रविवार, 29 मई 2011


चंडीगढ़ में एक बरसाती दोपहर प्रमोद कोंसवाल के घर में प्रवेश करते ही टेपरिकॉर्डर पर गाने की आवाज़ ने पैरों को जकड़ लिया.......यह कौन है....बैठ कर सुनो.....बैठते ही वोदका का पैग.....लेकिन यहां तो पहले से ही मदहोश......गाना खत्म हुआ....पता चला पाकिस्तानी गायक हबीब वली मोहम्मद.....आवाज में हल्का सा मुकेशपन....कोई सिलवट नहीं......मुरकी तो बिल्कुल ही नहीं... खरज मुकेश से ज्यादा....साज के नाम पर सिर्फ हारमोनियम और सारंगी.....पता चला कि त्रिनेत्र जोशी पिछले दिनों चीन गये थे....वहीं किसी घरेलू कार्यक्रम में वली को टेप कर लाए और कई ईष्ट मित्रों को उस आवाज का रसास्वादन कराया....एक कॉपी अभी का अभी दो...तुरंत मिल गयी.....जब तक घर में तो सिर्फ वली की आवाज....रात को ऑफिस से लौटने के बाद 17 सेक्टर जाने वाली बिल्कुल सुनसान सड़क पर अपन वली बन जाते.....बिल्कुल पागल बना दिया था इस आवाज ने....कानपुर में पागलपन सिर पर चढ़ गया..

मेस्टन रोड पर.... राह ए तलब में कौन किसी का

राजीव मित्तल

बस ने रेलवे स्टेशन के पास उतारा..रिक्शा कर मूलगंज चौराहा और नवीन मार्केट होते हुए....कैन्ट रोड पर बहुत बड़े परिसर में स्टेट बैंक .....उसके बगल से नीचे उतरती सीढ़ियां......जमीन के 10-12 फुट अंदर पहले एक कमरा..फिर एक और...उसके बगल में हॉल....सम्पादकीय.....उसी में किनारे छोटा सा कैबिन.....अंदर मुस्कुराते नवीन जोशी.....पुख्ता सम्पादक.....प्रिंट लाइन में नाम वाले.....तुम यहां सेंट्रल डेस्क नहीं लोकल डेस्क संभालो.....लोकल में चीफ रिपोर्टर ने बड़ी धांधली मचा रखी है....उसे काबू में लाना है....चीफ रिपोर्टर अम्बरीष शुक्ला....पंकज जी का मुंहलगुआ....जितना मोटा उतना हरामी.....नवभारत टाइम्स के समय के हे-हे ही-ही वाले संबंध...एक जाना-पहचाना चेहरा और...प्रमोद झा....अमृतप्रभात के कई उस्तादों में एक....नारी के नाम पर शिप्रा दीक्षित....तेज-तर्रार रिपोर्टर...

रात को स्टाफ के ज्यादातर मेस्टन रोड के मिश्रा लॉज में ही सुनते थे लोरी....वहीं अपना भी बिछावन....जिसके बिछते ही चंडीगढ़ की हूक आंसू निकालने पे आमादा....वहीं धीरेन्द्र श्रीवास्तव, शैलेश मिश्रा से गिरह खुली ....किसिम-किसिम की यादों के बीच डूबते-उतराते रात कटी.....लॉज के सबकुछ दाढ़ी वाले बाबा से चाय बोल बाहर का नजारा लिया तो दिल बागबाग.....यहां तो खटिया पे लेटे-लेटे शॉपिंग की जा सकती है.....तैयार हो कर फिर ऑफिस ...रिपोर्टरों की मीटिंग ली....लखनऊ-चंडीगढ़ में कई को किमख्वाब पहना चुका था..अब कानपूर....कई आज भी इस नाम का मर्सिया पढ़ रहे हैं......सब चले गए तो बीटिल टाइप शैलेश चरणों में....भाईसाहब......मुझे अपने साथ रख लीजिये.....किस खुशी में....सर जी दिल का मुआमला है....यानी वो...जी सर....कम से कम दिखायी तो पड़ती रहेगी खबरों के बहाने....सिर पर हाथ रख दिया....नवीन जी को बोला....किस मूर्ख को साथ रख रहे हो....वो मुझ पर छोड़िये...ठीक है तुम जानो...

