बुधवार, 25 मई 2011


हां जी....कैसी हैं आप.....उसने एक दम से आंखें ऊपर उठायीं.....आप.....तुम....तुम........हां.....तुमको क्या हुआ... नहीं....नहीं.....सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम यहां.....मैं 10 मिनट में फ्री होती हूं.....तब तक तुम....ठीक है ....मैं बाहर निकला......चावड़ी बाजार....भीड़ से लबालब......पूरे बाजार का चक्कर मार कर दस की जगह 15 मिनट बाद वापस....बाहर ही थी ....हाथ पकड़ लिया..... तुमको देख कर चकरा गयी थी....कितने दिन हो गये ना तुमसे मिले....कैसे हो....मेरी याद आती है कि नहीं......आज अचानक कैसे प्रोग्राम बना.....सोनीपत गया था कजिन के पास.....भाभी से सब बक गया...बावली हो गयीं.....फौरन रुपये पकड़ाए....दिल्ली में उससे मिल कर जाना.....तो यह बात है...भाभी जी के कहने पर मिलने आए हो.....ये बताओ कि चलना कहां है.....थोड़ा घूमते हैं....यमुना के किनारे....फिर तुम मुझे कृष्णानगर छोड़ देना....दोनों सहमे-सहमे स्कूल से भागे बच्चों की तरह यहां-वहां टूलते रहे.......फिर फव्वारे के पास से बस पकड़ी......जो कृष्णानगर से तुरंत लौटती भी थी.......बस में भीड़ .....उसके लिये सीट.....बैठी ....फिर उठ खड़ी हुई....मैं तुम्हारे साथ रहूंगी......कृष्णानगर आ गया....उसने हाथ दबाया....हम दोनों उतरे.....मैं चलती हूं घर का कोई देख लेगा..... हापुड़ आयी तो मिलूंगी जरूर से.........उसी बस में जा बैठा...नया टिकट लेकर.......कॉलेज में अरविंद से पता चला कि कई लड़के हॉकी लिये मुझे तलाश रहे थे.....बतरा उनके साथ था.....उसको भी तो पिटवाया था अपने भाइयों से तेरी लैला ने.....अब वो तुझे तलाश रहा है.....मेरे साथ ही रहा कर कॉलेज में......घर छोड़ने और लेने आ जाऊंगा रोज.......


ऐसा
भी होता है


राजीव मित्तल

एक दोपहर कॉलेज लॉन में अरविंद और योगेद्र के साथ हिस्ट्री ऑफ़ इकॉनमिक थॉट वाले सिन्हा साहब पर मजाक चल रहा था कि अचानक नजर घूमी गलियारे में......वाह...क्या अद्भुत अंदाज है चलने का.....गोरा-चिट्टा रंग....लम्बा कद...तभी कानों में अरविंद की आवाज.....अबे देख मत पंजाबन को...कई को पिटवा चुकी है अपने
भाई से.....आठ भाइयों में अकेली है....तेरी तो हड्डी भी नहीं बचेगी.....चलो.... अब की यही सही......

तीसरे सेमेस्टर के एग्जाम......दिसम्बर की सुबह.....दूसरा पेपर......जल्दी पहुंच गया एग्जाम हॉल में ....अपनी सीट तलाशी.......दूर लगी एक मेज पर उसके नाम की चिट देखी.....बिल्कुल खाली हॉल ......वहां से उठा कर अपने आगे जमा दी ......टाइम हो गया....सब आने लगे ......नजर आयी....अपना सीट तलाशते हुए ठीक मेरे सामने बैठ गयी.......पेपर हाथ में... विश किया.....पलटी....आपने कुछ कहा.....फिर विश किया.....मुस्कुरायी...जवाब दिया......टाइम से 15 मिनट पहले कॉपी जमा कर बाहर.......रैलिंग पर बैठा गप मार रहा.... दिखायी पड़ी....दो-तीन चक्कर काटे ... हम सब दोस्त ढाबे की ओर.....

पेपर खत्म......कल रात को ट्रेन में.......उसका पेपर अगले दिन भी .....कॉलेज में ऑफिस के सामने बोर्ड पर लगे नोटिस देख रहा....खूब शोरगुल....तभी पीछे से आवाज......आपने विश तो कर दिया था... पेपर कैसा हुआ यह नहीं पूछा......मुड़ा तो निगाहें मिलीं.......आप यहां के तो लगते नहीं हैं.......लखनऊ से आया हूं...आज जा रहा हूं... अरे वाह....हम एक शादी में फैजाबाद जा रहे हैं लखनऊ पड़ेगा.....आप मिलेंगे स्टेशन पर?......

