गुरुवार, 30 जून 2011
बुलेटिन के बाद
राजीव मित्तल
रात नौ बजे गोमतीनगर के पता नहीं किस नामाकूल खंड में उनका घर तलाश कर ढूँढा
....दरवाजा खोला उनकी पत्नी ने......अभी नहीं आए हैं ....चार दिन पहले तय हुआ था आज इस वक्त मिलने का..... उन्होंने अंदर बुला कर बैठा दिया और फोन मिला कर दे दिया......आप कहां हैं मैं तो आ गया....अप्रैल फूल तो...!......नहीं-नहीं...मैं आ रहा हूं....मीटिंग में फंस गया था...दस मिनट और....
अब अपने पास समय है उनके बारे में बताने को....राजेश शर्मा....अच्छे कवि और लेखक...सूचना-जनसम्पर्क विभाग में संयुक्त निदेशक.......महीनों बीत जाते हैं बगैर बातचीत के...लेकिन जब होती है तो खूब होती है...चार दिन पहले मिलने गया था उनसे.....तभी कार रुकी...दरवाजा खुला और वो सामने...क्या बताऊं राजीव....बिल्कुल ध्यान से उतर गया था...अच्छा किया तुमने फोन कर दिया.... तुम्हारा ब्रांड लाया हूं.....आराम से बैठो...देर हो जाए तो घर में परेशान तो नहीं होंगे न....पांच मिनट और दे दो ......चेंज करके आ गए...हां अब बताओ.......नया घर कैसा लगा....
तुम उस दिन कह रहे थे न कि फिर से आना चाह रहे हो हमारे यहां.....इससे अच्छा और क्या होगा ...पर..अब सब कुछ बदल गया है...तुम एडजस्ट नहीं कर पाओगे...मुझे ही मजा नहीं आ रहा....खैर छोड़ो...शुरू करें.... फिर पूरी रात नौशाद से लेकर ठाकुर प्रसाद सिंह...श्रीलाल शुक्ल और पुराने दिनों पर बातचीत होती रही। नौशाद का संगीत साथ-साथ....फरमाइश की तो तलाश कर कैसेट निकाले। खूब बोल रहे थे....उजाला छाने लगा तो होश आया...तुरंत रसोई में गए और दो प्लेटों में खाना ले कर आ गए। छह बज गए...चलने लगा तो बाहर स्कूटर के पास दस मिनट बात करते रहे।
तीन साल बाद.....रात आठ बजे का बुलेटिन.....तनाव के साथ-साथ यह भन्नाहट कि नंदन सुबह का बुलेटिन पूरी तरह क्यों नहीं सौंप देते...एक बार कहा तो बोले मुकदमा कराओगे क्या हम पर...वैसे क्यों करना चाहते हो हमेशा रात की ड्यूटी.....बहुत सारे पतित नहीं दिखेंगे इसलिये....उनमें क्या मैं भी ...अबे कट ले यहां से... हेड दिल पे ले रहा है....
सब कुछ फुल वॉल्यूम पर.....राहुल कहां है....रनडाउन में पहली स्टोरी उसी की है...चाय पीने ढाबे पर गया है बॉस....उसकी स्टोरी भाड़ में झोंको.....नीरज.. आपका क्या हुआ....ओ जी हो गयी एडिट....रनडाउन खोल कर स्टोरी ऊपर-नीचे कीं...टेप के नम्बर बदले.....इन-आउट बदला..... बस तीस मिनट बचे हैं ....रवि...एंकर स्क्रिप्ट हो गयीं क्या....दो बची हैं भैये ......यह चोटीधारी कहाँ है .....ग्राफिक्स का पूछना है ....शुक्ला जी पान तो खिला दो....तब तक चैनल हेड नंदन उन्नीकृष्णन आ गए....इतना क्यों हल्ला मचा रहे हो यार....उल्टे उन्हीं पर सवार हो गया...आपके साथ मीटिंग का कोई फायदा नहीं....लीड स्टोरी राहुल की....लेकिन अब घुसा है एडिट बे में....सैकेंड चंक में जाएगी अब...ठीक है जो करो...पर धमकाओ तो मत......
तभी एक और महत्वपूर्ण स्टोरी लेकर आ गया प्रभात .... एडिट बे दिलाना है उसे....राहुल बाहर निकलो....अभी तुम्हारी स्टोरी वो-शॉट पर चला दूंगा....नहीं मान रहा था...पकड़ कर बाहर कर दिया.....कुर्सी पर बैठ फिर रनडाउन में फेर-बदल...7.45...जाकर कोई देखो कि स्टूडियो में सब तैयारी है न! एंकर सलीम रिज़वी ...चिंता नहीं.....कोई फोन-इन नहीं...कोई गैस्ट नहीं...बुलेटिन निकल जाए उसके बाद रिपोर्टर्स और उनके बॉस अशोक सिंह की बजाता हूं.....लौटने के बाद फौरन स्टोरी दें...हमें अनुवाद भी तो करना पड़ता है...ससुरे मस्ती मारते रहते हैं.....
तभी विपिन धूलिया बोला ...तुम्हें पता है राजेश शर्मा ने आत्महत्या कर ली..तुम्हारे तो दोस्त थे न.....हाँ ....लेकिन... बुलेटिन के सिवा कुछ नहीं सूझ रहा था....
पैंतीस मिनट बाद स्टूडियो से निकलने के बाद....हां..क्या कह रहे थे विपिन...राजेश शर्मा ओसीआर बिल्डिंग की दसवीं मंजिल से कूद गए। मेज का सहारा लिया....क्यों....ऐसा क्यों किया उन्होंने......शरीर जवाब देता जा रहा...दिमाग पर धुंध.....कितना समय बीत गया....रात की ड्यूटी वाले आ गए....तुम अभी यहीं हो...सीरी फोर्ट पब नहीं जाना क्या.....नंदन इंतजार कर रहे हैं....उनको मना कर स्कूटर स्टार्ट किया.....कहीं नहीं देख रहा था...कुछ नहीं सुन रहा था....सोलह किलोमीटर बगैर हादसे के निकल गए.....घर में सब सो गए थे......एक बजे मंगलेश जी को फोन लगाया.....घंटी बजती रही...बजती रही..कई बार....नहीं उठाया उन्होंने लेकिन....
चार बजे पूर्णिमा को जगाया...मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं..स्कूटर बस अड्डे के स्टैंड पर खड़ा कर बस में ...
.....उस रात के बाद दो बार और मिलना हुआ...बीआईटीवी का लेटर मिलने के बाद होली पड़ी...उस शाम उनसे मिलने गया....तुम बेकार हमारे यहां आते...देखो कितनी शानदार नौकरी मिली तुम्हें....चुप से थे उस दिन.....सुन चुका था कि डिप्रेशन अक्सर सवार हो जाता है उन पर....कुछ देर में उठ लिया...
तीन साल की सरकारी नौकरी में कई बार अभद्र हुआ उनसे....गलती से भी अफसरी दिखाते तो माथा घूम जाता....उनके खिलाफ झंडा उठा लेता..... झांसी में उस रात तो हद ही कर दी थी....जब तब हाथ-पैर पटकता उनके चैम्बर में घुस जाता और अपना नजला झाड़ता....वे उसी तरह शांत रह कर सुनते और धीरे से चाय को पूछते...हां पी लूंगा कह कर सामने पसर जाता....तब वो समझाने पर आते...पतली मीठी आवाज...अपना लिखा जो कुछ दिखाता...उसे पूरे मनोयोग से पढ़ते और छापते।
कुम्भ में चार दिन उनके साथ रहा इलाहाबाद में.....जहां उन्होंने काफी समय गुजारा था....अपने घर ले गये....कई जगह दिखायीं.......अमृत राय से मिलवाया.......अंदाज ही अलहदा था उनका ....जब वहां से दिल्ली चला गया नवभारत टाइम्स में.... तो भी सम्पर्क बना रहा....लखनऊ लौटा तो फिर होने लगी बैठकी....धीरे-धीरे....यहां-वहां टकरा जाते... बस.....
