बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

हमें वोट नहीं दिया तो भुगतो अब

राजीव मित्तल
सात मई को मेरठ में वोट डालने के बाद एक मजमे में जोर-शोर से ‘इस बार कौन जीतेगा’ की चर्चा चल रही थी। बातचीत का अंत इस कथन से हुआ कि कोई हारे कोई जीते, लेकिन बसपा प्रत्याशी की हार शहर को रुला मारेगी। खास कर बिजली की ऐसी मार पड़ेगी कि दिन में तारे नजर आ जाएंगे। और अब चुनाव नतीजों के बाद बिजली को लेकर की गयी भविष्यवाणी तो सच साबित होती दिख रही है। पश्चिम उत्तरप्रदेश के बाकी जिलों का भी हाल कमोबेश राज्य में सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशी की हार-जीत से जुड़ा है या आशंकाओं के बादल देख जोड़ा जा रहा है। 16 मई की रात तक सभी नतीजे आने के बाद 17 की सुबह से सबके मन में यही बात उठ रही है कि क्या उनकी सोच सही थी। अब देखिये न, चुनाव नतीजे आनें के बाद का नतीजा यह है कि सहारनपुर को छोड़ पश्चिम के सभी जिलों में बिजली आपूर्ति को लेकर जबरदस्त आक्रोष है। रोज कहीं न कहीं तोड़फोड़ या प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं। सहारनपुर पर बिजली क्यों मेहरबान है, इस बारे में कयास ही लगाए जा रहे हैं क्योंकि अगर यह मेहरबानी वहां से बसपा प्रत्याशी के जीतने का नतीजा है तो मुजफ्फरनगर ने कौन सा गुनाह कर दिया जबकि जिले ने तो पार्टी के दो-दो सांसद लोकसभा भिजवा दिये। बुलंदशहर से कौन सा कुसूर हो गया, जो वहां बिजली को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। सहारनपुर और मुजफ्फरनगर के नवनिर्वाचित सांसदों ने ऐलान किया था कि अब जिला वासियों को 20 घंटे से ज्यादा बिजली मिलेगी। लगता है कि सहारनपुर के सांसद की पैरवी ज्यादा मजबूत थी और वहां वास्तव में बिजली विभाग ने करम फरमाना शुरू कर दिया है। शहर तो क्या देहाती इलाकों का अंधेरा दूर हो गया बताते हैं। जबकि मुजफ्फरनगर के सांसद की पैरवी ने अभी रंग दिखाना शुरू नहीं किया है और कैराना की सासंद से ऐलान फिलहाल तो नहीं आया है। गौतमबुद्धनगर वासियों को अपने सांसद से पूरी आशा रखनी चाहिये क्योंकि उनके सौभाग्य से वह बसपाई हैं। मुरादाबाद, बंदायू, बिजनौर, नगीना, बागपत, बुलंदशहर, मेरठ और गाजियाबाद के आने वाले दिन कैसे होंगे-यह निर्भर करेगा वहां के सांसदों पर कि राज्य के सत्तारूढ़ दल से उनके अपने दलों के समीकरण कैसे बैठते हैं। वैसे जहां-जहां समाजवादी पार्टी के सांसद जीत कर आए हैं, उनके संसदीय क्षेत्रों का भगवान ही मालिक है क्योंकि चुनावों से काफी समय पहले से ही शीर्ष पर मामला जानी दुश्मन वाला रहा है। जो सामने आ रहा है उसमें सबसे खराब भूमिका अफसरों की नजर आ रही है, जो लखनऊ में बैठे अपने आकाओं के आगे बिछे पड़े हैं।

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