बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

दंडकारण्य में प्रधानी की खोखो

राजीव मित्तल
वापि ने हाथ-पांव सीधे किये और बोला-इलु, पिछले चुनाव में कितना सुंदर माहौल था। आडवाणी जी रथयात्रा में उगता सूरज देख रहे थे, मायावती पेड़ पर चढ़ी कटहल तोड़ रही थीं। सोनिया जी नीचे से उन्हें पुकार रही थीं। लालू और पासवान खटिया डाले एक दूसरे को चूड़ा-दही खिला रहे थे। दद्दू रिंग मास्टर बने 22 को साध रहे थे। हर तरफ चना जोर गरम चल रहा था। तभी सामने से माइक पर बीड़ी जलाइले की तान सुन वापि और इलु 2009 में आ गये।मेला भरना शुरू हो गया है। एकाध जगह तो डीजे भी आ गया है। वापाति और इलु तुरंत वहां पहुंच घूम-घूम कर हालात का जायजा लेने लगे। एनडीए के स्टाल पर मखमल चढ़ी कुर्सी रखी थी, जिसके पीछे कागज चिपका था पीएम पद के इंतजारी। कुर्सी अभी खाली थी और बुजुर्गवार बाहर आपस में भिड़े कुछ कारिदों को अलग-अलग कर शुचिता का पाठ पढ़ा रहे थे। 10-15 खाकी निक्करधारी मार्चपास्ट कर रहे थे। मोदी जी तेज कदमों से चहलकदमी करते हुए बड़बड़ा रहे थे-सम्पूर्ण आर्यावर्त को गुजरात बना डालूं, पर इस वेटिंग फार का क्या करूं। यूपीए की छोलदारी में वाह-वाह कर अपनी पीठ ठोकी जा रही थी और मुंह से आवाज निकल रही थी-हम कोदो खा कर यहां नहीं पहुंचे हैं, इस बार तो मुझे मौका दो। मनमोहन जी कुर्सी पर बैठ कर भी कुर्सी से ही बेदिली दिखाते हैं। वहीं एक कोने में ढोल-मंजीरे के साथ गायन चल रहा था- राहुल प्यारे..। एक तम्बू में गोल घेरा बनाये वो सब बैठे थे। बाहर से देखने पर जो कोलाज बनता था वो भुक्तभोगियों को पुरानी याद दिला रहा था। देवेगौड़ा जी आंखें बंद किये 96-97 का ध्यान कर 13 की गिनती गिन रहे थे। आश्चर्य किन्तु सत्य कि 97-98 वाले का कहीं अता-पता नहीं था। देशी सिलिकॉन वेली के प्रणेता नायडू हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले वाली नजरों से करात जी को देख रहे थे। काफी देर तक मैं-मैं करने के बाद मायावती आखिरकार भड़क कर खूब लड़ी मरदानी वाली मुद्रा में बाहर मूढ़े पर विराजमान हो चुकी थीं। तभी कुछ समय यूपीए के तम्बू में गुजार पवार हाथ में बल्ला और पैरों में पैड बांध अंदर आए और बोले-चलो 20-ट्वेंटी खेलें, जो जीते वही प्रधान। तभी किसी ने टोका-यह कुर्सी काहे लादे घूम रहे हो। एकाएक करात जी उठे कान पकड़ कर उठक-बैठक करते हुए कहने लगे-ना, अबके वो ऐतिहासिक गल्ती नहीं करनी। पता चला कि दिन में पांच वक्त वो ऐसा ही करते हैं। तभी बाहर से वर्धन जी की आवाज आयी-बिटिया बाहर खुले में मत बैठ, मुलायम गुलेल लिये घूम रहा है।

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