सोमवार, 4 जुलाई 2011

नाव चली.. नानी की नाव चली





बिजनेस इंडिया टीवी...बीआईटीवी...टीवीआई..देश का पहला इंडिपेंडेंट न्यूज चैनल। तब दूरदर्शन के अलावा जो कुछ रहा था...प्रोडक्शन हाउसों का गोदामी माल.....बिजनेस इंडिया मैगजीन के मालिक अशोक आडवाणी की देश भर में चर्चा। न्यूज के अलावा तीन चैनल और। कई निदेशक, जिनमें शेखर कपूर भी। आडवाणी..बिल्कुल हिप्पी.....लम्बे बाल.....दाढ़ी..शार्ट्स पहन कर चले आते....खुद चलते पुरानी मारुति 800 से.....न्यूज चैनल के तीन सूबेदारों में से एक को मारुति एस्टीम, एक के लिये बाजार में कदम धरने जा रही सिएलो की बुकिंग। स्टाफ के लिये पांच मारुति वैन। तीनों में सिर्फ शाही को टीवी न्यूज की जानकारी...ऐसी वैसी नहीं काफी ज्यादा। भाई को न्यूज एडिट करने से लेकर कैमरे और बुलेटिन कैसे निकाला जाता है॥का सब पता-ठिकाना। यह अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज जो चैनलिया न्यूज आप देख रहे हैं....उसमें शाही का भी योगदान है। टीवी न्यूज के कई तकनीकी शब्द उन्हीं की देन हैं। लेकिन.........समय से पहले सब कुछ मिल जाना कई बार बहुत भारी पड़ जाता है...

राजीव मित्तल

जिस फ्लोर पर न्यूज रूम...सीढ़ियों के दूसरी तरफ टेप लायब्रेरी...मेकअप रूम और स्टूडियो....दोपहरिया में हर कोई कार्पेट पर या किसी दराज के नीचे घुस कर.... आ जा री आ निंदिया तू आ .....करता...(अखबार वाले फोटो भी खींच गये थे).....फिर शाम को कहीं बैठ कर....धूम ताना नाना ना.....काम शुरू होते ही सबकी ड्यूटी लग गयी....कभी सुबह चार बजे...कभी आठ ...तो कभी रात को दस बजे.....पांच किस्म के समय की ड्यूटी ने शुरू में तो खिजाया...फिर... वैन के पहुंचने से पहले ही तैयार.....चार नाइट के बाद चार दिन मज़ा करो..घर में पूछते कि यह कौन सी नौकरी है....पड़ौस में भी खुसुर-पुसुर...

नयी बिल्डिंग में और कुछ भी....
एक छड़ी.. एक घड़ी.. एक तलवार.. एक सलवार.. एक अंडा.. एक डंडा.. एक झंडा.. एक हंडा.. एक धीवर का जाल.. एक घोड़े की नाल.. एक तोता.. एक भालू.. एक लहसुन.. एक आलू.. केला भी.. आम भी.. कच्चा भी.. पक्का भी.. और कई सारे चूजे.....

आनंद जी ने रिपोर्टिग भी करानी शुरू कर दी। सबसे ज्यादा मजा आया अमजद अली खान और उनके बेटों का सरोदवादन कवर करने में....उसके बाद तीनों को एक साथ बैठा कर बातचीत....भेजा था तालमेली में जुटे रहने वाले विष्णु मखिजानी ने....अब वो अक्सर कहीं न कहीं भेजने लगे......लिखने का काम बढ़ गया तो जाना बंद कर दिया।

कई से पहचान पक्की हुई...मधुसूदन श्रीनिवास उर्फ मधु....पेंचकस हमेशा साथ में...जहां कुछ कमी देखते कसना शुरू...मिमिक्री के बादशाह....सुलोचना दास की टकटकाटक बोली की हूबहू नकल...राहुल श्रीवास्तव.....चित्रगुप्ती गुणों का भंडार....स्पोर्ट्स वाला नॉरिस प्रीतम....घर बगल में...अक्सर ले जाकर दिन में ही वोदका पिला देता......नीरज नंदा.....लोनिनवादी...मार्क्सवादी.......दैनिक जागरण वाले मरहूम नरेन्द्र मोहन को योगासन करा कर आ रहे सुरेश सिन्हा.....कौन सा आसन करा दिया कि बाहर कर दिये गये....तस्लाम खान बरेलवी.......राजीव शर्मा....साइकिल के पीछे बैठ कर कौवे पकड़ता.....

कुछ ही दिन बाद मॉसकॉम से निकले रंगरूटों और अखबारों से आये नामुरादों के चलते चहल-पहल और बढ़ गयी.....तमिल आर जी .....पैदा होते ही बोतल थाम ली थी...दूध की नहीं रे....मोहनीश का कमरा लक्ष्मीनगर वाले घर की छत पर......कई रातें हुड़दंगी रहीं। भूपेश पंत..रवि पराशर...धर्मेन्द्र सिंह..निकाशा...सुशील बहुगुणा....और प्रमोद कौंसवाल

फिर एक मगर ने पीछा किया नानी की नाव का....एक-एक को खींचने लगा....चुपके से पीछे से ऊपर से नीचे से..एक बिल्ली का बच्चा...एक मुर्गी का अंडा...एक केला.. एक आम... दोनों पके हुए....एक लहसुन एक आलू...एक तोता..... एक भालू...छड़ी और घड़ी भी गड़प कर गया.....

