रविवार, 31 अक्तूबर 2010

फिनिशिंग टच क्यों नहीं दे पाते सचिन

राजीव मित्तल
सचिन का शतक, लेकिन भारत हारा, किसी भी अखबार में यह हैडलाइन इतनी बार लग चुकी है कि अब एकदिनी मैच में उनकी सेंचुरी बेमानी हो चली है। कैफ हों या युवराज, कितने साल का खेल है इनका, पर दोनों एक दिनी के मैच जिताऊ बल्लेबाज साबित हो चुके हैं। धीमा खेलने के लिये कुख्यात राहुल द्रविड़ न जाने कितनी बार भारत को जिताने वाली पारी खेल चुके हैं। लक्षमण तो भारत और आस्ट्रलिया दोनों जगह टैस्ट मैचों में कंगारू टीम के अश्वमेघ घोड़े की रास थाम अमरत्व हासिल कर चुके हैं। सौरव गांगुली और कुछ नहीं तो शानदार कप्तानी का परचम तो लहराये चल ही रहे हैं। लेकिन हमें सचिन तेंदुलकर से क्या हासिल हो रहा है, अगर इसे खंगालें तो एकदिनी में 37 और टैस्ट मैचों में 32 शतकों का शानदार झूमर हमें लहराता दिखायी देता है। पर यह है किसके खाते में। इन शानदार रिकार्ड तोड़ शतकों की पासबुक किसके नाम है- सिर्फ सचिन के न। इससे देश के खाते में क्या गया? सिर्फ यही ना कि विश्व क्रिकेट के चकाचौंध बाजार में एक बड़ा सा साइनबोर्ड एक भारतीय का भी चमक रहा है। पाकिस्तान में 17 मार्च के मैच में सचिन ने ऐसी पारी खेली कि तेरह हजार की संख्या पार कर गये। वह पाकिस्तान की सरजमीं पर एकदिनी शतक मारने वाले पहले बल्लेबाज बने । लेकिन कई बल्लेबाजों के लिये सपना 141 रनों की वह पारी देश को एक हार के सिवा और तो कुछ नहीं दे पायी। भारत यह मैच केवल 12 रन से हार गया। सचिन इस मैच में तब आउट हुए जब भारत को 10 ओवर और खेलने थे, 245 रन बन चुके थे यानी पांच खिलाड़ियों के रहते 60 से ज्यादा गेंदों पर 85 रन बनाने थे। सचिन ने 141 रन तो बनाये, किसी और ने क्या किया-यह सवाल उनका कोई भी दीवाना कर सकता है, पर दुनिया के जाने-माने नये-पुराने क्रिकेटरों से पूछें तो उनका जवाब यही होगा कि एकदिनी में अगर आप क्रीज पर जमे हैं तो जमे रहिये, आने वाले पर कुछ न छोड़ें, चाहे बल्लेबाजों की कतार बैट और पैड के साथ पवेलियन में बैठी हो। चाहे टैस्ट मैच हो या एक दिनी-ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। यहीं आकर सचिन के भारी भरकम रिकार्ड में एक नामालूम सी कमी झलकती देती है। टैस्ट मैचों का भी हाल जान लें-इसे क्रिकेट की बाइबिल विजडन ने सबकी आंखों में सुरमा डाल के अपने पन्नों पर दिखा दिया कि अब तक की सर्वश्रेष्ठ टैस्ट पारियों में सचिन की एक भी पारी नहीं। अलबत्ता उनके शतक पे शतक लगते रहे होंगे और लग रहे हैं। फिर एकदिनी मैच की कैमिस्ट्री शतक मांगती भी नहीं, जरूरत के समय आपने क्या किया, सारा गुणा-भाग इस पर निर्भर करता है। यहां महाभारत का उदाहरण बहुत सटीक बैठेगा। कुरुक्षेत्र के मैदान पर पहुंचने तक क्या हालत थी पांडवों की। निरीह, जीर्ण-शीर्ण, न रहने को न खाने को, द्रोपदी के चीरहरण की शर्म अलग। बस थे केवल कृष्ण। और कौरवों के पास क्या नहीं था। हस्तिनापुर का राज, महल, रथ-घोड़ों की भरमार, भीष्म, द्रोण, अश्वत्थामा, जयद्रथ जैसे कालजयी वीर और इनके अलावा सौ कौरव भाई। लेकिन युद्ध में क्या हुआ। इनमें सब अपने-अपने लिये लड़े। फिनिशिंग टच देने की किसी को फिक्र नहीं। सब अपनी-अपनी जिम्मेदारी की औपचारिकता पूरी कर दुर्योधन को अकेला छोड़ चले गये स्वर्गलोक के मजे लूटने। बट्टेखाते में गयी पांडवों से चार अक्षरोहिणी ज्यादा सेना और बट्टे खाते में गये भीष्ण- द्रोण जैसे प्रतापी वीर। तो सचिन पुत्तर अपने शतक इस तरह बेकार न जाने दो। ये बाजार में तुम्हारी कीमत भले ही लाख से करोड़ में और करोड़ से अरबों में कर दें, पर देश के बहीखाते का भी तो कुछ ध्यान रखो न।

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