शनिवार, 13 नवंबर 2010

बच्चो बजाओ ताली

राजीव मित्तल
आ गये दिन बहार के। इकरार के, इसरार के। उनके वादों ने तो मौसम चक्र को ही बदल डाला। नजर आने लगे आमों पर मंजर, किसी-किसी पेड़ पर तो उनके मुंह और हाथ-पांव तक दिखने लगे, लीची अभी से बेवजह झूलने-झूलने को है। लगता है गिली-गिली करते जादूगरों की फौज आ गयी है। अपना पिटारा खोल उन्हीं में से एक ने यहां-वहां भटक रहे गौरवशाली इतिहास को पकड़ने के लिये चूहेदानी लगाने का वादा किया। यह भी कि उनका शासन मुक्त, चुस्त और दुरुस्त होगा। और यह तीनों गुण तभी आते हैं जब सुबह एक घंटे बिना नागा सांस को खींच कर पंद्रह से तीस सैकेंड रोके रखा जाए। इससे ऊपर वाली ऊपर निकल जाती है और नीचे की नीचे से।
उसके बाद जो बचती है वह इतनी पारदर्शी होती है कि उसे एक बोतल में बंद कर रख देना चाहिये। इससे घर का वातावरण इतना स्वच्छ होता है कि दरो-दीवारें तक पारदर्शी हो जाती हैं। विकासोन्मुखता से भी कई सारे बवाल काटे जाते हैं। इस बार मौका जरूर दें, साबित कर दूंगा कि जीवन बड़ा होना चाहिये लम्बा नहीं। दूसरे ने आते ही आव देखा न ताव म्यान से तलवार निकाली, फिर चारों दिशाओं की तरफ घुमा कर जोर से चिल्लाये-तीन महीने, बस तीन महीने, सुन लिया कि नहीं! उसके बाद नजर आये तो तुम्हारी साविμिायां भी तुम्हें यम के हाथों से नहीं बचा पाएंगी। इनकी पटकथा में किन्हीं बिजलीघरों के खोलने की बात भी है ताकि हरएक में से कांटी थर्मल पॉवर की पुण्य आत्मा झांके, और पटना की अट्टालिकाओं में भी किरासन महके।
तीन महीने वाली ललकार सुन अगले ने फौरन बंदूक उठायी और एक चील को निशाना बना कर दाग दी, चील का क्या हुआ यह तो पता नहीं, लेकिन वे जरूर कंधा सहलाते हुए बोले-महाभारत में अगर घटोत्कच की चली होती तो उसने एक ही दिन में कौरवों का संहार कर दिया होता। हमें सत्ता दो, सारे अपराधी एक दिन में अंतरराष्ट्रीय सीमा के उधर। हमीं ने दर्द दिया हमीं दवा देंगे। तो वो क्यों पीछे रहते-बोल पड़े कि कानून-व्यवस्था के लबादे को झींगुरों ने कुतर दिया है, उसे दर्जी के यहां दे कर रफू कराएंगे। और हां, उस आयोग को भी बिठाएंगे, जो खड़े-खड़े उनके पापों की पहचान कर हमें रिपोर्ट करेगा, तब तक हम पुण्य बरसाएंगे। या खुदा, अब आई उनकी बारी-ए नट्टू, खड़ा क्यों है बैठ जा, आगे कोई न खड़ा हो। पीछे वाले भाईयों को भी तो दिखना चाहिये। तो हम यह कह रहे हैं कि न कोई रहा है न कोई रहेगा! बस, हमें इतना ही कहना है। बाकी आप सबको पता तो है कि हम क्या-क्या कर सकते हैं और क्यों कुछ नहीं करते हैं।

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