दिन गुनगुनाए
रात गाए
लेन-देन का सिलसिला न हो
खोना-पाना दूब की तरह हो
तुमने सच कहा
तो वक्त क्या कर लेगा
तुम रोज उसकी
आंखों में धूल झोंकती रहो
जो मेरे चारों ओर
बिखरी पड़ी है
वक्त के पास कोई चारा नहीं
लुटे-पिटे
आगे बढ़ते रहने के सिवा
उसके हाथ में
कुछ बचा नहीं
कोई बचाव नहीं
तुम्हारे हाथों की उड़ती धूल से
मैं ठगा सा खड़ा
देख रहा हूं
तुम्हारी जीत को
वक्त को हारते
हार तो मैं भी गया
तुमसे
सच कहूं तो