मंगलवार, 20 सितंबर 2011

पेड़ से टपका सर्वे

राजीव मित्तल

अन्ना हजारे अगले महीने से देश भर को जगाने निकल रहे हैं। वो ट्रेन से ये काम करेंगे । आडवाणी जी भी अपनी सर्वप्रिय रथयात्रा का ऐलान कर ही चुके हैं, जिसका मुद्दा है अगले चुनाव में जीत और पिछले चुनाव में पार्टी की दुर्गति......पर उनके दुःख को दूना कर गया नरेन्द्र मोदी का उपवास....उनका बरसों-बरसों पुराना दिल ही जानता है जब वो अनशन तोड़ने को मोदी के मुहं के पास शरबत का गिलास थामे खड़े थे ...... इधर.. मनमोहन सिंह का मुंह दांत का डॉक्टर भी नहीं खुलवा पा रहा ....सोनिया गाँधी और राहुल खामोश हैं.....वामपंथी अपनी पिछली जेब से मार्क्स की तस्वीर निकाल कर निहार रहे हैं....और बाकी पार्टियों का काम भोर के वक्त रंभाने और बाकी समय जुगाली करने भर रह गया है। कुल मिला कर देश की तस्वीर तालाब के किनारे बैठे किसी मछली पकड़ने वाले की सी बनी हुई है।

ऐसे में पेड़ की दो डालों के बीच टिके बर्बरीक वल्द घटोत्कच वल्द भीमसेन को कुछ करने की सूझी। वक्त का पता नहीं....कुछ अंधेरा है कुछ उजाला है...शाम भी हो सकती है..... भोर भी ...क्योंकि इन्हीं दोनों समय सामने के बदबू मारते तालाब के किनारे कतार में लोटा बगल में रख कर प्राकृतिक क्रिया, सामाजिक धर्म और राष्ट्रीय कर्तव्य निपटाए जाते हैं।
यह कलाकारी मेरे दोस्त विनय अम्बर की है, जो मेरे लिखे पर
इतनी सटीक बैठ रही है
कि अब मैं उनको लगातार
परेशान करता रहूँगा....


बर्बरीक ने नजर डाली तो तो पेड़ की शाखें लदी हुई थीं। 25 गौरेया, 28 तोते, 5 कौवे, आठ गिरगिटान, 13 गिलहरी, दो गिद्ध, चार उल्लू, दो कठफोड़वा, सात बंदर और मकड़ियों समेत कीड़े-मकोड़ों की कई प्रजातियां वहां मौजूद थीं। सब आपस में बात कर रहे हैं कि आडवाणी जी को फिर फीलगुड जैसा कुछ हो रहा है क्या .....बर्बरीक उर्फ बॉब ने गुर्रा कर उनकी चिल्लपों शांत करवाई।

आज मैं एक मसले पर आप लोगों की राय जानना चाहता हूं। हमारे देश में चैन की बंसी भी बज बज रही है और तुरही भी , ऐसे में आपको क्या फील हो रहा है.....गौरेयाओं.....पहले आप बात बताएं..आप लोगों से छेड़छाड़ तो नहीं की जाती....अश्लील फिकरे तो नहीं कसे जाते.....जब नर कहीं चला जाता है तो घोंसले में डर तो नहीं लगता....थोड़े में बताएं....गौरया घबरा कर एक-दूसरे की तरफ देखने लगीं...फिर कनखियों से कौवों को देखा और नजरें झुका लीं....

बॉब ने फिर कहा..घबराएं नहीं...खुल कर अपनी बात कहें .....हिम्मत बटोर कर एक ने कहा...हमारे घोंसले के सामने बैठ अमरमणि त्रिपाठी की तरह दांत निकालते हैं मुए ..तुरंत कौवों ने कुदक्कड़ी मारी....और तुम जो हमें देख मलाइका की तरह ठुमकती हो....एक कौवा भन्ना कर बोला.....

