शनिवार, 13 नवंबर 2010

साहब जी, हमरा भी बकाया है उन पर

राजीव मित्तल
पहली बार वो इतने परेशान हैं। सुबह की चाय ठंडी हो गयी, दोपहर के खाने की थाली वैसी की वैसी ही पड़ी है, पर क्या करें सामने मेज पर अब तक तो शिकायती चिट्ठियों का ही ढेर रहता था, अब यहां-वहां-सारे जहां के बिलों की भरमार है। अभी तो जेल में बंद पप्पू, गप्पू, टीपू, छलिया वगैरह के ही मामले नहीं सुलटे हंै, ऊपर से वो, जो कहने को तो घर से भागे हुए हैं, पर रात को सिटिंग अपने ही ड्राईंगरूम में करते हैं, साथ में कई बार थानेदार भी ‘एल्लो मैं हारी पिया’ साथ बैठ कर सुनते हैं। अब इन बिलों का क्या करें? कल रात तो एक घर पर ही टपक गया। कहने लगा, माई-बाप आप ही कुछ करो।
सन् 59 में मेरे पिताजी ने उनके पिताजी को भैंस खरीदने के लिये ढाई हजार रुपये दिये थे। आज छियालीस साल हो गये, अब उनके 16 ट्रक और पच्चीसों साईबर कैफे चलते हैं। चार कोठियों की तो मुझे भी पता है, एक फार्म हाउस भी है लेकिन मेरे पैसे नहीं दे रहे। कहते हैं ऊपर जाकर ले लो मेरे बाप से। यह देखिये कागज भी है मेरे पास। आज बिजली वालों ने दुखड़ा रोया है कि साहब ये सब मिल कर अगर पिछला बकाया चुका दें तो लालटेन की जरूरत नहीं पड़ेगी। करोड़ों का बकाया है। यह बिल कपड़े प्रेस करने वाले का है, उसी पर हाथ से लिखा हुआ है-साहब जी, आप ही कुछ करो, मेरे बकाये की रकम 25 हजार पहुंच गयी है। तो यह होटल वाले का बिल है, वकील के नोटिस की कॉपी के साथ-मेरे मुवक्किल का कभी एक होटल था, जिसके यहां की ग्रिल्ड ऑक्स किडनी दुनिया भर में मशहूर थी, लेकिन अब बेचारा ठेले पर कबाब, बिरयानी बेच रहा है, क्योंकि इसका होटल उन लोगों के निवास के सामने पड़ता था। करीब 112 लोगों पर 10-10 साल की चार-चार हजार प्लेटें बकाया हैं। एक प्लेट किडनी बैठी 68 रुपये की, बिल संलग्न है।
एक और विभाग का खत है, जो मकान अलॉट करता है। लिखा है-ऑनरेबुल सर, फलाने जी को बिना विभाग का मंμाी होने के नाते जो बंगला अलॉट किया गया था, उसे कल बाहर से कुछ लोगों को बुलवा कर खाली कराना पड़ा, क्योंकि पिछले कई सालों से वे मंμाी नहीं हैं, पर बंगला नहीं छोड़ रहे थे। लेकिन अब उस बंगले की हालत देखी नहीं जाती। हर कमरे के चार-चार हिस्से कर दिये गये हैं और हर कमरे के बाहर एक कागज चिपका है कि फलाने को किस दिन मुक्त करना है। दो-चार नाम भी पढ़ने में आये हैं, वे आपसे मिल कर ही बताये जा सकते हैं। पत्नी जब एक बार फिर खाने की याद दिलाने आयी तो वो सज्जन बेसुध हो डॉक्टर को बुलाओ-डॉक्टर को बुलाओ बड़बड़ा रहे थे। देखा नालायक! काक भुशुण्डि दहाड़े गरुड पर, अगर तू नहीं सुधरा तो अगली बार मैं तुझे चुनाव में खड़ा कर दूंगा और तेरी सारी शिकायतें उनको लिख कर भेज दूंगा।

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