राजीव मित्तल
अब तक के जितने चुनाव हुए उनमें वहुत सारे वादों पर थोक के भाव वोट उलीचे गये और जीत कर जिनको जहां पहुंचना था पहुंच गए। वो साइकिल की फटीली गद्दी से उतर स्कार्पियो के काले शीशों से बाहर झांकने लगे, जिसमें हर कड़वा सच, बदबू मारता सच आंखों को बुरा नहीं लगता है और वोट देने वाले एक मीठे झूठ के जाल में फंस मधुमक्खी की तरह छटपटाते रहते हैं। तो वोटर साहेबान, इस बार वोट कड़वे सच पर क्यों न दिये जाएं। मसलन, जिसने आपसे वादा किया है कि वह कालाजार के खात्मे का प्रण करता है और जब तक वह नष्ट नहीं हो जाता वह जमीन पर सोएगा, तो आप उससे कहें कि जब वह कालाजार की बाहों में जकड़ जाए, उसे वोट तभी मिलेंगे और इसके लिये आप उसे किसी मुशहर टोली के उस इलाके तक पहुंचा सकते हैं, जहां कई सारे रामदीनवाओं, उनकी पत्नियों और उनके बच्चों के शरीर काले पड़ चुके हैं और अंतिम सांसे गिन रहे हैं।किसी ने जिनके बाल भी नहीं कटवाए और नहलाया भी नहीं। आप उन्हीं की बगल में उनकी भी चटाई बिछा दें। खाट कतई मत बिछाना क्योंकि दुर्भाग्य से कालाजार का मच्छर दो फुट से ऊपर नहीं जा पाता और खाट पर लेटे किसी शरीर का वो अंग उसे नहीं मिल पाता, जिसको वह डंस सके। लेकिन जब वह ऐंठने लगे तो उसे तुरंत देश-विदेश से मंगा कर फंगीजोन जरूर दिलवा देना क्योंकि राम न करे अगर वह टें बोल गया तो वोटों के खेल का मजा ही क्या रहा। अपने अस्पतालों में फंगीजोन को एस्पिरीन कहते हैं। वैसे यह कालाजार उत्तर बिहार की पसंदीदा बीमारी है, जहां मतदान दूसरे-तीसरे चरण में होने हैं। इसलिये अभी थोड़ा सा मौका है, चूक गये तो पछताने का भी समय नहीं मिलेगा।
उस कालाजारी को डीडीटी भी पिलाया जा सकता है, जो राज्य की सीमा पर किसी सड़क के किनारे किसी ट्रक के इंतजार में ड्रमों में लदा है। वैसे तो यह छिड़कने के काम आता है, लेकिन जब से गुलाबजल का छिड़काव शुरू हुआ है, किसी नूरजहां या किसी जहांगीर ने बदबू मारते डीडीटी को स्वास्थ्य विभाग की फाइल से बाहर करवा दिया है। यूं तो कालाजार के मच्छर को गुलाबजल भी नहीं भाता लेकिन लाल गुलाब को काला करना उसका प्रिय शगल है। कालाजारी वोटर, कालाजारी विधायक और कालाजारी मच्छर है न एक शानदार समीकरण।
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