बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

पुलिस के मजे और मीडिया के चटखारे

राजीव मित्तल
हाल के दिनों में पश्चिमांचल के गढ़ मेरठ में चार मामले ऐसे घटे हैं, जिन्हेंं देख कर लगता है कि शहर की पुलिस ने चाल-चलन सुधारने का ठेका ले लिया है। उसके इस बदलते रूप से समाज को कितना फायदा हो रहा है इसका गुणा-भाग बाद में होगा, पर कुल मिला कर अपराधी वर्ग पूरी तरह बेखौफ है। चाल-चलन सुधारने के दो मामले इसी सप्ताह घट गये। एक मामले में कोई अपने घर में अपनी मित्र का जन्मदिन मना रहा था। एक घर में युवक-युवतियों के मनोरंजन और गाना-बजाना पड़ोसियों को इस कदर नागवार लगे कि उन्होंने पुलिस को बुलवा कर सारी मित्रमंडली को पकड़वा दिया। पांच नौजवान और तीन युवतिया ऐसे पकड़ कर थाने ले जाये गये, जैसे वे सब कोई गलत-सलत काम कर रहे हों। थाने में ही उन सबके मां-बाप बुलवाये गये। जब असलयित पता चली तो पुलिस ने बड़ा अहसान जताते हुए उन सबको छोड़ा। खिसियायी पुलिस ने नौजवानों पर थप्पड़ जरूर बरसा दिये। बुधवार की घटना पुलिस की समाज सुधारक भूमिका पर चार चांद लगाने वाली है। एक युवक और एक युवती काले शीशों वाली कार में कहीं जा रहे थे तो पुलिस को लगा कि कुछ गड़बड़ है। पुलिस के काम को आसान बनाने के लिये खबर की पहली लाइन में लिखा गया है कि वे दोनों संदिग्ध हालात में थे। इस बार कमान संभाल रखी थी बड़े कप्तान साहब ने। पुलिस परम्परा के अनुसार युवक की धुनाई की गयी और फिर थाने भेज दिया गया। इनसे पहले की दो और घटनाएं हैं। एक मामले में पति अपनी पत्नी को कार चलाना सिखा रहा था, जो मेरठ के कुछ समाजियों को बड़ा बुरा लगा। तुरंत पुलिस को सूचना दी गयी और पुलिस ने इतनी तेजी दिखायी कि थोड़ी देर में पति-पत्नी धंधे में लिप्त जोड़े के रूप में धर लिये गये। कुछ धमकी और कुछ चेतावनियों के बाद दोनों को पति-पत्नी मान कर छोड़ दिया गया। चौथी घटना भी इसी शहर की है। मामला एक विवाह समारोह से संबंधित है। किसी पड़ौसी की इस शिकायत पर कि शादी की दावत में गोमांस परोसा जा रहा है, पुलिस दस्ते ने रेड मारी और विवाह स्थल को जहन्नुम में बदल दिया। घर के एक बुजुर्ग की सदमे में मौत हो गयी। इन तीन महीनों ने शहर को तीन एसएसपी दिये हैं। पहले एसएसपी मवाना के तिहरे हत्याकांड को सड़क हादसा कह कर निपटाने की कोशिश में हटा दिये गये। दूसरे एसएसपी थानों और पुलिस चौकियों की सफाई और पुलिस आचरण सुधारने में खासा समय देकर चले गये। उक्त चारों मामले ताजातरीन बड़े कप्तान के रहते हुए हैं। लगता है कि जैसे मेरठ में रामराज्य आ गया है इसलिये पुलिस की भूमिका समाज के आचरण के सुधार पर केंद्रित हो गयी है। हमें पुलिस की इस समाज सुधारक भूमिका को लेकर कोई एतराज नहीं है। लेकिन जब बुधवार को दौराला के चिरोड़ी गांव में एक युवक की हत्या हो जाए और हत्यारे डेढ़ घंटे तक हथियार चमकाते हुए पूरे गांव को दहशत में डालें रहें, और पुलिस का 90 मिनट तक कोई अता-पता न हो, तो इस मानसिकता को कौन सा तमगा पहनाना चाहिये। इन सभी मामलों में स्थानीय मीडिया ने चटखारेदार भाषा में एक अच्छे कमेंट्रेटर की भूमिका निभाई। इसके लिये ढेरों बधाई।

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