मंगलवार, 21 जून 2011
इस्तीफ़ा हो तो ऐसा
राजीव मित्तल
काम में तल्लीन थी...कागज को थोड़ा झुका कर आंखों के सामने लहरा दिया। तुरंत आंखें ऊपर उठायीं...गुड मार्निंग सर......इसकी रिसीविंग दो.....पढ़ना शुरू किया.....चेहरे पर चौंकने के भाव आ रहे.....एक मिनट...वो पंकज जी के केबिन में चली गयी...आयी तो बोली...आपको अंदर बुला रहे हैं।
पंकज जी .....मरहूम घनश्याम पंकज......ऐसी शानदार इमारत कि जिसकी हर मंजिल लकदक करती हुई.....लेकिन नींव बेहद पोली.....कई बार ढहे......पर नींव पर कभी ध्यान नहीं दिया...हमेशा कमरा-छत-अलमारी संवारते रहे..अब इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा कि दुनिया भर को पानी पिलाने वाले पंकज जी को मजबूर कर दिया था कि भूले से भी अपुन को न भूलें ...कारण थे भी कई सारे।
अंदर पहुंचा....हाथ में मेरा पत्र....बड़ी-बड़ी आंखों में सारा बल डाल कर बलशाली आवाज निकाली...यह क्या है.....मेरा इस्तीफा.....ऐसे लिखा जाता है...सुधरोगे नहीं...दोबारा लिख दो...बस दो लाइन का.......दोबारा नहीं लिखूंगा.....परेशानी में पड़ जाओगे......कोई बात नहीं...अपनी पीए से बोलिये..इसे रिसीव कर ले। उन्होंने सलोनी मूरत को बुलाया...रिसीव कर लो। बाहर आ कर मुस्कुरायी.....आप नहीं सुधरेंगे...ये लीजिये।
अब दस दिन हैं अपने पास दिल्ली जाकर बिजनेस इंडिया टीवी ज्वायन करने को। 26 मार्च खुद से तय की है। बीच में दो-तीन बार कानपुर जाना हुआ। अजय शुक्ला ने सिंक्लेयर लुइस की एयरोस्मिथ दी....बरसों से तलाश थी..जगह-जगह बच्चों का एडमिशन कराते कराते परेशान....अब सेंट्रल स्कूल में कराना है। आशुतोष वाजपेयी अपने सांसद से मिलवाने ले गया । लखनऊ के सांसद वाजपेयी जी एक लेटर थमा चुके थे, वो बच्चों के नाम लिखा निकला।
साल की शुरुआत ही हाय-तौबा मचाते हुई। 31 की रात जगह-जगह कनपुरिया जश्न.....न जाने कितनी गटक ली। तीन बजे साबरमती में घुसते ही सो गया। कुछ देर बाद लगा चिड़ियां चहचहा रही हैं। लेकिन चिड़ियों से पहले तो लखनऊ पधार जाता है...तभी किसी ने टाइम पूछा.....अबे चुप....फिर झपकी लग गयी.....फिर लगा कि ट्रेन कहीं खड़ी है। मुंह बाहर निकाला...दिन निकलता दिख रहा....ट्रेन किसी सुनसान स्टेशन पर....इंजन छोंछों कर रहा। एक से पूछा...लखनऊ कितनी दूर है.......का कहत हो नख्लो! ......बाराबंकी से भी आगे निकल आए हो। सत्यानाश.....तुरंत प्लेटफार्म पर...निकल ले जल्दी से....एमएसटी किसी काम की नहीं रह गयी है....रिन्यू क्यों नहीं करायी थी रे अब तक ! कहीं टोकाटाकी नहीं....सब पड़े सो रहे...बाहर निकल पता किया कि कहां हूं । अब टेम्पो से बाराबंकी...वहां से बस....तब लखनऊ। साथ में अजय विद्युत होता तो यह तकलीफ न भोगनी पड़ती। कई महीनों से कानपुर-लखनऊ....लखनऊ-कानपुर उसी के संग चल रहा है। 11 बजे घर पहुंचा तो घरवाली कानपुर में प्रमोद जी को परेशान करने में तल्लीन। शाम को ऑफिस पहुंचने पर उन्होंने पूछा....कहां चले गये थे....सोचा कहूं ..उसी से पूछिये..जो आपको फोन लगा रही थी..
