शनिवार, 13 नवंबर 2010

विधायकी का बायोडाटा

राजीव मित्तल
निवर्तमान विधायक जी, आप जरा ये बताएंगे कि 45 बनाम 5 से आपका क्या मतलब है? पहले तो मुझे आपके इस निवर्तमान शब्द पर घोर आपत्ति है, विधायक वो प्रजाति है जिसके अंदर जलकुम्भि के काफी सारे गुण समाहित हैं, उखाड़ते जाओ-उखाड़ते जाओ पर उसका एक पत्ता पानी पर झूमता रहेगा। हम भगवान न करे चुनाव हार भी जाएं तो भी अपने लोग हमें विधायक जी ही कहेंगे। इस बार आपके पार्टी टिकट पर शनि की कुदृष्टि है, आपको कैसा लग रहा है? देखिये, विन्ध्याचल के एक बहुत बड़े साधु ने हमें देखते ही कहा था-बच्चा, तुम साक्षात शनि हो, इसलिये हर शनिवार को मुहल्ले वालों से कुछ तेल अपने ऊपर गिरवा लिया करो, तो शनि की कुदृष्टि का हमारे लिये कोई मतलब नहीं। आपने पिछली बार ‘हजार में तीन सौ चव्वालीस कम’ टाइटिल से एक डाक्युमेंट्री बनवायी थी, उसके पीछे किसकी प्रेरणा थी? उस काम में गोविंद निहिलानी की ‘हजार चौरासी की मां’ का बहुत बड़ा हाथ था। वह फिल्म मैंने रात को 12 से 3 के स्पेशल शो में देखी थी, उसे देख कर मुझे लगा कि एक हजार चौरासी बेटों की मां होना कितना महान कार्य है तो मैंने जो इतने सारे काम कराए, उनका गुूणगान भी कुछ ऐसा ही होना चाहिये। लेकिन अपनी फिल्म में गोविंद जी ऐसा तो कुछ नहीं दिखाते? हां, लाइट चले जाने से मैं फिल्म पूरी नहीं देख पाया, लेकिन उसका मूल मैंने पकड़ लिया। लाइट से याद आया कि आपके क्षेμा में बिजली का इतना बुरा हाल क्यों है? उसके लिये आपने क्या किया? देखिये, बिजली हमारी सम्पदा है और सम्पदा एक कुएं के समान होती है। मेरा अपना मानना है कि कुएं से अगर एक लोटा पानी निकालिये तो दो लोटे पानी उसको वापस कीजिये। इसी तरह बिजली भी हमारी सम्पदा है अगर हम उसे उसका लिया वापस नहीं कर रहे तो उसे खर्च भी न कीजिये। इसलिये लोगों को प्रेरणा देने का बीड़ा उठाते हुए सबसे पहले मैंने जेनरेटर अपने घर में लगवाया।
आज देखिये, घर-घर धक-धक कर रहा है। ये बिजली वाले बेवजह और जगह से काट कर मेरे घर बिजली देने का प्रयास करते हैं, जिसका मैं विरोध भी कर चुका हूं। सुना है कि निर्माण कार्य में तो आपने गजब ढा दिया? हांं, बस कुछ मिμा, जो अपराध की दुनिया से उकता चुके थे, वे मेरे विधायक बनने से भी पहले से पीछे पड़े थे कि भाई साहब हमारे लिये कुछ करो। तो मैंने उनसे यही कहा कि पहले आप सब गांधी जी की समाधि पर जाकर शपथ लो कि अब हिंसा नहीं करोगे, उसके बाद मैंने उन सबको सड़क निर्माण, नाला निर्माण, खड़ंजा, ईंट सोलिंग आदि के ठेके दिलवा दिये। यह काम बारहमासी है, इसमें आदमी कभी खाली नहीं बैठता। आज यहां टूटा, तो कल वहां। तो कल के अपराधी मेरी जनता की खुशहाली में मेरा हाथ बंटाने में लगे हुए हैं। उन्होंने हिंसा का पूरी तरह त्याग कर दिया है।
बस, कभी-कभी मन बहलाने को एकाध का अपहरण कर लेते हैं। पर उसका बहुत ख्याल रखते हैं सब। कुछ लेन-देन से मामला निपट जाता है, इसमें मेरा भी सकारात्मक हस्तक्षेप रहता है। अब आप देख ही सकते हैं कि शहर कितना बदल गया है। तभी कहीं से काक भुशण्डि की आवाज आयी-हां, जैसे सड़क पर बहता नाला, खाद बनाने के लिये जगह-जगह कूड़े के ढेर। हर महीने बनती-टूटती सड़कें, रिक् शे के भार से धसकती पुलिया। बीच में गरुड पिनपिनाया-महाशय जी, कुछ जलपान कर लो। आपका ब्लड प्रेशर हाई जा रहा है।

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