शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

माता लगा..आ..आ बेड़ा पार

राजीव मित्तल
टिकट मिला तो 10 मन लड्डू पक्के धनुर्धारी! और कहीं विधायक बनवा दिया तो इस मैली-कुचैली धोती की जगह बनारसी रेशम बंधवाऊंगा, कानों में सोने के झुमके, गले में चांदी का हार। यह सुन बगल में बैठी घरवाली ने कोहनी मारी-सीता मैया को भी तो खुश करो। हां-हां, मैया के लिये सोने के कड़े। तो दूसरे मंदिर में- तेरी चौखट पर हर गुरुवार को सारे काम छोड़ कर मत्था टेका है दुखहरण! पिछली बार जरूर मेरी श्रद्धा में थोड़ी कमी रह गयी होगी तभी वो कम्बख्त कनखजूरा जीत गया। इस बार कोई कमी नहीं रहने दूंगा। विधायक बन जाने पर सरकारी निवास में ही तेरा मंदिर बनवाऊंगा। अब जरा वैष्णों देवी और तिरुपति जी के भी दर्शन कराऊं। शिरडी की याμाा मंμाी बनने पर। इस तरह आजकल हर धामिर्क स्थल ओवरफ्लो कर रहा है। दूसरा दृष्य-ज्योतिषि μिाकोणाचार्य यजमान के पैरों की छाप वाले कागज को निहार रहे हैं। सामने पूरा कुनबा बैठा है। ..चार्य जी ने कुछ बड़बड़ाते हुए अंगुलियों पर हिसाब लगाया। फिर यजमान से पूछा-आपने टिकट किसी फूल वाली या रौशनी देने वाली पार्टी का ही लिया है न? नहीं पंडित जी, उनका तो मिल ही नहीं रहा तभी तो आपको बुलवाया है कि कुछ कीजिये। देखो यजमान, तुम्हारी दुश्मन बल्ब की यह रौशनी ही है। बिजली आने पर जले तो जले, लेकिन जेनरेटर चला कर मत जलाना। सबसे अच्छा तो यही होगा कि घर के सारे बल्ब शुक्रवार से गुरुवार तक के लिये फोड़ दो। अगले शुक्रवार को घर अपने आप जगमगा उठेगा। रौशनी देने वाले दल का टिकट ही नहीं मिलेगा, रणभूमि में तुम विजयी भी होगे। आबकारी मंμाी बनने का भी योग है। लेकिन पंडित जी मैं तो 10 दिन पहले ही हाथी वाली का साथ छोड़ साइकिल वालों के साथ आया हूं! इस वजह से रौशनी वालों ने पीछे कुत्ते तक छोड़ दिये। क्या श्वान वाली कोई पार्टी है, तुम्हारे लिये बड़ी फलदायक रहेगी? नहीं पंडित जी। देखो यजमान, साइकिल और हाथी दोनों की तुमसे दुश्मनी है और वे ही टिकट को तुमसे दूर कर रहे हैं। तो अब क्या करूं पंडित जी? 10 तोले का सोने का हाथी और उसी धातु की पांच तोले की साइकिल बनवा कर गणतंμा दिवस से पहले ही मेेरे घर के पास वाले तालाब में डलवा दो। फूल वाला टिकट तो कहीं नहीं गया। तभी बगल वाले घर में ‘माता लगा..आ...आ.. बेड़ा पार’ गंूजने लगा। गरुड़ को भी गुनगुनाते देख काक भुशुण्डि गुर्राये-मूढ़, माता का भजन उस भद्दे ‘कांटा लगा’ की धुन पर गाया जा रहा है! झूमना बंद कर। यह सुन गरुड को शेफाली जरीवाला याद आने लगी।

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