बुधवार, 20 अप्रैल 2011

गुलमोहर

राजीव मित्तल

कील पे लटके कैलेंडर में
अगर मेरी आंखें तलाशती हैं
तो भरपूर गर्मियों के
उन दिनों को
जब गुलमोहर फूलों से
लद जाता है
लाल अंगारों की तरह
दहकते फूल
जब चारो ओर वीरानी हो
तो अपने पे मुग्ध
गुलमोहर से पूछने का मन
करता है
कितनी कलियां हैं तुम्हारे पास
जो रोज चटकेंगी और फूल बनेंगी
और तुमको इसी तरह
अपने पे मुग्ध
बनाए रखेंगी
यह भी पूछूं
कि रोज शाम
जब सूरज डूब रहा होगा
कितने फूल तुमसे
नाता तोड़
नीचे पड़े कुम्भला रहे होंगे
और यह भी कि
जब भरपूर गर्मियों के ये दिन
गुजर जाएंगे
केवल पेड़ बन कर रह जाओगे
तब
पर, सब सवाल फिजूल हैं
गुलमोहर को मालूम है
मैं हर बार नए साल के
कैलेंडर में फिर
भरपूर गर्मियों के
उन महीनों को तलाशूंगा
जब गुलमोहर
दहकता है