राजीव मित्तल
सुबह सूरज की किरणें....चाय का कप....रबर बैंड में लिपटा अखबार और...........गौरेया.....चारों की शक्ल अक्सर ही एक साथ दिखायी पड़ जाया करती थी। चारों में आपस में कैसी भी नातेदारी नहीं ....लेकिन अपने मेजबान से मुकाबिल को चारों तैयार.....चाय का कप और अखबार दरवाजे से, तो सूरज और गौरेया की पहले तो ताकाझांकी और फिर कहीं से भी छम्म से कमरे में ......उसके बाद.....चाय खत्म प्याला रीता पड़ा.....अखबार कहीं किसी और के हवाले....खिड़की बंद कर सूरज का मुंह कहीं और मोड़ देना...बची गौरेया.....उस पर किसी का कोई जोर नहीं....सब उसकी मर्जी पर...लाख रोकिये...लेकिन उसके आने या जाने के हजार रास्ते.....झुंड में है तो आंगन में ....जोड़े में है तो कमरा पहली पसंद.....उसके बाद कई बार एक बार फिर लौट कर आना...लेकिन अकेले अकेले......चेहरे पर क्या करूं...क्या करूं का उलझनी भाव....अच्छा कल देखते हैं के साथ ही एक और फुर्र....लेकिन यह मत सोचियेगा कि चली गयी.....कई बार रात को भी किसी ताख पर दिख जाती......गौरेया........20 साल पहले घर आने वाला सबसे पहला मेहमान......और अब ...........
एक रात.....फेसबुक के होम पर अचानक बेस लाइन से एक डिब्बा तेजी से ऊपर......नया चेहरा नामुदार हुआ.....एक सवाल के साथ.....पहचाना? आयं....यह कौन है भाई...और कैसी घूरती आंखों से पूछ रही है......पहचाना? अमां जा रे...अपना काम कर.....अच्छा-खासा गाना तबाह कर दिया नेकबख्त ने.....चेहरा उसी तरह तना बैठा......तुरंत छानबीन की...पता चला कि अपनी ही मूर्खता से दोस्तों की सूची में शामिल कर बैठा हूं।
चेहरा तो कोई पता नहीं बता रहा था...लेकिन आंखें कहीं देखी हैं.....उधर...चैट पर हेलो..हेलो की चूं-चीं चीं जारी......थोड़ा बताओ अपने बारे में.....नईदुनिया के आफिस में आयी थी....नौकरी के लिये?........नहीं...कुछ लिख कर लायी थी....बच्चे का जन्म होने वाला था..... उन्हीं दिनों के अनुभवों पर.....
अब.... सब याद आ गया .....
बेटा या बेटी?....बेटा....आपसे मुलाकात के दो दिन बाद...बेटी होती तो ज्यादा खुशी होती सुन कर.....तभी दिमाग बौराने लगा.......तुम उस हाल में मेरे पास अपना लिखा दिखाने आयी थीं....हां.....और आपने कितनी अभद्रता दिखायी थी.....अभद्रता मतलब! यानी दो-चार शब्द बोल कर भगा दिया ....
हां, याद आया.....उस दिन स्क्रीन पर स्तालिन को पढ़ रहा था...केबिन का दरवाजा हमेशा की तरह खुला हुआ था.....विकास ने झांका...सर..कोई मिलने आया है....आंखें लैपटाप पर जमाए ही बोला...भेजो......सर....मैं आ सकती हूं.......बैठिये.....मई की गर्मी ... पसीने में लथपथ...चेहरा लाल भभूका..... हां बताइये....मैं नौकरी के लिये नहीं आई हूं....तो!!!!!!!!
लेनिन ने कितनी कोशिश की थी कि स्तालिन को ज्यादा भाव न मिले पार्टी में....लेकिन ट्राटस्की पलायन कर गया....नहीं तो इतिहास बदल गया होता सेवियत संघ का.....
!!!!!!!! सर..मैंने कुछ लिखा है....उफ...अभी तो इसको निपटाओ......हां...क्या लिखा है....दिखाओ.....अभी तो नहीं लायी.......तो क्या मेरा चेहरा देखना था (बोला नहीं) पर..वो समझ गयी कि मैं क्या कह रहा हूं......एकाएक उठी और बोली......मैं चलती हूं.....निगाहें स्क्रीन पर पहले ही जम चुकी थीं.......कुछ देर बाद आंखें उठायीं तो कुर्सी खाली थी.......अरे....इतनी गर्मी में आयी थी....तुमने पानी को भी नहीं पूछा...चाय या पेप्सी को तो छोड़ो.....छोड़ोे यार....घूर कैसे रही थी...औरंगाबाद की नक्सली लग रही थी बिल्कुल...आंध्र की या उड़ीसा की भी हो सकती है.....यहां की तो है नहीं.....बताइये....एक सम्पादक के पास आ रही है अपना लिखा दिखाने.....वो भी साथ नहीं लायी.....
