गुरुवार, 26 मई 2011



एक अखबार के ध्वस्त होने का असर महज मालिक, सम्पादक या उसमें काम करने वालों पर ही नहीं पड़ता है....बल्कि समाज का एक हिस्सा उससे काफी हद तक प्रभावित होता है....उसकी सोच पर असर पड़ता है..उसकी सुबह पर असर पड़ता है...उसकी बातचीत पर असर पड़ता है....उसके बीते कल और आने वाले कल पर असर पड़ता है। यह असर दिखायी भले ही न पड़ता हो....पर, क्या बहुत सारी बातों का चांद-सूरज की तरह दिखना जरूरी है? आजाद भारत में मीडियाई विस्फोट था जनसत्ता। देश भर तहलका सा मच गया। प्रिंट आॅर्डर इस हद तक पहुंच गया कि दो साल बाद ही प्रभाष जी को कहना पड़ा कि अब और नहीं छाप पाएंगे। मिलजुल कर पढ़िये...........

त्रासदी

राजीव मित्तल

चंडीगढ़ में जनसत्ता ज्वायन करने के बाद वाली होली में सबको टाइटिल दिये तो प्रभाष जी को क्यों बख्शता......अपनी बगिया को उजाड़ रहा माली.......यह टाइटिल कुछ ही समय बाद बिल्कुल सटीक साबित हुआ......आने के छह महीने बाद ही लगने लगा था कि जनसत्ता गोयनका जी की सनक का परिणाम है....उस सनक में प्रभाष जी की कुछ नया करने की इच्छा भी शामिल हो गयी.....इसलिये जिस अखबार ने कदम धरते ही अखबारों की दुनिया में तहलका मचा दिया था......कुछ ही समय बाद राजीव गांधी को मुंह दिखाने लायक भी न रहने देने की उतावली दिखाने लगा.....पाठकों को दिखायी जाने लगी वीपी सिंह में महात्मा गांधी की मूरत..........चंद्रशेखर का भोंडसी आश्रम का दर्जा साबरमती आश्रम सरीखा.....महान देवीलाल किसानों के महान नेता.......इस खेल में इंडियन एक्सप्रेस का काम पन्ना धाय का....जनसत्ता में अरुण शोरी के नौ-नौ कॉलम के अनुवादित लेख कोई बौद्धिक खुराक न हो कर पाठक के दिमाग का तेल निकालने का काम कर रहे ......

इधर...आतंकवाद के चलते पंजाब बुरी तरह लहुलुहान......पूरे देश पर छींटे पड़ रहे.....सामूहिक हत्याओं का दौर शुरू हो चुका था......रिबेरो के रहते ही पुलिस महकमा क्रूरतम दौर में पहुंच गया था.... 12-14 साल के लड़कों को बेदर्दी से मारा जा रहा था......जनसत्ता वहीं सबसे कमजोर साबित हुआ......क्योंकि पूरे एक्सप्रेस ग्रुप की एकमात्र प्राथमिकता थी राजीव गांधी को सत्ता से बाहर करना....राजीव गांधी से अपनी कोई उन्सियत नहीं.....लेकिन चाणक्य का जामा पहने रामनाथ गोयनका और उनके फरमरदारों अरुण शोरी व प्रभाष जी ने तब पत्रकारिता के कौन से नियमों का पालन किया..यह समझ से परे है......

पंजाब के इतने बुरे हालात के बावजूद हम आतंकवादी घटनाओं की खबरें बना रहे थे एजेंसियों से......जो मरने वालों का आंकड़ा बढ़ाने को सड़क दुर्घटना या आपसी रंजिश में मरों को भी आतंकवाद के खाते में डाल रही थीं....या पुरानी लाशों को ताजा बना रही थीं.......सुशील शर्मा रोजाना सभी एजेंसियों के 50 से 75 तार चेक करके 40 हत्याओं को 8-10 पर लाते .....जबकि अपने आप में बेहद सशक्त एक्सप्रेस न्यूज एजेंसी बोफर्स नाम की प्रतियोगिता स्वीडन...स्विटजरलैंड और यूरोप के पता नहीं किन-किन देशों में करा रही थी.....परिणाम आज तलक सामने नहीं......

कविताई झाड़ते.....चित्रकारी करते..ईमानदारी का बाजारीकरण करने वाले वीपी सिंह जरूर प्रधानमंत्री बन गये.......दो खपच्चियों के सहारे ......एक लाल.....एक गेरुए रंग की.....एक साल बाद ही दोनों टूट गयीं.....फिर भोंडसी बाबा चंद्रशेखर विराजमान........हर हफ्ते चंडीगढ़ चला आ रहा है उनका कारवां....क्यों.....अब यह भी समझाना पड़ेगा.......?

