शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

एक पुल की गौरवगाथा

राजीव मित्तल
बिहार की कई चीजों को धरा की धरोहर बनाने में बख्तियार खिलजी का अभूतपूर्व योगदान है। मसलन नालंदा, जिसको बनते-बढ़ते डेढ़ हजार साल लग गये, लेकिन खिलजी साहब ने आठ सौ साल पहले चुटकियों में ध्वस्त कर दिया। जनाब का यही गुण बिहार की जनता के प्रतिनिधियों में कुछ इस तरह आया है कि केले में केले का ही नहीं अमरूद का भी स्वाद मिले। खिलजी ने तो बने-बनाये पर हथौड़े चलाये, पर ये जो कुछ बनवाते हैं वो हर तरफ से पुरावशेष ही नजर आता है। चाहे वह नदी पर बना पुल ही क्यों न हो। नदी धारा बदल दे पर, वह पुल अवशेष का रूप धरे वैसे का वैसा ही खड़ा रहेगा बनने के इंतजार में। उसका एक खम्भा इस पार होगा और दूसरा होगा जाहिर है उस पार ही। भोलेभाले विधायक जी, जिनके भोलेपन को किसी दुश्मन की नजर न लगे, ने इतना बांका इंतजाम तो कर ही दिया है कि एक तरफ के लोग रस्सी के सहारे उस खम्भे पर आराम से चढ़ सकें और बीच में दस-बीस या पचास-साठ बांस बांध-बूंध कर दूसरे खम्भे से छुआ कर नदी पार करें। अब तलवार हाथ में लिये खिलजी का तो डर नहीं है लेकिन नदी का ममत्व ही चुक गया हो तो टप से नीचे गिर कर ऊपर जाने का कोई टिकट नहीं। बेखटके, दिन-दहाड़े आप सरकार को टैक्स दिये बगैर ऊपर जाने का यह खेल खेल सकते हैं। हां, इस खम्भे और उस खम्भे के बीच अगर अब वो नदी इन दस-पांच सालों में नहीं रह गयी है तो कोई मनचला किसी भी एक खम्भे पर चढ़ ‘तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा’ गाते हुए सियार भगा सकता है। चैनलों को इस तरह के पुरावशेष ‘बूझो तो जाने’ कार्यक्रम में भी दिखाने चाहिये। यह तो रही पुल जैसी बेजान चीज की बात, जिन सीताजी को पूरा देश माता-माता करता फिरता है, जरा उनके मायके (नेपाली नहीं भारतीय) और मायके की उस जगह का हाल जान लीजिये, जिसके बारे में दुनिया भर में डुगडुगी बजायी जा रही है कि मैया इसी तालाब से एक घड़े में राजा जनक को मिली थीं। आज की डेट में वह तालाब एक और ईश्वतार वराह की क्रीड़ा के लिये बेहद मुफीद है। पेट में जब कुछ होने लगे तो वहां जाने से भक्त जन भी कोई परहेज नहीं करते। काक भुशुण्डि जी गरुड़ से कहते हैं- रे मूर्ख, मन की आंखें खोल, इन दोनों उदाहरणों को तू पुल या धार्मिक स्थल के संकुचित दायरे में न बांध न लेना। यहां की सड़कों, यहां के स्कूल भवनों, यहां के पुलों, यहां के स्वास्थ्य केंद्रो को बिहार की आत्मा समझ, क्योंकि जो बचता है वह आत्मा ही तो होती है, शरीर तो खाक हो जाता है। ऐसे विधायकों का जमावड़ा और ऐसी निश्चल आत्माओं का सदाबहार बगीचा है बिहार।

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