शनिवार, 13 नवंबर 2010

सन् 39 की बंदूक में 1857 के कारतूस

राजीव mittal
बिहार पुलिस इस बार के चुनावों को लेकर बेहद उत्साहित है। कुछ नये हथियार विभाग के खजाना ए असलाह में ऐसे आए हैं, जिन्हें चलाने के लिये विशेष ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है। थोड़ी देर में उन हथियारों का प्रशिक्षण शुरू होगा। मुख्यअतिथि की कुर्सी पर गुलाबजल छिड़क दिया गया है। मेज पर गुलदाउदी के फूल एक कुल्हड़ में सजे हैं। सारे जवान जैसे-तैसे वर्दी के अंदर ठुंसे सावधान की मुद्रा में खड़े हैं। कुछेक की बनियान फटी लीची के गूदे की तरह बाहर झांक रही है। पैरों में हर प्राचीन-आधुनिक मॉडल के चप्पल, जूते और सेंडिल हैं। मुख्य अतिथि के आते ही बैंड बजने लगा। भाषण भी हुए और रिवाज के अनुसार मुख्य अतिथि ने सबसे आखिर में अच्छी-अच्छी बातें कीं। अब उन हथियारों पर एक निगाह डालने के लिये कुर्सी वाले उठ खड़े हुए और जो खड़े थे वे और तन गए।
मुख्य अतिथि ने एक बंदूकनुमा हथियार हाथ में उठाया और उसे अपने कंधों पर ले जाते हुए अगल-बगल खड़े अफसरों की तरफ मुस्कुराते हुए कहा-वंडरफुल! ऐसी कितनी बंदूकें मिली हैं? सर, साढ़े नौ हजार लम्बी नाल वाली और सवा 11 हजार छोटी नाल की। ये सब तब की हैं जब नाजी जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया था। उसी दौरान हिटलर के एक साथी ने, जो बाद में तस्कर बन गया, काफी माल भारत भिजवाया था। साठ साल पहले जिस जहाज से यह असलाह आया था, उसे पिछले ही महीने विशाखापट्नम में कबाड़ियों को बेच दिया गया, जिन्हें जहाज के तहखाने से यह माल मिला। जैसे ही इस बारे में पता चला, हमारी सरकार ने बगैर निविदा के ही उन कबाड़ियों से सस्ते में ये सब खरीद लिया। सर, यह बड़े फख्र की बात है कि अब हमारे किसी जवान के हाथ में लाठी या डंडा नहीं रहेगा। इन बंदूकों की खासियत है कि हर गोली दागने के बाद इनकी नाल को पांच मिनट के लिये पानी में डुबोना पड़ता है। बीस हजार फुट की ऊंचाई पर उसकी भी जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन सर, कारतूसों की एक सच्चाई के बारे में आपको बताना अपना फर्ज समझता हूं। हमारे जाबांज सिपाही शायद उन्हें छूने में भी नाक-भौं सिकोड़ें। मुख्य अतिथि के चेहरे पर प्रश्नवाचक चिन्ह तैरने लगा।
सर, इम्फाल के एक कबाड़ी ने जो पांच लाख कारतूस हमें बेचे, पता चला है कि ये वही कारतूस हैं, जिनकी वजह से 1857 में अंग्रेजों के शब्दों में गदर और वीर सावरकर जी के शब्दों में पहला स्वतंμाता संग्राम हुआ था। मुख्य अतिथि ने फौरन कहा-ओह, हाऊ सैड, यह बंदूक पकड़ो, मैं इस बारे में इंक्वायरी बिठाता हूं। काक भुशुण्डि की आंख में सुरमा डाल रहे गरुड ने पूछा- महाशय जी, एके 47 नजर नहीं आ रही किसी के हाथ में? मूरख, लाठी-डंडे वाले हाथों में एके 47 एकदम से नहीं पकड़ायी जाती और जिनके हाथों में वो है वे उन्हें कंधे पर टांगे उनकी कार का दरवाजा, बंगले का फाटक और बोतल का ढक्कन खोल रहे हैं।

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