोड़ता है....

जबलपुर से मेरठ आ गया...ज्ञान जी ने जबलपुर से पहल के दो अंक भेजे ...दूसरा डाक विभाग ने नहीं दिया...उन्होंने फिर भेजा....यह... पहल 90 आखिरी अंक था....उसके मुखपृष्ठ पर हिमा का बनाया शिल्प.....हिमा के कला संसार की जानकारी और हिमा के बारे में सब कुछ...... पहल के उसी अंक से कुछ यहां दे रहा हूं.....हिमा पर यह आलेख कुबेर दत्त ने लिखा है....

मई 2008 में त्रिवेणी कला संगम परिसर में शिल्पकृतियों की एक अनूठी प्रदर्शनी चल रही है...कलाकार हैं हिमा कौल...वो दिन भी थे जब हिमा कौल को उस परिसर में शिल्प-रचना करते वक्त देखता था। अपने काम में तल्लीन..चेहरे पर शान्ति और हल्की सी स्मित लिये एक गोरी चिट्टी कश्मीरी लड़की...2004 में किसी दिन हिमा को लगा कि उसके हाथ काम करने से इंकार कर रहे हैं..अशक्त हो रहे हैं...उंगलियों की पकड़ कमजोर हो रही है..यह सिलसिला रफ्तार पकड़ता गया...पूरे शरीर ने साथ छोड़ दिया..हिमा का कलाकार तो जीवित रहा, पर उसकी कला को रूप-स्वरूप देने वाली देह लुंजपुंज हो गयी...परवश हो गयी...
80 के दशक में विनोद कुमार श्रीवास्तव का परिचय हिमा से हुआ था अशोक अग्रवाल की मार्फत। प्रथम परिचय के दिन हिमा त्रिवेणी कला संगम के बेसमेन्ट में गीली मिट्टी से बावस्ता थी। वह शिल्प निर्माण की प्रक्रिया में उलझी थी। विनोद जी को धीरे-धीरे हिमा के शिल्प में गहरी दिलचस्पी होती गयी। हिमा की कृतियां इतनी मुखर थीं कि उन्हें लगा कि जैसे वे बोलने लगी हों और हिमा के कलाकार की संवेदनाओं की गाथा सुना रही हों। विनोद को लगा-हिमा से अधिक उसकी आंखें बोलती हैं। आज भी ....जब कोई उससे पूछता है-कैसी हो? उसके फुसफुसाते कंठ से ध्वनि निकलती है--आनंद...आनंद। देह की भीषण पीड़ा, असहायता...परवशता...के बावजूद हिमा परम शांत दिखती है। यही नहीं...उसकी हंसी में एक उजास है।

फिर एक दिन कुबरेदत्त की कैमरा टीम त्रिवेणी में हिमा की कृतियों की प्रदर्शनी को शूट कर रही थी तो भारतीय रंगमंच की मशहूर हस्ती अल्का जी इब्राहिम वहां मौजूद थे। यह प्रदर्शनी अल्का जी ही की देन है। कैसे......एक दिन अल्का जी त्रिवेणी परिसर में टहल रहे थे कि उन्हें वहां लगे कुछ अनूठे शिल्प दिखे। पता चला कि कि वे हिमा कौल के हैं। अता-पता लेकर अल्का जी हिमा के घर गये और उसकी हालत देख हतप्रभ रह गये। यह जान कर कि अब कभी हिमा शिल्प निर्माण नहीं कर पाएगी, तरस खा कर नहीं, बल्कि शिल्प के बेजोड़पन से प्रभावित हो कर अल्का जी ने हिमा की तमाम कृतियां अच्छी कीमत दे कर खरीद लीं और फिर उनकी प्रदर्शनी लगायी।

पहल का वो अंक दो साल पहले का है। आज हिमा की फुसफसाहट भी शेष हो चुकी है। हिमा पर ये सब लिखते समय अशोक जी को फोन किया और हिमा के बारे में पूछा.....नहीं...अब कुछ नहीं बचा है.....बस सांसें चल रही हैं..