सबसे पहले मनमोहिनी गयी...बगल में बैठ कर गाने सुनती थी..काम गति पकड़ने लगा तो बम फटा...अजित शाही आजतक लॉन्च करने जा रहे हैं....जी हां मरहूम एसपी सिंह का तो बाद में तय हुआ था.... इंडिया टुडे वालों की पहली पसंद थे शाही....पता चला कि आखिरी रात हुई विदायी पार्टी में उनके संगी-साथियों ने इतना हुड़दंग मचाया कि मामला बिगड़ गया..दो महीने बाद आनंद जी और बादशाह सेन भी चले गये...राकेश जोशी भी.....
अब नंदन उन्नीकृष्णन हेड, प्रोडक्शन इंचार्ज देवाशीष चटर्जी और ब्यूरो के सर्वेसर्वा अशोक सिंह.....
आजतक शुरू हुआ तो विवेक अवस्थी और आशुतोष भी फना हो गए.....

साल पूरा होने से एक महीना पहले सूबेदारों की मीटिंग में चप्पू किसे पकड़ाया जाए और हैया-दैया कौन करे......देवाशीष गुनगुनाए...अब आप निकालिये बुलेटिन......कैसे निकाला जाता है...यह तो मुझे भी नहीं मालूम.....सुनते ही गश आ गया.....संभला तो तीनों सूबेदारों को अच्छी तरह समझा दिया कि जो करूं...करने देना.......अब बुलेटिन कैसे निकालू.....ए मालूम तो बी का पता नहीं.....जेड मालूम तो वाई लापता ....शुरू से उस जगह पर तो कटोरे में कटोरा..बेटा बाप से भी गोरा जमे थे...तभी उस गैंग से निष्कासित कानपुर में साथ रहा प्रदीप अग्रवाल दिख गया। देखो...मैं रोज तुम्हें सुबह इस ठंड में घर लेने आऊंगा.....मयूर विहार से दस+ वहां से उदयपार्क दस=बीस किलोमीटर....तुम दो दिन में मुझे रनडाउन बनाना सिखा दो.....उसके हामी भरते ही अगली सुबह उसके दरवाजे पर.....

केबिन में कदम धरते ही चपरासी को बुलाया....टीवी उठा कर बाहर पटक दो.....इस बेंच को नीचे फेंक दो....जिस पर बैठ....देखो वो चांद करता है क्या इशारे......गाया जाता है......बस....एक कुर्सी...एक मेज... एक कम्प्यूटर....दो घंटे बाद जब कटोरे में कटोरा पार्टी आयी..तो टायं-टूं करती पांव पटकने लगी। सबको बाहर कर दिया कि अपना काम करो....फिर माबदौलत का फरमान....हर चीज माकूल समय पर चाहिये। नंदन ने चलते-फिरते फिकरा कसा....पहले ही दिन से तानाशाही... रन डाउन का काम दो ही दिन में आ गया। बेंच हट जाने से दो लड़कियां नौकरी छोड़ गयीं। भाड़ में जाओ वाला अपना अंदाज कई को भा गया तो कई के दिलों पर आरी चलने लगी। हैया-हैया और चप्पू चालन लय-ताल में आ गये......

और जब लगती रात की ड्यूटी तो......रेलगाड़ी छुकछुक छुकछुक...तड़क ..भड़क..लोहे की सड़क...यहां से वहां...वहां से यहां....सोती हुई मिल गयी शारदा...यहाँ अकेले सब करते करते जान हलकान ....पानी भरा गिलास पलट दिया.....इस्तीफा दे कर चली गयी..

मस्जिद मोठ......नीचे हरा मैदान..मंदिर-मकान...चाय की तीन दुकान....गरमागरम जलेबी....उतना ही गरम समोसा..चटनी अलग से.....लाला की दुकान....पी कर जाओ या बोतल खोल कर बैठ जाओ....बसपा ढाबा......जो घरवाली के हाथ की खा कर आता वो भी एक बार ज़रूर डाकारता...थोड़ा आगे....पुल-पगडंडी..टीले पे झंडी....पानी के सड़े कुंड..पिनपिनाते पंछी के झुंड....लंगड़ाते कुत्ते....डकराते सांड़....कुएं के पीछे बाग-बगीचे..धोबी का घाट..मंगल की हाट....
बुलेटिन बनता.....धरमपुर..करमपुर..पांडवा..खांडवा..तलेगांव..मलेगांव..बेल्लोर...नेल्लोर..
शोलापुर..कोल्हापुर..कोरेगांव..गोरेगांव....मेमदाबाद ..अहमदाबाद...और बीच वाले स्टेशन बोलते रुक रुक रुक रुक

एक महीने बाद ही नानी की नाव से मगर ने कई सारे खींच लिये....खूब खटक-पटक....टपके धांसू किस्म के आंसू......जाने वाले सब नाव में बैठ हैया हैया करते थे....चप्पू कोई नहीं थामता था.....फिर हैया के बदले शुरू हो गया था ......तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा.....जिसने कई जोड़े उलट-पलट दिये......

ट्रांसपोंडर को रूसी उपग्रह से निकाल कर सिंगापुर में ठूंसा गया...तब तक के लिये बुलेटिन निलम्बित.......इंजन रुक गया छोंछों करने लगा.....और डिब्बों के बाहर.... चाय...चाय...चाया... और...और.....याद आयी आधी रात को कल रात की तौबा....दिल पूछता है झूमके किस बात की तौबा