गुरुवार, 30 जून 2011

बुलेटिन के बाद




राजीव मित्तल

रात नौ बजे गोमतीनगर के पता नहीं किस नामाकूल खंड में उनका घर तलाश कर ढूँढा
....दरवाजा खोला उनकी पत्नी ने......अभी नहीं आए हैं ....चार दिन पहले तय हुआ था आज इस वक्त मिलने का..... उन्होंने अंदर बुला कर बैठा दिया और फोन मिला कर दे दिया......आप कहां हैं मैं तो आ गया....अप्रैल फूल तो...!......नहीं-नहीं...मैं आ रहा हूं....मीटिंग में फंस गया था...दस मिनट और....

अब अपने पास समय है उनके बारे में बताने को....राजेश शर्मा....अच्छे कवि और लेखक...सूचना-जनसम्पर्क विभाग में संयुक्त निदेशक.......महीनों बीत जाते हैं बगैर बातचीत के...लेकिन जब होती है तो खूब होती है...चार दिन पहले मिलने गया था उनसे.....तभी कार रुकी...दरवाजा खुला और वो सामने...क्या बताऊं राजीव....बिल्कुल ध्यान से उतर गया था...अच्छा किया तुमने फोन कर दिया.... तुम्हारा ब्रांड लाया हूं.....आराम से बैठो...देर हो जाए तो घर में परेशान तो नहीं होंगे न....पांच मिनट और दे दो ......चेंज करके आ गए...हां अब बताओ.......नया घर कैसा लगा....

तुम उस दिन कह रहे थे न कि फिर से आना चाह रहे हो हमारे यहां.....इससे अच्छा और क्या होगा ...पर..अब सब कुछ बदल गया है...तुम एडजस्ट नहीं कर पाओगे...मुझे ही मजा नहीं आ रहा....खैर छोड़ो...शुरू करें.... फिर पूरी रात नौशाद से लेकर ठाकुर प्रसाद सिंह...श्रीलाल शुक्ल और पुराने दिनों पर बातचीत होती रही। नौशाद का संगीत साथ-साथ....फरमाइश की तो तलाश कर कैसेट निकाले। खूब बोल रहे थे....उजाला छाने लगा तो होश आया...तुरंत रसोई में गए और दो प्लेटों में खाना ले कर आ गए। छह बज गए...चलने लगा तो बाहर स्कूटर के पास दस मिनट बात करते रहे।

तीन साल बाद.....रात आठ बजे का बुलेटिन.....तनाव के साथ-साथ यह भन्नाहट कि नंदन सुबह का बुलेटिन पूरी तरह क्यों नहीं सौंप देते...एक बार कहा तो बोले मुकदमा कराओगे क्या हम पर...वैसे क्यों करना चाहते हो हमेशा रात की ड्यूटी.....बहुत सारे पतित नहीं दिखेंगे इसलिये....उनमें क्या मैं भी ...अबे कट ले यहां से... हेड दिल पे ले रहा है....

सब कुछ फुल वॉल्यूम पर.....राहुल कहां है....रनडाउन में पहली स्टोरी उसी की है...चाय पीने ढाबे पर गया है बॉस....उसकी स्टोरी भाड़ में झोंको.....नीरज.. आपका क्या हुआ....ओ जी हो गयी एडिट....रनडाउन खोल कर स्टोरी ऊपर-नीचे कीं...टेप के नम्बर बदले.....इन-आउट बदला..... बस तीस मिनट बचे हैं ....रवि...एंकर स्क्रिप्ट हो गयीं क्या....दो बची हैं भैये ......यह चोटीधारी कहाँ है .....ग्राफिक्स का पूछना है ....शुक्ला जी पान तो खिला दो....तब तक चैनल हेड नंदन उन्नीकृष्णन आ गए....इतना क्यों हल्ला मचा रहे हो यार....उल्टे उन्हीं पर सवार हो गया...आपके साथ मीटिंग का कोई फायदा नहीं....लीड स्टोरी राहुल की....लेकिन अब घुसा है एडिट बे में....सैकेंड चंक में जाएगी अब...ठीक है जो करो...पर धमकाओ तो मत......

तभी एक और महत्वपूर्ण स्टोरी लेकर आ गया प्रभात .... एडिट बे दिलाना है उसे....राहुल बाहर निकलो....अभी तुम्हारी स्टोरी वो-शॉट पर चला दूंगा....नहीं मान रहा था...पकड़ कर बाहर कर दिया.....कुर्सी पर बैठ फिर रनडाउन में फेर-बदल...7.45...जाकर कोई देखो कि स्टूडियो में सब तैयारी है न! एंकर सलीम रिज़वी ...चिंता नहीं.....कोई फोन-इन नहीं...कोई गैस्ट नहीं...बुलेटिन निकल जाए उसके बाद रिपोर्टर्स और उनके बॉस अशोक सिंह की बजाता हूं.....लौटने के बाद फौरन स्टोरी दें...हमें अनुवाद भी तो करना पड़ता है...ससुरे मस्ती मारते रहते हैं.....