हिमा..मैं हेमंत को सुन रहा हूं....इस ख्याल के साथ कि जैसे तुमको सुना रहा हूं।

बुधवार, 20 जुलाई 2011

तूफां उठा है दिल में


बीआईटीवी पर वामपंथियों का काफी असर....काम में इसका फायदा भी मिला....खुलापन...मास्टराना माहौल बिल्कुल ही नहीं...कुछ भी नया करने के लिये किसी औपचारिकता में पड़ने की जरूरत नहीं.....लेकिन उतना ही अराजक माहौल.....सब कुछ कंट्रोल से बाहर..........कुछ ही लोगों की वजह से चल रहा था पूरा चैनल.... अनिल चमड़िया पता नहीं कौन सी धारा के वामपंथी थे.....लेकिन उसे फैशन शो में जरूर तब्दील कर दिया करते थे.....उनकी मजदूर एकता नामक सोच से हमेशा सतर्क रहना पड़ता था....जिसका प्रदर्शन करने का उन्हें मौका भी मिल गया......जब तन्ख्वाह मिलनी पूरी तरह बंद हो गयी तो कामगार यूनियन बना कर उसके तोता-मैना बन गये चमड़िया जी.....शांति का काल हो या अंशाति का.... क्रांति लेकिन गुटरगूं तक सीमित रही.....कई बार क्रांति उड़ती भी दिखती....लेकिन किसी ढाबे पर जा कर पंख बटोर लेती....





राजीव मित्तल


....मरने भी न देंगे मुझे दुश्मन मेरी जां के....जैसों के साथ कई शामें गुजारने के बाद......एक शाम अपने घर में पार्टी का आयोजन कर डाला.....और ऐसी पार्टी दर-ओ-दीवार से पूछ कर तो की नहीं जाती....पूछना जिससे था....वो मुम्बई में थी.....राजीव शर्मा के सौजन्य से लालकिले के पीछे आर्मी कैंटीन से कई सारे ब्रांड.....प्रदीप अग्रवाल दुपहरिया ढलते ही सलाद काटने में लग गए...अंधेरा होते ही तांता लगना शुरू। चित्रिता सान्याल को कदम धरते ही मछली बनाने की सूझी.......या रब्बा.......पंडिताइन की रसोई को ये दिन भी देखने थे....खुद जा कर ले आओ...कह कर बला टालनी चाही... वो ले भी आयी....रात दो बजे तक तो पड़ौसियों की नींद हराम.....

जून की बेहद उमस भरी अगली शाम....नंदन ने रात नौ बजे सीरी फोर्ट पब चलने का फरमान सुनाया.....पांच मिनट में आठ जन पब में....रात के ग्यारह बज गए...खड़ा होने पर ढहने की हालत.....किसी तरह स्कूटर स्टार्ट किया....राजीव शर्मा को दिल्ली छह छोड़ना था...तभी राव वीरेन्द्र सिंह ने गुजारिश की दफ्तर छोड़ने की....वो भी लद गया। हवा का झौंका लगते ही मन मयूर......सड़क पार कर अंदर जाना था.....पर सड़क कहां से पार होती......सामने से कार आ रही थी....दोनों चिल्लाए स्कूटर रोको....रोको..... रो..... को.....स्कूटर रुकने के बजाए उस तरफ मुड़ गया जिधर से कार आ रही थी....उसके ठीक सामने.....कार वाले ने ब्रेक मारा पूरे दम से.....लेकिन मामला इतना करीब आ चुका था कि स्कूटर गले जा लगा कार के... स्कूटर गिरा.. तीनों लुढ़के...चारों सडक पर....दो तो हाय मैया कहते उठ खड़े हुए.....तीसरा नहीं उठा...कई आवाजें मारीं....अब इसे क्या हो गया...बेहोश.....कई जगह से खून बह रहा......उठा कर किनारे किया गया....

रात को बारह बजे कहां ले जाएं.....जिस कार से टक्कर लगी थी....उसी में लादा गया.....सबसे पहले सबसे पास वाली जगह एम्स .....वहां से तुरंत बाहर कर दिया गया....रात गहराती जा रही..... सब परेशान......तभी राजीव शर्मा को यूएनआई वाला कोई नजर आ गया.....उसी के कहने पर सफदरजंग हॉस्पिटल में इस लदान को उतारा गया..अब सबको संदेश... पेजर पर.....कुछ देर में नंदन....अशोक सिंह और आफिस में वक्त गुजार रही चित्रिता और उसके साथ बिहार की अभिलाषा... ....अगले दिन होश आया तो सबसे पहले ध्यान आया कि पिता लखनऊ से दिल्ली आ रहे हैं....कई महीनों से छाती पर मूंग दलते हुए नीचे ही रह रहे इसरार अहमद को बोला....सामने वालों से चाभी ले कर घर साफ करा देना और पिता को बताना कि मैं चंड़ीगढ़ गया हुआ हूं।