जनवरी में दिल्ली चला गया। मयूर विहार में शाम को प्रदीप जी के साथ टहल रहा था कि शैलेश मिल गये। दोनों को पकड़ ले गये अपने घर। बीआईटीवी ज्वायन कर चुके थे। प्रदीप जी ने मेरे बारे में कहा तो बायोडेटा मांग बैठे। दिल्ली से ही चंडीगढ़ निकल गया...छोड़ने के बाद पहली बार। कहां रुकना है कुछ तय नहीं था।
ट्रिब्यून चौक पर उतर सीधे जनसत्ता। हॉल में घुसते ही जाम लग गया। कोई इधर खींच रहा कोई उधर। सारा काम रुक जाने से परेशान समाचार सम्पादक को बाकायदा ट्रैफिक संभालना पड़ गया । एक्सप्रेस वालों के साथ कई कप कॉफी पीने के बाद रात का ख्याल आया। तभी राम सिंह बराड़ ने ठुमका मारा..मेरे घर चलना है रात को। कुछ देर बाद हम दोनों और साथ में प्रमोद द्विवेदी चल पड़े। प्रमोद से पहली मुलाकात...बेहद मिलनसार...अपने घर दो घंटे मास्टर मदन सुनवाया...टेप करके भी दिया.... मास्टर मदन और सहगल पर काफी अच्छा लिखा था।
बराड़ का सरकारी बंगला सेक्टर सात में। दहिया साहब भी तो यहीं रहते हैं। एक नम्बर पर नजर रुकी और कार रुकवा दी। यार, एक मिनट ...तुम बैठे रहो यहीं..मियां-बीवी से मिल लूं। और उस मिनी को देख लूं, जो हमारे पास रही थी। जनवरी की रात के साढ़े नौ बजे। दरवाजा खोला दहिया साहब ने ....गदगद.....लुगाई को आवाज दी...वो और भी गदगद....चाय-नाश्ते का इंतजाम होता दिखा तो दोनों को अंदर बुला लिया। चाय पीते ही बराड़ बोला...चलो भाई ....कौन...ये कहीं नहीं जाएंगे....आप जाओ जी इन्हें यहीं छोड़ दो ...इंदु तमतमायी। बराड़ से निगाहें चुराने की नौबत। यार..अब कुछ नहीं हो सकता....तुम भी तो जाट हो...समझ सकते हो....नाश्ता तुम्हारे यहां। रात में फिर खाना बनाया। मिनी से सुबह मिलना हुआ....पटर-पटर बातें कर रही। उसी रात प्रेस क्लब में तम्बोला। दो बजे रास्ता नहीं सूझ रहा....आड़े आ रही एक बेहद ऊंची दीवार तक फांदनी पड़ी। दरवाजा खोला इंदु ने। चुपईचाप सो जाइये का आदेश। ऊपर से एक और रजाई डाल दी।
दिल्ली में बीआईटीवी का तम्बू पंचशील एन्क्लेव में। संजय द्विवेदी से मिला। प्रोग्रामिंग में बिजी था। अपनी बाइक पकड़ा दी कि कुछ देर घूम लो। पुरखों को याद कर उस दिन दिल्ली में पहली बार दुपहिया वाहन दौड़ाया। लौटने के बाद संजय ने मिलवाया अजित शाही से लॉन में। एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर वाला मिजाज बिल्कुल नहीं। पर भाई टाल गया ।
कानपुर पहुंचते ही रॉबिन डे का आमंत्रण कि 26 को बनारस में सहोदर की शादी है...हम-आप कार में चलेंगे। साथ में सुरेन्द्र प्रताप सिंह और आलोक अग्रवाल। सुरेन्द्र बीएचयू का। सुबह पहुंचते ही बारातियों को उनके हाल पर छोड़ तीनों निकल लिये शहर परिक्रमा पर। गंगा को पकड़ लिया। बीएचयू के बाहर लंवग-लता के दर्शन। अंदर मीलों घूमने के बाद थकान से चूर चाय की दुकान पर लवंग-लता का सेवन। काशी विश्वनाथ मंदिर चलने के प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया। भटकना