अचानक चैट पर निगाह गयी .... लाइन दर लाइन भरता जा रहा था....साथ में हेलो..हेलो.....अरे रुको थोड़ा.....वास्तव में मैंने बहुत खराब व्यवहार किया था...वैसे इस बदतमीज और अभद्र इनसान को तलाश कर उससे चैटिंग किस खुशी में....बस... आप मुझे सबसे अलग लगे....जो सम्पादक किसी युवती को बैठने को भी न कहे....पानी को भी न पूछे....उस की तरफ देखे ही नहीं....वो इनसान कितना अजीब होगा.....इसलिये जैसे ही फेसबुक पर आपको देखा.. फ्रेंड
रिक्वेस्ट भेज दी और आपने दोस्त बना भी लिया.......सोचा.... ऐसे इनसान को फिर टटोला जाए.....
दोस्तों.....आप को यकीन नहीं आएगा कि हम दो घंटे चैट पर रहे....उसी दौरान खाना खाया..चार-चार फोन किये ....पांच एडीशन भी निपटा दिये...पता नहीं किन-किन विषयों पर बात हुई......जबलपुर....नर्मदा...चेखव...चे गुएरा....देवदास...सरगुजा...वेगड़ जी...शादी-ब्याह..पिछले अनुभव....और हां बिहार भी तो...........
तुम कहां की हो?....छपरा..बिहार.....क्या कह रही हो तुम....नारायणी के उधर छपरा...इधर मुजफ्फरपुर...तुम वहां की हो? जी हां.....तो उस दिन क्यों नहीं बताया कि तुम बिहार की हो....जबरदस्ती नौकरी थमाता......और तुरंत ही मैटरनिटी लीव देता.....उस दिन तो आप पता नहीं किस दुनिया में खोए हुए थे....कितनी देर दीवारों से बात करती इसलिये चल दी....मेरे पति को जानते हैं ..नाम बताया तो.......हां.....एकाध बार की मुलाकात है..मैं नर्मदा यात्रा पर जबलपुर आ रहा हूं...तब मिलूंगा....
अगले दिन चैट पर विनय भी......आप कब आ रहे हैं...बता दें और हमारे यहां ठहरें.....दिल ने फौरन ठेका लगाया....छड्ड यार....रेस्ट हाउस में कमरा बुक है...देख लीजिये..हमें अच्छा लगेगा...24 घंटे बाद....तुम्हारे पतिदेव न्योत रहे हैं...स्टूडियो.....हां...तो यहीं क्यों नहीं ठहरते...हम सब ठीक कर देंगे....आपको कोई परेशानी नहीं होगी.....लेकिन पता नहीं दिल नहीं मान रहा था....टाला किसी तरह....कई दिन तक टालता रहा.....नये-नये बहाने बना कर....
भोपाल पहुंच कर फोन किया....्िरफर वही सवाल...क्या सोचा आपने....जबलपुर की ट्रेन में बैठ कर बताऊंगा कि कहां ठहरना है......उफ्फ.....फिर वही भावबाजी.....जहां मन हो ठहरें.....जबलपुर चल दिया....पिपरिया निकला तो रवींद्र का फोन आया कि स्टेशन पर हूं....वहां से सीधे रेस्ट हाउस......अब तो पक्का करना ही पड़ेगा......रात 11 बजे तय करेगा बे लल्लू ......अभी बता....तभी कुरैशी जी का फोन आया...हम स्टेशन पर हैं.....फिर वो ही आवाज .....कहां हैं आप... स्टेशन पर मिलेंगे....कुछ तय किया कि नहीं.....मैं स्टूडियो आ रहा हूं......यह हुई न बात.....स्टेशन पर एक होटल की कार भी खड़ी थी....लेकिन अब नहीं डोलेगा मन.....उतरते ही विनय को पकड़ चुपचाप निकल लिया..... 11.30 बज चुके थे....स्टूडियो पहुंचे....तो गौरेया इतनी रात को भी तरोताजा..दिलोजान से स्वागत..चूजा नींद में मस्त..(जो पहली बार की मुलाकात में भी मां के ही संग था) .....
तो यह है वो, जिसे नईदुनिया में पानी भी नहीं पिलाया था.....खाना खाया....फिर सारा इन्तजाम कर दोनों अपने डेरे चले गये....और सुबह आते ही गौरेया सारथि बनी... मेरे सब ठिकानों पर यहां-वहां लिये घूमती..... अगले सात-आठ दिन ऐसा ही चला सब कुछ...हर समय मेरी फिक्र...अभिभूत कर देने वाला सब...विदायी तो और भी..
आगरा आ गया....फिर वो दोनों दिल्ली आए... बेटे के साथ.......दिल्ली आए तो आगरा तो जरूरी था ही.....आगरा में डेढ़ दिन का मुकाम..खूब घूमे....मस्ती की......
आखिरी घंटों में सब उलट-पुलट गया...ऐसे मौकों पर अपने में गुम हो जाने की पुरानी आदत......सब परेशान.....ट्रेन की बोगी से मैसेज आया....आप एक बार फिर नईदुनिया के सम्पादक बन गये..नहीं तलाशती तो अच्छा था......
सच फरमाया गौरेया......कभी अपनी कैमेस्ट्री से खिलवाड़ नहीं करना चाहिये....लेकिन मैं कर बैठा.....तो न मैं नईदुनिया का सम्पादक रह पाया, जिसने भरी धूप में आयी युवती को पानी के लिये भी नहीं पूछ कर एक यादगार काम किया था....और न तुम गौरेया.....जो चहकती आयी थी उस अजीब इनसान को तलाशने.....बचाओ अपने को गौरेया.......अब तो हवाएं भी तेजाबी हैं......
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