शनिवार, 6 अगस्त 2011

उजड़ने बसने का नया अंदाज



राजीव मित्तल

पंद्रह..हां 15 सितम्बर....पल्टून पुल के सामने से बस पकड़ी और नोएडा के सेक्टर बारह में उतर थोड़ा चल कर सेक्टर गयारह...फिर सहारा के विशाल परिसर में। बाहर ही अरविंद झा दिखे तो उन्हें तुरंत थामा....अंदर धंसने का सहारा...आप कब ज्वायन कर रहे हैं...अपने साथ बधवार जी के कैबिन में ले गये...वहीं मिले पंडित उदयन शर्मा.....उदयशंकर...प्रभात डबराल। प्रभात से कई साल की दोस्ती...पांच महीने पहले इंटरव्यू में अपन को परखने वालों में इंद्रजित बधवार भी थे.....उदयशंकर से पहली मुलाकात और....

पंडिज्जी से पहली मुलाकात चंडीगढ़ में रमेश नैय्यर के घर पर और दूसरी....जब संडे आब्ज़र्वर निकालने की तैयारी कर रहे थे...चंडीगढ़ से दिल्ली पहुंचा और फोन कर नॉर्थ या साउथ एवेन्यू के उनके सांसदी बंगले में घुस गया था....बात अच्छे से की... पर निकलने वाले साप्ताहिक अखबार की टीम में लिया नहीं..

देखते ही चहके...तुम कब आ रहे हो....कितने ऑफर लेटर तुम्हारे घर पहुंचाए जाएं.....मैं 21 को ज्वायन करूंगा...किसी ज्योतिषि से साइत निकलवायी है क्या...फिर खुद ही कागज पर कोई गुणा-भाग लगाया...यार..दिन तो बहुत अच्छा चुना है.....लम्बा टिकोगे..अब अपने को चैनल हेड बधवार जी से सेलरी पर बात करनी थी कि इंटरव्यू में जो तय हुआ था उसमें कटौती क्यों.....अरे तुम आओ तो सही..चैनल शुरू होते ही सब ठीक हो जाएगा....

वहां से निकल यहां-वहां टूलने लगा......सहारा का वो कॉरपोरेट विंग इस कदर चकाचक कि मध्यमवर्गीय घबराहट छाने लगी....शुरू होने वाले न्यूज चैनल में ज्वायन किये चेहरे उसी में बैठाए गये थे.....तभी एक जानी-पहचानी आवाज...अरे...हमारे सर जी आ गये....बीआईटीवी में एंकर रह चुकी लुभावनी विभा तैलंग....सुबह के बुलेटिन में ज्यादातर साबका उसी से पड़ता था ...जरा सी गलती पर खूब फटकार झेलती.....कभी बुरा नहीं माना लेकिन ...अब यहां पर भी वही मुरीदपना.....

कम्प्यूटर पर खटर-पटर कर रहा एक चेहरा.. कभी कहीं देखा सा...याद्दाश्त पर जोर डाला ...बीआईटावी में एडिट बे की ओर जाती और उसमें से बाहर आती एक लड़की...हाथ में टेप...नजर और ध्यान गांडीवधारीअर्जुन का चिड़िया की आंख को भेदना जैसा....उसकी आवाजाही कुछ ही दिन रही...तुम बीआईटीवी में क्या कर रही थीं.....चेहरे पर बेहद आकर्षक मुस्कान...आप वहां थे क्या....था क्या...मैं ही था...मैं कुछ दिन ही वहां रही प्रोग्रेमिंग में रही...मुजफ्फरपुर की पंखुरी.......फिर प्रमोद जोशी...देख कर सुखद एहसास....

घर लौटते हुए उदासी छाने लगी.....अब बीआईटीवी छोड़ने का वक्त नजदीक है....परवेज अहमद तो जी न्यूज चले गये....देबू दा को कहना पड़ा नाइट ड्यूटी लगाने को.....वो चार रातें बिता कर ही विदा लूंगा यहां से....उदासी गहराती जा रही...घबरा कर दो दिन के लिये लखनऊ और एक दिन के लिये चंडीगढ़ निकल गया....लौट कर रात भर खूब हल्ला गुल्ला मचाता...समझ गये सब कि चला-चली की वेला है....काम खत्म होने के बाद शरारतें.. हमेशा की तरह....पूरे हॉल की...ऊपर-नीचे से ला कर सारी कुर्सियां एक क्यूबिकिल में भर देता.....जैसे पचासों भेड़ें बाड़े में बंद हों....कोई भी गुजरता तो उस दृष्य पर एक नजर जरूर डालता...चैनल हेड नंदन भी समझ जाते की हरकत किसकी है। दिन की ड्यूटी वाले आते तो कोसते हुए बैठने को कुर्सियां तलाशते और झींकते हुए उस क्यूबिकिल से कुर्सी उठाते.......उन्हीं दिनों एक चस्का और लगा था...नौटंकी टाइप कुछ लिख कर जाना और फिर सबको टैग करना। जाने माने व्यंग्यकार उर्मिल थपलियाल को पढ़ कर खूब आनंद उठाया। उसी विधा को अपना कर अपन ने हाथ आजमाया....दिन ब दिन गहराते जा रहे उदास माहौल को थोड़ा सरका देती वो नौटंकी । भावना तो यहां तक कहती कि इनसबका मंचन होना चाहिये।

आखिरी रात....माहौल में विदायी का संगीत....महफिल वाली रात....सुबह का बुलेटिन निकाल कर सब चले गए...मुझे इंतजार था नंदन का...इस्तीफा जो थमाना था....उदयपार्क से सीधे सहारा में जा कर ज्वायनिंग देनी थी...पास में था मयूरविहार के ही जहांगीर खान का स्कूटर, जिसको एक बार बड़ा सताया था....अपना एलएमएल तो सदियों से नहीं चलाया था...नीचे छोटी सी कोठरी में खड़ा आंसू बहा रहा था....दस बजते ही नंदन दिखे....तो तुम भी चले...कैसे कहूं कि मत जाओ.....बेला स्वरूप की जगह एचआर में कोई और आ गया था.....उस दिन बेला बहुत याद आयी। ज्वायनिंग उसी को दी थी और पहली बार टाइम ऑफिस जैसे सड़ीले शब्द और उससे भी ज्यादा सड़ीले चेहरे के बजाय ह्यूमन रिलेशन की खबसूरत ऑफिसर के दर्शन नसीब हुए थे वीआईटीवी में....उस दिन तो बेला से हड़क भी गया था कि अपना भविष्य इसी कन्या के हाथ में है।

इस्तीफाबाजी कर स्कूटर दौड़ा दिया सहारा की ओर...अंदर पहुंचते ही गर्मागरम कॉफी मिली...कुछ मुस्कान...कुछ गर्मजोशी.....ज्यादातर चेहरे नये नवेले....बीआईटीवी के वो चेहरे भी दिखे...जो कभी-कभी बसपा ढाबे पर ही दिखते थे....अब यहीं मन रमाना था....और हमेशा की तरह जताना था... जो घर फूंकने आपनो वो चले हमारे साथ......