लखनऊ पहुंचने के दो दिन बाद जल्दी उठा...बाहर अंधेरा.....तैयार हो कर प्लेटफार्म पर ट्रेन का इन्तजार .....जेब में लेटर....लिखा था कि प्रोग्राम एक दिन पहले बन गया....ट्रेन आ गयी.....सब डिब्बे छान मारे पर उसका कोई पता नहीं......समझ गया कि चौकड़ी ने खेल कर दिया.....तो बताने की क्या जरूरत थी सब कुछ....चलो घर वापस...मिठाई का क्या किया जाए.....कनु तो जीना हराम कर देगी कि इतनी सुबह सज-धज कर कहां निकल लिये थे जनाब....और हाथ में मिठाई भी ...वाह क्या बात है....बाहर निकल श्वानों के परिवार को इकट्ठा कर मिठाई सामने रख दी.......

अगली सुबह फिर तैयार हो कर स्टेशन पर..... ट्रेन आयी......डिब्बे खिसक रहे थे ...दरवाजे पर ही खड़ी...उतर कर पास आयी...कितनी सर्दी है....आपको परेशान किया....है न....फिर खिड़की के पास गयी.....किसी महिला के साथ लौटी.....यह मेरी भाभी हैं...इन्हीं के पास रहती हूं हापुड़ में....पांच मिनट बाद गाड़ी चल दी....छुट्टियां खत्म....वापस हापुड़ .....कॉलेज में दोस्तों ने लेटर का जम कर मजा लिया.......मिलने के जुनून में इंग्लिश एम ए की क्लास में.....सबसे आगे बैठी दिखी......मैं आ गया......सारी क्लास की नजरें हम दोनों पर....उसकी निगाहें धरती में समा रहीं.....मैं मिलती हूं आपसे......

अगली सुबह अपनी क्लास की लड़की ने मुड़ा हुआ कागज दिया...लौटते वक्त गली के उस मोड़ पर मिलना......मेन सड़क से बाएं मुड़ते ही घर की तरफ निकलने के बजाए दूसरी तरफ...थोड़ा आगे अपनी दोस्त के साथ खड़ी थी......तुम क्लास में क्यों आ गए..... मजा लिया सबने.....मैं यहीं मिला करूंगी.....दिल ने फौरन हल्ला मचाया ....इस गली में.....छतों से झांकते चेहरों के बीच.....ना बाबा.....कट ले फौरन...लेकिन लड़की हिम्मती है......इस कस्बाई माहौल में......!!!!

खैर.. कॉलेज में ही देखादेखी चलती रही.....उस दोपहर को खाना खा कर ऊपर अपने कमरे में झपकियां ले रहा कि आवाज सुनी.....उठ जाइये न....सामने देखा तो पलंग से गिरते -गिरते बचा.....अंदर आ जाऊं....कितनी देर से खड़ी हूं...कई आवाजें दीं..आ जाओ...... मेरा यहां का पता कैसे चला तुमको....घर तो मालूम था...कमरा आपके यहां नीचे किसी ने बताया........उफ्फ.....अब सबको पता चल गया.....बैठो आराम से.......कुछ बताओ अपने बारे में.....मेरा सारा परिवार दिल्ली.. कृष्णानगर में.....मां नहीं हैं.....आठ भाई.....यहां वाले भइया सबसे बड़े...बैंक में हैं.....तीन गाजियाबाद में......वे सब भी बैंक में....तभी नीचे से आवाज......चाय भिजवायें ?.......मैं आता हूं......साथ में नमकीन और मीठा ......दादी जी रात को करेड़ेंगी....क्यों रे तू चाचा के यहां पढ़ने आया है या ये सब करने.....तेरे बाप को पता चलेगा तो अपना सिर फोड़ लेगा....कितनी नाक कटवाएगा उसकी.......कहां चले गये जी...तुम कुछ बोल ही नहीं रहे.......चेहरे पे चिपक गयी रुआंसी मुस्कान......अब अपने बारे में बताओ......एक घंटा बीत गया ....मैं चलती हूं....यह तुम्हारे लिये.....चांदी की रिंग.....फॅरगेट मी नॉट.....ठीक है...कल मिलते हैं.....उसी जगह......

