राजीव मित्तल
सुबह आंखें खुलते ही वापि और इलु ने सामने के मैदान पर जो नजर डाली तो मेले सा नजारा दिखा। पहला दिन था इसलिये भीड़भाड़ तो नहीं थी पर लोगों की हड़बड़ाहट बता रही थी कि दो-चार दिन में ही जंगल में मंगल हो जाएगा। वापि ने सामने के पेड़ के तने पर चोंच मार रहे कठफोड़वे से पूछा- कठु, ये सब क्या है। जवाब मिला-यह चुनावी मेला है। इस बार पूरे पांच साल बाद लगा है, नहीं तो पिछले दो-तीन बार से दिल्ली में पता नहीं क्या तीन-तड़ाम होता था कि चुनाव-चुनाव का शोर मचने लगता था और जहां-तहां छोलदारियां लगनी शुरू हो जाती थीं। इस बार मेला अपने दंडकारण्य में लगा है। अब दो शब्द वापि और इलु के बारे में। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की लिखी रामायण के राक्षसीय चरित्र हैं वापाति और इल्वल। वनवास के दौरान श्री राम के दंडकारण्य वन पहुंचने से पहले दोनों भाई वहां के कई ऋषि-मुनियों को अपना निवाला बना चुके थे। श्री राम के बाणों से बच गये वापि और इलु अब पूरी तरह कलियुगी हो गये हैं। कठफोड़वे की सुन वापि के मुंह से निकला-अबे तो यह बोल न कि आम चुनाव नजदीक हैं। पिछले चुनाव से हम टिकट का ट्राई कर रहे हैं। सबसे पहले कमल वालों के पास गये थे तो एक दद्दू खरखराती आवाज में बोले कि फीलगुड का जमाना है मानव भक्षियों को हम टिकट नहीं देते। तो सफेद मूंछ वाले बोले कि हम रामभक्त रावण वंशियों को कैसे टिकट दे सकते हैं। हाथी वाली ने तो अपने तम्बू के बाहर बोर्ड ही टांग रखा था कि आप जैसा कोई अभी न आये। साइकिल वाले पहलवान ने टका सा जवाब दे दिया कि पेज थ्री पर फिल्म वालों से घिरे सिंह साहब के साथ नजर आओ तो टिकट-विकट की सोचेंगे। तभी इलु लम्बी सांस खींच कर बोला-और वो लालटेन वाले ने तो हद ही कर दी थी यह पूछ कर कि अंदर कितनी बार गये हो। अगले ने झोपड़ी दिखा कर कहा था-तुम्हारे जैसों से ठसाठस है। अगली बार देखेंगे। वापि, इस बार तो हैदराबाद या चैन्नई में ट्राई मारा जाये। वहां एक नई पार्टी भी बनी है। नहीं इलु, दक्षिण में हम निशा कोठारी बन कर रह जाएंगे। तो चल पंजे वालों से बात करें? पिछली बार की याद नहीं, दरबान ने घुसने भी नहीं दिया था। तो अब क्या करें वापि? सोचने दे पहले कुछ खा-पी लें। ससुरा दिमाग ही काम नहीं कर रहा। दोनों ने एक भैंसे को हजम कर डकार ली और पिछले चुनाव की पिनक में खो गये। तबकी बार चुनावी महासमर के एक्सपर्ट कमेंट्स धड़ विहीन बर्बरीक वल्द घटोत्कच के थे, जिसे चुनाव कवरेज के लिये बिहार गयी एक चैनल की एक रिपोर्टर ने पेड़ की शाख पर विराजमान पाया था। इलु ने सोचा कि हम वनवासियों को टिकट तो मिलने से रहा क्यों न इस बार वही काम हम करें। मेरठ में नौचंदी, तो देश भर में ग्रेट इंडियन वोट मेले की हलचल शुरू हो गयी है। दंडकारण्य निवासी इल्वल और वातापि इन दोनों मेलों में कुछ करगुजर जाने का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। नौचंदी मेले में इन रक्ष सहोदरों ने नौटंकी दिखाने का इरादा जताया है और नगर प्रशासन को इसकी औपचारिक सूचना दे दी है। जहां तक इंडियन वोट मेले का सवाल है, तो इसके लिये वे दोनों मीडिया के लिये कुछ करना चाहते हैं। थाना, कोर्ट-कचहरी और जेल से बचने के लिये दोनों ने कई दलों से सम्पर्क किया ताकि चुनाव लड़ कर जीते तो संसद की शोभा बढ़ाएं और हारे तो नेता बन जाएं । लेकिन हर दल में इस तरह के लोगों की भरमार है, सो, अगली बार चांस देने का वायदा ही दोनों के हाथ लगा है। अपने इरादों पर अटल रहते हुए दोनों पहले नौचंदी नामक उस स्थान पर गये जहां मेला लगना है। लेकिन अभी वहां मेले की तैयारी के नाम पर एक कंकड़ भी टस से मस नहीं हुआ है। कूड़े के ढेर पूरी शान से इलाका घेरे हुए हैं। अपनी नौटंकी में उनका इरादा बॉलीवुड की कुछ तारिकाओं को बुलाने का था। लेकिन पता चला कि वो सब किसी न किसी राजनैतिक दल के साथ बुक हैं।
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