दो दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। आफिस की वैन तीन दिन से वहीं खड़ी। नयी सैंडिल किसी ने मार दी थीं....नंगे पैर बैठ गया...साथ में परवेज अहमद...हाथ और गर्दन पर चोट के निशान.....इन्जेक्शन और दवाइयों की मार से दिमाग घूम रहा....दरवाजा पिता ने खोला..... चंडीगढ़ से यह क्या हाल बना कर आ रहे हो....मैं...मैं.....मैं ....एं...एं...एं. बस इतना ही निकला मुंह से और जा कर लेट गया...परवेज ने ही झेला पिता को...दस दिन बाद फिर आफिस में......काम बंद पड़ा था.....देवाशीष बोले आप कम्प्यूटर के पास अभी न बैठें.....हादसे का असर है आप पर......

एक दिन चित्रिता ने बताया सब....सबके बीच बैठा कर.....उस रात भर्ती होने के बाद डॉक्टरों ने तुम्हारी मरहम पट्टी की और इंजेक्शन लगाए.....उसके बाद तुमने जो हंगामा मचाया कि हम सब बौरा गए....नंदन और अशोक सिंह को तुमने इतनी गालियां दीं कि दोनों हमारी ड्यूटी लगा कर भाग लिये....फिर तुम हम पर सवार.......खूब सेवा करायी हम दोनों से.....जब नींद का झौंका आता...तुम जोर से चिल्लाने लगते....नर्स तुमको सोने का इंजेक्शन लगा रही तो तुमने घुमा के दिया उसको...स्टाफ तुमको बाहर निकाल देने पर आमादा...हमने हाथ-पांव जोड़े...फिर तुमको पलंग से बांध दिया गया..वहीं खड़े सुन रहे नंदन और अशोक छोंका लगाते जा रहे.....मालूम है अभिलाषा तो उस दिन से दहशत में है...दफ्तर भी नहीं आ रही........ कहां जा कर डूब मरूं...सबसे पहले उसी को फोन कर माफी मांगी तो वो अगले दिन नजर आयी.....

इस बार केवल चार दिन का समय रनडाउन के लिये...लेकिन हमने बुलेटिन निकाला और हम फिर एयर पे...और अब हमारा चैनल सबको दिखने लगा......

कुछ ही समय बाद शिव जोशी भी छोड़ गया.....बहुत खला उसका जाना......

जून में बहुत बड़ा आघात...अनुपम कुमार का रात में एक्सीडेंट हो गया....अपोलो में भर्ती...हालत बहुत गम्भीर...आजतक वाले एसपी सिंह भी वहीं थे..कोमा में...

रात-दिन दस-बारह लोग वहीं रहते....दो दिन बाद अनुपम गुजर गया....अगले दिन एसपी भी.......लाजवाब साथी था अनुपम.........काफी तनाव में बीता वो साल..... नये साल में जुगनू शारदेय और रमेश परिदा का हिंदी मे और अमिता मलिक का इंग्लिश में आगमन.....भाषवती घोष काफी पहले आ चुकी थी...खामोश तबियत....मंद-मंद मुस्कान...


नये साल में हम लोगों को मिला तीसरा फ्लोर....बहुत शानदार और आरामदेह.....हर क्यूबिकल के साथ एक कमरा...जिसमें खूब बड़ी मेज....जो सोने का काम देती.......लेकिन सब बिखरता जा रहा.....तन्खवाह समय पर मिलनी बंद हो चुकी थी......पूरी तो शुरू से ही नहीं मिली थी.....अब उतने के भी रोने पड़ने लगे........अशोक आडवाणी को विदेशी कम्पनियों से कर्ज मिलना बंद हो गया.......साफ दिखायी दे रहा था कि एक सफल पब्लिशर कहां गच्चा खा गया.......उन्होंने सौंप दिया था चैनल मालविका सिंह को....मालविका सिंह ने सौंप दिया नंदन एंड पार्टी को...काम से किसी को मतलब नहीं.......ऊंट के विवाह में गर्दभ राग.....अहा रूपम अहा गायन....फिर भी चैनल अच्छा निकल रहा......सब जगह तारीफ हो रही.....