दो-तीन मुलाकात उसी गली में और......बीच-बीच में चिट्ठी.....दोनों की क्लासमेट मदद कर रहीं .....पूरे कॉलेज में हौले-हौले चरचा .....यार-दोस्त मामले को गंभीरता को समझ रहे....क्लास में हर टीचर मुस्कुराता सा नजर आता.......जाड़े शुरू.......इतवार का दिन... धूप अच्छी लग रही तो छत पर ही किताब खोल ली....बगल में टेपरिकॉर्डर पर गाने......अचानक परली तरफ वाले घर का कोई आया.....नीचे तुम्हें कोई बुला रहा है......ऊपर आ जाती न.....उस दिन घबरा गये थे तुम इसलिये नीचे बुला लिया......मिस्टर....अब नौकरी की सोचिये........फाइनल के बाद ही तो कुछ होगा...... एक सेमेस्टर बाकी है......क्यों कह रही हो....मेरी नौकरी लग गयी है दिल्ली में बैंक की....पढ़ाई छोड़ रही हूं.....जल्दी आना मुझसे मिलने.....लेटर लिखूंगी जवाब जरूर देना.....

सोनीपत से लौटते मुलाकात कर ही ली थी......लेकिन इधर कई दिनों से कोई खबर नहीं.....होली निकल गयी........कोई लेटर भी नहीं.......दो दिन की छुट्टी.......ननिहाल में किसी की बीमारी का बहाना बना कर दिल्ली की बस पकड़ी.....बैंक पहुंचा....नहीं दिखी तो पूछा.......अब वो यहां काम नहीं करतीं.......

लौट कर अरविंद और योगेन्द्र को बताया...दोनों क्या बोलते.....दिन बीत रहे थे किसी तरह.....चौथा सेमेस्टर खत्म होने को.....एक्सट्रा क्लासेज......तुझे पता है.....हाथ में सिगरेट पकड़ाते हुए अरविंद बोला....वो फिर आ गयी है....कल कॉलेज में दिखी थी..... हलक तक उछाल मारी दिल ने ........लौटते समय उसी गली में .....तुम वापस आ गयीं और मुझे बताया भी नहीं......मुझसे मत मिला करो अब.....चेहरा उदास...डबडबायी आंखें.....साइकिल बढ़ा दी.......दसरे दिन किसी के हाथ चिट्ठी भिजवायी.....ठीक है नहीं मिलूंगा....लेकिन कुछ बताओगी?.......खत देने वाली ने लौट कर बताया.....तुम्हारा पत्र पढ़ कर रो पड़ी.....यह क्या हो गया बैठे बिठाए......

एक रात कोई लड़का ऊपर कमरे में आया और लिफाफा पकड़ा गया......लाइट नहीं थी....लालटेन की रोशनी में.....बहुत नाराज हो न मुझसे.......तुम नहीं जानते मेरे साथ क्या-क्या हुआ......सच्ची बताऊं ...उस दिन तुम्हारे कमरे से फोटो उठा लिया था तुम्हारा.. पर्स में रखती थी.....एक दिन भइया ने निकाल लिया......कुछ बोले नहीं.....फिर जब तुम दिल्ली आए तो मुझे छोड़ने कृष्णानगर गए.....रास्ते में किसी ने देख लिया.......तुम्हारे बगैर मन बिल्कुल नहीं लग रहा था....मैंने नौकरी छोड़ दी....सब बहुत नाराज हुए.....मेरा खाना-पीना बंद कर दिया गया....मैं जबरदस्ती हापुड़ अ गयी......तुम पर भइया बहुत नाराज हैं.... एक दिन तुमको पान की दुकान पर सिगरेट पीते देख लिया तो और भड़क गए....तुम संभल कर रहना.....मैं तुम्हारे साथ हूं.....यह लेटर टॉर्च की रोशनी में लिख रही हूं.......भाभी तुमको पसंद करती हैं.....लेकिन अब वो बदल गयी हैं.....

सब ऐसे ही चल रहा था....कभी चिट्ठी.....कभी वही गली.....एक दिन भरी दोपहर में दरवाजे पर खटखट...खोला तो सामने.....कितने दिनों बाद यहां आयी हूं न.......मैं नीचे से पानी ला रहा हूं....तुम पी कर निकलो....किसी ने देख लिया तो....कुछ देर तो बैठने दो पंखे के नीचे...तेज धूप से आयी हूं....सिर चकरा रहा है......चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा....मां की बहुत याद आती है....वो होतीं तो सबको देख लेती.....मां मेरे नाम काफी सोना और जेवरात कर गयी हैं....जल्दी कोई नौकरी न मिली तो कोई परेशानी नहीं.....मैंने लखनऊ मम्मी को तुम्हारे बारे में लिखा था.....पूछती रहती हैं.....अरे वाह....मुझे पता दो मैं लिखूंगी उनको.....तभी बगल वाले कमरे के खुलने की आवाज...दादी जी......कुछ देर बाद चाची....शायद मनाने आयी थीं रूठी सास को.....अब हमारी बातें बिन आवाज...अब तुम जाओ.......तुम चलो मुझे छोड़ने नीचे....मरवाओगी....तो मैं नहीं जाती.....अच्छा बाबा चलो....धीरे से दरवाजा खोल कर सब तरफ देखा.....दबे पांव नीचे उतरे.....सेंडिल हाथ में.......लौटा तो सांस में सांस आयी.....

