रविवार, 24 अप्रैल 2011
अखबार शुरू...साजिशें शुरू
बीस साल पुरानी दोस्ती पर चला कुल्हाड़ा
राजीव मित्तल
अखबार निकलते ही अपना हाल मदारी जैसा......हर समय...डुग...डुग....डुग....डुग.. ......पांच दिन बाद अपनी ही डुगडुगी पिट गयी......एक रात नर्मदा जैक्सन में खाना खाया जा रहा था.....फोन बोल उठा.......सर जी....आप इनसान तो भले हैं......पर सम्पादक दो कौड़ी के...पता नहीं और क्या-क्या..फोन पर ही दारू के भभके....भले आदमी की आवाज़ पहचान ली......सर जी, ज्यादा दिन टिक नहीं पाओगे जबलपुर में......शाम को किसी बात पर ऊंचा बोल दिया था जनाब को......
भाई ने इंदौर भी कई जगह फोन कर दिये.....दूसरे दिन विनीत जी ने तुरंत बाहर करने को कहा......कैबिन में बुलाया......रुआंसा चेहरा....आँखें झुकी हुईं ....शरीफ था....इस्तीफा देकर चला गया.....सारा खेल पता चला.....सिटी इंचार्ज ने पिला कर चढ़ा दिया था....विनीत जी को बोला.....मुझे इसकी जरूरत है...भले ही इसने मुझे क्या क्या बका.......आखिर वो मान गये और तीन दिन बाद रखने को बोला.....तो इस तरह खेला शुरू हो चुका था......किसी बाहर वाले को.... ऐसे सम्पादक को, जो किसी की न सुने......पानी को भी न पूछे...तुरंत शहर से विदा किया जाए......जबलपुर के कुछ और पत्रकार भी शामिल......लॉंचिंग वाली रात तीन बजे टीम में न रखे गये एक सज्जन का फोन था.....निकाल लिया अखबार......कहीं नहीं दिख रहा.....ऐसे ही निकालते रहना.......
कुछ ही दिन के अंदर सिटी इंचार्ज-समाचार सम्पादक (सस) की जोड़ी सम्पादकीय विभाग का वो भैंसा बन चुकी थी.......जिनके दूध में खीर सोनी जी के यहां पक रही थी। कारण..........सिटी चीफ को वो खबरें लगाने पर सख्त पाबंदी, जो सिर्फ उन्हें फायदा पहुंचा रहीं....और सस से यह कि..........आप अखबार के लिये रखे गये हैं न कि सम्पादक के लिये घर से खाना लाने या उसे घर से लाने और छोड़ने के लिये.......... अब दोनों खर-दूषण वाले रोल में..सोनी जी के मुंह से हरदम गिली..गिली..गिली की ध्वनि....सम्पादक तनावग्रस्त....पर... बाकी स्टाफ मुग्ध हुआ पड़ा उसकी बेपरवाह स्टाइल पर...इंदौर का पहला या फीचर पेज आते ही कचरे में डालने का आदेश.....अपना बनाओ....चाहे जैसा हो.....
मौसम बदलते ही सांसों की रफ्तार ऊलजलूल...अस्पताल के चक्कर ..दीवाली पर लखनऊ.....लौट कर चार महीने से बेवजह किराया खा रहे ग्वारीघाट वाले बंगलेनुमा मकान में प्रवेश......जिसमें एक हादसे के बाद कुछ दिन से चार सम्पादकीय साथी पनाह लिये हुए थे...एक कमरे में अपना डेरा.....हॉल इतना बड़ा कि रात को डेढ़ बजे काम खत्म कर हम पांचों तीन बजे तक क्रिकेट खेलते...एक शौक और पाल लिया.....घर से नागरथ चौक साढ़े चार किलोमीटर पैदल.....कैबिन में रोजाना मंत्री-सांसद-नेता-अफसर की चौगड्डी का एक न एक पत्ता मौजूद....इंदौर का विनम्र आग्रह.....प्लीज.. सबसे बना कर चलिये.....
दिसम्बर शुरू ....इंदौर में बैठक...ऐसा-वैसा- कैसा भी कोई लोहा पल्ले में नहीं.....फिर भी मनवा रहा.....इंदौर में ही अपनी अतड़ियां इतनी नीचे खिसक आयीं कि ऊपर जाने का नाम न लें.... फिर जबलपुर... दिन तो किसी तरह कट जाए .....रात को अतड़ियों की अठखेलियां शुरू......दस दिन झेला.....रात की नींद ऑफिस में......कई अस्त्रधारकों को दिखाया...सब तुरंत चीर-फाड़ को तैयार....होम्योपैथ कहे....मैं किस दिन काम आऊंगा......लेकिन किसी रात काम नहीं आया ससुरा...
