बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

गठिया के मारे ये गठबंधन

राजीव मित्तल
केबल बाला अपने दोनों सहायकों इल्वल और वापाति को लेकर चुनाव कवरेज के लिये दंडकारण्य से बाहर है। चुनाव मेले में कोई दमखम नहीं रह गया है। वीकएंड पर ही वहां आलू की चाट और गोलगप्पों के ठेले दिखते है, जिन्हें नेताओं के लगुए-भगुए घेरे रहते हैं। लेकिन आज सामने के वटवृक्ष पर काफी रौनक है। प्रकार-प्रकार के पक्षियों के झुंड और विभिन्न जीव-जतुओं से पेड़ की शाखें लदी हैं, पर शोरगुल कतई नहीं। सेमिनार का विषय है ‘भविष्य के गठबंधन’। यह विषय 15 वें लोकसभा चुनाव की गठबंधनी दयनीयता को देखते हुए रखा गया है। सरस्वती वंदना के बाद बंदर हारमोनियम पर भजन गा रहे हंै और कठफोड़वा तबले पर चोंच मार रहा है। तभी पेड़ पर भालू चढ़ा और शहद के छत्ते में मुंह मारता हुआ बोला चलो शुरू किया जाए। सबसे पहले उल्लू बोला-मीशा, पहले के चुनावों में जो गठबंधन बनते थे, वो कम से कम पूरनमासी से अमावस्या तक तो चल जाया करते थे, इस बार पता ही नहीं चल रहा कि कौन किसमें भाड़ झौंक रहा है। हमें इनसानों को रास्ता दिखाना चाहिये। देखो तो, लालू-पासवान कह कर रहे हैं कि हम यूपीए के हैं, लेकिन चुनाव तक भाड़ में जाए वो, चौथे मोर्चे से पंगा लिया तो उसकी खैर नहीं। एनडीए का भी यही हाल है। वहां ‘कहां छुप गया है तू कठोर’ की गुहार मची हुई है। हर बाराती किसी दूसरे की घुड़चढ़ी में ठुमक रहा है। ले दे कर बचा तीसरा मोर्चा, तो वहां पंगत का ही पता नहीं, सब भट्टी पर चढ़ी कढ़ाही को ही घेरे खड़े हैं। उसी समय उलूक ध्वनि के साथ पेइचिंग ओलम्पिक वाले पांडा जी आ धमके। उन्होंने एक पत्रा निकाला और बोले-हमारा प्रयास एक ऐसा गठबंधन बनाने पर होगा जो सरकार बनाने-गिराने के लिये बाहर वालों का मुंह न ताकने दे। इसका अति सफल प्रयोग जनता पार्टी की सरकार में हो चुका है। लेकिन उसके बाद से नेता रंग बदलने में गिरगिट से आगे निकल गये और तोताचश्मी को लेकर तोते फिजूल में बदनाम हो रहे हैं। बरबाद ए गुलिस्तां वाला मुहावरा अब उल्लुओं को हर्ट करने लगा है। कफननोचुओं ने सियारों, लकड़बग्घों और गिद्धों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। लोमड़ी मुनक्के खाने को मजबूर है। तभी भेड़िया मिमियाया-अब तो झरने पर मेमना भी नहीं आता क्योंकि झरना सूख गया है। वहां किसी की मूर्ति लगा दी गयी है और बोर्ड पर लिखा है-यहां पेशाब करना मना है। तभी राजा भैया के यहां से भाग कर आए शेर के पास एसएमएस आया-भाग लो सब, बहेलिये आ रहे हैं।
चुनाव के बाद
पांचों चरण के चुनाव हो जाने के बाद जो एग्जिट पोल सामने आये हैं, उससे मतदाता बहुत परेशान है। किसी भी गठबंधन की नैया 220 फुट से गहरा गोता नहीं लगा पा रही। जबकि सत्ता का मोती 272 फुट की गहरायी पर है। मोर्चो ने लग्गी डाल रखी है तो दो बड़े गठबंधन गोताखोरों के भरोसे हैं। इधर मीडिया तीन पत्ती के फेर में पड़ा हुआ है और हेड लाइन व हेड बोल यहीं है कि कोई दल पत्ते नहीं खोल रहा। इन हालात के चलते दंडकारण्य में भी मायूसी का माहौल है। केबली का कहना है कि यह स्थिति भारतीय लोकतंत्र को रसातल में पहुंचा रही है। पिछले चुनावों के बाद इस बारे में भारतीय राजनीति के हालात से चिंतित नेताओं के बुद्धिजीवी वर्ग ने एक सेमिनार भी आयोजित किया था ‘भारतीय राजनीति का डाल्फिनीकरण : एक उपाय’। लेकिन कुछ शुद्धतावादी नेताओं ने सेमिनार का जनाजा इस हल्ले के साथ उठा दिया कि नेता और बुद्धिजीवी होना दो अलग-अलग बाते हैं। इसलिये कैसे भी बुद्धिजीवी को भारतीय राजनीति पर लदने का कोई हक नहीं है। बहरहाल तब इस मामले को किसी संसदीय कमेटी को सौंपने की बात उठी थी, जो अगले चुनाव तक अपनी रिपोर्ट दे देगी। इस लम्बी-चौड़ी बकवास से आजिज आ गये वापाति ने कहा-केबली, भारतीय राजनीति का बुजकशीकरण क्यों न कर दिया जाए। यह क्या बला है वापि-तमक कर पूछा केबली ने। असुरराज रावण के समय में इस खेल को रथों पर बैठ कर खेला जाता था। वहीं से यह खेल तुर्किस्तान और मंगोलिया गया। इन दिनों अफगानिस्तान और मंगोलिया में घुड़सवार खेलते हैं। बीच मैदान पर बकरे या भेड़ का सिर कटा लोथड़ा रख दिया जाता है। दो टीमों के घुड़सवार उस लोथड़े को पकड़ कर मैदान के पार फैंकने की कोशिश करते हैं। जिस टीम ने ज्यादा बार फैंका उसकी विजय होती है। इस खेल में बड़ी मारधाड़ होती है। दोनों टीमों के खिलाड़ी उस लोथड़े को अपने कब्जे में रखने की फिराक में रहते हैं। खुला खेल फर्रुखाबादी है। चुनाव भी ऐसे ही होने चाहिये। हर दल इसी तरह जोरआजमाइश करे, जो जीते सरकार उसी की। केबली ने पूछा-लेकिन इलु बुजकशी में तो लोथड़ा होता है, इसमें.........दोनों असुर जोर से बोले-मतदाता...!...!

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