राजीव मित्तल
चुनाव बिहार विधानसभा के हैं पर टिकट तय दिल्ली में हो रहे हैं। इसलिये दिल्ली से लौट रहा हर नेता आज की डेट में किसी दुल्हे से कम नहीं चाहे टिकट मिले या आश्वासन की पर्ची। दिल्ली दूर है और न ही रह गया अब शेरशाह सूरी का जमाना, नहीं तो नेता जी चमचों की फौज के साथ घोड़े पर बैठ कड़बड़-कड़बड़ करते ही लौटते। हवाईजहाज से भी लौट सकते थे, लेकिन दिक्कत यह है कि उसमें अगल-बगल का याμाी उनकी ओर देखना ही नहीं चाहता, पहचानना तो दूर रहा। उसे यह भी मालूम नहीं कि वह दो साल कुर्सी पर बैठ चुके हैं और ऊपर के कितने करीब हैं। बस, नंगी तस्वीरों वाली कोई विदेशी मैगजीन में रमा रहता है। सड़क के रास्ते हुंडई या होंडा जैसी कारों का जुलूस निकाल कर भी वापसी हो सकती थी, मजा भी खूब आता, पेड़ों से अमरूद तोड़ कर खाते हुए आते, रास्ते में पड़ने वाले गांव-गोट के लोग भी देखते कि कोई नेता जी जा रहे हैं। पर, कमबख्त सड़कों के गेटअप ने अरमानों पर पानी फेर दिया। हाथ-पैर तुड़वाने से अच्छा है कि ट्रेन की एसी बोगी ही बुक करा ली जाए। अब तो वैसे भी कई दिन इन्हीं सड़कों पर ही मारे-मारे फिरना है। वल्लाह, रेलगाड़ी के एसी डिब्बे की बात ही कुछ और है। याμाा भर में जयजयकारा चलता रहता है। किसी भी स्टेशन पर गाड़ी रुकवा कर अपने से बड़े वाले नेता जी की प्रशंसा में भाषण झाड़ा जा सकता है। स्टेशन मास्टर से लेकर कुलियों तक को बताने की जरूरत नहीं होती कि हम कौन हैं। अंदर कुछ चम्पू ताश खेल रहे होते हैं, कुछ अंताक्षरी कर रहे होते हैं, तो कुछ चुटकुले सुना रहे होते हैं। कुछ भैंडासुरों को गरिया रहे होते हैं। रास्ते भर हाथ-पांव भी दबते रहते हैं। और वो ढाई मन वाला जब विधायक जी-विधायक जी करता है तो छाती अपने आप फूल जाती है। रास्ता इसी तरह मौज-मस्ती से कट जाता है। अरे भाई, कोई देखो अपना स्टेशन आ गया क्या? नेता जी, देखिये-देखिये एक नम्बर प्लेटफार्म पर सैंकड़ों की भीड़ है। बाजे भी बज रहे हैं। सबके हाथ में आपकी तस्वीर वाले पोस्टर भी हैं। देख क्या रहे हो, ड्राईवर को बोलो वहीं खड़ी करे गाड़ी ताकि इन सबको यही पता चले कि टिकट हमारा ही है। भन्नाये हुए काक भुशुण्डि ने आंखें तरेर कर गरुड़ की तरफ देखा और बोले-तू इतना क्यों खुश हो रहा है? अभी तो नेता जी को टिकट भी नहीं मिला है। दिल्ली में कहा गया है कि अपने क्षेत्र में जाकर रोज डेढ़ घंटे मॉर्निग वॉक करो और 25 लाख का इंतजाम करो, सुनामी के नाम पर भी कुछ जमा करोगे कि नहीं। काक जी, खुश मैं नहीं, ये लोग हो रहे हैं, पर पता नहीं क्यों? इसलिये मूरख कि नेता जी को ऐसे मौके पर खुश ही दिखना चाहिये अन्यथा घरवालों और समर्थकों को गलत मैसेज जाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें