बुधवार, 27 अप्रैल 2011


रातें थीं चांदनी...मौसम पे थी बहार

राजीव मित्तल

मेरे पीछे घर में इतना सामान भर दिया गया कि प्रवेश करते ही दिल चीत्कार कर उठा......नीचे नहीं....अब पलंग पर सोना......यह काम वाली......यह खाना बनाने वाली........यह दूध वाला...अगले दिन दरवाजे पर ताला.....ऑफिस जाने को बोल दिया था......लेकिन कल! ......कल की कल देखी जाएगी.....दस बजे ही नर्मदा दर्शन को भेज बाइक पर ऑफिस ..रास्ते में फोन आया...तुम्हारा क्या करूं.....डांट खाना डॉ. साहब से....

ऑफिस में घुसते ही कुर्सी पर धड़ाम...जख्म कसकने लगा.....सबकी निगाहों में हाय वाला भाव.....अखबार की फाइल में किसी तरह दो घंटे निकाले.....मेल वगैरह देख वापस घर......तनावपूर्ण शांति......शाम तक सब ठीक....अगले दिन की तैयारी अभी से.....कल मीटिंग है कुछ देर के लिये जाना है.... जो मन में आए करो.......फोन पर पाठक जी......क्या यार....किसी के भी कंट्रोल में नहीं हो! मना किया था दस दिन बाइक मत चलाना.......

आॅफिस के खेल बदस्तूर.....सेंट्रल डेस्क इंचार्ज नीनी भी सस और धध के साथ .....हालांकि तीनों में ऑफिस के बाहर कुत्ता-बिल्ली वाले रिलेशन....नीनी ने पेज दिखाया....लीड......तेजी बच्चन का निधन.....किसी तरह दस तक गिनती गिनी....फट पड़ने से रोकने का फिल्मी फार्मूला....सस को बुलावा....सर, वो मुझे समाचार सम्पादक ही नहीं मानता..... आपके पास लेटर तो है ना....जी हां....उसे पीठ पर चिपका लीजिये.....

पता चला...मेरे पीछे लठ तक निकल आए थे....अब फैसला करने का वक्त....नईदुनिया ग्रुप के लिये ऐतिहासिक.......किसी को हटाना...वो भी समाचार सम्पादक और सिटी इंचार्ज को.....इंदौर फोन लगाया...दोनों कोर्ट चले जाएंगे.....हम ट्रांसफर करेंगे.....ठीक है.....एक सुबह विनीत जी कमरे में....हमेशा खुला रहने वाला दरवाजा बंद किया......मैं सिर्फ आपके लिये आया हूं.....जो करना है कर डालिये........दोनों को तबादलापत्र ......सोनी जी को जम कर झाड़...समाचार सम्पादक के लिये रांची से चंद्र प्रकाश श्रीवास्तव...अब उप समाचार सम्पादक को वापस बुलाना है, जो तनाव के चलते मेरठ चला गया था..

चौबीस घंटे में ही....नयी रंगत....नया माहौल.....कोई बंदिश नहीं.....बस.. अखबार ताजगी से भरपूर हो...न्यूज से कोई खिलवाड़ नहीं....सब काम समय पर ...मेट्रो डेस्क तो कमाल दिखा ही रही थी......अब धमाल भी...कार्टून को खासा महत्व .....कई महत्वपूर्ण खबरों के साथ फोटो की जगह.......इंदौर से आ गये चार कैमरे....रिपोर्टिंग कर रही वीरांगनाओं के लिये .....वैसे हर खबरची को इस्तेमाल की छूट....चारों फोटोग्राफरों का भी भरपूर योगदान....सुगम जाट का कलाकार रंग में आ गया और राजेश मालवीय का प्रोफेशनल टच....नेमा और दूसरा मेट्रो पर...

बारह फरवरी.....दिन में किसी समय दिल्ली से फोन....जितनी जल्दी हो सके आ जाओ...चंडीगढ़ प्रोजेक्ट की तैयारी जोरों पर....तुम्हारा नाम फाइनल...दिल कलाबाजी खा रहा...दिमाग ने धिक्कारा....और नईदुनिया का क्या होगा....ऐसे में चले जाओगे छोड़ कर...अहसान-फरामोश! दिल और दिमाग को साधा....नहीं जाना हिन्दुस्तान-विन्दुस्तान में......नाराज तो हुए......चलता है सब....

इस बीच ऑफिस के सामने ही चर्च कॉलोनी में नया घर...शानदार जगह.....अब बेटा साथ में इसलिये बंजारा जिंदगी खत्म....अकेले बाहर रहते पहली बार ढंग से गृहस्थी.....टीवी से लेकर तवा तक सब घर में......संगीत...योग...किताबें....अपूर्व संसार....