मई आया.....घर के सब लोग लखनऊ चले गये.......मां आने वाली थीं.......उन्हीं के साथ ही लखनऊ जाता......
एक शाम.....चाय पीने नीचे उतरा.....चाय खत्म कर सीढ़ी पर पैर रखा ही था कि राहुल तेजी से उतरता दिखा...साथ में दो-तीन और......जल्दी चलो ऊपर...लखनऊ से फोन था...अशोक सिंह के चैम्बर में फिर आएगा......फिर..... फोन पर पूर्णिमा ....मम्मी .....स्तब्ध...सबको सन्नाटा मार गया.....पंद्रह मिनट तक यही स्थिति रही....बुलेटिन की तैयारी करनी थी.....सभी घर जाने का आग्रह करने लगे....लेकिन घर जा कर करता क्या....वहां तो कोई था नहीं.....प्रदीप जी के घर जाकर बैठता तो दुख और बढ़ता....नहीं...बुलेटिन निकाल कर जाऊंगा.....तब तक नॉरिस ने सबह की फलाइट में सीट बुक करा दी.....एचआर का काम देख रहे विष्णु दस हजार रुपये दे गये.....बुलेटिन निकालने के बाद भयानक खालीपन.....राहुल ने घर छोड़ा....कपड़े रखे और प्रदीप जी के यहां चला गया....अम्मा ने जबरदस्ती खिलाया.....लौट कर वैन का इंतजार करने लगा....आफिस ही जाऊंगा....वहीं से पालम......कई लोग आए लेने... जा कर कहीं लेट गया..सुबह पांच बजे पालम.....पहली हवाई यात्रा और ऐसे मौके पर...दिल डूब रहा...........लखनऊ में था क्या करने को......श्मशानघाट....शव पर लकड़ियां लादना....अपने हाथों सुलगाना....और फिर जलते देखना उस शरीर को.....जिसने कभी डायरी में लिखा था....आज कंघा करते वक्त मुन्ना को मेरे बालों में एक बाल सफेद दिख गया... दहाड़े मार कर रोया कि अब तुम मर जाओगी.....बड़ी मुश्किल से चुप कराया...दिन भर मुझसे अलग नहीं हुआ........... अब..हमेशा के लिये चली गयीं.....भूले से भी कभी नहीं दिखेंगी......और आंसू... पिछले 20 घंटे से धोखा दिये पड़े हैं.....

सोमवार, 4 जुलाई 2011

नाव चली.. नानी की नाव चली





बिजनेस इंडिया टीवी...बीआईटीवी...टीवीआई..देश का पहला इंडिपेंडेंट न्यूज चैनल। तब दूरदर्शन के अलावा जो कुछ रहा था...प्रोडक्शन हाउसों का गोदामी माल.....बिजनेस इंडिया मैगजीन के मालिक अशोक आडवाणी की देश भर में चर्चा। न्यूज के अलावा तीन चैनल और। कई निदेशक, जिनमें शेखर कपूर भी। आडवाणी..बिल्कुल हिप्पी.....लम्बे बाल.....दाढ़ी..शार्ट्स पहन कर चले आते....खुद चलते पुरानी मारुति 800 से.....न्यूज चैनल के तीन सूबेदारों में से एक को मारुति एस्टीम, एक के लिये बाजार में कदम धरने जा रही सिएलो की बुकिंग। स्टाफ के लिये पांच मारुति वैन। तीनों में सिर्फ शाही को टीवी न्यूज की जानकारी...ऐसी वैसी नहीं काफी ज्यादा। भाई को न्यूज एडिट करने से लेकर कैमरे और बुलेटिन कैसे निकाला जाता है॥का सब पता-ठिकाना। यह अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज जो चैनलिया न्यूज आप देख रहे हैं....उसमें शाही का भी योगदान है। टीवी न्यूज के कई तकनीकी शब्द उन्हीं की देन हैं। लेकिन.........समय से पहले सब कुछ मिल जाना कई बार बहुत भारी पड़ जाता है...

राजीव मित्तल

जिस फ्लोर पर न्यूज रूम...सीढ़ियों के दूसरी तरफ टेप लायब्रेरी...मेकअप रूम और स्टूडियो....दोपहरिया में हर कोई कार्पेट पर या किसी दराज के नीचे घुस कर.... आ जा री आ निंदिया तू आ .....करता...(अखबार वाले फोटो भी खींच गये थे).....फिर शाम को कहीं बैठ कर....धूम ताना नाना ना.....काम शुरू होते ही सबकी ड्यूटी लग गयी....कभी सुबह चार बजे...कभी आठ ...तो कभी रात को दस बजे.....पांच किस्म के समय की ड्यूटी ने शुरू में तो खिजाया...फिर... वैन के पहुंचने से पहले ही तैयार.....चार नाइट के बाद चार दिन मज़ा करो..घर में पूछते कि यह कौन सी नौकरी है....पड़ौस में भी खुसुर-पुसुर...

