मंगलवार, 15 नवंबर 2011

रथ यात्रा की धृंगा धृंगा धिधिन्ना तिन्ना




राजीव मित्तल

फणीश्वरनाथ रेणु बताये रहिन के विदापत नाच में कुल जमा पांच ठो लोग....एक मूलगैन यानि म्यूजिक डायरेक्टर...जिसके पास दो वाद्ययंत्र...मृदंग और मंजीरा.....दो नचइये...और एक बिकटा और एक नायक। .......बिकटा मतलब विदूषक... नाचने वाली ( जो मर्द ही होता है) के पहनने को लाल सालू की घांघरी और पीतल-कांसे के गहने। चेहरे पे कालिख पोतकर...घुटने तक तंग पतलून और हाथ में थुथनीदार छड़....बिकटा के रोल में काने..कुबड़े जैसों को प्राथमिकता।

धृंग-धा..धृंग-धा तिन्ना...मृदंग के ताल निकालते ही मंजीरा बोलता है..... कुन कुन कुन कुन कुन कुन
गननायकं फलदायकं पंडितम् पतितम्....नायक जी के बोल शुरू....
धृंगा धृंगा धृंगा किनका किनका...धिरिंनांगि धिरिनांगि धिरिंनांगि किनका किनका किनका
अब ओय ओय कर रहे बिकटा महोदय की बारी.......

बाप रे कौन दुगर्ति नहीं बोल सात साल हम सूद चुकाओल तबहुं उरिन नहीं बोलौं कोल्हुक बरद सन खटलां रात दिन करज बाढ़ हि गेल थारी बेंच पटवारी के देलियेन्ह लोटा बेंच चोकीदारी बकरी बेंच सिपाही के देलियेन्ह फटकनाथ गिरधारी


विदापत नाच के बीच उनकी रथयात्रा का ऐलान किया गया.....नाच देख रही नटी परेशान कि रथयात्रा तो भुवनेश्वर में भगवान जगन्नाथ की निकाली जाती है...ये ससुरी कौन सी रथयात्रा है। बीच में ही छोड़ घर में घुसी तो नट प्रकट भये .....अरी जल्दी से खाना दे.....नहीं...पहले हमको ये बताओ कि रथयात्रा कौन से देवता की है ...हम भी जाएंगे दर्शन को...अरी अकल है कि सिलबट्टा...ये उनकी रथयात्रा है....जिनकी बवासीर जोर मारती है तो निकल पड़ते हैं.....और अब तो ऐसी यात्राओं की भरमार हो गयी है।

तभी टीवी पर गरुणध्वज रथ पर शैव्य..सुग्रीव..मेघपुष्प और बलवाहक की रास थामे रथयात्री का बहुते लाइव साक्षात्कार.....

>>वो मेरे सामने>> प्रोग्राम में आपका स्वागत है। अब तक की आपकी यात्रा कैसी रही...चड्ढा जी ने दांत निपोरते हुए मनोहारी सवाल पूछा। क्या कहूं..मजा नहीं आ रहा.....हथेलियां रगड़ते हुए जवाब..... खीर बनने से पहले ही दूध फट गया हो जैसे। चड्ढा जी निपोरू ही बने हुए थे....वो कैसे....?
महाभारतकाल में पुंड्र देश का राजा पौंड्रक अपने को श्रीकृष्ण समझने लगा था और नाम भी वासुदेव रख लिया था.....मोरपंखी भी सजाता था....ऐसे ही हमारी ही पार्टी के एक नेता भी कर रहे हैं। नाम नहीं लूंगा आप समझ गये होंगे।

आप दर्शकों को पिछली रथ यात्रा के बारे में कुछ बताना चाहेंगे? ........तब हम सत्ता में थे... मेरी वो यात्रा विवेकानंद के विचारों से प्रेरित थी। हुएनसांग...फाह्यान से भी काफी प्रेरणा मिली। वास्कोडिगामा के तो क्या कहने। लेकिन रथयात्री जी....वो तो लुच्चा था...हल्दी-जीरे और कालीमिर्च के लिये आया था। चारों अश्व तुरंत हिनहिनाए।

चड्ढा जी ने खींसें काढ़ीं और सवाल बदला....आप हमेशा सड़क मार्ग ही क्यों पसंद करते हैं। मैं जनता से दूर नहीं रह पाता और गांधी के देश में सड़कबाजों की संख्या बहुत है। उन्हें देख कर मेरे मन में अनेक विचार उठते हैं। मुझे देख कर जनता क्या सोचती है..यह जानना बड़ा एक्साइटिंग है मेरे लिये।

सत्ता से बाहर हुए आपको कई साल हो गये...अब आपको कैसा लगता है? ....जो रहे देता-लेता वही नेता.....हमारे लिये गुलाबों की माला क्या सड़े अंडों की बौछार क्या। सब सहज स्वीकार्य है। आप घोड़ों के रथ पर कैसे इतनी लम्बी यात्रा कर रहे हैं....? नहीं..नहीं मैं तो अश्व शक्ति वाले वाहन पर हूं..ये रथ और अश्व ट्रक पर साथ-साथ चलते हैं। मेरी यात्रा उन रास्तों से हो कर हैं जहां जहां भगवान श्रीकृष्ण अपने गरुड़ रथ पर गए थे....जैसे पुंड्र देश... रुक्मणि का नैहर कौंडिन्यपुर... जरासंध का गिरिव्रज.... पांचाली का विराट....अवंति का संदीपनी आश्रम...कामरूप-कमेच्छा...घोरअंगिरस का प्रयाग आश्रम....द्वारका, मथुरा, वृंदावन वगैरह...वही मार्ग, वही अश्व और वही सारथि दारुक....सब कुछ वही रखा है मैंने।

अब तक पूरी तरह भन्ना चुकी नटी फट पड़ी......देख लो इनको....गंगा सड़ी जा रही है, सीता मैया की जन्मस्थली गंदगी का ढेर बन चुकी है.......और इन्हें रुक्मि भौजी का नैहर सूझ रहा है..ऊद का घस्सा.......उसकी बड़बड़ जारी थी...नट हुक्का बना खड़ा था...चैनल से रथयात्री जा चुका था....विदापत नाच जारी थी....
डिमिक डिमिक डिमिक डिम डिमिक डिमिक कि आहो रामा, नैहर में अगिया लगायब रे