राजीव मित्तल
जुम्मन मियां इन दिनों बहुत परेशान चल रहे हैं। सिर में अक्सर दर्द रहता है। रात में नींद भी ठीक से नहीं आती। वह दीवार से टेक लगाये एक आंख से सोये और एक से जागे वाली मुद्रा में बैठे थे कि एक मौलवी टाइप नेता उनके पास आए और बोले-देखिये चचा जान, अब मैं आ गया हूं सब ठीक हो जाएगा। इन कम्बख्तों की बातों में तो आइएगा नहीं। इन्हींने आपकी मस्जिद गिरवायी। भगवान कसम, अब हम जो मंदिर बनवाने जा रहे हैं, उसमें एक कोना आपके लिये भी होगा। बस आप हमारा साथ दीजिये, हम जगह-जगह भागलपुरी संस्कृति का प्रचार-प्रसार करेंगे। अमां, वहीं जहां दंगे हुए थे? ओह चचा, मुआफी चाहता हूं। आजकल रोजाना 25 से 30 भाषण देने पड़ रहे हैं तो गड़बड़ा जाता हूं। हां तो मैं कह रहा था कि हमारी पार्टी सत्ता में आने के बाद बिहार में इंसानियत को प्रमुखता देगी न कि हिंदु या मुसलमां को। और हां, उस माय वाले से तो सौ कोस दूर रहें। अच्छा चलूं, मनीषा कोइराला का डांस रखवाया है चौक पट्टी पर, सारा इंतजाम मैं ही देख रहा हूं। वह दरवाजे से बाहर होते कि पीछे वाली खिड़की से सामाजिक न्याय वाले अंदर आ गए।
चचा, यह मरदूद जरूर आपको बरगला रहा होगा। पिछली बार मेरे गले लग कहा था कि जब तक दम में दम है हम एक ही गिलास में पानी पिएंगे और अब कहता है कि इसे तो पायरिया है। देखिये, मैं वो वाला टेप लेकर आया हूं, जिसमें अजमेर वालों ने आपकी कौम के लिये फरमान निकाला है, लेकिन बिजली तो आ नहीं रही, बाद में सुनवाऊंगा। चुनाव का वक्त है इसलिये ज्यादा देर तो नहीं बैठूंगा, पर इतना कहे दे रहा हूं कि दो साल में आपकी सूरत बदल दूंगा। दर्जी भेज रहा हूं अपनी अचकन की नाप दे देना। पायजामा बाद में सिलता रहेगा, बस, एक तो इस भड़भूजे से दूर रहना, दूसरे वो रामनौमी दुपट्टे वाले आएं तो झाड़ू मार कर भगा देना। अचानक बाहर जोर-जोर की आवाजें आने लगीं तो कांखते हुए मियां उठे और दरवाजा खोल कर झांका तो बाहर कई मौलाना एक-दूसरे पर चीख रहे थे-किस पार्टी को वोट देना है इसका फरमान हम जारी करेंगे। तो दूसरे ने छड़ी घुमाते हुए कहा-लाहौल विला कुव्वत, हम जनाब वाजिदअली शाह के जमाने से यही करते आ रहे हैं आप कहां से आ टपके। देखिये मियां, फरमान हम जारी करेंगे, हम अजमेर शरीफ से सिर्फ इस काम के लिये भेजे गए हैं। जुम्मन मियां ने अलकसा कर एक पेड़ की तरफ आंख उठायी तो देखा एक बंदर अपनी बंदरिया की जूं बीनता हुआ खोखिया रहा है।
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