बीए करते समय ऊषा दी ने कैमरा दिया था....दिन भर साइकिल के पहिये घुमाता रहता...रील पे रील खर्च होती रहतीं...फिर चारबाग के स्टूडियो में फोटो बनतीं...उनमें से कई फोटो हापुड़ वाले अशोक जी को बड़ी पसंद आयीं...एक दिन साथ ले गये सूचना विभाग ..ठाकुर साहब से मिलवाने....उन्हें भी अच्छी लगीं...वहीं देखा था राजेश जी को पहली बार देखा...बाद में कई बार साइकिल पर दिखे एपीसेन रोड पर....फिर घर भी आने लगे ठाकुर साहब के साथ....एक दिन अपने घर ले गये....
चंडीगढ़ सुबह साढ़े चार पजे पहुंची बस...फरवरी की ठंडक....सत्रह सेक्टर से पैदल ही चल दिया 30 की ओर....पांच बजे ट्रिब्यून के नाइट एडिटर अश्विनी भटनागर के घर के सामने...दरवाजा ठोका...भन्नाते हुए दरवाजा खोला...अबे तुम...इस समय....चैन नहीं है क्या....अंदर सब कुछ फर्श पर...वो खुद भी ....आधा घंटे तक आपबीती सुनाता रहा...कुछ लेना तो नहीं...उसी की तो जरूरत है...ठीक है अपने आप निकाल लो.... सब वहां धरा है....मैं सो रहा हूं...सनडे है... दिन भर आराम से बात करेंगे......
दो दिन बाद चंडीगढ़ से लौट आया...तभी कहीं से उत्तरप्रदेश मासिक मिल गयी, जो राजेश जी को समर्पित थी....पूरा दिन उसको चिपकाए रहा...कई कई बार पढ़ गया...पूर्णिमा को कहीं छुपानी पड़ी आखिर.....
रविवार, 26 जून 2011
दिल्ली में पांचवीं बार
मयूर विहार फेज-1. पॉकेट-टू ....जब बन रहा था तभी से आवागमन...कई बार प्रदीप जी के घर का रास्ता भूल फेस-टू में पहुंच जाता। हर माल दो किलोमीटर की दूरी पर। मुंडेरों पर जहां-तहां मोर दिख जाते...विहार तो मोरों के नाम पर बस गया.....बसावट ने लील लिया।
गुरुदेव प्राचीन पत्रकार...भाभी शिक्षण कार्य में रत्। दो बच्चे.....अंकल..आप मुझे इतने अच्छे क्यों लगते हैं...कहने वाली सात साल की पूजा..कभी भन्नाकर हाथ भी चला देती और नाई की दुकान पर....ये हमारे सबसे प्यारे अंकल हैं.....परिचय कराता शालू, भले ही घर में जम कर
मुक्केबाजी होती हो... और बच्चों की दादी के तो क्या कहने....सुबह जैसे ही ऑफिस के लिये भागता....झपाके से रसोई से निकल हाथ में डिब्बा थमा देतीं....इत्ते देर में आवत हो....ई खाये लियो..और देख्यो...रात में दरवाजा हौले से खटखटायो....घंटी मत बजायो। भैया जाग जाहीं..हमीं खोलब.....आये के चुपईचाप लेट जायो हमरे कमरे मा। और भाभी जी....चरित्रहीन की सुरबाला..प्रदीप जी से जरूर सतर्क रहना पड़ता कि कब चौधराहट पर उतर आएं...
घर तो तलाशना ही था क्योंकि गाजा-बाजे के साथ देवी पधारने वाली थीं। कई मकान देख डाले कोई मन को न भाये। प्रॉपर्टी डीलर भी दुखी हो गया। एक रात.......यह वाला पसंद न आया तो भाड़ में जाओ का अंदाज.....ले गया दिखाने दूसरी या तीसरी गली में...पहली मंजिल पर.....मकान मालिक पुणे से आए हुए थे...एनडीए में शिक्षक.....दो कमरे हम बंद रखेंगे सामान भर कर....किराया ढाई हजार...नहीं दो...बीवी से पूछने गये...ठीक है.. दो...सामान पर नजर डाली...सब काम की....फ्रिज...टीवी....पंखे..डायनिंग टेबल...कुर्सी मेज...साथ में एक कमरा और मिल जाएगा....ये सब आप मुझे दे दीजिये और कमरा भी......तब किराया तीन हजार...नहीं ढाई.....फिर बीवी से पूछने गये अंदर.....कमाल है जी वो आपकी सब मान रही हैं...ठीक है ढाई.....कल दोपहर में मेरी ट्रेन है....आप लीज़
बनवा लाइयेगा......
दूसरे दिन सनडे......एलएमएल वेस्पा की दिल्ली की सड़कों से निभने लगी थी...तलाश कर वकील से लीज़
बनवा कर उन्हें थमा दी..उन्होंने चाभी।
अब गंगा कठौती में आ गयी। ...प्रदीप जी ने पहली एय्याशी कराई...घर के सब बर्तन भांडे क्रॉकरी
क्नॉट प्लेस से..... ऑफिस में पूरी बेफिक्री.... सुईं से लेकर कढ़ाही की खरीद भाभी जी के हवाले.....रंगाई-धुलाई-पोंछाई भी.....रात को प्रदीप जी और शैलेश के साथ गृहप्रवेश....फिर हल्के सुरूर में निद्रा......पंद्रह दिन बाद ही लखनऊ से आ गये सब ....उन्हें बहुत पंसद आया घर...मयूरविहार...आस-पड़ौस....
उनके आगमन से पहले ही रसोई में गैस का सिलेंडर और चूल्हा अपनी-अपनी जगह इतरा रहे....डिब्बों में बंद दाल-चावल-मसाले गपशप में लीन....टोकरियों में सब्जियां तेरी-मेरी में मग्न ...फ्रिज में फल..डबलरोटी-मक्खन उधम मचाये पड़े। कूलर का पानी दौड़ मचाने को परेशान...कुछ दिन बाद पुष्पा जी भी पधार गयीं.......घर में कोई न हो तो कई बार बरसते पानी में एक किलोमीटर से भागी आती बच्ची को गोद में लादे....सामने वालों से चाभी लेकर बाहर पड़े गहूं अंदर करने।
ये बज़्म ए अदब है.....का जमाल
राजीव मित्तल
पंचशील एन्क्लेव में ज्वायनिंग दे दी। न्यूज रूम तक पहुँचते पहुँचते हाथ-पांव कांपने लगे...... लल्लूउउउउउउ अपनी फजीहत कराओगे इस फिरंगी माहौल में। चारों तरफ हाय..हू..हे..की आवाजें....सीढ़ियों पर बैठा शेर-शेरनियों का जमावड़ा दीदे फाड़े देख रहा.....आओ मेमने...बताओ कब तुम्हारा लुक्मा बनाएं। तभी संजय द्विवेदी नजर आ गए.......मत चूको चौहान ....और उनके कुछ बोलने से पहले यह शेर मुशायरे के अंदाज में सुना दिया.....
ये बज़्म -ए-अदब है अखाड़ा नहीं है...ये शेर-ओ-सुखन है कुल्हाड़ा नहीं है जहां बांधे जाते हैं उल्लू के पट्ठे वो खूंटा अभी हमने गाड़ा नहीं है।
यह सुनना था कि शेर नोट कराने को लपक-झपक शुरू हो गयी। लेकिन जिस शख्स को सुनाया, तीर उसके मर्म को भेद गया। सीढ़ी पर बैठे अजित शाही ने वहीं से वाह-वाह की तान लगायी। कुल जमा ये कि अब हम भी सिरके के उस जार में डाल दिये गये जहां बीआईटीवियनों का अचार पड़ना था ।
ड्राई रन के दिन थे, बुलेटिन वाले मास्टर टेप तैयार कर लाइब्रेरी में डाल देते। पहले ही दिन नीरज ने कहा...मास्टर टेप ले आइये...तो सिर घूम गया कि यह कौन सी बला है.....फिर कहा...इस स्टोरी को एडिट कराइये....कैसे...लायब्रेरी से टेप लीजिये और एडिट बे में एडिटर के पास बैठ जाइये। पंचशाल के उस में ऑफिस सब आयं..बायें.शायं....मुर्गा-मुर्गी में कोई फर्क नहीं हो पा रहा था।
जिस रात नियुक्तिपत्र मिला था....उसी रात बाहर एक पेड़ के नीचे कई जन्तु जमा होकर गुटरगूं करने में लग गये इस नये जीव का शिकार को लेकर। अगुवा थे एक पुराने मित्र। नीरज उसी का चेला।
स्पेशल करेस्पॉंडेंट शैलेश की शरण में गया...तब पूरा खेल समझ में आया...कि शाही अपने आगे सहाय जी या बादशाह को कुछ नहीं समझते। और शाही की टीम में जितने पंछी हैं वो... कटोरे में कटोरा बेटा बाप से भी गोरा...। और अपन ठहरे सहाय जी की टीम वाले....परवेज ने ज्वायन नहीं किया था अभी....ले-दे कर तीतर-बटेर-फाख्ता-मुर्गा एकमात्र यह बेचारा ।
पर जी, यहीं ब्लंडर कर बैठी शाही की टीम...अगर थोड़ा दोस्ताने में चलते तो अपने को सीखने में लगता एक साल...लेकिन पहले ही काट कर पका लेने के उनके इरादे ने अपने को एकलव्य बना दिया। सबसे पहले सीखनी थी टाइपिंग...जो 25 बार बाप का पैसा फूंकने के बावजूद नहीं सीख पाया था। कीबोर्ड पर स्टिकर लगवा गीत और गजलों को याद कर टिकर.. टिक.. करना शुरू कर दिया। दस दिन में और सब भी सीख कर झाड़नी शुरू कर दी दादागिरी..
एडिट बे में शाही गैंग की स्वाति घोष काफी सहज रही। छत पर एक हादसे में दर्शन हुए सुधा सदानंद के। शाही गैंग की आत्मघाती सदस्य। तमिल टाइगर्स वाला अंदाज। आगे कई बार भिड़ंत हुई। एंकर बहुत अच्छी थी लेकिन.. शब्द को पूरे भाव के साथ पकड़ती । उसके बुलेटिन में एंकर स्क्रिप्ट तैयार करते समय सावाधानी हटी दुर्घटना घटी का ध्यान रखना पड़ता। कमबख्त स्टूडियो के अंदर ही गाली-गलौज पर उतर आती।
ऑफिस में काम तो आठ-नौ बजे निपट जाता...लेकिन कभी प्रेस क्लब...कभी सहाय जी पकड़ ले जाते चांदनी चौक करीम के यहां...तो कभी किसी बार में। कभी बादशाह सेन के
नजदीक ही घर में रात को दावत। आशुतोष से अच्छी छनने लगी। साथ में फिल्म भी देखी। परवेज तो पुराने साथी। मयूरवार में रिहायश। अक्सर साथ आना-जाना। घर से आते तो खाने को कुछ जरूर लाते। कई बार शाम को घर पकड़ ले जाते। कई बार अपनी बांह में चुटकी काटता कि सपना तो नहीं देख रहा हूं।
अप्रैल के बीचोबीच चैनल लाँच हुआ ताज मानसिंह में। सभी को शाही अंदाज़ वाला आमंत्रण कार्ड । वहां अपने को..... क्या खाऊं... में मदद की अशोक आडवाणी ने। घर छोड़ा शाही ने। रास्ते में शाही को परखा....आधा घंटे के सफर में बेहद यारबाश और मस्त इनसान॥वो खुद नहीं समझ पा रहे थे कि इतना कुछ कैसे हासिल हो गया उन्हें।
चैनल पहले ही दिन बोल गया। गलत ट्रांसपॉंडर ने कर दिया चौपट...हम क्या कर रहे हैं वो घर पर तो क्या...दिल्ली में भी नहीं दिख रहा था। जबकि बिहार-गुजरात में सब देख रहे थे और पसंद कर रहे थे।
पंचशील से शिफ्ट हो कर उदयपार्क में... मस्जिद मोड़ पर किराये की शानदार बिल्डिंग। जिसके तीन फ्लोर हमारे। पहली मंजिल पर न्यूजरूम...ऐसा चकाचक कि उसे देखने वालों के लिये टिकट नहीं लगा था बस। चार-चार एडिट बे। पंद्रह क्यूबिकल। तीन छोर पर बॉसेस केबिन.... चौथी तरफ बुलेटिन कमांड केबिन... सीनियर राइटर होने के नाते अपने को न्यूज स्क्रिप्ट लिखनी थी या अनुवाद करना था..अपने बॉस के जिम्मे कच्चे माल यानि रिपोर्टिंग का कारोबार। अजित शाही का काम माल को पकवाना। बादशाह (अनिकेंद्रनाथ सेन) का काम पकवान को चख कर कमी बेशी निकालना। हेड जो ठहरे।
मंगलवार, 21 जून 2011
इस्तीफ़ा हो तो ऐसा
राजीव मित्तल
काम में तल्लीन थी...कागज को थोड़ा झुका कर आंखों के सामने लहरा दिया। तुरंत आंखें ऊपर उठायीं...गुड मार्निंग सर......इसकी रिसीविंग दो.....पढ़ना शुरू किया.....चेहरे पर चौंकने के भाव आ रहे.....एक मिनट...वो पंकज जी के केबिन में चली गयी...आयी तो बोली...आपको अंदर बुला रहे हैं।
पंकज जी .....मरहूम घनश्याम पंकज......ऐसी शानदार इमारत कि जिसकी हर मंजिल लकदक करती हुई.....लेकिन नींव बेहद पोली.....कई बार ढहे......पर नींव पर कभी ध्यान नहीं दिया...हमेशा कमरा-छत-अलमारी संवारते रहे..अब इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा कि दुनिया भर को पानी पिलाने वाले पंकज जी को मजबूर कर दिया था कि भूले से भी अपुन को न भूलें ...कारण थे भी कई सारे।
अंदर पहुंचा....हाथ में मेरा पत्र....बड़ी-बड़ी आंखों में सारा बल डाल कर बलशाली आवाज निकाली...यह क्या है.....मेरा इस्तीफा.....ऐसे लिखा जाता है...सुधरोगे नहीं...दोबारा लिख दो...बस दो लाइन का.......दोबारा नहीं लिखूंगा.....परेशानी में पड़ जाओगे......कोई बात नहीं...अपनी पीए से बोलिये..इसे रिसीव कर ले। उन्होंने सलोनी मूरत को बुलाया...रिसीव कर लो। बाहर आ कर मुस्कुरायी.....आप नहीं सुधरेंगे...ये लीजिये।
अब दस दिन हैं अपने पास दिल्ली जाकर बिजनेस इंडिया टीवी ज्वायन करने को। 26 मार्च खुद से तय की है। बीच में दो-तीन बार कानपुर जाना हुआ। अजय शुक्ला ने सिंक्लेयर लुइस की एयरोस्मिथ दी....बरसों से तलाश थी..जगह-जगह बच्चों का एडमिशन कराते कराते परेशान....अब सेंट्रल स्कूल में कराना है। आशुतोष वाजपेयी अपने सांसद से मिलवाने ले गया । लखनऊ के सांसद वाजपेयी जी एक लेटर थमा चुके थे, वो बच्चों के नाम लिखा निकला।
साल की शुरुआत ही हाय-तौबा मचाते हुई। 31 की रात जगह-जगह कनपुरिया जश्न.....न जाने कितनी गटक ली। तीन बजे साबरमती में घुसते ही सो गया। कुछ देर बाद लगा चिड़ियां चहचहा रही हैं। लेकिन चिड़ियों से पहले तो लखनऊ पधार जाता है...तभी किसी ने टाइम पूछा.....अबे चुप....फिर झपकी लग गयी.....फिर लगा कि ट्रेन कहीं खड़ी है। मुंह बाहर निकाला...दिन निकलता दिख रहा....ट्रेन किसी सुनसान स्टेशन पर....इंजन छोंछों कर रहा। एक से पूछा...लखनऊ कितनी दूर है.......का कहत हो नख्लो! ......बाराबंकी से भी आगे निकल आए हो। सत्यानाश.....तुरंत प्लेटफार्म पर...निकल ले जल्दी से....एमएसटी किसी काम की नहीं रह गयी है....रिन्यू क्यों नहीं करायी थी रे अब तक ! कहीं टोकाटाकी नहीं....सब पड़े सो रहे...बाहर निकल पता किया कि कहां हूं । अब टेम्पो से बाराबंकी...वहां से बस....तब लखनऊ। साथ में अजय विद्युत होता तो यह तकलीफ न भोगनी पड़ती। कई महीनों से कानपुर-लखनऊ....लखनऊ-कानपुर उसी के संग चल रहा है। 11 बजे घर पहुंचा तो घरवाली कानपुर में प्रमोद जी को परेशान करने में तल्लीन। शाम को ऑफिस पहुंचने पर उन्होंने पूछा....कहां चले गये थे....सोचा कहूं ..उसी से पूछिये..जो आपको फोन लगा रही थी..
