सोमवार, 2 मई 2011

मारा जाना लादेन का




राजीव मित्तल

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इतवार रात अपने देश को वो खुशखबरी दी, जिसका उसे बरसों से इंतजार था। रविवार शाम किसी समय अमेरिकी ट्रूपर्स ने इस्लामाबाद के नजदीक अबोटाबाद में छिपे ओसामा बिन लादेन के ठिकाने पर हेलिकॉप्टरों से बम बरसा कर उसे मौत की नींद सुला दिया। हमले में उसका बेटा भी मारा गया। व्हाइटहाउस से हुए प्रसारण में ओबामा ने अंत में कहा जस्टिस हैज बीन डन......व्हाइटहाउस के बाहर खड़ी भीड़ खुशी से झूम उठी। इस खुशी का असर न्यूयार्क में जीरो ग्राउंड पर भी दिखा, जहां कभी अमेरिका की शान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हुआ करता था। ग्यारह सितम्बर 2001 को मुस्लिम जिहादी संगठन अलकायदा ने अमेरिका की इस शान को तहस-नहस कर दिया था। लादेन के आह्वान पर अलकायदा के युवाओं ने अमेरिका में कुछ विमानों को अपने कब्जे में कर उन्हें वर्ल्ड सेंटर की दो विशालकाय इमारतों से टकरा कर जमीनदोज कर दिया था। इस हमले में तीन हजार से ज्यादा इनसान मारे गये थे।

कुछ महीने से अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए लादेन का पता लगाने को दिन-रात एक किये पड़ी थी। उसी दौरान उसके हाथ दो महत्वपूर्ण सूत्र लगे, जो अलकायदा के नेतृत्व से बरसों से जुड़े हुए थे। उन्हीं सूत्रों के हवाले से लादेन की प्रत्येक हलचल का पता लगता रहा..और यह भी कि अफगानिस्तान से निकलने के बाद से लादेन का ठिकाना पाकिस्तान ही रहा है, जहां उसे कई जरियों से हर तरह की मदद हासिल होती रही।

अब सवाल यह उठता है कि अलकायदा कई दिनों की अपनी खामोशी को कौन सा कहर बरपा कर तोड़ेगा और उसका निशाना कौन होंगे..यहीं आकर खुशी से झूम रहे बराक ओबामा से सवाल करने का मन करता है कि ग्यारह सितम्बर की घटना के बाद अमेरिका ने अपनी किलेबंदी कर ली..पर किस बिना पर...पूरी दुनिया को उसके रहमोकरम पर छोड़ कर....क्या उसने कभी अपने गिरहबान में झांका कि ओसामा बिन लादेन को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी बनाने में खुद उसका हाथ कितना बड़ा है। अमेरिका ने 1980 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के कब्जे के बाद जो सबसे घटिया खेल खेला वो था इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा देना। जो इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पहले केवल मध्यपूर्व एशिया में इस्रायल को ही परेशान करने में व्यस्त थे, उनका साथ अमेरिका ने सोवियत सत्ता को अफगानिस्तान से बाहर करने में लिया। यह आतंकवाद के फैलाव को पहली मदद थी।

तलिबान को हर तरह से भरपूर मदद....जैसे-जैसे सोवियत फौजें पिटती गयीं...वियतनाम में अपनी बेहद बुरी हार के जख्मों को सहलाता गया अमेरिका...सोवियत संघ को पूरी तरह परास्त करने के नाम पर 1988 में स्थापित अरब ज़िहादी संगठन अलकायदा को भी गले लगा लिया और लादेन को महादानव बनने का रास्ता तैयार किया। यही अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के साथ किया था। ईरान में शाह पहलवी के पतन के बाद वहां कट्टरपंथ के आते ही सद्दाम हुसैन को ईरान से भिड़ने को उकसाया।

लेकिन यह सारा तमाशा सोवियत संघ का किला ढह जाने के बाद बंद हो गया, जो अब तक अमेरिका की मदद पर पल-पुस रहे ज़िहादी संगठनों को बेहद नागवार लगा और जैसे ही सद्दाम ने 1990 में कुवैत पर हमला किया सारी बाजी पलट गयी। अरब ज़िहादी संगठन अमेरिका के हस्तक्षेप से इस कदर खफा हो गये कि वे उसे अपनी राह का रोड़ा समझने लगे। ग्यारह सितम्बर की घटना के बाद तो सब कुछ उलट-पुलट गया। अमेरिका ने यूरोपीय दोस्तों के साथ मिलकर अफगानिस्तान से तालिबान का सफाया कर दिया....उसके बाद इराक पर हमला बोल सद्दाम हुसैन को खत्म किया....अब बारी आयी लादेन की, तो कई सालों की तलाश के बाद वो भी हाथ आ गया, भले ही लाश के रूप में....