रविवार, 8 मई 2011

क्लास रूसी भाषा की


सुबह उठते ही तैयार हो कर स्कूटर दौड़ाया बॉटेनिकल गार्डेन की तरफ.... माली दोस्त को पकड़ा....और एक-एक कर आठ गुलदस्ते बनवा लिये.....अलग-अलग फूलों के....फिर रेलवे स्टेशन....पता किया....ट्रेन तीसरे प्लेटफार्म पर....गुलस्ते इतने कि खुद भी चलता-फिरता गुलदस्ता नजर आ रहा......दो-दो सीढ़ियां फलांदते चढ़ा....उतरा.....एक बोगी के सामने कई सारे लड़के-लड़कियां खड़े थे....और वो दरवाजे पर खड़ी मुस्कुरा रही थीं....उतर कर आयीं ....तुम कितने पागल हो....एक-दो नहीं पूरा बाग खरीद लाए....हांफते हुए ...एक के बाद एक गुलदस्ता उन्हें देता जा रहा....आखिर वो भी कितने थामतीं....बस-बस...अब मैं कितने पकड़ूं......अपना ध्यान रखना...एक ही साल की तो बात है.......

चौदह महीने बाद.......

रवींद्रालय में कोई फंक्शन....खत्म होने के बाद बाहर निकलते ही वो सामने......वही दिलकश मुस्कान ....कैसे हो.....मैं पिछले महीने ही लौटी.....पता चला शादी कर ली.....मैं नाइजीरिया न जाती तो तुम डिप्लोमा तो कर ही लेते.....और............शायद..........मैं समझ गया....वाक्य भी पूरा कर दिया था उन्होंने.....

और दो साल बाद.........

पहले दिल्ली और अब लखनऊ नवभारत टाइम्स में.......एक सुबह कुछ लड़कियां पूछते हुए आयीं....आपके लिये मैडम ने यह कार्ड भिजवाया है......जरूर आइयेगा.......उसी पीजी ब्लॉक में कोई वार्षिक उत्सव.....चुपचाप पीछे बैठ गया....खत्म होने पर उनके सामने......अब तो ज्वायन कर लो हमें... डिप्लोमाधारी हो जाओगे....कितना जुनून था रशियन को लेकर! मुस्कुरा दिया बस .....



राजीव मित्तल

लखनऊ विश्वविद्यालय में घुसने की यह तीसरी कोशिश......इंटर करने के बाद वहां के चार-पांच चक्कर लगा कर कान्यकुब्ज कॉलेज में.....दोबारा..डॉ. एनएन श्रीवास्तव के सौजन्य से पीएचडी में रजिस्ट्रेशन ...बैठने को लायब्रेरी के पीछे लम्बा-चौड़ा हॉल......मॉनेट्री की मोटी-मोटी किताबों में दो महीने झक मार कर हाथ जोड़ लिये....भाग तो पहले ही लेता......लेकिन वहां अपनी सखि दिख गयी काफी दिनों बाद ........एमएड कर रही थी....खूब बतकही....खाना साथ ही खाते....उसके टिफिन में से...फिर वो भी चली गयी......बैंक औफ़िसरी में......... अब सीधे एपीसेन रोड ..... डॉ. सेनगुप्ता के बंगले में......पीएचडी छोड़ नाटक का शौक सवार.......

एक साल बाद नौकरी में...... उन दिनों अपनी बहन जी पता नहीं क्या क्या कर रही थीं.....पीएचडी भी...डबल एम ए भी.....रूसी भाषा में डिप्लोमा भी.........रूसी लेखकों का तो पहले से दीवाना था......सपने में प्रिंस मीश्किन बन सेंट पीटर्सबर्ग में यहाँ वहां टहलता ...न जाने कितनी बार ट्रांस सायबेरियन रेलवे में बैठ मास्को से ब्लादिवोस्तक की सैर......कुप्रीन की ओलस्या तो जहन ही में समायी हुई थी...

काफी मिन्नतों के बाद बहन जी ले गयीं रशियन क्लास में......मैडम........देखते ही..... फूल ही फूल खिल उठे मेरे पैमाने में.....मुगलई चेहरा...छोटे बाल....ठीक कद-काठी.....कुल मिलाकर ऐसी शख्सियत.......कि देखते ही गुनगुनाने का मन करे.....तो आप अपनी बहन जी को लेकर आए हैं सिफारिश के लिये....क्या कर रहे हैं......सूचना विभाग में सब एडिटर.........सरकारी नौकरी में...लगते तो नहीं सर्विस वाले...तब तो आपको नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लाना होगा.....