जनवरी में दिल्ली चला गया। मयूर विहार में शाम को प्रदीप जी के साथ टहल रहा था कि शैलेश मिल गये। दोनों को पकड़ ले गये अपने घर। बीआईटीवी ज्वायन कर चुके थे। प्रदीप जी ने मेरे बारे में कहा तो बायोडेटा मांग बैठे। दिल्ली से ही चंडीगढ़ निकल गया...छोड़ने के बाद पहली बार। कहां रुकना है कुछ तय नहीं था।
ट्रिब्यून चौक पर उतर सीधे जनसत्ता। हॉल में घुसते ही जाम लग गया। कोई इधर खींच रहा कोई उधर। सारा काम रुक जाने से परेशान समाचार सम्पादक को बाकायदा ट्रैफिक संभालना पड़ गया । एक्सप्रेस वालों के साथ कई कप कॉफी पीने के बाद रात का ख्याल आया। तभी राम सिंह बराड़ ने ठुमका मारा..मेरे घर चलना है रात को। कुछ देर बाद हम दोनों और साथ में प्रमोद द्विवेदी चल पड़े। प्रमोद से पहली मुलाकात...बेहद मिलनसार...अपने घर दो घंटे मास्टर मदन सुनवाया...टेप करके भी दिया.... मास्टर मदन और सहगल पर काफी अच्छा लिखा था।
बराड़ का सरकारी बंगला सेक्टर सात में। दहिया साहब भी तो यहीं रहते हैं। एक नम्बर पर नजर रुकी और कार रुकवा दी। यार, एक मिनट ...तुम बैठे रहो यहीं..मियां-बीवी से मिल लूं। और उस मिनी को देख लूं, जो हमारे पास रही थी। जनवरी की रात के साढ़े नौ बजे। दरवाजा खोला दहिया साहब ने ....गदगद.....लुगाई को आवाज दी...वो और भी गदगद....चाय-नाश्ते का इंतजाम होता दिखा तो दोनों को अंदर बुला लिया। चाय पीते ही बराड़ बोला...चलो भाई ....कौन...ये कहीं नहीं जाएंगे....आप जाओ जी इन्हें यहीं छोड़ दो ...इंदु तमतमायी। बराड़ से निगाहें चुराने की नौबत। यार..अब कुछ नहीं हो सकता....तुम भी तो जाट हो...समझ सकते हो....नाश्ता तुम्हारे यहां। रात में फिर खाना बनाया। मिनी से सुबह मिलना हुआ....पटर-पटर बातें कर रही। उसी रात प्रेस क्लब में तम्बोला। दो बजे रास्ता नहीं सूझ रहा....आड़े आ रही एक बेहद ऊंची दीवार तक फांदनी पड़ी। दरवाजा खोला इंदु ने। चुपईचाप सो जाइये का आदेश। ऊपर से एक और रजाई डाल दी।
दिल्ली में बीआईटीवी का तम्बू पंचशील एन्क्लेव में। संजय द्विवेदी से मिला। प्रोग्रामिंग में बिजी था। अपनी बाइक पकड़ा दी कि कुछ देर घूम लो। पुरखों को याद कर उस दिन दिल्ली में पहली बार दुपहिया वाहन दौड़ाया। लौटने के बाद संजय ने मिलवाया अजित शाही से लॉन में। एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर वाला मिजाज बिल्कुल नहीं। पर भाई टाल गया ।
कानपुर पहुंचते ही रॉबिन डे का आमंत्रण कि 26 को बनारस में सहोदर की शादी है...हम-आप कार में चलेंगे। साथ में सुरेन्द्र प्रताप सिंह और आलोक अग्रवाल। सुरेन्द्र बीएचयू का। सुबह पहुंचते ही बारातियों को उनके हाल पर छोड़ तीनों निकल लिये शहर परिक्रमा पर। गंगा को पकड़ लिया। बीएचयू के बाहर लंवग-लता के दर्शन। अंदर मीलों घूमने के बाद थकान से चूर चाय की दुकान पर लवंग-लता का सेवन। काशी विश्वनाथ मंदिर चलने के प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया। भटकना है बस । किसी की शादी में आए हैं यह ख्याल रात को आठ बजे आया। पहुंचे तो तलाश चल रही थी। भोज के बाद सुबह कानपुर निकलने की बात। अभी बारह बजे हैं। उन्हीं दोनों को पकड़ गदोलिया जा पहुंचा। खूब रौनक। ठंडाई पी गयी। वापस फिर डेरे पर। नींद के मारे बुरा हाल। बीस किलोमीटर तो चल ही लिये होंगे। नसीब फूट गये लेकिन। अचानक कानपुर वापसी की तैयारी शुरू। भोर में ही कानपुर। आलोक ने अपने घर में सुला दिया।
रॉबिन डे के साथ ही नवम्बर में पटना जाना हुआ था आर्यावर्त के लिये। उसको इसलिये पकड़ा कि बिहार की अपनी पहली यात्रा और वह पाटलिपुत्र टाइम्स में रह चुका था। पटना का वो एकदिवसीय दौरा यादगार बन गया। खासकर रात 11 बजे स्टेशन के बाहर सोनपुर मेला जैसा दृष्य। पूरे डेढ़ घंटे वो नजारा देखा। रात होटल के कमरे में अकेले कटी...क्योंकि रॉबिन किसी से मिलने चला गया था।
फिर मातृत्व वाला एहसास। लग रहा था कि कानपुर छूटने वाला है। उस दिन वहीं से बगैर किसी को बताये गोमती में सवार हो गया। शाम को प्रदीप जी के घर। फिर शैलेश के यहां। उन्होंने अगले दिन साथ में पंचशील चलने को कहा। वहां मिलवाएंगे आनंद सहाय से। बातचीत में दोस्ताना.....बैठने की जगह नहीं तो मुंडेर पर पसर लिये। बातचीत के बाद बोले.... आप दो दिन बाद लेटर ले लीजिये।
अब तनख्वाह को लेकर धुकुर-पुकुर शुरू ....क्योंकि खुद की मार्केटिंग अपने से तो होती नहीं। खरीदारी में जो चाहे लूट ले...बेचने में अकल साथ नहीं देती। दो दिन जैसे-तैसे काटे। मातमी अंदाज में अंधेरा होने पर बीआईटीवी में। आनंद जी देखते ही बोले....कहां थे आप..कब से आपका इंतजार हो रहा है...ये लीजिये लेटर और कॉपी पर साइन कर दीजिये। चैनल हेड बादशाह सेन ने अपनी कुर्सी थमाई और खुद बाहर चले गये। कांपते हाथों से लेटर खोला.. पढ़ना शुरू किया...येयेयेयेयेयेयेये....वो मारारारारारा....सीधे दस हजार की छलांग...चार से चौदह...साल 95...कई सम्पादकों के बराबर या उनसे ज्यादा। कुछ समझ नहीं आ रहा........ सन्नाटा मार गया...कानों में सांय-सांय हो रही। आनंद जी समझ गये...कंधे पे हाथ रखा...बहुत-बहुत बधाई। बादशाह सेन भी आ गये.. हाथ मिलाया....कब ज्वायन करेंगे!
