बुधवार, 20 अप्रैल 2011

दुमकटे ने कटाया जबलपुर का टिकट

राजीव मित्तल

वही कुर्सी-मेज...वही दफ्तर....वही एन-एच 28 .....वही पेड़.....मौसम की वही रंगत...वही कमरा.....वही संगीत......वही कम्प्यूटर पर टिकटिक.....पर.. खालीपन है कि आता ही जा रहा था....कुछ छोड़ कर जा चुके थे.....तो कई जाने की तैयारी कर रहे थे.....मुजफ्फरपुर की कशिश छूट रही थी..2007 का वर्ल्डकप बोदा जा रहा था.... उस उदास रात 12 बजे मोबाइल टुनटुनाया.....शिफ्ट करना चाहते हो......हां..प्रदीप जी.....जबलपुर से नईदुनिया निकलने जा रहा है.......तुम अपना प्रोफाइल वहां भेज दो......और इस नम्बर पर बात कर लो........विश्व कप खात्मे पर था....तब तक दो लोग और चिटक लिये......

काफी दिनों से छुट्टी नहीं ली थी......तो चल पड़ा लखनऊ की ओर.......7-8 दिन डट कर आराम.... वापसी की तैयारी......ट्रेन रात की.....दिन में अमीनाबाद.....लौटने पर पता चला कि इंदौर से फोन था.....कुछ देर बाद फिर आया....आप कहां हैं.....लखनऊ में...रात को ट्रेन है मुजफ्फरपुर की.....मैं विनीत सेठिया बोल रहा हूं.....आप हर हाल में दो दिन के अंदर इंदौर पहुंच जाएं........

अगली रात भोपाल रवाना....फिर टैक्सी से इन्दौर....शाम को इंटरव्यू.....लेकिन ट्रेन लेट होने के कारण एक की बजाये चार बजे इंदौर की सूरत दिखी..... सब कुछ पहली बार....इंदौर भी....भोपाल भी.....और नईदुनिया भी......चिलचिलाती धूप ने छक्के छुड़ा दिये...फोन किया....आप श्रीमाया होटल पहुंचें..कमरा बुक है.....तैयार हों....गाड़ी भेजता हूं.....

जब हो गये तैयार तो फोन आया.....रात को बातचीत हो तो चलेगा!....रात को दो बजे भी हो तो कोई बात नहीं.....फिर फोन....कल दिन में रख लें तो.....कल शाम की ट्रेन है.....और आज की शाम कैसे काटूं......उसकी आप चिंता न करें.....हम भेज रहे हैं आपके पास.....उनके साथ इंदौर घूमिये....जितना घूम सकता था घूमा...सुबह गाड़ी आ गयी....

नईदुनिया......ऊपर चैम्बर का दरवाजा खोला तो सामने 30-32 साल का युवक...हंसमुख चेहरा....आइये....मैं विनीत....नीचे ही पता चल गया था कि सेठिया जी मालिकों में एक हैं.....जिन्हें दो दिन से मैनेजर समझ ट्रीट कर रहा था.....जिस नई दुनिया के बारे में बरसों से सुनता आ रहा था.....आज सामने थी...उनसे बातचीत चल ही रही थी कि विनय छजलानी भी आ गये....सीनियर पार्टनर......बेहद खुशनुमा माहौल में इस सम्भावित एÞिडटर की परख होती रही......जिसको मुजफ्फरपुर ने पूरी दुनिया से मुकाबला करने लायक बना दिया था.......ठीक है..... आप हमारी पहली पसंद हैं...आपको भोपाल भी निकलना है....जल्द ही आपको बताते हैं.......टैक्सी से फिर भोपाल...

स्टेशन पर ही मित्र की कार आ गयी...74 बंगले के उस फ्लैट में गुजारने को मात्र एक घंटा....पंकज जी ने जितने गानों की सीडी बना सकते थे...बना दी....वंदना ने रास्ते के लिये खाना पैक कर दिया.....अब प्रोग्राम बना स्टेशन जाने तक आधा शहर घुमा देने का.......सुबह फिर लखनऊ में......तुरंत मुजफ्फरपुर पहुंचना था......सारी जोर-आजमायश के बाद भी स्टेशन पर रात काली कर घर लौटना पड़ा....गोरखपुर से सुबह सप्तक्रांति में रिजर्वेशन.....रात को कोमल ने गोरखपुर स्टेशन स्टेशन पर कमरा बुका दिया....वहीं महफिल जमी....

