रविवार, 31 अक्तूबर 2010

मुक्के-लातों के बीच से रोमांस को निकाला शाहरुख ने ही

राजीव मित्तल
अमिताभ बच्चन ने बॉलीवुड में कदम धरने के कुछ ही समय बाद जिस बेदर्दी से राजेश खन्ना के बनाये रोमांटिक संसार को मुक्का-लातों की बौछार कर बरबाद कर दिया था, तीन दशक बाद -मैं हूं ना, वीर-जारा और स्वदेस ने वही जमाना सामने ला दिया है। रोमांस के इस जायके का स्वाद बेशक कहीं ज्यादा हाजमी, स्वादिष्ट और तर्क पूर्ण और दिल को छूने वाला है। इसके लिये हमें शाहरुख खान को पूरा श्रेय देना ही होगा। इसे क्या कहा जाये कि अभिनय का ओर-छोर नापने वाले अमिताभ रास्ता भटके तो बीच राह में। पैसा और लोकप्रियता हासिल करते रहने के बावजूद हद दर्जे की बेवकूफाना फिल्मों में अपना बेहतरीन समय जाया करते रहे और जब संभले तो साठ के हो चुके थे। वहीं शाहरुख लगातार संभलते चले गये, बावजूद इसके कि उन्हें ओवरएक्टिंग से कोई गिला नहीं और उन पर कहीं न कहीं दिलीप कुमार का अक्स हावी रहता है। रहा रोमांस का सवाल तो अमिताभ की जंजीर, जिससे वह हिंदी सिनेमा पर छाये, उसमें उनकी नायिका थीं अभिनय की जीगती-जागती मिसाल जया भदुड़ी। पर कितनी बेचारी बन कर रह गयीं थीं वह। शायद एकाध सीन ही ऐसा रहा होगा, जिसमें अमिताभ थोड़ा नॉर्मल हुए हों। फिर उसके बाद दीवार, त्रिशूल , कभी-कभी और यह सिलसिला डेढ़ दशक से ज्यादा चला। शोले और अभिमान में उनका दिल को छू देने वाला टच उभरा, पर हिरोइन को कितना सताने के बाद। इत्तेफाक से इन दोनों में भी जया ही थीं। गिनती की ही फिल्में होंगी जिसमें अमिताभ के रोमांटिकपन ने सांस भी खींची हो। प्रकाश मेहरा, मनमोहन देसाई, केसी बोकाड़िया जैसों ने उन्हें एक ऐसी दुनिया का नायक बना कर रख दिया था जो केवल बदले की भावना से खदबदा रही थी। उसमें हर डायलॉग के साथ केवल घूंसे थे और खून से लहुलुहान कई थोबड़े। और रोमांस था भी तो थपड़िया देने के अंदाज में। दो-चार गाने संगीत निर्देशक के जीवनयापन के लिये। शुरू से लेकर आखिर तक अमिताभ धुनाई करते दिखते थे। बीच-बीच में हिनहिनाने के लिये किसी भी हिरोइन की आमद। लेकिन यह अमिताभ की कारीगरी का कमाल था कि वे सालों खेंचते रहे निर्माताओं की गाड़ी। हालांकि आज अपनी उन फिल्मों पर वे खुद भी शर्माते हैं। नब्बे के शतक की शुरुआत में शाहरुख की एंट्री होती है। टीवी के बाल कलाकार से थोड़ा ज्यादा उम्र वाले शाहरुख के पास न तो करिश्माई व्यक्त्तिव था, न आवाज, लेकिन अपनी बात कहने का अनोखा अंदाज, जो डर फिल्म में भले ही उकता देने वाला रहा हो, पर जब अपने पर काबू पाया तो दिल को छूता सा। इसी अंदाज के साथ शाहरुख ने मोहब्बतें और कभी खुशी कभी गम में अमिताभ की दारुण गम्भीरता का सामना बड़े सलीके से किया और कहीं कमजोर नहीं पड़े। शाहरुख का वीर-जारा का जुनूनी रोमांस इसलिये नहीं खटकता कि उसमें वह बहुत कम बोल कर अपनी आंखों और शरीर के हाव-भाव से बहुत कुछ कह जाते हैं, जबकि वही शाहरुख डर में उसी जुनून को डायलॉग के जरिये दर्शकों पर उछाल-उछाल कर फेंक रहे थे। इसी तरह स्वदेस में जब नायिका शादी के लिये आये लड़के और उसके मां-बाप को नकार देती है तो शाहरुख का खुशी से झूम उठना बेमिसाल दृष्य बन जाता है। रोमांस का उनका अनोखा अंदाज उनकी पहली या दूसरी फिल्म कभी हां कभी ना में ही नजर आ गया था और फिर वो सीन कि चर्च में नायिका की शादी अपने प्रेमी से हो रही है, दोनों एक दूसरे को अंगूठी पहनाने जा रहे हैं कि नायिका के हाथ से अंगूठी गिर जाती है, जो लुढ़कते हुए शाहरुख के पास आकर रुकती है। सब ढूंढ़ने में लगे हैं, पर शाहरुख बिल्कुल खामोश खड़े हैं मन में एक क्षीण सी आशा लिये। खुद ही ढहाई दीवार का सहारा लेने का बेमिसाल दृष्य है यह। या वीर-जारा में प्रीति जिंटा से सौगात में केवल एक दिन मांगना। अमिताभ और शाहरुख के बीच कई अच्छे अभिनेताओं की कतार है कई फिल्में हैं लेकिन होता है न एक क्लासिक टच- उसे उनमें तलाशना पड़ता है।

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