शैलेश को बताया तो बोले ..चलो प्रेस क्लब। पंचशील से टाइम्स बिल्डिंग.....परवेज अहमद को लिया। उनका भी अदृश्य हाथ था इस नौकरी को दिलवाने में। प्रेस क्लब से रात बारह बजे मयूर विहार। प्रदीप और भाभी जी नीचे पुलिया पर बैठे इंतजार कर रहे। सुन कर खुशी का ठिकाना नहीं। लखनऊ के लिये शहीद एक्सप्रेस में रिजर्वेशन। रानी भाभी ने रास्ते के लिये पता नहीं क्या क्या बना दिया। दोनों का आग्रह कि रहना मयूर विहार में ही है। मकान मिलने तक उन्हीं के साथ।
सुबह ट्रेन काकोरी में अटक गयी। कोई बड़ी गड़बड़ी। उतर कर बस से लखनऊ। घर में यही मालूम कि कहीं
जाना पड़ गया था। समझाने में समय लगा कि जनम का बंजारा हूं बंधु.....अब दिल्ली ।
शुक्रवार, 17 जून 2011
नदी पर कफन मत डालिये
राजीव मित्तल
विकास हो या आस्था, इस देश में दोनों ही अनियंत्रित हो चुके हैं। इस अनियंत्रित विकास और आस्था का सबसे ज्यादा खामियाजा उठा रहे हैं नदियां और वनस्पति और उनसे जुड़े जीव-जंतु और पक्षी ।
साल के करीब पचास सप्ताहों में हर सप्ताह के दो-तीन दिन ऐसे होते हैं, जब इस देश की महिलाओं की आस्था चरम पर होती है। उन दिनों में हजारों-हजार महिलाएं गंगा के जल में खड़े हो कर बर्फी और गुलाबजामुन का चढ़ावा चढ़ाती हैं ताकि मैया उनके परिवार को अकल्याणकारी शक्तियों से बचाए। वाराणसी के आसपास और शहर की महिलाओं की इस संड़ाध मारती आस्था ने गंगा को एक तरह से कफन पहना दिया है।
इसी तरह दशहरा और गणेश चतुर्दशी का समापन कर लाखों लोग गाजे-बाजे के साथ नदी में दुर्गा और गणेश की प्रतिमाओं का विसर्जन करते हैं। कभी ये प्रतिमाएं केवल मिट्टी की बनायी जाती थीं....उनका रंग-रोगन भी प्राकृतिक होता था, लेकिन अब आस्था पैसे के अश्लील प्रदर्शन से जुड़ गयी है, तो प्रतिमाएं भी जहरीले रसायन से लबरेज हो गयी हैं ताकि उनकी चमक-दमक और सज्जा शहर भर में सराही जाए। नदी को मारने में इन प्रतिमाओं का कम बड़ा हाथ नहीं।
इसी तरह इस देश के लाखों पीपल और बरगद महिलाओं की आस्था का शिकार हो चुके हैं और आगे भी सदियों तक होते रहेंगे। पीपल पर तो सप्ताह में किसी भी दिन धावा बोल दिया जाता है और उसकी जड़ों में न जाने कितना सरसों का तेल ठूंस दिया जाता है....हरभरा पीपल खड़े-खड़े खोखला हो जाता है। यही हाल होता है बरगद का उसके पता नहीं कौन से विवाह पर।
जिन नदियों पर आस्था का एसा घिनौना लाड़ उडेला जाता है, उन्हीं नदियों में अपने घर की गंदगी उडेलने में हम भारतवासी दुनिया की किसी भी कौम को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं।
अरब के मक्का में पानी का एक स्रोता है अबेज जमजम, उसका पानी गंगा की ही तरह पवित्र माना जाता है......सदियों से उस स्रोते के जल का इस्तेमाल आस्था के कामों में किया जा रहा है, रोजमर्रा हजारों की भीड़ जमा होती है उस पानी के लिये....लेकिन वो जगह आज भी उतनी ही पवित्र और स्वच्छ और अप्रदूषित है। कल्पना कीजिये...अगर वो स्रोता हमारे देश में होता तो उसका हाल सुलभ शौचालय से भी बदतर हो चुका होता और चारों तरफ लगे होते कूड़े के ढेर।
इस देश की कोई भी नदी प्रदूषण के जहरीले पंजों पूरी तरह जकड़ चुकी है। किसी भी शहर के आसपास से गुजरने वाली नदी..चाहे वो गंगा मैया हो या युमना या मां नर्मदे, सभी में पूरे शहर का कचरा ऐसे गिराया जा रहा है जैसे हम भारतीयों को उस नदी या उसके जल से सदियों पुरानी दुश्मनी हो।
शहर हो या देहात या कस्बा..हर किस्म की गंदगी के पनाले और कारखाने और मिलों से निकल रहे नालों का मुंह वहां से गुजरने वाली छोड़ी-बड़ी कैसी भी नदी में ही जा कर खुलता है। सदियों से जो नदी उस शहर की सांस बन कर जी रही थी, गैस चैम्बर में बंद कर उसका दम घोंटा जा रहा है। वो नदी या तो खुद एक बड़ा नाला बन कर रह गयी है, या भू माफियाओं ने उस पर कॉलोनी बसा दी हैं।
जिस देश में बहती जलधारा की हजारों साल से पूजा होती आ रही हो, जिस गंगा जल को वाटर कह देने भर से बजरंगी और रघुवंशी तोड़फोड़ पर उतर आते हों, केन्द्र और राज्य सरकारें उनींदी आंखों से इन नदियों में काला जल बहता देख रही हों, उन हालात में गंगा या किसी भी नदी को मिठाइयों का चढ़ावा पता नहीं किस आस्था को दर्शा रहा है, लेकिन इन जीवनदायनियों का कल्याण तो कतई नहीं हो रहा।
गंगा का सर्वनाश हम अपने हाथों शुरू कर चुके हैं। यमुना समेत हजारों नदियों को जहन्नुम का रास्ता हम दिखा ही चुके हैं। इंदौर की खान नदी को बजबजाता नाला हमने बना ही दिया है। उज्जैन की शिप्रा का तट आस्था के नगाड़े पीटने के लिये माकूल जगह बन गया है, लेकिन जिसकी एक-एक बूंद हमने निचोड़ ली है। बुंदेलखंड की बेतवा अंतिम सांसें ले रही है। प्रयाग की सरस्वती की तरह हजारों नदियां इतिहास के गर्भ में समा चुकी हैं और अब उनकी याद में हम मेले-ठेले जरूर लगाते हैं।
अब आइये एक निगाह डाल लें उस नदी पर, जो गंगा से भी दस लाख साल पुरानी है...वो है नर्मदा....उसका हाल गंगा जितना पतित तो नहीं हुआ है, क्योंकि मध्यप्रदेश में विकास अभी शैशव अवस्था में है, लेकिन काल उसका भी तय हो चुका है। जंगल और पहाड़ों में उछलती-कूदती बहने वाली नर्मदा पर अब बांधों ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। उसकी प्राकृतिक धारा नहरों में बदलती जा रही है। और जिस भी शहर के पास से होकर वो बह रही है, उसमें जल में आस्था और विकास का तांडव रंग ला रहा है।
नर्मदा से जुड़ने वाले शहरों में जबलपुर भी है। नर्मदा ने यहां भी सुखी मन से बहना बंद कर दिया है। उसका प्रवाह केवल परम्परा का निर्वाह कर रहा है। नर्मदा का समूचा किनारा गलीच आस्था और घृणित विकास के चलते जैसे-तैसे सांस ले पा रहा है।
हजारों साल पहले नष्ट हो चुकी मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा सभ्यता के बाद अब इस नष्टप्राय सभ्यता का नामकरण अभी से कर लीजिये। पता है न.... कि वो सभ्यताएं क्यों इतिहास में जा समाईं ...क्योंकि नदियों ने किनारा बदल दिया था.....और अब तो नदी ही गायब होती जा रही है।
सोमवार, 6 जून 2011
अंधेर नगरी चौपट राजा और बाबा रामदेव
राजीव मित्तल
इस देश के सबल लोकतंत्र को राजनीति और जनताऊ वोट बैंक ने इतने सारे प्रहसनों में बदल दिया है कि सालों तक रोज नौटंकी खेली जा सकती है.....और खिल भी रही है इत्तेफाक से.......