नयी बिल्डिंग में और कुछ भी....
एक छड़ी.. एक घड़ी.. एक तलवार.. एक सलवार.. एक अंडा.. एक डंडा.. एक झंडा.. एक हंडा.. एक धीवर का जाल.. एक घोड़े की नाल.. एक तोता.. एक भालू.. एक लहसुन.. एक आलू.. केला भी.. आम भी.. कच्चा भी.. पक्का भी.. और कई सारे चूजे.....

आनंद जी ने रिपोर्टिग भी करानी शुरू कर दी। सबसे ज्यादा मजा आया अमजद अली खान और उनके बेटों का सरोदवादन कवर करने में....उसके बाद तीनों को एक साथ बैठा कर बातचीत....भेजा था तालमेली में जुटे रहने वाले विष्णु मखिजानी ने....अब वो अक्सर कहीं न कहीं भेजने लगे......लिखने का काम बढ़ गया तो जाना बंद कर दिया।

कई से पहचान पक्की हुई...मधुसूदन श्रीनिवास उर्फ मधु....पेंचकस हमेशा साथ में...जहां कुछ कमी देखते कसना शुरू...मिमिक्री के बादशाह....सुलोचना दास की टकटकाटक बोली की हूबहू नकल...राहुल श्रीवास्तव.....चित्रगुप्ती गुणों का भंडार....स्पोर्ट्स वाला नॉरिस प्रीतम....घर बगल में...अक्सर ले जाकर दिन में ही वोदका पिला देता......नीरज नंदा.....लोनिनवादी...मार्क्सवादी.......दैनिक जागरण वाले मरहूम नरेन्द्र मोहन को योगासन करा कर आ रहे सुरेश सिन्हा.....कौन सा आसन करा दिया कि बाहर कर दिये गये....तस्लाम खान बरेलवी.......राजीव शर्मा....साइकिल के पीछे बैठ कर कौवे पकड़ता.....

कुछ ही दिन बाद मॉसकॉम से निकले रंगरूटों और अखबारों से आये नामुरादों के चलते चहल-पहल और बढ़ गयी.....तमिल आर जी .....पैदा होते ही बोतल थाम ली थी...दूध की नहीं रे....मोहनीश का कमरा लक्ष्मीनगर वाले घर की छत पर......कई रातें हुड़दंगी रहीं। भूपेश पंत..रवि पराशर...धर्मेन्द्र सिंह..निकाशा...सुशील बहुगुणा....और प्रमोद कौंसवाल

फिर एक मगर ने पीछा किया नानी की नाव का....एक-एक को खींचने लगा....चुपके से पीछे से ऊपर से नीचे से..एक बिल्ली का बच्चा...एक मुर्गी का अंडा...एक केला.. एक आम... दोनों पके हुए....एक लहसुन एक आलू...एक तोता..... एक भालू...छड़ी और घड़ी भी गड़प कर गया.....

सबसे पहले मनमोहिनी गयी...बगल में बैठ कर गाने सुनती थी..काम गति पकड़ने लगा तो बम फटा...अजित शाही आजतक लॉन्च करने जा रहे हैं....जी हां मरहूम एसपी सिंह का तो बाद में तय हुआ था.... इंडिया टुडे वालों की पहली पसंद थे शाही....पता चला कि आखिरी रात हुई विदायी पार्टी में उनके संगी-साथियों ने इतना हुड़दंग मचाया कि मामला बिगड़ गया..दो महीने बाद आनंद जी और बादशाह सेन भी चले गये...राकेश जोशी भी.....
अब नंदन उन्नीकृष्णन हेड, प्रोडक्शन इंचार्ज देवाशीष चटर्जी और ब्यूरो के सर्वेसर्वा अशोक सिंह.....
आजतक शुरू हुआ तो विवेक अवस्थी और आशुतोष भी फना हो गए.....