एक गोधूलि वेला को सस और कार्टूनिस्ट टांग कर ले गये डॅक्टर डीयू पाठक के यहां.....भाई कुछ इस अंदाज में मुस्कुरा कर गले मिले...जैसे....बरसों का दोस्ताना .....जांच-पड़ताल की....कब आंख लड़ी थी हार्निया से....चंड़ीगढ़ 1987.....इस बीस साल पुराने दोस्त से छुटकारा पाने का वक्त आ गया है....नहीं तो.... दोनों साथ ही जाओगे...... ऑपरेशन .....अपने सारे स्वर्गवासी याद आ गये ...हां...अभी...इसी वक्त....जबलपुर हॉस्पिटल फोन कर रहा हूं.......आप भर्ती हो जाइये...सुबह चलाता हूं छुरी.....जबलपुर में कोई रिश्तेदार!..साइन करने होंगे न......न हो तो चला लेंगे काम....सस मिनमिनाया...भाभी जी को तो आने दें लखनऊ से ...एक दिन बाद कर दीजियेगा...ठीक है बुला लीजिये...वैसे कोई नहीं होगा तो सारा जबलपुर तो है ही......चलते समय अपनी लिखी किताब दी-यह कैसी विदाई-भ्रूण हत्या पर.....
सारे टेस्ट के बाद कमरे में.....एक घंटा बतिया कर सस और काटूर्निस्ट विदा......अनिल को छोड़ गये...हार्निया को अपने कटने का पता चला तो शुरू कर दिया कहर ढाना.....सब सोये पड़े...किसको जगाऊं...किताब हाथ में ली......लाजवाब......डेढ़ घंटे में हाहाकार मचाते खत्म कर दी......अभी बस दो ही बजे हैं...जोर-जोर से कराहने लगा..अनिल उठा....नर्स को बुलाऊं सर....सो जाओ....... अतड़ियों को ऊपर करने का प्रयास....पर...जैसे आमरण अनशन पर बैठी हों....हाय हाय करते छह बज गये... पाठक जी को फोन लगाया...जल्दी आइये ....मर जाऊंगा....डांट शुरू...रात को ही क्यों नहीं जगाया.....ओटी को बोलता हूं..कल तक नहीं रुकना....बहुत खराब स्थिति है....आठ बजे नर्स ने हरा लबादा चढ़ा दिया......स्ट्रेचर पर लद ....कर चले हम फिदा.......नींद के मारे बुरा हाल.....नीचे दिख गये डॉक्टर......उलाहना...क्यों झेला इतना दर्द......आइये....लेटिये.....चारों तरफ घेरे कई सारे भूत-प्रेत....मुंह पर पट्टी बांधे......या मेरे मौला.....तभी घुसी घप से सुईं........एक मिनट बाद सब दर्द गायब....आँखों की नींद सारे वजूद पर छा गयी....दस दिन की नींद पूरी करो बस......नश्तरों का ठंडा...ठंडा अहसास....आरी भी चल रही...तलवार भी...फिर ठोकापीटी....कुछ फुसफुसहाटें......कितना समय निकल गया....कुछ पता नहीं चला...
उठ जाइये...बहुत सो लिये.....देखिये मेज पर रखा है अपका हार्निया...गैंगरीन हो चला था.....बगैर अतड़ियों के काम चलाना पड़ता........एक प्लेट में हरा-लाल-नीला.....फिर स्ट्रेचर पर डाल बाहर....भीड़ खड़ी थी.....जाने-पहचाने चेहरे.....फिर नींद का झोंका....कमरे में बिस्तर पर........उस दिन जैसी सकून की नींद.....वल्लाह .....दवाई का असर खत्म होते ही दर्द की लहर...डॉक्टर ने ड्रिप में ही कई इन्जेक्शन ठूंस दिये......पिछली रात घर फोन कर ही दिया था....पूर्णिमा अगली सुबह पधार रही थी छोटे बेटे के साथ.....भोर में उठ तरोताजा हो लिया.......तुमको हमारा इंतजार करना चाहिये था न....ऑपरेशन करा लिया!!!!!!!!!.....हार्निया नहीं माना.... क्या करता....मंदिर चलो अनिल....वहां क्यों...ऑपरेशन डॉ.पाठक ने किया है या तुम्हारे देवी-देवताओं ने....चोप्प....चुपचाप पड़े रहो..प्रसाद खाना पड़ेगा...दिन के ग्यारह बजते
सा रे के सा रे ग म को ले क र गा ते च ले..वाला हाल.....जमघट ....कमरा फूलों से भर गया....(मरने के बाद चौथाई भी नसीब नहीं होंगे)......शाम को डॉक्टर पाठक से सामना.......आप दिन भर कहां रहे......क्या बताऊं....जितनी बार आया....मैडम ने ऐसे घूरा...जैसे मैंने हार्निया निकाल कर कोई अपराध किया हो......फिर मीठी हंसी.....दो दिन बाद घर जाइये...बहुत डिस्टर्ब हो रहा है अस्पताल का स्टाफ...दो दिन हॉस्पिटल से ही अखबार चलाया ..घर आ गया 20 साल पुराने दोस्त को खो कर.......तभी जबरदस्त हलचल....मंत्री महोदय पधार रहे हैं.....बब्बू......बिठाने को कुर्सी नहीं......शर्मदार थे.......चटाई पर भी नहीं बैठे...खड़े-खड़े दो-चार साधु वचन..................
बोले तो उस घर में रहने वाला कौन................................