शुरुआत एक काल्पनिक प्रहसन से......आजाद भारत
के बिड़ला मंदिर में अनूप जलोटा ..... वैष्णव जन को तेरे कहिये जे.. सुना रहे हैं बाप को। जलोटा जी ने जब पीर शब्द के पी अक्षर को पीपीपीपीपीपीपीईईईईई करते हुए ताना.... तभी अंग्रेजों के ज़माने के किसी आरोप में गिरफ्तार कर लिये गये बापू। भगत सिंह को जंतरमंतर पर इन्क्लाब-जिन्दाबाद के नारे लगाते पुलिस की जीप में ठूंस दिया गया। अमरमणि त्रिपाठी को किसी लड़की का दैहिक शोषण और फिर उसकी हत्या कर लाश को ठिकाने लगाते पकड़ा गया। तीनों गिफ्तारियां एक ही समय पर। बापू और भगत सिंह को तुरंत तिहाड़ पहुंचा दिया गया....लेकिन त्रिपाठी जी को तीन घंटे लगे......रास्ते भर समर्थकों और मीडिया का जमावड़ा....तिहाड़ तक पचास गाड़ियों में सवार समर्थक यही नारा लगा रहे थे....अमरमणि तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं ।
बापू और भगत सिंह और मजिस्ट्रेट को उतनी देर इंतजार करना पड़ा। फूलों से लदे त्रिपाठी के पहुँचते ही तीनों को एक ही सेल में बंद कर दिया गया। त्रिपाठी जी का गला भारत माता की जय बोलते बोलते बैठ गया है....अब चैनल की एक बाला को याद कर कुछ बुदबुदा रहे हैं। बापू..... हे राम....वाली मुद्रा में पड़े हैं, जो 30 जनवरी 1948 को छाती पर गोडसे की गोली लगने के बाद निकले थे। भगत सिंह के मुंह से निकल रहा है गॉड सेव द किंग.... क्योंकि तूने मुझे फांसी पर चढ़ा मेरी लाश के टुकड़े टुकड़े कर दिये।
अब आइये कल्पना से निकल ठोस जमीं पर कदम धर चुके इस प्रहसन पर......सत्ता कई दिनों से परेशान है.....अभी तक तो अन्ना हजारे ही गले में फांस बने हुए हैं.....अब बाबा रामदेव ने म्यान से तलवार निकाल कर विदेशी बैंकों में जमा देश का 400 लाख करोड़ वापस लाने नारा बुलंद कर दिया है.....ऊपर से यह भी कि जिन्होंने देश के साथ खिलवाड़ किया उन्हें फांसी दी जाए.....
सत्ता दबे स्वरों में कह रही है....बाबा...अल्लाह का खौफ खाओ....इतनी जोर से इतना गलत तो मत बोलो...400 सौ नहीं 70 लाख करोड़ ही तो जमा हैं....इतने भर से क्या बिगड़ रहा है तुम्हारा....देश को वापस मिल भी जाएं तो यही तो होगा कि सवा अरब की आबादी में हर एक को 58-58 लाख (10 मिनट की माथपच्ची करने के बाद निकला यह आंकड़ा) .....या देश की सात लाख किलोमीटर सड़क आठ लेन वाली एक्सप्रेस हाईवे बन जाएंगी....या कमाऊ मनरेगा योजना सौ साल तक कामधेनु बनी रहेगी.....इससे तो हमारा देश खतरे में पड़ जाएगा....तब तो हमें नेपाल भी नहीं बख्शेगा, चीन को तो छोड़ो...थोड़ा धीरे चलिये।
उस पैसे को अभी विदेशी बैंकों में ही पड़ा रहने दीजिये.....हम उसके ब्याज की बात की बात कर लेते हैं उन बैंकों से.....यहां आ जाएगा तो ...जलेबी को तरस रही रामदेई उस पैसे का क्या करेगी। उस जैसे तीस करोड़ पागल नहीं हो जाएंगे! लूटमार का बाजार गर्म हो जाएगा। देख नहीं रहे अब हर स्कैम दो-तीन लाख करोड़ से नीचे का नहीं बैठ रहा। सब यूं साफ हो जाएगा कि पता भी नहीं चलेगा। देसी बैंकों में रखा तो उनका पेट खराब हो जाएगा।
बाबा...अब आप खुद को ही देख लो....देखते देखते ग्यारह सौ करोड़ के हो गए.....हमारी सत्ता रही तो अगली पंचवर्षीय योजना में 25 हजार करोड़ के हो जाओगे। बस.. हमारे चुनाव चिन्ह को उत्तानपाद आसन सिखा देना।
सुना है बाबा रामदेव ने 400 करोड़ वाली जिद छोड़ दी लेकिन उनका कहना था कि कानून बनाया जाए और काला धन बाहर ले जाने वालों को फांसी पर चढ़ाया जाए। उनकी इसी बात से हवाइयां उड़ रही हैं सत्ता की। विपक्ष भी निकट खिसक आया है इस मामले में। धीरे बोलो बाबा....कानून क्यों बनाने को कह रहे हो....समिति बना देते हैं....वो सब निकाल लाएगी.....और फिर सबको फांसी पर चढ़ाने की जिद मत करो......उनमें कोई हमारा बाप है..कोई बेटा.... कोई नाती...कोई चाचा...कोई मामा....फूफा तो पता नहीं कितने हैं। और तो और हमारी बीवी...बेटी तक.....समझा करो बाबे ....उनके लिये देशनिकाला काफी है......