है बस । किसी की शादी में आए हैं यह ख्याल रात को आठ बजे आया। पहुंचे तो तलाश चल रही थी। भोज के बाद सुबह कानपुर निकलने की बात। अभी बारह बजे हैं। उन्हीं दोनों को पकड़ गदोलिया जा पहुंचा। खूब रौनक। ठंडाई पी गयी। वापस फिर डेरे पर। नींद के मारे बुरा हाल। बीस किलोमीटर तो चल ही लिये होंगे। नसीब फूट गये लेकिन। अचानक कानपुर वापसी की तैयारी शुरू। भोर में ही कानपुर। आलोक ने अपने घर में सुला दिया।
रॉबिन डे के साथ ही नवम्बर में पटना जाना हुआ था आर्यावर्त के लिये। उसको इसलिये पकड़ा कि बिहार की अपनी पहली यात्रा और वह पाटलिपुत्र टाइम्स में रह चुका था। पटना का वो एकदिवसीय दौरा यादगार बन गया। खासकर रात 11 बजे स्टेशन के बाहर सोनपुर मेला जैसा दृष्य। पूरे डेढ़ घंटे वो नजारा देखा। रात होटल के कमरे में अकेले कटी...क्योंकि रॉबिन किसी से मिलने चला गया था।
फिर मातृत्व वाला एहसास। लग रहा था कि कानपुर छूटने वाला है। उस दिन वहीं से बगैर किसी को बताये गोमती में सवार हो गया। शाम को प्रदीप जी के घर। फिर शैलेश के यहां। उन्होंने अगले दिन साथ में पंचशील चलने को कहा। वहां मिलवाएंगे आनंद सहाय से। बातचीत में दोस्ताना.....बैठने की जगह नहीं तो मुंडेर पर पसर लिये। बातचीत के बाद बोले.... आप दो दिन बाद लेटर ले लीजिये।
अब तनख्वाह को लेकर धुकुर-पुकुर शुरू ....क्योंकि खुद की मार्केटिंग अपने से तो होती नहीं। खरीदारी में जो चाहे लूट ले...बेचने में अकल साथ नहीं देती। दो दिन जैसे-तैसे काटे। मातमी अंदाज में अंधेरा होने पर बीआईटीवी में। आनंद जी देखते ही बोले....कहां थे आप..कब से आपका इंतजार हो रहा है...ये लीजिये लेटर और कॉपी पर साइन कर दीजिये। चैनल हेड बादशाह सेन ने अपनी कुर्सी थमाई और खुद बाहर चले गये। कांपते हाथों से लेटर खोला.. पढ़ना शुरू किया...येयेयेयेयेयेयेये....वो मारारारारारा....सीधे दस हजार की छलांग...चार से चौदह...साल 95...कई सम्पादकों के बराबर या उनसे ज्यादा। कुछ समझ नहीं आ रहा........ सन्नाटा मार गया...कानों में सांय-सांय हो रही। आनंद जी समझ गये...कंधे पे हाथ रखा...बहुत-बहुत बधाई। बादशाह सेन भी आ गये.. हाथ मिलाया....कब ज्वायन करेंगे!
शैलेश को बताया तो बोले ..चलो प्रेस क्लब। पंचशील से टाइम्स बिल्डिंग.....परवेज अहमद को लिया। उनका भी अदृश्य हाथ था इस नौकरी को दिलवाने में। प्रेस क्लब से रात बारह बजे मयूर विहार। प्रदीप और भाभी जी नीचे पुलिया पर बैठे इंतजार कर रहे। सुन कर खुशी का ठिकाना नहीं। लखनऊ के लिये शहीद एक्सप्रेस में रिजर्वेशन। रानी भाभी ने रास्ते के लिये पता नहीं क्या क्या बना दिया। दोनों का आग्रह कि रहना मयूर विहार में ही है। मकान मिलने तक उन्हीं के साथ।
सुबह ट्रेन काकोरी में अटक गयी। कोई बड़ी गड़बड़ी। उतर कर बस से लखनऊ। घर में यही मालूम कि कहीं
जाना पड़ गया था। समझाने में समय लगा कि जनम का बंजारा हूं बंधु.....अब दिल्ली ।