राजीव मित्तल
काक भुशुण्डि पूरे जोश में थे। मूंगफली टूंग रहे गरुड से पूछ बैठे-अच्छा बता, आज के दिन की खास बात क्या है? एमू ने अंडा दिया, गरुड का जवाब रसगुल्ले की माफिक प्लेट में धरा था। अबे, कौन है यह नामाकूल? महाशय जी, यह हमारी-आपकी तरह एक प्रकार की चिड़िया है। जल्द ही पांच और जनेगी। तो इसमें इतना खुश होने की क्या बात है? इसलिये जी कि एक बड़ा सा अंडा मादा देती है और सेता नर है। अच्छा छोड़, और क्या खबर है? महाशय जी, आज बापू की पुण्यतिथि है। अच्छा-अच्छा साल का वो एक और दिन जब गांधी जी की चौक-चौराहों पर लगी हर मूर्ति पर से धूल-धक्कड़ झाड़ी जाती है, चश्मे और नाक पर पड़ी चिड़ियों की बीट साफ की जाती है, अगरबत्ती जला कर कोई माला-वाला भी पहनायी जाती है! बहुत याद आते हैं उन सबको गांधी जी।
उन सबके लिये तो एक या दो दिन ही ऐसे होते हैं जिसमें सब बढ़ चढ़ कर गांधी को याद करने का ऐलान करते हैं। जैसे हर दीवाली पर घर की साफ-सफाई होती है, मकड़े के जाले झाड़े जाते हैं, गांधी को याद करना कुछ वैसा नहीं लगता है गरुड? अच्छा, और क्या खबर है? महाशय जी, मुर्गियां भी अंडे दे रही हैं। यह कोई खबर है बेवकूफ! अभी-अभी तेरी उस ऐमू ने अंडा दिया तो है, अब ये क्यों दे रही हैं? नहीं जी, वो तो चिड़ियाघर में ऐसे ही दे दिया था, ये मुर्गियां विधानसभा का टिकट पाने के लिये अंडे दे रही हैं। लेकिन इन अंडों का होगा क्या, कंडों में भून कर खाये जाए जाते हैं क्या? आप भी महाशय जी कैसी बात करते हैं, समझते क्यों नहीं। ये वो वाले नहीं, बड़े काम के अंडे हैं। क्या इन्हें दूसरी पार्टी वाले की सभा में फेंका जाएगा? नहीं जी, इन्हें सिरके से भरे घड़े में रखा जाएगा। अरे, चाहे स्विस बैंकों के लॉकर में रखा जाए, पर अंडे देने से मुर्गी को टिकट कैसे मिल जाएगा? महाशय जी, जैसे ये अंडे वो वाले अंडे नहीं हैं वैसे ही ये मुर्गियां भी वो वाली मुर्गियां नहीं हैं। निगोड़े, तेरे इस अंडे और मुर्गियों ने तो मेरा हाजमा ही बिगाड़ दिया, कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या कह रहा है?
अच्छा, अब में अपनी कोड भाषा में बताता हूं-मुर्गी अपनी जान से गयी और मियां जी खड़े मुंह बिचकाते रहे। हां, अब समझ में आयी तेरी बात। कितना-कितना देना पड़ा तेरी उन मुर्गियों को? यही महाशय जी, चार आने, दस आने, आठ आने, सवा रुपया, डेढ़ रुपया और कहीं-कहीं ढाई-तीन भी चला। इडियट, मंदिर में भगवान जी को रिश्वत खिलाने की राशि बतला रहा है तू तो! आजकल ये आने-वाने तो भिखारी भी नहीं लेते। महाशय जी, अगर इन अठन्नी-चवन्नी को एकाध करोड़ से गुणा कर दें तो कैसा रहे। यह सुन काक जी गुनगुनाने लगे-वैष्णव जन...।
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