त्रिपाठी जी का नाम आते ही बर्बरीक ने तुरंत मामले को मोड़ दिया ....हमारे बीच मौजूद गिरगिटान कुछ बोलें। एक ने अपने को चटपट हरे से लाल किया-हम किन लफ्जों में अपना दुखड़ा सुनाएं? हम इन नेताओं की रंग बदलने की रफ्तार देख अपना रंग बदलना भूल चुके हैं। रंग बदलना ही हमारी पहचान थी...हमारी विरासत थी...जो आज परायी हो गयी है॥हम समझ नहीं पा रहे कि हम कितने और कौन कौन से रंग बदलें। वो कुछ और बोलता, बर्बरीक ने घुड़क दिया.....

इस बार बर्बरीक तोतों को मौका दिया...आप कुछ बताइये...हम तो जी बरबाद हो गये। हमको अपनी जिस तोताश्मी पर नाज था, उसको भी वो हजम कर गये। हमारे पास अपना कहने को अब बचा ही क्या है। हमें तो कोई ज़हर दे दे.......

गिद्धों...अब आप बताओ.....हमारी पहचान इसलिये ही तो है न कि हम जीव-जन्तुओ की सड़ी-गली लाशें खा कर महामारियों से इनसान का बचाव करते हैं। इसके लिये हमारे पंजों और इस मुड़ी हुई चोंच को दाद दी जाती है। लेकिन इन दोनों को अब चिरकुटों ने पेटेंट करा लिया है। अरे...हम तो मरे हुओं को नोचते थे...ये कमबख्त तो जिन्दों को बगैर नोचे भकोस लेते हैं...अब हम जामुन खा कर गुजारा कर रहे हैं....यह कहते कहते उनकी आंखों में आंसू आ गये।

माहौल की नजाकत को देख बर्बरीक ने उल्लुओं को आवाज मारी.....आप भी कुछ कहें....सर जी, हमारा दर्द तो इन सबसे बड़ा है...हम उस शायर को याद करते हैं, जिसने हम पर यह शेर लिख कर हम पर करम फरमाया था.....पूरे पेड़ ने आवाज निकाली...इर्शाआआआआआआआद ...एक उल्लू ने दूसरे को कोहनी मारी...तू गा के सुना.....
बरबाद-ए-गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू........ गाते गाते वो सिसकियां भरने लगा। एक बुजुर्गवार उल्लू बोले....हमारी यह जेनरेशन फ्रस्ट्रेशन में जी रही है सर जी ...क्या बोलें साहब....सन 47 के बाद ऐसे दिन देखने को नसीब होंगे, सपने में भी नहीं सोचा था.....हमारी पौराणिक मनहूसियत पर तो जैसे डाका पड़ गया है। उसका जगह जगह फूहड़ प्रदर्शन किया जा रहा है। अब हमारा ये हाल है कि
कहां जा के मौत को ढूंढिये
कहां जान अपनी गंवाइये

एकाएक बंदरों ने तालियां बजाते हुए नाचना शुरू कर दिया। बर्बरीक बौखला कर पूछा ---ये क्या कर रहे हो नदीदों ....हे हे ही ही.....किसी के घर से उठायी चुनरी पहन कर फुदक रही बंदरिया बोली... कुछ नहीं सर जी, ये सब इसलिये दुखी हैं कि नेता बिरादरी इनकी नकल कर रही है, लेकिन हम उनकी नकल कर मस्तिया रहे हैं। एक बंदर ने सिर पे साफा बांधा और उस बंदरिया के गले में बाहें डाल लचकना शुरू कर दिया...बाकी बंदर शुरू हो गये.....जीतेगा भाई जीतेगा हमारा कड़ियल जीतेगा।

अंत में...... आप इन सबको किसी पेड़ पर न तलाशें.......ये सब अब संग्रहालयों में पाए जाते हैं......हो सकता है वहां भी कुछ पिंजरे खाली मिलें और उसके बाहर तख्ती पर लिखा हो...हमें खेद है कि इस प्रजाति को हम इनकी खालों में भुस भर कर भी बचा नहीं पाए.....जहां तक बर्बरीक का सवाल है...सुना है उनको श्याम खांटू के नाम से मंदिरों में निन्यानवे साल की लीज़ पर जगह आवंटित है....धन्यवाद!