साल पूरा होने से एक महीना पहले सूबेदारों की मीटिंग में चप्पू किसे पकड़ाया जाए और हैया-दैया कौन करे......देवाशीष गुनगुनाए...अब आप निकालिये बुलेटिन......कैसे निकाला जाता है...यह तो मुझे भी नहीं मालूम.....सुनते ही गश आ गया.....संभला तो तीनों सूबेदारों को अच्छी तरह समझा दिया कि जो करूं...करने देना.......अब बुलेटिन कैसे निकालू.....ए मालूम तो बी का पता नहीं.....जेड मालूम तो वाई लापता ....शुरू से उस जगह पर तो कटोरे में कटोरा..बेटा बाप से भी गोरा जमे थे...तभी उस गैंग से निष्कासित कानपुर में साथ रहा प्रदीप अग्रवाल दिख गया। देखो...मैं रोज तुम्हें सुबह इस ठंड में घर लेने आऊंगा.....मयूर विहार से दस+ वहां से उदयपार्क दस=बीस किलोमीटर....तुम दो दिन में मुझे रनडाउन बनाना सिखा दो.....उसके हामी भरते ही अगली सुबह उसके दरवाजे पर.....

केबिन में कदम धरते ही चपरासी को बुलाया....टीवी उठा कर बाहर पटक दो.....इस बेंच को नीचे फेंक दो....जिस पर बैठ....देखो वो चांद करता है क्या इशारे......गाया जाता है......बस....एक कुर्सी...एक मेज... एक कम्प्यूटर....दो घंटे बाद जब कटोरे में कटोरा पार्टी आयी..तो टायं-टूं करती पांव पटकने लगी। सबको बाहर कर दिया कि अपना काम करो....फिर माबदौलत का फरमान....हर चीज माकूल समय पर चाहिये। नंदन ने चलते-फिरते फिकरा कसा....पहले ही दिन से तानाशाही... रन डाउन का काम दो ही दिन में आ गया। बेंच हट जाने से दो लड़कियां नौकरी छोड़ गयीं। भाड़ में जाओ वाला अपना अंदाज कई को भा गया तो कई के दिलों पर आरी चलने लगी। हैया-हैया और चप्पू चालन लय-ताल में आ गये......

और जब लगती रात की ड्यूटी तो......रेलगाड़ी छुकछुक छुकछुक...तड़क ..भड़क..लोहे की सड़क...यहां से वहां...वहां से यहां....सोती हुई मिल गयी शारदा...यहाँ अकेले सब करते करते जान हलकान ....पानी भरा गिलास पलट दिया.....इस्तीफा दे कर चली गयी..

मस्जिद मोठ......नीचे हरा मैदान..मंदिर-मकान...चाय की तीन दुकान....गरमागरम जलेबी....उतना ही गरम समोसा..चटनी अलग से.....लाला की दुकान....पी कर जाओ या बोतल खोल कर बैठ जाओ....बसपा ढाबा......जो घरवाली के हाथ की खा कर आता वो भी एक बार ज़रूर डाकारता...थोड़ा आगे....पुल-पगडंडी..टीले पे झंडी....पानी के सड़े कुंड..पिनपिनाते पंछी के झुंड....लंगड़ाते कुत्ते....डकराते सांड़....कुएं के पीछे बाग-बगीचे..धोबी का घाट..मंगल की हाट....
बुलेटिन बनता.....धरमपुर..करमपुर..पांडवा..खांडवा..तलेगांव..मलेगांव..बेल्लोर...नेल्लोर..
शोलापुर..कोल्हापुर..कोरेगांव..गोरेगांव....मेमदाबाद ..अहमदाबाद...और बीच वाले स्टेशन बोलते रुक रुक रुक रुक

एक महीने बाद ही नानी की नाव से मगर ने कई सारे खींच लिये....खूब खटक-पटक....टपके धांसू किस्म के आंसू......जाने वाले सब नाव में बैठ हैया हैया करते थे....चप्पू कोई नहीं थामता था.....फिर हैया के बदले शुरू हो गया था ......तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा.....जिसने कई जोड़े उलट-पलट दिये......

ट्रांसपोंडर को रूसी उपग्रह से निकाल कर सिंगापुर में ठूंसा गया...तब तक के लिये बुलेटिन निलम्बित.......इंजन रुक गया छोंछों करने लगा.....और डिब्बों के बाहर.... चाय...चाय...चाया... और...और.....याद आयी आधी रात को कल रात की तौबा....दिल पूछता है झूमके किस बात की तौबा