शनिवार, 17 सितंबर 2011

आउट ऑफ कंट्रोल के मज़े



राजीव मित्तल
मोहम्मद अजहरुद्दीन के बेटे अयाजुद्दीन की मौत एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि हम रफ्तार के मज़ों में इतने मशगूल क्यों हैं । रफ्तार की तासीर को समझे बिना हमारे देश के युवा ही नहीं, हमारे नियोजक, बाजार के कर्ताधर्ता और यहां तक कि हमारी सरकार भी रफ्तार के अनियंत्रित खेल में खुल कर अपनी भागीदारी निबाह रही है। उभरता क्रिकेटर अयाजुद्दीन जिस मोटरसाइकिल को चला रहा था, उसको स्टार्ट करते समय ही यह ध्यान रखने की जरूरत होती है कि सौ मीटर दूर तक सड़क बिल्कुल खाली हो, क्योंकि वो मोटरसाइकिल दस सैकेंड के अंदर ही सौ किलोमीटर की रफ्तार पकड़ लेती है। और उसकी अधिकतम स्पीड 250 किलोमीटर प्रति घंटे की है। अयाजुद्दीन के कॉलेज के प्रिंसपिल का कहना था कि उसे कई बार चेतावनी दी जा चुकी थी। लेकिन उसकी नासमझी ने उसे मौत के आगोश में ढकेल दिया।
अब आइये इस महत्वपूर्ण सवाल पर कि क्या हमारे देश की सड़कें या ट्रैफिक इस लायक हैं कि उन सड़कों पर और भेड़िया धसान ट्रैफिक की मौजूदगी में हजार सीसी की मोटरसाइकिल दौड़ायी जाए। इस कदर रफ्तार वाले वाहनों को चलाने के लिये विदेशों में कई नियम कानून हैं। उनके लिये ट्रैक अलग होते हैं। आम सड़कों पर इनको चलाने की सख्त मनाही है। लेकिन हमारे देश में अगर नहीं है तो वह है कोई भी और कैसा भी नियम कानून। ऊपर से इस अराजक माहौल को हवा दे रहा है इस देश का विकसित देशों से होड़ लेता बेहद अनियंत्रित बाजार, जिसने ऐसे वाहनों से देश की सड़कों को पाट दिया है। देश के युवाओं को ललचाने के लिये विज्ञापनों पर अरबों रुपया फूंका जा रहा है। महेन्द्र सिंह धोनी, जॉन अब्राहम, अक्षय कुमार जैसे न जाने कितने आकर्षक और बिकाऊ चेहरों को खोज-खोज कर रफ्तार को आउट ऑफ कन्ट्रोल करने की तो एक तरह से मुहिम ही चलायी जा रही है। विज्ञापन का बाजार आज इतना आकर्षक और जेब भराऊ हो गया है कि क्रिकेट खिलाड़ी, फिल्म अभिनेता -अभिनेत्रियाँ और पेज थ्री के चेहरे तो करोड़ों पीट ही रहे हैं, देश का हर चैनल और अखबार इन विज्ञापनों को हासिल करने के लिये कतार में झोली फैलाए खड़ा है।
दुनिया भर में युवा शक्ति का सिरमौर बन हमारा देश इतरा तो खूब रहा है लेकिन उसे यह नहीं सूझ रहा कि इस ताकत का देश के सर्वांगीण विकास के लिये इस्तेमाल किया कैसे जाए। इसीलिये हम जैसे मानसून की बारिश का पानी का इस्तेमाल करने के बजाए उसे गंदे नाले नालियों में बह जाने दे रहे हैं, उसी अंदाज में हम युवा शक्ति को जाया कर रहे हैं। हम विकास के नाम पर, ग्लोबल बनने के नाम पर एक ऐसे बाजार में तब्दील हो गये हैं, जहां महेन्द्र सिंह धोनी हमारा आदर्श है, और जहां सुजुकि 1000 पर लेटी मॉडल हमारा सपना है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि धोनी क्रिकेट के मैदान पर है और उस मॉडल को अपने ऊपर लिटाए वो मोटरसाइकिल समुद्र के किनारे खड़ी है, जो बहुत सुरक्षित जगह हैं, और करोड़ों रुपये पाने वाली जगह हैं, लेकिन अयाजुद्दीन जैसे युवाओं के सामने खतरे ही खतरे हैं।
और उन मां-बापों को क्या कहा जाए, जो अपनी औलादों पर ऐसे खतरों की बारिश सी कर रहे हैं, क्योंकि पैसे के अम्बार ने उनके सोचने-समझने की ताकत कुंठित कर दी है। उनके नौनिहाल रफ्तार का मजा बढ़ाने को सुरापान करते हैं और अपनी विदेशी गाड़ियों से रात को फुटपाथ पर सोते लोगों को कुचल मारते हैं या अपनी जान गंवा देते हैं। ऐसी घटनाएं इस देश अब इतनी आम हो गयी हैं कि कोई ध्यान भी नहीं देता। मां-बाप को इसलिये कोई फिक्र नहीं क्योंकि कानून भी उनकी जेब में है।