अब पढ़ाई जोरों पर....लखनऊ से केकेसी की लायब्रेरी से कई किताबें ओरिजिनल....दिमाग से भभूके उठ रहे........स्टेटिस्टिक्स परखच्चे उड़ा रही....ऊपर से वो देवी.. लगता है समाज के सारे बंधन तोड़ने पर तुली थी.....एक दिन रात को फरमान आया कि घर में कोई नहीं है फौरन आ जाओ संदेश वाहक के साथ.....उस भयानक गली में पैर रखने का सवाल ही नहीं......उस दिन जो पीटने आए थे उनका लीडर वो बतरा उसी गली का वासी.......यह सुन दिमाग घूम गया कि संदेशवाहक बतरा का छोटा भाई.....पर उसे कोई चिंता नहीं....मुझे बहुत मानता है...

मैं सुबह तुम्हारा उस गली के पीछे वाले मन्दिर में इंतजार करूंगी......पहुंचा तो गश आने लगा.....बतरा साहब मन्दिर के बाहर.....दिल थाम कर घुस गया अंदर...जो कोई देवता वहां मौजूद था...पकड़ लिये चरण....बाहर निकला...सीढ़ियां उतर कर बतरा से कहा सिगरेट दो.....कश लगाते हुआ लौट रहा.....अब गोली लगी पीठ पर....दो घंटे बाद कॉलेज जाने के लिये दायीं तरफ गली में मुड़ा....तो कोरस में मंदिर वाला कोई प्रेम गीत......अब तो सारा हापुड़ जान गया था ....बतरा को दूर से ही देख मंदिर का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था देवी ने.........

एक दोपहर....मैं फिर आ गयी जी......आज तुम्हारे चाचा जी ने गेट में घुसते देख लिया....कुछ होगा तो नहीं.....अब बचा ही क्या है कुछ होने को........शाम को अशोक जी मिले......उसे घर में तो मत बुलाओ....तुम्हारे चाचा कह रहे थे....उससे कह दो कि अब एग्जाम करीब हैं होश में चले.......हापुड़ के सारे गुंडे उसके पीछे पड़ गए हैं.......कुछ को कॉलेज से निकाले जाने से बचाया था.....इसलिये खामोश चल रहे हैं........

एग्जाम शुरू......चाचा अपने साथ ले जाते लाते.........दोनों दोस्त भी बहुत ख्याल रख रहे कि यह लखनउवा पिट कर ना जाए उनके रहते.......अरविंद भी कभी दादा रह चुका था........पेपर खत्म....अब.....अब हापुड़ छोड़ देना है...कल ही ..उसको पता चला तो रात को नौ बजे आकर बिलखना...किसी तरह चुप कराया...बता रही .....मम्मी ने लखनऊ से साड़ी भेजी है......खूब चिट्ठी-पत्री.....एक दूसरे की पसंद-नापसंद भी पता चल गयी दोनों को.....लीजिये मां की बहु सामने खड़ी है और मैं उसके हाथ जोड़ रहा हूं कि जाओ मेरी मां.......कल कॉलेज में मिलोगे....नहीं.....तो मैं आऊंगी दोपहर में........

घर में कई मेहमान....सोनीपत वाली भाभी .....उससे मिलवा न......चुप करो जी....बाद में....पहले ही नीचे खड़ा हो गया कि ऊपर न आ जाए.....यह मुलाकात ऊपर जातीं सीढ़ियों के पास....तुम्हारे लिये कुछ लाई हूं....मुंह खोलो....चॉकलेट...याद रखोगे न.....मम्मी से यह कहना-मम्मी सो वो कहना....मैंने भी उनको कुछ भेजा है....पूछना उनसे.... अच्छा लगा कि नहीं......भाभी को बताया तो घुमा कर दिया पीठ पर.....नालायक....नीचे से नीचे विदा कर दिया.... मैं देख लेती तो कुछ बिगड़ जाता तुम्हारा.....

