मंगलवार, 17 मई 2011

खाड़कुओं के इलाके में





राजीव मित्तल


इसे कहते हैं आ बैल मुझे मार.......सब कुछ बढ़िया चल रहा.......नवभारत टाइम्स भी.....लखनऊ भी....अपने घर में अपने कुटुम्बियों के बीच....छोटे बेटे की किलकारियां....हिपटुल्ला टाइप लेखन... शहर भर में चर्चित बना देने वाला.....ऑफिस में बेहद दोस्ताना माहौल......लेकिन कहीं न कहीं खटक रही थी इतनी सुकून भरी जिंदगी...मेज पर पड़े जनसत्ता पर नजर गयी.... प्रभाष जी न्यौता दे रहे हैं मरजीवड़ी टीम में शामिल होने को.....तुरंत अखबारी कागज पर टकसाली भाषा में अपनी नामुराद राइटिंग का नमूना पेश कर दिया..आश्चर्य... जवाब सामने... देखें तो सही आपको...चंडीगढ़ आइये...

आता हूं जी......घर में थोड़ी चुकुर-पुकुर हुई....घूम आने दो सुन सब शांत....चलने वाली रात किसी करीबी के घर से चंडीगढ़ वाली बिटिया के लिये कुछ सामान...रास्ते में सब बहा दूंगा....साथ में संदेश भी....कि सामान समेत घर में ही घुस जाऊं.....और जब तक चाहूं मेजबानों को झिलाऊं....अंबाला से बस....17 सेक्टर से रिक्शा...18 सेक्टर में घर....अंधेरा छंटने को...हल्की ठंड....चार-पांच बार नीचे के दरवाजे पर धम-धम....ऊपर आहट। दुआ-सलाम के बाद बगैर झिझक बिस्तर में...तगड़ी नींद के बाद तैयारी...ऊपर से फोन गया तो एक के बाद एक प्लेट सीढ़ियां चढ़ रही...नीचे पतिदेव का होटल. ....मिठाई की इतनी किस्में देख आंखों के सामने हलवाई की लड़की ...गहरी सांस लेकर सुताई शुरू....रिक्शे से इंडियन एक्सप्रेस के प्रांगण में.....प्रभाष जी की कार से 15 सेक्टर के किसी भवन के अंदर.....

जनसत्ता की प्रवेश परीक्षा मानो अखंड रामायण..बारह से छह....यानी दो शो लगातार.....सवाल खत्म होने का नाम नहीं..अंधेरा होने को...रात में तम्बू लगने की आशंका....आदतन दस मिनट पहले कॉपी जमा कर बाहर.. ....वहां से फिर उसी घर में....एक बार फिर दिव्य खाद्य सामग्री के दर्शन........

कुछ दिन बाद एक और बुलावा कि अब कुछ बातचीत भी हो जाए। वो भी हो ली...तो इस बार नियुक्तिपत्र भी लेते जाओ भाई....तब तक शहर दीवाना बना चुका था। अब तो लेटर भी हाथ में...

लखनऊ में आखिरी हफ्ता बहुत भारी गुजरा......पिता का मकान मालिक के ड्राइंगरूम में स्यापा ....पत्नी की दोनों बच्चों को गोदी में उठा मायके जाने की धमकी...नवभारत टाइम्स में वीरानी ....समझा-बुझा कर संत मुद्रा में ट्रेन पर सवार....

सलीकेदार एक्सप्रेस वालों ने इस बे-सलीकेदार इनसान पर बड़ी इनायत फरमायी.....हाय-तौबा.....हंसी-ठठ्ठा....चीख-पुकार.....गाना-बजाना....एक डेस्क से दूसरी डेस्क को खबरें उड़ती हुई देखने का पूरा मजा लेते.. पतंग की तरह लहरातीं खबरें कई बार वहां बैठे सम्पादक जी के सिर पर से भी गुजरीं.....वहां पहुंचने के चौथे ही दिन लखनऊ वाले हरजिंदर के साथ मोहाली पहुंच मनोज कुमार की बकवास फिल्म देखी.....मोहाली मतलब पंजाब......हर समय दिल धड़कता रहा कि अब बम फटा.....सिनेमा हॉल में भी केवल हम दो..... और चार गेट कीपर.......