बाबा बोले.... अच्छा चलो लिख कर दो कि हम दोनों पक्षों में दस सूत्री समझौता हो गया है और समझौते में ये ये है......नहीं...हम दस में से आठ लिख कर देंगे.....वैसे ही पार्टी में हमारी किरकिरी हो रही है....जो दल हमारा साथ दे रहे हैं....वो क्या समझेंगे....यह कौन सा असन सिखा दिया बाबा ने कि रीढ़ की हड्डी बिल्कुल ही गायब हो गयी.....जबकि राजनीति में हर चीज बिल्कुल ही गायब नहीं की जाती.....
समझौता हो गया......बाबा ने कहा अब मैं अनशन तो नहीं करूंगा....लेकिन सामने बैठी समर्थकों की भीड़ को अनुलोम-विलोम जरूर सिखाऊँगा...
मुंहबोले समझौते के बाद आदत से मजबूर सत्ता ने प्रेस कांफ्रेंस कर डाली कि हम दोनों में समझौता हो गया है....तभी माइक पर आवाज गूंजी......और बाबा ने हमारी बात मान ली है....अब वे अनशन नहीं.. प्राणायाम करेंगे। यह सुन बाबा भड़क गए.....सत्ताधारियों.. तुम्हारा सत्यानाश हो... अब तो मैं तप करूंगा....हिमालय की कंदराओं में नहीं...यहीं रामलीला मैदान पर....कंडेंस्ड तप...यानि दो दिन का.....
उसके बाद क्या हुआ यह हर खास-ओ-आम को मालूम है। बाबा को हरिद्वार उनके आश्रम पहुंचा दिया गया है.....बाकायदा लाद कर ले जाए गए..चेतावनी दे दी है कि चुप नहीं बैठे तो तुम्हारे च्यवनप्राश में मट्ठा मिला दिया जाएगा। चुपचाप बैठ कर भगवा वालों को सिखाओ कुक्कुटासन। हम अन्ना हजारे का सम्मान करते हैं क्योंकि अब वो राष्टपिता जैसे दिखने लगे हैं....झाम भी यही देते रहेंगे उन्हें.....जयहिंद....
शनिवार, 4 जून 2011
जैली
सआदत हसन मंटो
सुबह छह बजे पैट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ बेचने वाले को छुरा घोंपा गया। सात बजे तक उसकी लाश सड़क पर गुड़मुड़ी हुई पड़ी रही और उस पर बर्फ पानी बन टपकती रही। सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गयी..बर्फ और खून वहीं सड़क पर पड़े रहे। फिर एक टांगा पास से गुजरा। उसमें बैठे बच्चे ने सड़क पर खून के जमे हुए लोथड़े की तरफ देखा-उसके मुंह में पानी भर आया। अपनी मां का बाजू खींच कर बच्चे ने उंगली से उस तरफ इशारा किया:.. देखो मम्मी....जैली......!
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राजीव मित्तल
छह दिसम्बर की दोपहर बाबरी मस्जिद का हाल जैली जैसा ही समझिये। शरीर से खून तो नहीं टपक रहा था....लेकिन शरीर का अंगअंग यहां वहां छितराया पड़ा था। महज दो घंटे लगे उसको तोड़ने-फोड़ने और चीरने-फाड़ने में संघ परिवारियों को। बर्बादी का नज़ारा......जैसे कोई तोप के गोले बरसे बरसे हों.....
पांच दिसम्बर की रात को स्वतंत्रभारत की अयोध्या जाने वाली टीम में शामिल...पंकज जी से पूछे बगैर...वो जाने को मना कर देते। सुबह छह बजे फैजाबाद। देश-विदेश का सारा मीडिया होटलों में ठुंसा पड़ा। लखनऊ वालों की टीम वाले होटल में घुसे तो..... तेरी सुबह कह रही है तेरी रात का फसाना.... वाला हाल.....रात भर अय्याशी हुई है....की भड़ास ब्यूरोचीफ ने निकाली और रजाई में। वहां से फौरन निकल कनपुरिया टीम अयोध्या पहुंची....वहां फिर क्या क्या हुआ....इसकी रिपोर्ट बूढ़ी काकी की दर्दनाक मौत.... में......सब टूट-फूट हो जाने के बाद जान बचाकर भागे तो रात नौ बजे कानपुर लगे। शहर पर उन्माद हावी हो चुका था। उमा भारती बाबरी के ढहने के तुरंत बाद वहीं मंच पर बोल ही चुकी थीं कि भारत को एक हजार साल की गुलामी से आज छुटकारा मिला....तो हिन्दुओं की छोटी सी जमात उस आजादी का जश्न मना रही ....और मुस्लिम समुदाय सहमा हुआ.....पाने-खोने के जुनून ने रात होते-होते दोनों के हाथों में हथियार थमा दिये। इधर, अपनी लिखी रिपोर्ट छापने पर पंकज जी ने पाबंदी लगा दी.......उधर, उस रात मेस्टन रोड में जम कर गोलियां चलीं। हम सभी पलंग वासियों को ऊपर शिफ्ट कर दिया गया। अगली सुबह ऑफिस से लगे मधुबन होटल में सब के ठहरने का इंतजाम। सबसे ज्यादा चिंता जावेद बख्तियार को लेकर क्योंकि उस दिन अधिकांश चेहरे गेरुए नजर आ रहे। उसका इंतजाम अपने कमरे में किया। पूरा हफ्ता कर्फ्यू के हवाले। कई बार गंगा के किनारे पंडों से प्रसाद खरीद कर पेट भरा।
शहर में कई लाशें बिछ जाने के बाद....सेना ने कमान संभाली..एक दिन फौजी कारवां के साथ मुस्लिम इलाकों का दौरा किया। जैसे ही नई सड़क के उस हिस्से में घुसे तो सुनसान पड़े बाबा बिरियानी होटल के पास कुछ लोगों ने घेर लिया...आप हमारे साथ चलें...कुछ हिन्दुओं को बचा कर रखा है....करवां काफी आगे निकल चुका था.....सोचने-विचारने का समय नहीं। एक पुरानी हवेली के तहखाने में कुछ मुरझाए चेहरे। साथ लेकर बाहर आया...तब तक पुलिस जीप आ गयी....उन्हें सौंप गहरी सांस ली।
वली..तलत..जगजीत अब कम्पनीबाग में
धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। साबरमती एक्सप्रेस के मजे फिर शुरू। नये साल के दस दिन बीतने के बाद दिल्ली निकल गया। दस दिन बाद लौटा तो ऑफिस में नया चेहरा। जिसके आने की चरचा कुछ दिन से चल रही थी, यही है की सोच हाथ आगे बढ़ा कर नाम बताया। अगले ने खड़े हो कर गर्मजोशी दिखायी और एक ठहाका---तो तुम हो....यार जबसे आया हूं तुम्हारी इतनी बुराई सुन चुका हूं सभी से कि तुमसे मिलने की तमन्ना जोर मार रही थी। संजय द्विवेदी...दिल्ली संडे मेल से। शहर उसका भी कानपुर ही....लेकिन काफी अलग लगा.... हवा का ताजा झौंका सा। तुरंत दोनों की पटरी बैठ गयी। घर कैसा लिया जाए पर एक सुझाव अपना भी.....चाहे कुछ हो न हो...टैरेस शानदार हो। एक शाम ऑफिस पहुंचते ही.......घर ले लिया है...बिल्कुल तुम्हारे मन का है......अब मेरे साथ रहो....दूसरे दिन घर देखा तो तबियत फड़क उठी। उबासी मारते कम्पनी बाग में तीसरे माले पर एक कमरा और पूरी छत.....सड़क पार के मकानों के पीछे गंगा की धारा....आए दिन बहार के...रुको रुको.....संगीत के नाम पर तुम्हारे पास क्या है..मैं उसके बिना नहीं रहूंगा यहां..भाई ने जेब में हाथ डाला....गुल्लक टटोली....तीन हजार हुए । चलो अभी चलें.... बाइक थी उसके पास....गुमटी नम्बर-5 पर वीडियो कॉन की शॉप....