मुजफ्फरपुर पहुंचते ही मीठा-मीठा अवसाद....हल्का सुरूर.....और ढेर सारी खुशी......हर नई नौकरी में जाने से पहले का आभास....ताजा ताजा गर्भधारिणी का सा अहसास........दिन तेजी से गुजर रहे.....इंदौर से कोई खबर नहीं........इस बीच पहल 86 आ गयी...उसमें सन् 1857 ....और नर्मदा पर अमृतलाल वेगड़ जी का लेख .....अपना लेख भूल नर्मदा में डूब गया.....सोते-जागते बस नर्मदा ही नर्मदा........पर इंदौर खामोश......जून आ गया.....आधे में पहुंचने को.....

एक सुबह उठते ही ब्रह्मपुरा की मंडी से कई किलो अमिया ला कर अमरस बना रहा था और गुठलियां दूर से ताक ताक कर कूड़ेदान की तरफ उछाल रहा था.....एकाएक प्लास्टिक के उस डिब्बे में खड़खड़ शुरू......एक और गुठली उछलती उसमें गिरी तो फिर खड़खड़.......झांक कर देखा तो यहां-वहां दौड़ लगा रहा छिपकली का बच्चा....दुम कटी होने से चढ़ नहीं पा रहा था.......डब्बे को लिटाया तो फौरन बाहर आ गया.....कुछ पल रुक कर सांस लेता रहा....फिर रेंगना शुरू.....फिर रुका.....घूम कर मेरी तरफ देखा.......थैंक यू.......और फिर सरपट दौड़ लगा दी......पांच मिनट बाद ही इंदौर से विनीत जी का फोन था.....

बधाई हो.....आप कब ज्वायन कर रहे हैं हमें........15 दिन का समय चाहिये....ठीक है... लेटर आपकी आई डी पर डाल दिया है....सैलरी देख लें.....दफ्तर पहुंच कम्प्यूटर पर लेटर वगैरह देखा......उसी रात फोन कर सैलरी बढ़वा ली....दसरे दिन नया लेटर आ गया......अब छोड़ने की तैयारी......सम्पादक जी को इस्तीफा.....15 दिन का समय.....फिर दिल्ली...लखनऊ...पटना.....सबको बता देने का पहला चरण पूरा......सम्पादकीय साथी हक्का-बक्का....अगले 15 दिन लड़की की विदायी जैसे कटे.....अब स्कूटर पर शहर की हर सड़क नाप रहा....जहां-जहां पांच साल में गया था.....उस जगह को एक बार छूकर जरूर आता...राह चलता हर इनसान अपना लग रहा.......हर पेड़...फूल....पत्ती अपनी तरफ खींच रहे.....पहले लखनऊ जाना था......वहां से जबलपुर......पूर्णिमा मित्तल के चलते सामान में काफी बढ़ोतरी हो गयी थी.......बांटना शुरू किया......लखनऊ में जब डांट पड़ने लगी तो ख्याल आया कि कई जरूरी चीजें भी बांट दीं......उनमें नयी नवेली सफेद रेशमी साड़ी......इन्वर्टर....गर्म कपड़े......पंखे....बर्तन......और पता नहीं क्या-क्या......सबको यह राहत जरूर थी कि स्कूटर बच गया.......

और एक जुलाई को हल्के बरसते पानी में ट्रेन की बर्थ पर.....सारा कम्पार्टमेंट मुजफ्फरपुरी साथियों से भरा था....अंदर-बाहर पानी की बूंदें.......रास्ते में मोतिहारी....नरकटियागंज......बेतिया...बगहा...हर स्टेशन पर मिलने आते रहे.....और गोरखपुर में सामने वही कोमल...लखनऊ दो दिन रुक कर चित्रकूट से जबलपुर......ट्रेन चली तो भोपाल से एसएमएस----यायावर...अब कहां...................

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