फिल्म इसलिये देखी कि समीक्षा लिखने को मन मचल रहा.......चढ़ा ज्यादा ही दिया था जानी-पहचानी सूरतों ने....जीएम को भी कहीं से खबर लग गयी तो वहां से भी अनुरोध....समाचार सम्पादक भी अपने घराने से परिचित......

प्रभाष जी वहीं डेरा डाले हुए.....पहला दिन......हॉल में घुसा तो सामने आरामकुर्सी पर विराजमान......दशहरी आम तो अभी आए नहीं होंगे......संभालो अपनी थानेदारी.......काम के मामले में पूरी छूट....सीट संभालते ही भीड़ को अलग-अलग डेस्कों पर सटा दिया....और अपने लिये सवा-सवा लाख के बराबर तीन जन छांट लिये......डमी के दौरान एक रात पारा आसमान पर....आवाज उससे भी ऊपर ...जिस पर अपना नजला झड़ रहा....उसने घबराहट में टेबिल पर ही चाय लुढ़का दी....लीड खबर के कागजों का सत्यानाश....तभी प्रभाष जी आ पहुंचे.....इतनी जोर से डांटोगे तो अस्पताल पहुंचाना पड़ेगा इसे...

अखबार शुरू .....लेकिन स्थानीय सम्पादक का पता नहीं.....जिनको आना था वो नरेन्द्र कुमार सिंह नहीं आए.....जबकि अपन को लाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था....हिंदी में इतना स्मार्ट सम्पादक पहली बार नजर आया .....एक्सप्रेस से खींच लाए थे प्रभाष जी....इंडिया टुडे चले गए......दिल भन्ना गया.....एक रात प्रभाष जी के साथ दिखे खद्दरधारी जीतेन्द्र बजाज.....जर्मन अर्थशास्त्री शुमाखर के चेले...हमारे स्थानीय सम्पादक .....सज्जन....लेकिन अखबार और अखबारी दांवपेचों से कतई अनजान..

दो महीने बाद ही खबरों का ताबड़तोड़ हमला.....स्थायी तौर पे रात की इंचार्जी थमा दी गयी..जुलाई की रात.....तूफान और बारिश.....एक बजे का समय...पूरे हॉल में मात्र पांच जन ..तभी मशीन ने चार लाइन की खबर फेंकी.....लाडलू में नरसंहार.....आतंकवादियों ने बस रोक कर सभी गैर सिखों को भून डाला....पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हत्याकांड......हरजिन्दर और मैं....खबर का पता नहीं....फौरन फैसला करना है.....फुटेला जी टहलते नजर आए....अबे इधर आ.....गाड़ी मंगा रहा हूं.....लाडलू जाना है.....35 किलोमीटर दूर....इस मौसम में....फौरन तैयार हो गया....साथ में स्पोर्ट्स वाला अशोक महाजन.....तुम्हारा तीन बजे तक इंतजार करूंगा....उसके बाद एजेंसी जो भी दे.........एक्सप्रेस वाले भी तैयार हो कर बैठ गये अनुवाद के लिये......जब दो बजे तक एडिशन नहीं छूटा तो जीएम का फोन.... एडिशन क्यों नहीं छूटा ....पूरी रामकहानी बतायी.....बहुत देर हो जाएगी.....जनसत्ता बिकेगा कैसे....चाहे जितने बजे छपे, बिक कर रहेगा......आप कैसे कह सकते हैं......सम्पादक जी से बात कीजिये....चार बजे से पहले नहीं छोड़ूंगा....फोन ही पटक दिया.....फुटेला साढ़े तीन बजे लौटा......बीस मिनट में रिपोर्ट तैयार.........सवा चार बजे खत्म हुआ ऑपरेशन लाडलू......अब....चलो सब चलते हैं पीजीआई....लाशें और घायल तो वहीं आएंगे.....पीजीआई में हर तरफ रोने-चिल्लाने का आवाजें.....घबरा कर बाहर आ गया....सामने कार से उतर रहे जीएम......अभी तक जनसत्ता की छपायी शुरू नहीं हुई है....और सभी अखबार बिक रहे हैं.....दस बजे भी छपा तो भी बिकेगा.....ठीक है आप यहीं रुकिये अभी आता हूं.....लेकिन बस सामने...हरजिंदर के साथ चढ़ लिया....सेक्टर बीस में होटल खुला ही था.....फटाफट परांठे बनवा कर खाए...चाय पी....और सेक्टर 21 की बंगलिया में बिस्तर पर ढेर......शाम को तैयार हो कर ऑफिस ....अंदर घुसते ही दिख गये जीएम सुशील गोयेनका .....घनी मूंछों में मुस्कुराहट.....वेल डन......कितना बिका......तीन बार छापना पड़ा......कोई भी अखबार डीसी से ऊपर नहीं जा पाया.....और जनसत्ता में बैनर खबर आधा पेज तक......