ढाई हजार का सिस्टम और आठ सौ के तीन गायकों के कैसेट ....कुछ अपनी तरफ से मिला कर पूरे कम्पनी बाग को संगीतमय बना देने का पक्का इरादा .....घर लौट कर कुछ सुना और काम पर चले गये। रात दो बजे लौटते समय सुबह पांच बजे तक का इन्तजाम करके घर आए। कैसेट लगा दिया। ज्यादातर मकान बंगलेनुमा थे और हम छत पर...इसलिये फुल वॉल्यूम पर। दो दिन बाद लखनऊ जाकर अपना खजाना भी उठा लाया। उनमें कई कैसेट तो ऐसे थे जो एक रात्रि जागरण के दौरान चाचा नम्बर दो के घर में जूतों के डिब्बों में पड़े मिले। ऐसे बेकदरों के घर में चोरी करना कोई गलत नहीं लगा और सब भर लाया।
इस तरह चार महीने बाद फिर गुलजार हुआ कानपुर। वली मोहम्मद को सुन संजय भी सिर धुनने लगा। धीरेंद्र का साथ छूट चुका था। मेस्टन रोड की गलियां भी छूट गयी थीं.....हाथरस वाले की जलेबियां और कचौरी.....और डबल हाथरस वाले का मालपुआ......भारत रेस्त्रां के मालिक बुजुर्गवार टंडन जी.....शानदार खाना ...अपने सामने बैठा कर खिलाते....बस हम दो और टैरेस पर लहराता संगीत और दरी पर दो गिलासों में ढलती कंटेसा....जो संजय दिल्ली से ढेर सारी उठा लाया था ... और सिगरेट का धुआं..... रात के इस दो से पांच वाले कार्यक्रम ने बड़े गुल खिलाए। अब बाइक पर पूरे कानपुर शहर के चक्कर भी....कहीं डिवाइडर पर मजमा...तो कई रातें गंगा के किनारे। एक अद्भुत कार्यक्रम और....संजय के नाना-नानी बिठूर के वासी.....कई बार उधर निकल जाते और सुबह साफ-सुथरी गंगा में डुबकी लगाते....शुक्लागंज में आशुतोष बाजपेई के यहां भी जा धमकना....सुबह गरमागरम जलेबी और समोसे। गंगा पार विवेक पचोरी का घर....उसको भी कम परेशान नहीं किया। बस अजय शुक्ला को बख्शे रखा....जरा ज्यादा ही सज्जन था।
संजय इस लाइफ स्टाइल से इतना खुश कि बोला...तुमने जागना सिखा दिया....रात इतनी खूबसूरत होती है यह तुमसे पता चला....
एक रात नौ बजे संजय का फोन.....एक्सीडेंट हो गया है....जल्दी आओ...... उसका हाल देख गश आने लगा......एक बांह पूरी टूट चुकी थी....कई जगह चोट के निशान....दिलेर इनसान खड़ा ही मिला.....मरहम पट्टी के बाद तय हुआ कि वो रात की ट्रेन से दिल्ली निकलेगा....घर और बाइक मेरे हवाले.....10-12 दिन सब कुछ अकेला.......
पंकज जी ने अब की बार सम्पादक बनाया विजय तिवारी को.....नवभारत टाइम्स में देखा-देखी......शरीर का जुगराफिया याद था.....बोर्ड पर कार्टून बना कर नीचे लिख दिया....अंग्रेजों के जमाने का जेलर....आधे उस तरफ...आधे इस तरफ...बाकी मेरे पीछे....भाई ने उस दिन वर्दी नहीं चढ़ा रखी थी.....बाकी हू बहू शोले का जेलर.....हॉल में जूते ठोंकते हुए कदम रखा...खटपट खटपट करते हुए बोर्ड तक गए....पढ़ा...मुंह हिलाया....फिर कुर्सी पर.....
एक साल उनके साथ मजेदार बाता...जब रात को अपना केबिन छोड़ते तो टीवी बीबीसी पर बंद करके ...सुबह खोलते तो सामना जी चैनल से....फरमान निकाला...मेरे जाने के बाद दरवाजा लॉक कर दिया जाए....उनके जाते ही चपरासी को बुला कर कहा मैगजीन निकालनी है खबर को अपडेट करने के लिये.....दरवाजा खुलते ही टीवी फिर जी चैनल पर ठुमके मार रहा.....उस दिन नॉब ऐसी कसके उमेठी कि बाहर आ गयी...तुरंत पीछे सुतली लपेट कर ठोक दी......दूसरे दिन केबिन में दहाड़ने की आवाज....तुरंत अंदर पहुंच गया...सर, लीड क्या बनाऊं? क्या है....सर एक बकरी ने छह बच्चे दिये....भाई ने बस कुर्सी फेंक कर नहीं मारी.....तुरंत अपना लिखा एंकर पकड़ा दिया....तुम्हारा क्या करूं...मुझसे ही खेलते हो.....सही बोले जनाब....वास्तव में थे खेलने की ही चीज....लेकिन जरा सुकून से.....
बनारस से पंकज जी ने दो और महारथी भेज दिये....दोनों चीफ सब, पर रिश्ते देवरानी-जिठानी वाले...प्रदीप अग्रवाल और दिवाकर.....पंकज जी ने दोनों को एडिटर बनाने का आदतन झाम दे रखा था...वहां का जो पुख्ता एडिटर...वो इन दोनों का भी बाप....आप समझ सकते हैं कि कैसे चला होगा बनारस में....तिवारी जी ने फौरन दिवाकर को लपक लिया....वो था भी एडिटर की दंतखोदनी.....प्रदीप अग्रवाल पूरा लप्पूझन्ना.....इनमें दो जेलर के बिल्कुल खिलाफ...हमेशा जय-वीरू बने रहते.....असली खेल और असली मजा अब शुरू हुआ। साल खत्म होते होते संजय और प्रदीप चले गये...दो महीने बाद कानपुर से भी......एक बार फिर वली और हम सड़क पर.....विजय तिवारी का लखनऊ ट्रांसफर..
अब प्रमोद जी.....नवभारत टाइम्स में आदर वाली निकटता रही.....अब कानपुर का सारा सुख-दुख रॉबिन डे के हवाले.....पेज मेकर.....पर सबसे ज्यादा साथ दिया...जाड़ा-गर्मी-बरसात....रोज रात को दो बजे स्टेशन छोड़ने जाना...जब तक ट्रेन न आ जाए...साथ बैठ कर ओंघाना...कई बार अपने घर में सुलाना....वीरानी छाते ही लिखने-पढ़ने पर ध्यान दिया......पंकज जी ने अपनी पत्रकार धर्मपत्नी को फीचर सौंप दिया था.....दोस्ताना परिचय.....पुराना..अपना लिखा बेहद पसंद...काफी मेहरबान रहीं..... जो भी लिखता उसकी सजावट कर छापतीं.....
तब तक दिल्ली में बिजनेस इंडिया टीवी के आने का हल्ला मचने लगा था। संजय ने ज्वायन भी कर लिया.....दिल्ली गया मिलने.....पंचशील एनक्लेव में काम शुरू हो चुका था। सबसे मुलाकात हुई....पर टालमटूल...कानपुर से अब अदबदाने लगा था मन...कुछ समझ में नहीं आ रहा था....एक सुबह कानपुर से ही गोमती एक्सप्रेस में बैठ लिया... और.......
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