बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

ओए ओए पीठासीनी ओए

राजीव मित्तल
1980 के विधानसभा चुनाव। मई की सुलगती दोपहरिया में जैसे ही सूचना विभाग के गलियारे में कदम रखा, कागज थमा दिया गया। लिखा था-आपकी ड्यूटी फलानी तिथि को मोहनलालगंज के फलाने बूथ पर पीठासीन अधिकारी के रूप लगाई जा रही है। सिर पीटते-पीटते पता चला कि किन्हीं ने अपना मेडिकल लगा कर इस नाचीज को फंसा दिया है। रोने-धोने का समय भी नहीं दिया था कम्बख्तों ने। अगले ही दिन कचहरी में वोट पड़वाने की क्लास अटेंड की। एक बड़े से थैले में वोटों की गड्ड़ी, लोहे की बकुचिया और मुहर आदि सामान पकड़ा दिया गया। अगली सुबह लखनऊ के हजरतमहल पार्क से ट्रक रवाना होने थे बूथों पर। अल्ल सुबह ही जा धमका। सेंकड़ों ट्रक खड़े थे। कोई नजर नहीं आया तो एक ट्रक के बोनेट पर बैठकी लगा ली। तभी एक जीप आ पहुंची। जीप में से युवती की कूक निकली-आप यहां क्या कर रहे हैं? ट्रक वालों का इंतजार। पीठासीन अधिकारी हूं। और आप? मजिस्ट्रेट हूं, राउंड लगा रही हूं। लोग आने शुरू हो गये। एक ट्रक के पीछे अपन भी लद गये। किसी ने टोका-आप पीठासीन अधिकारी हैं, साहब लोगों के साथ आगे बैठिये। वहां ड्राइवर और अपन के अलावा सभी असिस्टेंट कमिश्नर टाइप थे और चुनाव को पानी पी-पी कर कोस रहे थे। आधा घंटे बाद सीमेंटेड बूथ आते गये और वहां वाले अपने क्रू के साथ उतरते गये। अपना बूथ सबसे आखिर में था। जब उतरे तो देखा हम आठ जन हैं। दो-एक फालतू में ही साथ लद लिये थे। अगली सुबह जहां वोटिंग होनी थी, वह पशुशाला थी। गांव के प्रधान जी को बुलवाया गया। सज्जन थे, हाथ जोड़ते आ खड़े हुए। इसको इनसानों के लायक कराइये और सबको कुछ खिलवा भी दीजिये। एक घंटे में सब इंतजाम हो गया। दोपहर ढलते-ढलते सामान अंदर रख दिया गया और मिट्टी के उस कमरे पर ताला मार हुजूम गांव का चक्कर लगाने निकल पड़ा। गांव की गलियों से निकल कर खेतों में पहुंचे तो देखा सामने गोमती बह रही है। आह ग्राम्य जीवन भी क्या जीवन का उद्घोष करते हुए छलांग लगा दी। गहरे पानी में दो-चार डुबकिया खायी होंगी कि बाहर निकाल लिया गया। फिर रेत में लगे खरबूजे और खीरे खाये गये। वापसी में पता चला कि पास में ही आमों का बगीचा है। सो, एक साइकिल का जुगाड़ कर दो जनों को साथ ले वहां पहुंचा गया। जी भर कर अधपके आम खाये। लौट कर वोटों पर मुहर मारी, दस्तखत किये। सोने का इंतजाम पेड़ के नीचे बिछी खाट पर था। अगल-बगल बंदूकधारी सोये। सुबह पांच बजे आंख खुली बैलों की झुनझुन, बकरियों की मिमियाहट और गायों के रंभाने से। एक बार फिर गोमती में छपछप की और चाय के साथ चना-गुड़ चाब कर बैठ गये वोटरों के इंतजार में। कोयल की कूक के साथ वोटर भी पहुंचने लगे। मौज-मस्ती में सब कुछ निपट गया। ट्रक द्वारे ही खड़ा था, शाम पांच बजते ही सवार हो गये और जिन-जिनको उतारा था, लौटते में उनको लाद कर कचहरी में लगी सामान लौटाने वालों की कतार में खड़े गये।

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