तभी विपिन धूलिया बोला ...तुम्हें पता है राजेश शर्मा ने आत्महत्या कर ली..तुम्हारे तो दोस्त थे न.....हाँ ....लेकिन... बुलेटिन के सिवा कुछ नहीं सूझ रहा था....

पैंतीस मिनट बाद स्टूडियो से निकलने के बाद....हां..क्या कह रहे थे विपिन...राजेश शर्मा ओसीआर बिल्डिंग की दसवीं मंजिल से कूद गए। मेज का सहारा लिया....क्यों....ऐसा क्यों किया उन्होंने......शरीर जवाब देता जा रहा...दिमाग पर धुंध.....कितना समय बीत गया....रात की ड्यूटी वाले आ गए....तुम अभी यहीं हो...सीरी फोर्ट पब नहीं जाना क्या.....नंदन इंतजार कर रहे हैं....उनको मना कर स्कूटर स्टार्ट किया.....कहीं नहीं देख रहा था...कुछ नहीं सुन रहा था....सोलह किलोमीटर बगैर हादसे के निकल गए.....घर में सब सो गए थे......एक बजे मंगलेश जी को फोन लगाया.....घंटी बजती रही...बजती रही..कई बार....नहीं उठाया उन्होंने लेकिन....

चार बजे पूर्णिमा को जगाया...मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं..स्कूटर बस अड्डे के स्टैंड पर खड़ा कर बस में ...

.....उस रात के बाद दो बार और मिलना हुआ...बीआईटीवी का लेटर मिलने के बाद होली पड़ी...उस शाम उनसे मिलने गया....तुम बेकार हमारे यहां आते...देखो कितनी शानदार नौकरी मिली तुम्हें....चुप से थे उस दिन.....सुन चुका था कि डिप्रेशन अक्सर सवार हो जाता है उन पर....कुछ देर में उठ लिया...

तीन साल की सरकारी नौकरी में कई बार अभद्र हुआ उनसे....गलती से भी अफसरी दिखाते तो माथा घूम जाता....उनके खिलाफ झंडा उठा लेता..... झांसी में उस रात तो हद ही कर दी थी....जब तब हाथ-पैर पटकता उनके चैम्बर में घुस जाता और अपना नजला झाड़ता....वे उसी तरह शांत रह कर सुनते और धीरे से चाय को पूछते...हां पी लूंगा कह कर सामने पसर जाता....तब वो समझाने पर आते...पतली मीठी आवाज...अपना लिखा जो कुछ दिखाता...उसे पूरे मनोयोग से पढ़ते और छापते।

कुम्भ में चार दिन उनके साथ रहा इलाहाबाद में.....जहां उन्होंने काफी समय गुजारा था....अपने घर ले गये....कई जगह दिखायीं.......अमृत राय से मिलवाया.......अंदाज ही अलहदा था उनका ....जब वहां से दिल्ली चला गया नवभारत टाइम्स में.... तो भी सम्पर्क बना रहा....लखनऊ लौटा तो फिर होने लगी बैठकी....धीरे-धीरे....यहां-वहां टकरा जाते... बस.....

बीए करते समय ऊषा दी ने कैमरा दिया था....दिन भर साइकिल के पहिये घुमाता रहता...रील पे रील खर्च होती रहतीं...फिर चारबाग के स्टूडियो में फोटो बनतीं...उनमें से कई फोटो हापुड़ वाले अशोक जी को बड़ी पसंद आयीं...एक दिन साथ ले गये सूचना विभाग ..ठाकुर साहब से मिलवाने....उन्हें भी अच्छी लगीं...वहीं देखा था राजेश जी को पहली बार देखा...बाद में कई बार साइकिल पर दिखे एपीसेन रोड पर....फिर घर भी आने लगे ठाकुर साहब के साथ....एक दिन अपने घर ले गये....

चंडीगढ़ सुबह साढ़े चार पजे पहुंची बस...फरवरी की ठंडक....सत्रह सेक्टर से पैदल ही चल दिया 30 की ओर....पांच बजे ट्रिब्यून के नाइट एडिटर अश्विनी भटनागर के घर के सामने...दरवाजा ठोका...भन्नाते हुए दरवाजा खोला...अबे तुम...इस समय....चैन नहीं है क्या....अंदर सब कुछ फर्श पर...वो खुद भी ....आधा घंटे तक आपबीती सुनाता रहा...कुछ लेना तो नहीं...उसी की तो जरूरत है...ठीक है अपने आप निकाल लो.... सब वहां धरा है....मैं सो रहा हूं...सनडे है... दिन भर आराम से बात करेंगे......

दो दिन बाद चंडीगढ़ से लौट आया...तभी कहीं से उत्तरप्रदेश मासिक मिल गयी, जो राजेश जी को समर्पित थी....पूरा दिन उसको चिपकाए रहा...कई कई बार पढ़ गया...पूर्णिमा को कहीं छुपानी पड़ी आखिर.....