एक बार फिर चंडीगढ़.....पूरी विदाई के लिये.....नई नौकरी की सुन रोना-गाना शुरू....पड़ोसिनें रुदाली बन ठेका लगा रहीं....डेढ़ साल की मिनी...उसकी टीचर मां....सब बेहद खफा.....कितने प्रोग्राम बनाए थे इस बार....सबसे ज्यादा तो पूर्णिमा.....वैष्णवदेवी की साध फिर रह गयी.....इन पांच सालों में टालता रहा....इस बार पक्का हो गया था दोनों सहेलियों का...घर-घर से खाने की बुलाहट.........किसी तरह सब समेट-सिमूट स्टेशन पर.......सुधांशु की आंखों से निकल पड़े आंसू......परम्परागत रोतड़ू....बस वही था स्टेशन पर.....अंबाला से सुबह लखनऊ के लिये.....दूसरे दिन कानपुर....आना-जाना बस से....सम्पादक का आग्रह कानपुर में ही रुकने और स्टोरी करने का ....पंकज जी सिने-समीक्षा लिखवाने पर उतारू.....मना करने गया तो शानदार मिठाई जीभ के हवाले कर दी.......

लॉज में पता चला कि गंगा बस एक किलोमीटर दूर है....धीरेन्द्र-शैलेश को उठाया कि चलो छपर-छपर को.....किनारे पहुंच बदबू के मारे उबकाई आ रही.....इस देश के लोग कितने बेहूदे हैं कि जिसका हजारों सालों से सुबह उठते ही जाप शुरू कर देते हैं, उसी को नाले से बदतर बना दिया....आस्था के नाम पर ऐसी बेकदरी इस धरती पर और कहीं नहीं.....काफी तलाशने के बाद साफ धारा दिखी तो उतर पड़े....पांच-दस दिन चला आस्थाहीन गंगा स्नान .....

रात दो बजे तक लोकल डेस्क....दिन में.... लहुलुहान ब्लड बैंकों .....पुलिस महकमे में किसी ईमानदार की तलाश...स्वतंत्रता सेनानियों की दुर्दशा..पर स्टोरी ..या पिक्चर हॉल में ओंघाई.....टिकट शुक्ला जी के सौजन्य से.....भाई का रात बारह बजे आना कई सारे लगुए-भगुओं के साथ.....राजू भैया एक शानदार स्टोरी दे रहा हूं.....जल्दी दो...शटर गिरा दिया है....शैलेश को पकड़ नवीन मार्केट में गुलाबजामुन....एक घंटे बाद तीन पेज की स्टोरी......ऊपर की चार लाइन और नीचे की दो लाइन.....बाकी सब भूसा.....अगले दिन.....राजू भैया कहां लगी है वो स्टोरी.....पेज चार पर देखो....ऊपर सिंगिल कॉलम में.....हमारे साथ ही ऐसा करोगे भैया....हां...अखबार को बेचना भी है बचाना भी है...

एक दिन गाज गिरा दी श्रीमान जोशी जी ने.....वापस लखनऊ जा रहा हूं....अब तुम संभालो....और छोड़ गए इस अभिमन्यु को उन महारथियों के बीच....तीर भी गिन कर दिये...यह निर्देश भी कि छाती पर नहीं, पैर पर चलाना..ऑफिस में अरुण अस्थाना, आशुतोष बाजपेई और जावेद बख्तियार से भी रब्त-जब्त...

एक शाम जैसे ही ऑफिस पहुंचा चंड़ीगढ़ वाला सुधांशु मिश्र इंतजार करते मिला.....भारत छोड़ कर अमेरिका जा रहा....मिलने आया था.....तब से मुलाकात तो नहीं हुई कभी-कभार फोन जरूर आते हैं........

धीरेन्द्र ने वली मोहम्मद को गुनगुनाते क्या सुन लिया..धरना दे दिया ॥रात को लॉज पहुंचते ही ओल्ड मोंक खोल दी....खाली करने के बाद मेस्टन रोड की गलियों में किसी दुकान के बाहर तख्ते पर बैठ कर इल्तिजा...शुरू हो जाइये....कानपुर आने के बाद अपने पास भी मात्र दो ही चीजें थी....सीने में चंडीगढ़ की यादें और गले में वली.....तीन पैग अंदर होते ही दोनों जोर मारने लगे ....तो रात को तीन घंटे उन पतली गलियों में वली साहब जलवा बिखेर रहे॥दो-चार जन तो उसी रात॥अगली रात कई ठेले वाले...खोमचे वाले....कबाब-बिरियानी बेचने वाले ......चूड़ी-बिंदी-टिकुली बेचने वाले वहां जमा......पिछली रात का गाया फिर से गवाया गया....रात भर तरन्नुम में .....छुट्टी वाले रोज उनमें से कई लॉज में भी पधार गये.....भाईजान यहीं पर कुछ हो जाए....एकाध के हाथ में बोतल भी.....तो कबाब और बिरियानी भी.......एक महीने तक छाया रहे वली साहेब .....धीरेन्द्र की बीट में नगर निगम भी....तो उसके कई सभासद यार भी दीवाने हो गये......लेकिन पूरी रात के जागरण ने अपने कसबल निकाल दिये.......कुछ महीने के आराम के बाद इस आवाज से कम्पनीबाग हुआ गुलजार......