पंजाब में जो हत्याओं का दौर-दौरा चल रहा था.....उसमें खेल कौन कौन से थे.....इस बात को कोई अखबार सामने नहीं लाया....जनसत्ता भी नहीं..एक खबर को सच्चाई सामने लाकर एक्सक्लुसिव बनाया लेकिन किसी ने जुम्बिश भी नहीं ली ...जमीन के नाम पर हत्या कोई नयी बात नहीं...लेकिन पंजाब के आतंकवादी माहौल में जैसे बटेर हाथ लग गयी हो.....गांव-गांव में आंतकवाद के नाम पर बहुतेरी हत्याएं केवल जमीन को लेकर की या करायी जा रही थीं........पुलिस को खासी रकम मिल ही रही थी....हत्यारे की तलाश से उसे कोई मतलब नहीं क्योंकि रिपोर्ट में इतना ही लिखना काफी था.....कि जिंदा नामक कुख्यात आतंकवादी ने फलाने की जान ले ली......फाइल बंद......कलपता रहे पीड़ित परिवार......कई किस्म की दुश्मनाई भी इसी दौर में निकाली गयीं....चंडीगढ़ जनसत्ता और एक्सप्रेस के पास बहुत अच्छे रिपोर्टर थे.....लेकिन जब ऊपर वालों को होश नहीं तो उन्हें क्या कीड़े ने काटा था...............सारी मिशनरी पत्रकारिता का मात्र एक ही लक्ष्य.....

राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रभाष जी इसीलिये बहुत हताश थे... जब एक मीटिंग में चंडीगढ़ आए तो उनके बोलों का शब्दार्थ यही था अब कौन बचा है जिसके कपड़े उतारे जाएं......................

लेकिन कपड़े समय उतारता है......वीपी सिंह डायलसिस पर चले गये.......बाबा को भोंडसी वालों ने धक्के दे कर निकाला.......जिस देवीलाल के लिये एक्सप्रेस ग्रुप ने रातदिन एक कर दिया था......उसके एक महान सम्पादक को चौटाला के खिलाफ लिखने के लिये उन्हीं देवीलाल ने उसकी सातों पुश्तों की ऐसी की तैसी कर डाली.......

जनसत्ता ने देश की क्रीम बटोरने को आईएएसनुमा परीक्षा करा कर जो चौतरफा वाहवाही लूटी थी......अंदर जा कर देखा तो कई लगुए-भगुए रोशनदान से टपके पड़े हैं......बाद में तो संघ के सिफारिशी.....किन्हीं जैन मुनि के शिष्य ......सम्पादक को जन्मपत्री भा गयी तो......आओ जी वाला हाल.....

इसलिये एक दिन अपन पतली गली से निकल लिये........जाने से कुछ महीने पहले ममगाई जी पास आए....मंगलवार को मेरा ऑफ है आप छुट्टी ले लें.....आपको हिमाचल में मीनाक्षी देवी के मंदिर ले चलना है......काहे......मान लीजिये....आप आस्था की तरफ भी ध्यान दीजिये......निकल लिये हम दोनों सुबह-सुबह बस से.......मीनाक्षी देवी तक पहुंचते पहुंचते बूंदें गिरने लगीं.....70 से ज्यादा सीढ़ियां.....रास्ते में कई जगह पकी अमियों की ढेरी लगाए बच्चे...ममगाई जी रोकते रह गए.....पर दो किलो थेले में डलवा लीं.....अब सीढ़ियां चढ़ने में आसानी......मंदिर पहुंचने तक एक किलो खत्म.....अंदर घुसे तो एक हाथ में.....ममगाई जी के तेवर देख फेंक दिया......फिर देवी के दर्शन......जैसे-तैसे अंदाज में......घंटा भी बजाया...प्रसाद भी लिया.......लौटते में बुजुर्गवार बेहद खिन्न........आपको बेवजह लाया.......

फिर दो बार मनमोहन के सौजन्य से कसौली की यात्रा.....भाई ने पता नहीं कितने किलोमीटर चलवा दिया.....शिवालिक की चढ़ाई साथ में.....दूसरी बार की यात्रा...रात भर का जागा हुआ......सारे पूर्वज याद आ गए......किसी तरह कतार के बीच रख घसीटा गया....

एक महीने बाद लखनऊ में पंकज जी के सामने पेशी.....कानपुर का टिकट पकड़ा दिया......जाइये....नवीन जोशी के सम्पादकत्व में स्वतंत्रभारत को चार चांद लगाइये.........