शनिवार, 13 नवंबर 2010

हवनकुंड से उठता कसैला धुआं

राजीव मित्तल
गरुड और काक भुशुण्डि बरगद के उस पेड़ पर बैठे हैं, जहां से मतदान केंद्र साफ नजर आ रहा है। अभी कुहासा छंटा नहीं है, पर वोटर या उन्हीं जैसे लोग आने शुरू हो गये हैं। सुबह-सुबह जगा दिये गए गरुड ने उबासियां लेते हुए अपने ज्ञान का परिचय दिया-महाशय जी, यह इस देश का महायज्ञ है, जिसमें एक साथ करोड़ों जन आहुति डालते हैं। लेकिन पहले तो यह हर पांच साल में एक ही वेदी पर होता था, अब कभी भी और कहीं भी होने लगता है। बेवकूफ, महायज्ञ जानता है किसे कहते हैं! जिस यज्ञ में अग्नि की लपटें नहीं धुआं निकले वो यज्ञ अपविμा माना जाता है।
रामायण काल में अपने आश्रमों में यज्ञ कर रहे ऋषि-मुनियों के हवनकुंड को राक्षस और दानव अपविμा करते थे, जिस कारण अग्नि प्रज्वलित ही नहीं हो पाती थी। उनका उद्धार किया विश्वामिμा ने। उन्होंने राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग उनसे सारा उत्पात रुकवाया। तुम इसे महायज्ञ कह रहे हो, जिसके होने में 10 हजार महिलाओं को ऊपर वाले से निर्जल और भूखे रह यह कर कामना करनी पड़ रही है कि उनके पति सकुशल घर लौट आएं। यह तो रजिस्टर्ड संख्या है। अनरजिस्टर्ड संख्या तो लाखों में होगी, जिनका यही जाप चल रहा होगा कि वोट डालने निकला घर का कोई भी पुरुष अपने पैरों से चल कर लौटे। और वो देखो वहां, उस बख्तरबंद ट्रक से हथियारों से लैस सीआरपीएफ के जवान उतरे हैं ताकि किसी तरह वोट पड़ जाएं और वे अपनी ड्यूटी निबाह कर लौट जाएं।
तो महाशय जी, राम-लक्ष्मण तो दो ही थे ये तो बहुत सारे हैं! लल्लू, तब एक जंगल में दानव और राक्षस भी 10-20 ही करते थे, आज तो फौज की फौज है। दूर-दूर तक फैले खेत और जंगल, पहाड़, नदी-नाले प्रकति की गोद नहीं रणभूमि हैं, जहां चुन्नू गिरोह, मुन्नू गिरोह, लल्लन गिरोह, टिल्लन गिरोह और पता नहीं कौैन-कौन से गिरोह खेतों में आलू-टमाटर नहीं नाशपाती और सेब जितने साइज के बम तैयार करते हैं। और हाथों में हैं बल्लम, रायफलें, दुनालियां। मुंह पर बंधा है अंगौछा। क्यों महाशय जी? ये सब एक खास किस्म की क्रांति को वो खाद दे रहे हैं, जो जाति के मलमूμा से तैयार होती है, जिसमें धर्म की विष्ठा भी मिली होती है और चौरासी लाख योनियों में जीने की लालसा भी। इस क्रांति में जो खून बहता है वह लाल नहीं, कहीं हरा, कहां गेरुआ तो कहीं काले रंग का होता है। तो फिर चुनाव क्यों? क्योंकि अब यही चुनाव इस खास किस्म की क्रांति के अखाड़े बन गए हैं। अच्छा अब चुप हो जा, देख मतदान शुरू हो गया है, पीं-पें की आवाज आने लगी है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें