देवघर के प्लेटफार्म पर भटक रही रूपा को जब रेलवे पुलिस ने पकड़ा था तब उसकी उमर आठ साल थी, जब रिहा हुई वो पंद्रह की हो चुकी थी, आज पांच साल छः महीने बाद उसकी फिर याद आयी तो आप सबसे शेयर करने का मन हुआ.............आज रूपा साढ़े बीस साल की होगी .................
राजीव मित्तल
दो हजार पांच की बरसात में प्रभात खबर में चार लाइन की खबर। पहले पेज के लायक तो कतई नहीं। और ऐसी खबर कि किसी टीवी चैनल ने झांका भी नहीं होगा कि असम की रूपा, छोटी सी लड़की, सात साल तक जेल में इसलिए सड़ती रही क्योंकि उसके पास प्लेटफार्म टिकट नहीं था।
इधर अदालत सीवान के डीएम को पुचकार कर समझा रही है कि भइये, ढंग के कागजात तो लाओ गिरफ्तारी के। और गिरफ्तारी के बाद क्या होगा-यही न कि पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण यानी चारों कोनों से बयानों की बौछार शुरू हो जाएगी कि हाय-हाय, यह क्या कर डाला! एक जनसेवक के साथ यह अभद्र कार्रवाई! क्या अपराध किया है इस मासूम ने! और, अगर इत्तेफाक से जेल भेज दिये गए तो! प्रत्यक्ष तौर पर आतंक का जिले वाला दायरा सिकुड़ कर क्रिकेट के मैदान जितना रह जाएगा। परोक्ष में तो शहाबुद्दीन का आतंक शाश्वत है ही, हर उस जगह, जहां भारतीय मानव मौजूद है।
जेल में भी मौज-मस्ती या रुतबे में कोई कमी आनी नहीं। पप्पू यादव को तिहाड़ में वालीबॉल खेलते नहीं देख रहे आप लोग! अमरमणि त्रिपाठी की मुस्कान जेल में और लवली हो गयी थी कि नहीं! इन लोगों को जेल की कोठरी में नहीं रखा जाता। जिस तरह हर दुर्गापूजा पर बड़े-बड़े मंडप सजा कर मूर्तियां रखी जाती हैं और अगले कुछ दिन पूजा का शोर रहता है, बस, उसी तरह अंदर धंसते ही उन्हें जेल के शानदार मंडप में रख दिया जाता है और वे राष्ट्र की धरोहर कहलाने लगते हैं। उन्हें कुछ हो गया तो भैंस की तरह राष्ट्र भी गया न पानी में! राष्ट्र की धरोहर नहीं थी रूपा, इसलिए उसके 2555 दिन-रात का, उसके बच्ची से नवयुवती हो जाने का हिसाब-किताब कोई मूढ़ ही करेगा........ और वैसा मूढ़ भी इस आजाद देश में अब दुर्लभ है।
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