रविवार, 31 अक्तूबर 2010

एक न आयी मौत की मार्केटिंग

राजीव मित्तल
पहले एक किस्सा सुन लीजिये। लोदी सल्तनत के वक्तों में गुजरात का सुल्तान हुआ करता था महमूद बघर्रा। मुंह चलता रहे, इस पांच फुटे सुल्तान का यह सबसे प्रिय शगल था। सुबह उठते ही नाश्ते में दो सौ केले, 20-25 सेर शहद और इतनी ही मलाई। और यह सब खाद्य पदार्थ उसके ठीक सामने नहीं, बल्कि चारों तरफ रखे जाते थे, ताकि जिधर घूमे वहीं हाथ मारे। कुछ ही देर बाद वह फिर खाने के लिए दहाड़ने लगता था। अब उसे मिलना चाहिये-भुने हुए दो-चार बकरे, कई दर्जन मसालेदार मुर्गे और एक मन पका चावल और सौ-डेढ़ सौ रोटियां। तो, आज के टीवी चौनलों को महमूद बघर्रा की तरह 24 घंटे कुछ न कुछ चाहिए, ताकि दर्शकों को रिझाया जा सके। इन दिनों बिहार में चुनाव के चलते सभी चैनलों के पास दिखाने को कुछ न कुछ है, पर मजा नहीं आ रहा। ठीक नौ महीने बाद दोबारा हो रहे बिहार विधानसभा के चुनावों में दिखाने को कुछ नया है भी नहीं। वही नेता, वही चेहरे, वही वादे, वही आरोप और वही आशंकाएं। पुराना माल और पैकिंग तक पुरानी-धुरानी। जब इस बार मतदाता तक बोर हो रहा हो तो चैनल कैसे बचाएं अपने दर्शकों को इस चुनावी बोरियत से। अफगानिस्तान और ईरान शांत हैं, बुश को भी ईरान पर हमला बोलने की कोई खुजली नहीं हो रही। सारे तूफान, इना-मीना-रीटा-कैटरीना और भूकम्प आने थे वो सब अपना काम निपटा कर चले गए। लेकिन चैनलों की टीआरपी नाम की ‘राक्षसी’ का क्या किया जाए, जिसे हर समय कुछ नया स्वाद चाहिये। यह मौका दिया पुंजीलील उर्फ कुंजीलाल ने, जो किसी अजूबे हादसे में नहीं मरा, बल्कि अपने मरने की भविष्यवाणी खुद ही कर बैठा। किसी इंसान का मरना वह भी ज्योतिष शास्त्र के तय किये समय पर, इतना शानदार नजारा दर्शकों को दिखाने को और क्या हो सकता है। हर चैनल पर उत्साह की बयार बहने लगी कि आज मिला है कुछ नया करने को। मौत की आहट, फिर उसका चील की तरह अपने शिकार पर झपटना और फिर एक जिंदा व्यक्ति का लाश में तब्दील होना-उफ! मौत की इस आवाजाही के लाइव टेलीकास्ट के लिए टंग गए चारों तरफ कैमरे और आंखों देखी सुनाने के लिए हरएक के हाथ में मोबाइल। बस अब तो इंतजार है उस छिपकली का, जो इस टिड्डे के दबोचेगी और फिर निगलेगी। कैसा लगेगा जब कुंजीलीला की तरफ मौत बढ़ रही होगी और वह घिघिया रहा होगा? अच्छा यह बताओ कि मौत देखने में कैसी होती है? गुलाबी! धत्, वह तो चांदनी का रंग होता है। ‘गाइड’ में देवानंद को मरते हुए नहीं देखा क्या? उसकी आत्मा तो शरीर से बात भी कर रही थी। कह रही थी-सफेद रंग की है। आह, मजा आ रहा है। अरे, कुंजीलाल जी, जरा गर्दन इधर कीजिये, लिप्पल माइक लगाना है ताकि जब मौत आपको छुए तो आपके मुंह से निकली आखिरी साउंड हमारे दर्शकों को सुनायी दे। हे भगवान, ऐसा मौका रोज-रोज मिले तो मैं भी स्टार रिपोर्टर बन जाऊं और हमारे चैनल की टीआरपी सबसे ऊपर चली जाए। अभी और कितनी देर है कुंजीलील जी! भूख लगी है। कुछ देर रुको तो सामने वाले ढाबे में चाय ही पी आऊं! अरे, रुको, ध्यान से सुनो, झुन-झुन की आवाज आ रही है! अरे, देखो, कुंजीलाल को क्या हो रहा है! बेवकूफ, वह कमर खुजा रहा है तो हाथ तो पीछे जाएगा ही। चार बज गए, अभी तक तो इसे कुछ हुआ ही नहीं। तब तक कुंजीलाल उठे-कहां जा रहे हैं आप, बस, आने ही वाली है। दिशा मैदान को, हटो सामने से।

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