राजीव मित्तल
प्रेमचंद ने दुधमुंहे को गोद में उठाया, मस्तक चूमा और उसकी नन्ही सी हथेली पर 10 रुपये रख दिये। 1927 के नवम्बर माह के इस दृष्य से हमें दो-चार कराते हैं अपनी किताब के जरिये 80 साल के हो गये पμाकार रामकृष्ण। इसके दो सौ से भी कम पृष्ठों में रामकृषण ने ऐसी न जाने कितनी विभूतियों के दर्शन कराये, जो हमारे समय में इस धरती पर नहीं थे। कुछ थे भी तो हम जैसों की पहुंच से बहुत बाहर थे। आचार्य नरेन्द्र देव का अद्वितीय व्यक्तित्व, सम्पूर्णानन्द की शासकीय दार्शनिकता, किन्हीं भी अन्तरराष्ट्रीय सीमाओं के पार नजर आने वाले कृष्णमेनन का बाल मन। रेलगाड़ी के तीसरे क्लास की बोगी से झांक कर पानी पिलाने वाले अपने बाल सखा को देख प्लेटफार्म पर कूद पड़ने वाले डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल से एक मैं और एक तू वाले अंदाज में गुफ्तगू कर डालने की हिमाकत। रामकृष्ण की इस महफिल में कुंदन लाल सहगल भी हैं, जो कैसरबाग की बारादरी में किसी बात पर भन्ना कर अपने श्रोताओं को उनके हाल पर छोड़ भागे और पुराने लखनऊ की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में जलंधर के जमाने के एक ऐसे दोस्त को तलाशते फिरे, जो वहां मलाई-कुल्फी बेचा करता था। जब वह मिल गया तो उसके टपरे पर ही सहगल नाइट का आयोजन कर डाला। रेलगाड़ी के तीसरे दर्जे में फिल्मकार बिमल राय से अचानक हुई मुलाकात, साथ में किशोर कुमार, शीला रमानी वगैरह। फिल्म नौकरी की अपनी इस टीम को आम जनता के से हालात से गुजारने की प्रैक्टिस करा रहे थे राय मोशाय। और फिर बिमल राय की बेटी रिंकी से तीसरी कसम फेम बासु भट्टाचार्य का उस समय के बम्बई में धुआंधार प्रेम प्रंसग। जिसमें बेटी के बाप राय काफी कुछ विलेन का रोल निभा रहे थे।
धर्मयुग के दफ्तर में धर्मवीर भारती के संग अपने समय की इस सर्वाधिक लोकप्रिय पμिाका की पाठकों के बीच पैठ जमाने की जद्दोजहद। जिसमें गीतकार शैलेन्द्र पर भी डोरे डाले गये। ऐसा न जाने क्याकुछ, जो नॉस्टेलजिक बनाये बगैर नहीं छोड़ता। लखनऊ-इलाहाबाद-बनारस की गलियां। इन तीनें जगहों के हिंदी पμाकारों का संघर्ष। अंगरेजी के पμाकार चेलापति राव का जलवा। फिरोजगांधी की बेहद-बेहद सहज मुद्राएं। संजय-राजीव का टॉफियों के पीछे लपकना। और इमरजेंसी के दौरान टेलीफोन पर संजय गांधी का अपने बुजुर्ग रामकृष्ण को चच्चू कह कर संबोधित करना। पाकिस्तान में नूरजहां, रेहाना, जोश मलीहाबादी और चौधरी खलीकुज्जमा से मुलाकात। फिल्म अभिनेμाी पारो को लेकर भगवती चरण वर्मा से छेड़छाड़, आईटी की पढ़ी बीनाराय और प्रेमनाथ का संगसाथ, रवीन्द्रालय के आगोश में समाये किस्से। और फिर लखनऊ के मशहूर सितार वादकउस्ताद युसुफ अली खां से होते हुए पμाकार नंदकुमार उप्रेती का तार्रुफ। बहुत कुछ है इस छप्पन भोग के थाल में। कहीं-कहीं थोड़ा गरिष्ठ भी है।
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