शनिवार, 13 नवंबर 2010

बस,जनता इसी तरह अंगूठा छाप बनी रहे

राजीव मित्तल
चुनाव ही नहीं, कनाडा में एक राज्य के विधायक भी बिहार का हाल देख खून के आंसू रो रहे हैं। यहां के कई नामी-गरामी नेता, जो सामाजिक न्याय के छापे वाला घुटन्ना पहन सुर्खरू बने घूम रहे हैं उनको जाकर विधु शेखर झा से अपनी बिहारी दबंगई दिखाते हुए पूछना चाहिये-हां जी, क्या होता है सामाजिक न्याय, जरा बताइये तो! सुना है आप और ही कोई परिभाषा निकाल दिये हैं। देखिये, कनाडा में क्या पूरे विश्व में सामाजिक न्याय का मतलब सबके लिये शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार होता हो, लेकिन हमारे बिहार में सामाजिक न्याय का मतलब है सामाजिक न्याय, बस। यह हमें बहुत तलाश करने के बाद मिला है। आप इसका चेहरा बदलने वाले कौन होते हैं? स्कूलों का छत नहीं है तो पढ़ाई नहीं होती, पढ़ाने को टीचर नहीं है तो पढ़ने के लिये उसका होना जरूरी है क्या, विद्यार्थियों के बैठने को टाट नहीं है तो धरती मां किस लिये है।
किसी नेता के बिटवा के तिलक की वजह से स्कूल बंद कर दिया गया है तो सामाजिक कार्य बंद हो जाएं? गांव के स्वास्थ्य केंद्र में डाक्टर होकर भी क्या कर लेगा बगैर दवाइयों के। और अगर दवाइयां अलमारी में भरी हैं तो वे क्या कर लेंगी बगैर डाक्टर के। जहां तक रोजगार का सवाल है तो हमारे युवक-युवतियों के लिये पूरा देश पड़ा है रोजगार के लिये। उसके लिये बिहार ही क्यों? कई तो आपकी तरह कनाडा में ही रह कर खा कमा रहे हैं। बस हो गया न सामाजिक न्याय। देखो झा जी, ये चल रहे हैं हमारे पब्लिक में भाषण देने के दिन, हमें अच्छी तरह मालूम है कि सामाजिक न्याय क्या होता है। अब हमारे खेल में व्यवधान मत डालो। जिसके लिये आप अभियान छेड़े हुए हो, उसको बोलते बोलते तो हमारा गला ही दुख गया है। गनीमत है कि हर साल इतना नहीं बोलना पड़ता।
देखिये सत्ता में आ गये तो हम आपको अपना मीडिया सलाहकार बना लेंगे, लेकिन अभी आप चुप लगा जाओ। अरे, अभी तक आपका अपहरण भी नहीं हुआ! यह क्या हो गया है बिहार को? हमें दुख है कि आप इस मौके पर आए कि हम बिजी होने की वजह से आपको अगवा भी नहीं करा सके। खैर, कोई बात नहीं, आगे ऐसे कई मौके आएंगे। बस, आप आते रहना। काक भुशुण्डि ने चने के दाने निगल रहे गरुड से कहा-सुभाष चंद्र बोस ने आजादी मिलने से कुछ साल पहले कहा था कि जवाहर बहुत लोकतंμा-लोकतंμा कर रहे हैं, लेकिन जिस देश की जनता सदियों से जहालत में जी रही है, वहां यह लोकतंμा, यह बालिग मताधिकार मजाक बन कर रह जाएगा। पहले कम से कम दस साल जनता को शिक्षित किया जाये, उसके बाद ये अपने मन से अपनी सरकार चुनने काबिल होंगे। बगैर शिक्षा के तो सबकुछ अंधकारमय है। तभी कहीं से एक नेता की आवाज गूंजी, अरे, यही है सामाजिक न्याय का दुश्मन।

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