रविवार, 31 अक्तूबर 2010

लुटियन की लुटिया डुबोने की तैयारी

राजीव मित्तल
पांडवों ने एक जंगल पे इन्द्रप्रस्थ क्या बसा दिया, न जाने कितने सूरमाओं को खेलने का मौका दे दिया। पिछले हजार साल में कई ने उजाड़ा, कई ने बसाया। पिछली शताब्दी में लुटियन ने पता नहीं किन कुदाल-फावड़ों से 2800 एकड़ ज़मीन को ऐसा रूप दे दिया कि जिसे देखो अपनी खटिया मुगलों से पहले के सुल्तानों की कब्रों पर बिछाए जा रहा है। 'हमारा आशियां भी उसी जन्नत में हो' की गुहार मचा रहे 30 करोड़ बेघरों के राष्ट्रीय जनप्रतिनिधि चाहते हैं कि अब उन्हें 'रहे कुनबा जिसमें सारा' वाला बंगला मिले, वह भी लुटियन की दिल्ली में या उसके आसपास। बंगला हो कम से कम 10 कमरों वाला। दो पेड़ों की मचान पर फूस की झोपड़ी बनी हो, ताकि आह ग्राम्य जीवन वाला मजा लिया जा सके। दो कमरे अपने सोने के, दो ड्राइंगरूम, एक खाने का कमरा और बाकी अगली-पिछली जेनरेशन के हिसाब से। कॉल ऑफ नेचर अटेंड करने के लिये टाइल्स लगे तीन शौचालय, गरम-ठंडा पानी के शॉवर वाले तीन बाथरूम, घरवाली के लिये एक किचन और दो स्टोर-एक अपने खेत से उगाए अनाज के लिए और एक टीन के बक्से और रजाई-गद्दों को ठूंसने के लिये। बंगले के पीछे तुलसा, मूली, आलू और चारों ओर बाल लाल-काले करने को मेंहदी की झाड़, दायीं तरफ कमल खिलाने को तलैया, जिसके बगल में एक चापाकल, ताकि गांव से आने वाले विजिटर अपने गांव को न भूलें, थोड़ा अलग हट कर वो दो पेड़, जिन पर जनप्रतिनिधि के लिये मचानी झोपड़ियां बनी हों। बायीं तरफ चने का खेत, गन्ने का खेत और प्याज का खेत, जिसकी कुछ क्यारियों में सोया-मेथी, धनिया-पुदीना, हरी मिर्च और टमाटर की फसल लहराए। और इतना तो उगे ही कि मंडी में बेची भी जा सके। पूर्व की ओर कोने में गऊशाला। इसमें दूध देने वाले दो-चार पशु जरूर हों। कई को घुड़सवारी का भी शौक है तो दो वो भी। बंगले के चारों तरफ कचनार के पेड़, जिनकी डालें सड़क तक निकली हों। बंगले में पश्चिम की ओर पूजा स्थल जरूरी है, जहां हर दूसरे दिन कोई धार्मिक क्रिया होती रहे। एक उससे बड़ा पूजा स्थल हर चार बंगलों के बीच में। हर आठ बंगलों के बीच एक थियेटर, जहां बिना कटी-फटी फिल्मों के दो शो हर हफ्ते हों। एक मार्केट, जहां एके-47 भी मिलती हो। ऐसा हो जाए तो लुटियन की दिल्ली कहलाएगी छुट्टों की दिल्ली।

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