..जून लगते ही इंदौर.....मीटिंग से पहली रात रायपुर जीएम के साथ उज्जैन में महाकाल के दर्शन....इस नामाकूल को आस्था से जोड़ने में जी-जान से लगे हुए हैं....रात को इंदौर के होटल सया जी में डेरा.......तीन दिन की मीटिंग....लौटते में बॉस के साथ भोपाल.......साथ में एक सम्पादक और.....गाड़ी भाग रही....आगे बैठे बॉस ने पीछे मुड़ कर कहा..हर रोज आपका कोई न कोई नया रहस्य सामने आ रहा है....अमेज़िंग ...नईदुनिया में पहली बार................

बाबर..तुम्हें समरकंद नहीं जाना चाहिये था

भोपाल में तीन-चार घंटे रुक जबलपुर रवाना.....अगले सुबह ऑफिस .....अब सारे स्टाफ को उसकी मेहनत का फल देने का वक्त ......रात भर बैठ कर तैयार की अप्रेज़ल रिपोर्ट ..........एकाएक फिर वही फोन.....दिल्ली आ कर कम से कम मिल तो लो.....कुछ दिन में लखनऊ जा रहा हूं...वहीं से आऊंगा.....जल्दी प्रोग्राम बनाओ.....

चलते समय बॉस को दो लाइन...चंडीगढ़ का इनकार उनकी जानकारी में था......इस बार लखनऊ से दिल्ली भी जाऊंगा...सब बहुत याद कर रहे हैं....चिन्ता न करें...एक हफ्ते में लौट आऊंगा......लेकिन अपनी नींद..भूख-प्यास गायब....हिन्दुस्तान का शानदार पैकेज.....बड़ा नाम... अंतरंग माहौल...लेकिन उन सब भारी पड़ रहा नईदुनिया का अपन पर जबरदस्त विश्वास.....स्टाफ का लगाव.....और फिर जबलपुर.....!

लखनऊ पहुंच कर भी कोई चैन नहीं....दो दिन बाद कस्तूरबा गांधी मार्ग.....प्रमोद जी फौरन मृणाल जी के पास ले गये.....बहुत खुश.....अब मेरठ का प्रोजेक्ट आपके हवाले...पिछली बार का तो हम समझ सकते हैं....नया-नया अखबार था...अब नहीं जाने देंगे...जल्द आ जाइये...मेरठ में बहुत कुछ करना है आपको....मैं ऐसे छोड़ कर नहीं आऊंगा नईदुनिया.....जब तक सब तैयार न हो जाएं..आप अगस्त तक तो आ जाएंगे न!

लखनऊ से दिल्ली जाते समय मुरादाबाद में दो मिनट को ट्रेन रुकी..पूर्णिमा आ गयी थी स्टेशन....लखनऊ जाते समय भी रुकी...तब भी आयी वो....उन दो मिनिटों में फैसला कर लिया....मुरादाबाद के काम के लिये उसे मेरी बेहद जरूरत है.....मेरठ आना ही पड़ेगा...फैसले के बाद मन इतना भारी कि शाहजहांपुर निकलते ही बुखार आ गया.....

घर पहुंचते बुखार पूरी तरह सवार....सुबह बेहद कमजोरी...उसी में विनीत जी को सब लिख कर भेज दिया....विनय जी विदेश में थे.....अब जबलपुर के लिये.....स्टेशन पर ही विनीत जी का फोन...आपकी रजिस्ट्री मिली.....तीन बार पढ़ चुका...कुछ समझ में नहीं आ रहा..जबलपुर पहुंच रहा हूं.....रास्ते में तबियत और खराब.....राजीव उपाध्याय के साथ विक्टोरिया हॉस्पिटल.....न्यूमोनिया बताया......

फिर फोन.....राजीव जी, कुछ समझ में नहीं आ रहा.....अपना विकल्प बताएं.....मेरा कोई विकल्प नहीं....लेकिन जाना तो है ही....अभी स्टाफ में किसी को न बताएं....ठीक है...पर, आंखें-चेहरा सब उगल रहे....फिर भड़ास ने भी दे दिया...अब बताना ही होगा.....एक सुबह प्रधानसम्पादक आलोक जी का फोन....नाराज हैं क्या...मेरे ज्वायन करते ही छोड़ रहे हैं आप....क्या कहता......

जाने के दिन नजदीक आ रहे....इंदौर बिल्कुल खामोश.....स्टाफ के चेहरे पर दिन ब दिन बढ़ती मायूसी....कोई क्या पूछता.....मैं भी क्या बताता.......संदीप बहुत कम दिखता...कैबिन में भी नहीं आता ...कइयों की आंखें सूजी हुई.....इंदौर से ग्रुप एडिटर का आगमन कि सभी के सालाना इंक्रीमेंट में इतना इजाफा कैसे....स्पष्ट कह दिया...एक पैसा कम न हो....वे सबसे मिले..क्या टीम है आपकी....कह कर वापस इंदौर...

अपनी विदायी 17 जुलायी तय कर दी.....मीटिंग करना लाजिमी......लौट कर आऊंगा...कब...कह नहीं सकता.....यही बात विनीत जी को भी बता दी.. आखिरी रात 12 बजे एक होटल में सब इकट्ठा हुए.....आखिरी दिन सुबह 11 बजे से रात आठ बजे तक का समय कब बीत गया पता ही नहीं चला.....पांचों कब बाहर गयीं....कुछ लेने...एक नोटबुक भी....उसमें सभी ने कुछ कुछ लिखा..पूरा केबिन फूलों और उपहारों से भर गया...सभी के साथ कई फोटो.....दोपहर में घर.... अपने साथ ले जाने वाला सामान अलग किया...बेटे को कुछ दिन और रहना था....बाकी सामान वो ट्रक से भिजवाएगा.....कितना सामान जोड़ लिया था इस बार.......

शाम को अंतिम बार आॅफिस में.....ज्योति और शेली नहीं दिखीं....संदीप भी नहीं.....अपनी तीनों वीरांगनाओं से विदा ली...स्टेशन पर लगभग सभी.....कार्तिक नई-नवेली दुल्हन के साथ ..गाड़ी चलने को...तभी फोन.. सर. किस प्लेटफार्म पर हैं आप...तुम तीनों क्यों आ गयीं....देखा सीढ़ियां फलांदती आ रहीं..ट्रेन ने खिसकना शुरू कर दिया....बस....हवा में रहे गये हिलते हाथ......

नईदुनिया और जबलपुर को अलविदा....कैसे रहूं पाऊंगा मेरठ में...नागरथ चौक.....ऑफिस ...शहर.....घर ...बेतरह यादें......सड़क के पार गेट..अंदर.....बजरी......फिर सड़क, जो बाएं घूम कर फिर आगे से दाएं घूमती....आखिरी मकान की तीसरी मंजिल....पहला कमरा....जिसमें मंडला से मंगाए किसी जंगली लता के कुर्सी-सोफा-मेज.....उससे लगा कॉमन रूम...उसका एक दरवाजा बेटे के और दूसरा मेरे कमरे की तरफ....रात 11 बजे कई बार ऑफिस जाते समय यहां-वहां लेटे श्वानों को लखनऊ से मंगाये आटे के बिस्कुट खिलाना...फिर तीन-चार की टोली में उनका दूर तक साथ-साथ चलना......पांचों वीरांगनाएं तुमको कितना मानती हैं.....महीनों से तुम्हें खिलाने को कुछ न कुछ लातीं ....एक बजते ही कोई न कोई झांक लेता.......तुम नखरा दिखाते.. फिर सबको बुलाते....घंटी बजाते...सुदामा या प्रदीप या विकास.....प्लेट लगाओ...पानी लाओ....सबके टिफिन खुलते.....सबका कुछ न कुछ प्लेट में तुम्हारे सामने...कई बार मनोज या स्वदेश भी साथ में....कभी बाहर होते तो फोन...सर..आप कहां हैं...आपके लिये कुछ स्पेशल है आज .....हर हफ्ते चना और रामदाने के लड्डू संदीप के हवाले.....आधार ताल.....पहल....ज्ञान जी....पंकज स्वामी.....और फुरसत मिलते ही डॉ. पाठक पकड़ ले जाते मोका पिलाने कैफे कॉफी डे......और म्यूजिक इंडिया ऑनलाइन की स्वर लहरियां केबिन की दरारों से निकल पूरे हॉल में छा जातीं......याद करने को एक ही साल में इत्ता सारा ........

छह दिन बाद दिल्ली होते हुए मेरठ....रात नौ बजे ऑफिस ....फिर होटल टिम्बक टू....जहां न जाने कितनी रातें प्रोजेक्टर की रील चलती रही.......पूरी रात.......
सुबह जैसे ही चप्पलें पहनता... याद दिलाना शुरू कर देतीं जबलपुर की.......वहां पहुंचने के तीन दिन बाद ही अमित दास के साथ गया था खरीदने.......मोची से कई बार टंकवा कर अब भी चला रहा हूं.......

बाबर.... तुमने अंदीजान की छोटी रियासत छोड़ सेंट्रल एशिया की सबसे बड़ी सल्तनत समरकंद की सत्ता संभाली.....सात महीने बाद शैबानी खान की घेरेबंदी ने तुम्हें अंदीजान जाने लायक भी नहीं छोड़ा....तुम्हारा ही खासुलखास बेग उस पर कब्जा कर बैठ गया ...आखिर में समरंकद से जान बचा कर भागना पड़ा था तुम्हें भूखे पेट...फिर कहां-कहां नहीं भटके तुम...........