शनिवार, 13 नवंबर 2010

अबे पढ़ेगा! देखता नहीं चुनाव सिर पर हैं

राजीव मित्तल
वो आ गये हैं, तुम्हारी क्लासों में खटिया डाल रास्ते की थकान उतार रहे हैं। तुम्हारे ब्लैकबोर्ड पर उस चुनाव बूथ का नक्शा बनाया गया है, जहां वोट पड़ने हैं। जाओ, घर वापस जाओ। एक महीने बाद शक्ल दिखाना। मास्टर जी, स्कूल क्यों बंद हो गया, हमारी पढ़ाई कैसे होगी? हम इम्तिहान में क्या करेंगे? तुम्हें पता नहीं कि कुछ दिन बाद चुनाव हैं! तुम्हारी कक्षाओं में उनके ठहरने का इंतजाम किया गया है। मास्टर जी, वो तो सब वर्दी वाले हैं। उनके हाथ में रायफलें हैं। उनकी बड़ी-बड़ी मूछें हैं, उन्होंने तो गेट पर हमको रोका भी। हां, ये सब अब तक सीमा की रखवाली कर रहे थे। लेकिन मास्टर जी, हमारे चुनाव में इनकी क्या जरूरत? हमारे यहां भी तो इत्ती सारी पुलिस है।
ओफ्फ ओ, कान मत खाओ, यहां की पुलिस उन सबके आगे रिरियाती है, जो अब इनको देख कर कांखेंगे। परीक्षा के लिये क्या तैयारी करें मास्टर जी? वो सब चुनाव के बाद। ट्यूशन पढ़ने घर आ जाया करना। मास्टर जी क्या चुनाव इतने जरूरी हैं कि स्कूल बंद कर दिये जाएं? फालतू बात नहीं। अब जाओ, हमें अपने केंडीडेट के साथ उसका नामांकन करवाने जाना है। उनके सरकारी अंगरक्षक तो वापस हो गये, अब हमीं तो बचे हैं। एक ने एक आंख थोड़ी छोटी कर पूछा-मास्टर जी, इस बार नकल तो होगी न! या इम्तिहान दिये बगैर सब पास हो जाएंगे? अबे, भागता है कि नहीं या दूं एक झापड़? ये तो थी उनकी पढ़ाई की बात जो फिलहाल अभी नौनिहाली के दायरे से बाहर नहीं आए हैं, और जो देश का भविष्य बन मैदान में उतरने वाले हैं उनके टीचरों को यह चुनाव दो-दो हाथ करने का अति शानदार मौका लग रहा है।
तभी तो सबने पहली पंक्ति भूल दूसरी को ‘देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है’ गुनगुनाते हुए नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे कांव-कांव करने का फैसला किया है। काक भुशुण्डि ने गरुड के थोबड़े को हिलाते हुए कहा-अब तू इनसे यह मत पूछ लेना कि सर, इत्ते लाखों लड़के-लड़कियों की पढ़ाई का क्या होगा। उन बेचारों की तो वैसे ही बिहार के बाहर पांव धरते ही परेशानी बढ़ जाती है। सब पूछते हैं कहां से...अच्छा बिहार से....वहां एक्जाम होते हैं क्या...नालंदा के बारे में क्या जानते हो...पप्पू यादव को कौन सी जेल में भेजा जाएगा....अच्छा हम इमला बोलते हैं, जरा लिख कर दिखाओ....रंजीत डॅान के क्या हाल हैं, उनसे मास्टर्स ऑफ यूनिवर्सल लिटरेचर की डिग्री ली कि नहीं, बहुत अच्छी बनाते हैं...गया का तिलकुट और उनकी डिग्री के स्वाद के क्या कहने...आजकल राज्यसभा में हैं या यूनेस्को में...बिपापा, बिजपापा और जीपापा में क्या फर्क है? अबे, सो गया क्या-काक महाशय चिंघाड़े।

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