अखबार के हर पक्ष से खासा जुड़ाव.....18 घंटे दफ्तर में गुजरते..............काम नहीं तो किसी के साथ कहीं भी निकल लेना....शहर....गांव.....कस्बा....सभी कुछ छान लिया छह महीनों में.....एक रात सुशील सोलन जा रहा अपने घर तो हम दो भी लद लिये साथ......दूसर हरजिंदर...हर जगह का साथ .....लेकिन बस एक साल रहा .....फिर बनारसी सुधांशु मिश्रा.....गुण-अवगुण दोनों की खान.....उसका साथ मन को बहुत भाया....लेकिन उसके शातिरपन से बचने के तगड़े उपाय.....जगमोहन फुटेला......बाप रे.....उसके साथ चलना...मतलब जूते पड़ने की नौबत....मनमोहन सिंह......दो बार कड़ाके की सर्दी में परवाणु से कसौली पैयां-पैयां ले गया और जिंदा वापस ले आया......

चंडीगढ़ में आये दिन धमाके....... बीस सेक्टर भी छूटा.....यात्री निवास में जाते-जाते सात सेक्टर....बहुत सुनसान जगह ...एक बेहद गर्म दुपहरिया...पूरे जहान में बस हम दो....आसमान में चील...सड़क पर यह नाचीज...झपाके से मारुति रुकी.......कार में सात फुटिया सरदार जी........ ओए...चील कित्थे है....होश गायब.....हां भई बत्ता.....ऊपर देखा...चील....चील....चील....चील कित्थे है.....नहीं चील को नहीं पूछ रहे....तो....तो... ओ जी है तो एक चिड़ियाघर, पर वहां दो हिरन और एक तोता है बस......ओए...क्या बक रहा है....मैं चील पूछ रहा हूं चीललललललललल॥ अब दिमाग ने काम शुरू किया.....बेवकूफ चील नहीं झील....झील.....ओ जी झील????? हां ज्जी चील.......जी ऐसे जाकर उधर मुड़ जाना जी......दो मिनट के चील-झील ने खून सुखा दिया था अपना....... जगह

सात सेक्टर में ही मिल गयी वो जाटनी....पूर्णिमा की दोस्ती परवान पर.....किसी सरकारी स्कूल में टीचर....मेटरनिटी लीव पर.....पति हेल्थ इन्सट्रक्टर......बीवी के सामने बेचारा...दो महीने की बच्ची को शिशु सदन में छोड़ने गयीं दोनों सहेलियां.....वहां बच्ची मां से भी तेज निकली....रुकने को तैयार ही नहीं .... पूर्णिमा की दिलदारी....मैं पालूंगी इसको......मां के स्कूल शुरू....जाते समय मेरे पास सुला जाए.....जागते ही किलकारियां शुरू....यहां देर तक सोना पिन ड्रॉप साइलेंस में....दोनों सहेलियों के लिये बद्दुआ निकलती......लेकिन हमने भी उसे डेढ़ साल की करके छोड़ा...

जीतेन्द्र बजाज चले गये....दो महीने के लिये पंडित अच्युतानंद मिश्र .....फिर पधारे ओम थानवी राजस्थान से...जोधपुरी.....शुरू में ही खुद ने ही मान लिया था कि किस्मत ने दिलायी जनसत्ता की सम्पादकी.....सो आज भी किस्मत दामन थामे है......