लखनऊ...शादी थी घर में......उस हल्ले गुल्ले में याद रहता तो बस यही कि उसका खत आने वाला है.......एक दोपहर घर की सब लड़कियां शोर मचाती मेरी तरफ लपकीं.....भैया.. तुम्हारा खत आ गया.....तो अब सबको मालूम हो गया....जरूर मां ने सबको दिखा दी होगी अपनी बहु की सौगात ..... शादी भी निपट गयी....... विदायी को यमुनानगर जाना पड़ा......चार दिन बाद वापसी.....बहुत खाली-खाली लग रहा.......उसकी याद तो बहुत नहीं सता रही थी....सता तो यह रहा था कि वो याद क्यों नहीं आ रही जोरों से.........

फिर कुछ दिन गुजरे......लखनऊ से भाग जाने का मन.....यह बोझ भी कि आगे क्या करना है.....छोड़ो जी सब.....एक रात फिर ट्रेन में.....सुबह हापुड़.....घर पहुंचा तो चाचा जी अकेले.....चाची बच्चों के साथ मायके और दादी जी उज्जैन बुआ के पास.....तू आ गया बहुत चैन मिला......अम्मा का मोतियाबिंद का ऑपरेशन है उज्जैन में.....तू चला जा......रिजर्वेशन हो जाएगा....दिल्ली से जाना है......तब तक अपनी मार्कशीट ले आओ......पहले योगेन्द्र..फिर अरविंद को पकड़ा....कॉलेज से मार्कशीट ली.....तीनों की फर्स्ट डिवीजन.....लौटते समय ढाबे पर चाय.....तभी रिक्शा रुका....वो उतरी....तुम यहां....मुझे बताया भी नहीं......कई दिन से कोई चिट्ठी भी नहीं.....रोने लगी.....सड़क पर.... हक्का-बक्का....तीन-चार लड़के कहीं से आ गए.....तू ही है वो....आगे बढ़े तो अरविंद बीच में आ गया.....बाद में मिलता हूं कह किसी की साइकिल पर लद लिया......अगले दिन दिल्ली.....फिर उज्जैन....दस दिन बाद लखनऊ.....

वही बेनाम दर्द.....कुछ पता नहीं चल रहा था कि हो क्या रहा है...होने क्या जा रहा है......उसके पत्र मां के पास आते रहते......क्या बात है वो मुझसे नाराज क्यों हैं कुछ बोल नहीं रहे....मां पूछतीं....टाल जाता.....बहरहाल दिन गुजरते गए...साल बीतते गए....सरकारी नौकरी में आ गया.....लिखना शुरू कर ही दिया था.....चंचल से दोस्ती....एक पत्रिका के सम्पादक.....उनके कहने पर कई लेख दिए.....कई दिन बाद मिले तो बुरी तरह नाराज....यार तुमसे यह उम्मीद नहीं थी.....वो लड़की मिली तो रो रो कर पागल हुई जा रही.....गाजियाबाद में जिस दोस्त के घर में रुकता हूं.....उसकी पत्नी की सहेली है वो....एक दिन यही पत्रिका पढ़ रही थी तो तुम्हारा लेख देखा.....मुझसे पूछा कि यह आपके दोस्त हैं.....ये हापुड़ में रहे हैं क्या.....मैंने तुम्हारे बारे में बताया....तो बोली....भाईसाहब... बस एक बार मिल लें वो मुझसे....तो तुम उससे फौरन मिलो......मैं उस दिन गाजियाबाद पहुंच रहा हूं....तुम दिल्ली जा ही रहे हो.....मेरे दोस्त के घर पहुंच जाना शाम को.........

दिल्ली में काम निपटा कर शाम होते-होते गाजियाबाद .....घर तलाशते अंधेरा छा गया था....बाहर गेट पर घंटी बजाई....कोई महिला आयीं.....चंचल जी आ गए हैं.?... मैं उनका दोस्त....उन्होंने यहीं मिलने को कहा था......नहीं...वो तो नहीं आए....आएंगे तो बता दूंगी......बस इतना ही..चली गयीं ..अंदर आने को भी नहीं कहा.....मैं गुम हो गया था कहीं..... काफी देर अंधेरे में खड़ा रहा....शायद कहीं से कोई आवाज ही मिल जाए सुनने को.....तुम कहां थे इतने दिनों से......अब तो मुझे छोड़ कर नहीं जाओगे न....!