राजीव मित्तल
अपणी सड़क उखाड़ ले, म्हारां तो है ‘चौधरी’ प्यारा। वोट मांगते वक्त विकास कार्यों का हवाला देने वाले उम्मीदवारों को कुछ ऐसा ही जवाब वोटर से मिलता है। यह वो मानसिकता है जो पश्मिांचल के अधिकांश इलाकों में नजर आएगी। चाहे चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का। ‘चौधरी’ चाहे कोई हो लेकिन यह वो उम्मीदवार है, जिसने पिछले किसी चुनाव में जीतने पर अपने क्षेत्र का धेला भर काम नहीं किया होगा। बल्कि पांचों साल लखनऊ-दिल्ली में बैठ कर या अपनी हवेली में अपने चमचों के साथ समय गुजार कर समय काटा होगा, लेकिन यह तय है कि वोट उसे थोक में ही पड़ने हैं। अगर किसी चुनाव में किसी तगड़े उम्मीदवार ने ‘चौधरी’ को पटखनी दे दी हो, और जीतने के बाद उस क्षेत्र के विकास पर खूब ध्यान दिया हो, तो हो सकता है कि अगले चुनाव में वोट मांगते समय जब वह सीना चौड़ा कर अपने कामों का बखान करने निकले तो उसे यही सुनना पड़े कि जा भई जा, कहीं और जाकर मांग। वोटर की इसी मानसिकता ने इस क्षेत्र को भरपूर अनाज, भरपूर गन्ना और भरपूर पैसा होने के बावजूद विकास के आधुनिक दौर में बहुत पीछे ढकेल दिया है। इसी मानसिकता ने उम्मीदवार समेत पूरी नेताई को अच्छी तरह समझा दिया है कि विकास की बात भूल कर नहीं करनी, सिर्फ जाति को पकड़े रख। भगवान बेड़ा पार लगा देगा। और अगर ‘चौधराहट’ विरासत में मिली है तो पल्ले से भी कुछ नहीं जाना, जीत पक्की जाणों। जाट और मुसलिम बहुल पश्मिांचल की तेरह सीटों (इस बार चौदह) पर कमोबेश यही स्थिति है। बाकी जातियां थोड़ा-बहुत खेल बिगाड़ती रहती हैं लेकिन चौधरी की पेशानी पर बल डालने का सबब नहीं बनतीं। अब तो गठबंधनों का जमाना है, जिसके चलते राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय दलों के आगे-पीछे डोलने को मजबूर हैं। पिछले कई चुनावों से पश्मिांचल में गठबंधनीय राजनीति का मजबूत खैवनहार राष्ट्रीय लोकदल बना हुआ है। चुनाव नजदीक आते ही इसकी पूछ सबसे ज्यादा होती है। कभी इस तो कभी उस राष्ट्रीय दल का साथ देकर रालोद ने अपना सूचकांक हमेशा ऊपर रखा है। पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी और रालोद के गठबंधन ने पश्चिमांचल की 13 लोकसभाई सीटों में से आठ सीटों पर कब्जा किया था। इस बार रालोद ने सपा का साथ छोड़ भारतीय जनता पार्टी का हाथ थामा है। पिछले चुनाव में अपना हश्र देख इस बार भाजपा की मजबूरी है कि वह खुल कर जाट कार्ड खेले। लेकिन इस बार चमत्कार दिखाएगा मुसलिम वोटर, जो जाट के साथ इस बार नहीं है, इसलिये कि सपा ने खांटी भाजपाई रहे कल्याण सिंह से और रालोद ने भाजपा से चुनावी नाता जोड़ा है। इसलिये सपा और रालोद दोनों की सफाई देने की मुद्रा ज्यादा मुखर है। इसका लाभ एकला चलो पर चल रही बहुजन समाज पार्टी को मिलने की सम्भावना है। बची कांग्रेस, तो उसे पता है कि वह कितने पानी में है।
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