राजीव मित्तल
राक्षस भाइयों के लिये मेला अब काफी दिलकश हो चला है। हर तम्बू के आगे लगे स्टॉल से लाउडस्पीकर गरज रहा है। कुछ चैनल वाले कैमरा लिये यहां-वहां डोल रहे हैं। एक जगह बाइस्कोप दिखाया जा रहा है। किसी केबल टीवी से जुड़ी एक बाला चीख-चीख कर कह रही है-हमारा केबल आजाद भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार पंचमुखियों को दिखा रहा है। तभी वापि भन्ना कर बोला-अरे तू हम त्रेता वालों को क्या पंचमुखी दिखाएगी, हम दशमुखी राक्षसराज रावण के शागिर्द हैं। इलु चल यहां से। दोनों मेला स्थल से निकल किसी शिकार की तलाश में भटकने लगे। तभी उन्हें उसके साक्षात दर्शन हो गये। पांच सिर वाले उस शख्स के दो चेहरों पर हंसी खेल रही थी, तीसरा टसुए बहा रहा था, चौथा उसे पुचकार रहा था पांचवा गा रहा था-तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर जाग जरा। वेषभूषा किसी पुुलिसिये की थी। हर सिर पर पदवीनुसार टोपी फिट थी। आंसू बहा रहा थोबड़ा डीजीपी का था, जिसको चुप करा था सिपाही। खींसे काढ़े हुए चेहरे थानेदार और दरोगा के थे। गुनगुना एसएसपी रहे थे। वापि चिल्लाया-अरे-अरे किसकी परमशिन से हमारे इलाके में धंसा आ रहा हो? दरोगा डकराया-अबे चोप्प, सर जी लगाऊं एक हाथ? थानेदार गुर्राया-यहां घूमने के लिये थाने से इजाजत ली? दो-चार धाराएं लगा कर अंदर कर दूंगा। तमीज से पेश आइये वर्मा जी, साहब साथ में हैं-एसएसपी ने आंखें तरेरीं। फिर उनका सिर डीजीपी की तरफ मुखातिब हुआ, सर आगे क्या हुआ। पांच सिरों वाला धड़ वहीं पेड़ के नीचे बैठ गया। डीजीपी के पपोटे लगातार रोने से सूजे हुए थे। उन्होंने नाक सुड़सुड़ाई और रुंधे गले से आवाज निकाली-मुझे आज भी 15 साल पहले हुई चम्बल की वो मुठभेड़ याद है। काश, उस मुठभेड़ में या तो मैं मारा जाता, या उस डाकू परमैल सिंह को मार देता। अब वो मंत्री बन गया है और मैं उसका पहरुआ। आगे की बात रिटायरमेंट के बाद। अब अपनी कहो। सब कुछ तो आपने कह दिया सर। अगला चुनाव लड़ जाऊं, यही सोच रहा हूं। तभी दरोगा ने वापि से कहा-जा बे, सामने के खेत से गन्ना तोड़ ला। थानेदार तुरंत उस पर खोखियाया-हमारे सामने तू कुछ ज्यादा ही बोल रिया है-बीट बदल दूंगा तो आवाज निकालने को तरस जाओगे। वापि गन्ना ले आया और सिपाही के सामने कर दिया। अचानक सिपाही के मुहं से आऊं-आऊं की साउंड निकलने लगी-हम साहब के बंगले की घीस तो छील सकते हैं लेकिन गन्ना नहीं। क्योंकि हमारे दांत नहीं हैं।
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