फार्म और सब कागजात के साथ फिर मैडम के सामने.....पढ़ के ही मानेंगे रूसी....फार्म पर दस्तखत किये......टाइम का एडजस्टमेंट कर लेंगे ना...अब आप मेरे स्टूडेंट हैं.....सब डिप्लोमा वाले बैठे थे तब...अपनी शुरुआत थी प्रोफिशिएंसी से....ये सब आपके सीनियर हैं.....आपकी बहन जी के साथ के.....इज्जत बख्शियेगा इन्हें.....

क्लास का पहला दिन.....पढ़ने .....लिखने की लिपि अलग-अलग......संस्कृत की तरह रूप......सब कुछ अपने मिजाज के खिलाफ......लेकिन क्या स्टाइल था उनका....समझाने का तरीका.... बाप रे बाप....चार-पांच दिन में वाक्य बनाने आ गये....कुछ ही दिन में गलत-सलत बोलना भी.....घर में बहन मंजे हुए अंदाज में रूसी बोलती..... तो भाई क से कबूतर वाले अंदाज में........अब होड़ थी समय से....मैडम के और करीब आना है .....बहन को पछाड़ना है.......पूरा दिन भरा-भरा सा रहता.....

अमृत प्रभात लखनऊ से निकलने लगा था........विदेशी मामलों पर कुछ लिख कर पहुंच गया वहां......सम्पादक को दे दिया.....दो ही दिन बाद छप भी गया......मैडम की नजरों में चढ़ने को जबरदस्त उछाल.......

रूसी भाषा पर अपना हर स्ट्रोक सही पड़ रहा......कुछ दिनों बाद लेकिन मामला गड़बड़ाने लगा.....मैडम कुछ पूछतीं जवाब कुछ होता......कैलाश हॉस्टल के पीछे टीचर्स कॉलोनी......घर बुलाया एक दिन....कॉफी पिलायी...आप बहुत जल्दी ज्यादा से ज्यादा सीखने के चक्कर में पड़ गये हैं...इसलिये यह गड़बड़ी हो रही है.......हम जानते हैं आप बहुत अच्छा करेंगे....लेकिन धीमे-धीमे चलिये.....फिर इधर-उधर की...अपने रीसर्च की.....जो कुप्रीन और राजेन्द्र सिंह बेदी की कहानियों पर.....कई साल साल सोवियत संघ में गुजारे......चलते समय कई सीडी दीं......उच्चारण सही करने को........

जल्द ही यह कठिन विदेशी भाषा बिल्कुल अपनी लगने लगी....सोचना भी शुरू कर दिया......मन ही मन वाक्य बनने लगे.......लेकिन ससुरी इन गर्मी की छुट्टियां का क्या किया जाए .....दो महीने बगैर अपनी टीचर के........ सुबह सात बजे से नौ बजे का टाइम का टाइम काटना मुश्किल....ऑफिस में उनकी याद....रात में बहन से उनकी चर्चा..........दो महीने की शामें गोमती किनारे.... गंजिंग.....जॉन निंग और मेफेयर टॉकीज में किसी तरह खपायीं......

यूनिवर्सिटी खुलते ही फिर सब हरा भरा .....लेकिन अब एग्जाम करीब.......मौखिक परीक्षा में रूसी दूतावास का कोई अफसर.....सामने मैडम की मुस्कुराती आँखें ....घबराना मत बिलकुल... मैं हूं न.......जरूरत से ज्यादा ही झाड़ दी रूसी.......बाद में.....तुम नहीं मानोगे...क्या जरूरत थी इतना सब कहने की....कुछ गलत हो जाता तो.....अब लिखित परीक्षा.....एस्से आया.... मेरा दोस्त.....याद किया था.... मेरा शहर....भाड़ में गयी फिक्र.....अपने दोस्त को स्टेशन से पकड़ पूरा शहर ही घुमा दिया.......

अब...........रिजल्ट आते ही बुलावा ....खूब गुनगुनाते थे न जब मैं सीढ़िया चढ़ती थी.....हाथ में सिगरेट भी...लेकिन....लेकिन तुमने बहुत ही अच्छा किया.......डिप्लोमा भी बढ़िया हो....समझे......फिर एक दिन क्लास में.....अब मैं आप सभी से एक साल बाद मिलूंगी.......बहुत समय बाद इतना अच्छा बैच....जाना तो है...हो सकता है एक साल के लिये डिप्लोमा क्लास न हों.....कोई बात नहीं......एक घंटा भी देंगे तो कुछ भूलेंगे नहीं.....आपस में जब मिलें रूसी जरूर बोलें...........................................................दस्विदानिया.......