इधर ऑफिस में कुछ ऐसी सख्ती चलायी कि एकाध को छोड़ कर सारा स्टाफ अपना दुश्मन........हफ्ते में दो-चार का जत्था पंकज जी के पास शिकायत ले कर पहुंच जाता.....सबसे ज्यादा दुखी अम्बरीष शुक्ला.....पंकज जी को यहां तक बताया जा रहा कि लोकल डेस्क पर जम कर धंधा चल रहा है.....कोई भी खबर बगैर पैसे के नहीं छापी जा रही.....आपके नाम पर थू-थू हो रही है.....पर..पंकज जी तो पंकज जी....उन्होंने सबको भगा दिया....और नवीन जी को बोला...एक मीटिंग कर आओ कानपुर जा कर.....

जिस दिन मीटिंग....इत्तेफाक से सुबह किसी काम से शिप्रा लॉज में हाजिर....दोनों ऑफिस
के लिये साथ-साथ निकले....रास्ते में खुराफात सूझी....शिप्रा...आज पता है न क्या होने वाला है....बस अब तुम बची हो...तुमने भी अपन के खिलाफ ऐसी-वैसी गवाही दे दी तो गया काम से.......रास्ते में अमरूद का ठेला दिखा....आधा किलो खरीद कर उसको पकड़ाए....इन्हें रिश्वत समझो.....सड़क पर ही उसका जोरदार ठहाका........मीटिंग शुरू.....अपने बोलने पर पूरी तरह बंदिश....एक के बाद एक आरोप...सुन कर लग रहा कि महानता की तरफ बढ़ रहा हूं....डेढ़ घंटे की तिड़िकझांई के बाद फैसला सुनाया गया....कोई रद्दोबदल नहीं होगा....क्लीन चिट मिलते ही सबके सुर रोमानी........

पैर छुआई का चलन पहली बार इतने पड़े पैमाने पर यहीं देखा....सुना है कि नवभारत टाइम्स में मरहूम विद्यानिवास मिश्र तो बैठते ही इस तरह थे कि मेज के नीचे सिर डालकर पैर छूने वाले को कोई दिक्कत पेश न आए...यहां तो पैर छूना और आसान....खबर देने वाले भी आते तो वाह नामधारी गुटखा मेज पर और हाथ पैरों की तरफ..उनमें ज्यादातर ब्राहमण .....अगले जनम में नरक पक्का...कुम्भीपाक या रौरव...फर्क जान कर क्या करना.....

इस बवालबाजी से घबरा कर पंकज जी ने भेज दिया नवभारत टाइम्स राजपूत घराने के चश्म ए बद्दूर
नरेंद्र भदोरिया को....हमारे समय के स्ट्रिंगर......फौरन लखनऊ आ कर अपने धोबी को हाथ जोड़े ...भैया ऐसा क्यों कर रहे हो....क्या पता कल तुम मेरे सम्पादक बन जाओ, ध्यान रखना....भदौरिया जी ने पुराने दिनों का ख्याल रखते हुए खासा ध्यान रखा....आदमी गऊ तो नहीं पर, गऊछाप जरूर थे यानि सांड़ से थोड़ा कम खतरनाक और बैल से थोड़ी ज्यादा बुद्धि वाले...ठीकठाक निभी उनसे....शुक्ला जी पर अंकुश लगाने को सहारा अपन का ही पकड़ना पड़ा उन्हें भी.....एक सुबह पता चला कि विदा हो गये....बताया जाता है कि पंकज जी की किसी रसभरी डिमांड पर भन्ना गया राजपूती खून.....

स्वतंत्रभारत फिर बिना रास के...... .....इस बीच एमएसटी बनवा ली और रोजाना लखनऊ से आना-जाना.......चित्रकूट एक्सप्रेस के मजे लिये जाने लगे...लौटते में साबरमती....टीटी जान पहचान का॥ तो एमएसटियों को दूर से ही देख भड़क जाने वाली वैशाली का भी सफर....लेकिन लखनऊ उतरते समय सावधानी.....वहां होती छापामारी....उतरते ही एच व्हीलर की शरण में....और मौका देख कर बाहर....लेकिन अपने झा जी उतरते समय इसी सोच में डूबे रहते कि इसको मुझसे ज्यादा तन्खवाह क्यों दी जा रही है.....धर लिये गये.....कुछ घंटे बाद निकल पाए.....

दीवाली निकलते ही फिजां गर्म होनी शुरू.....बाबरी मस्जिद मुद्दे की आंच में ईधन डालना शुरू हो गया था.....कानपुर बेहद संवेदनशील शहर.....मूलगंज से नवीन मार्केट जाने वाले रास्ते में एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी ओर हिंदुस्तान की नीवं रखी जाने लगी..... आने वाले दिनों का तेजाबी सुरूर छाने लगा था.......और लीजिये आ गया वो दिन........