बुधवार, 1 अप्रैल 2020

दीवाना बनाना है, तो दीवाना बना दे
वरना कहीं तकदीर तमाशा न बना दे

बात उस वक्त की है, जब अख्तरी 11 साल की थीं, उनकी मां उन्हें लेकर बरेली के पीर अज़ीज़ मियां के यहां गईं. मियां ने अख़्तरी को देखा और कहा ‘आप तो मल्लिका हैं’ और अख़्तरी के हाथ से उनका वो नोटबुक ले लिया, जिसमें अख़्तरी ने गज़लें लिखी थीं. उन्होंने नोटबुक खोली और जिस पन्ने पर उन्होंने हाथ रखा, उस पन्ने पर बहज़ाद लखनवी की गज़ल लिखी थी-

‘दीवाना बनाना है, तो दीवाना बना दे,
वरना कहीं तकदीर तमाशा न बना दे.’

पीर साहब ने अख़्तरी से कहा, ‘अगली रिकॉर्डिंग में इसे सबसे पहले गाना, शोहरत तुम्हारे कदम चूमेगी और दौलत तुम्हारी बांदी होकर घूमेगी’. फिर कलकत्ता में दुर्गा पुजा के दौरान अख़्तरी ने ये गज़ल गाई. सारंगी पर साथ थे उस्ताद बड़े गुलाम अली खां. पूरे बंगाल में तहलका सा मच गया और फिर पूरे देश में ही अख़्तरी का नाम रोशन हो गया.

पंडित जसराज ने ये गज़ल 6 साल की उम्र में जब सुनी, तो इस तरह दीवाने हो गए कि उन्होंने गायक बनने की ठान ली. 

इस रिकॉर्ड की डिमांड इतनी थी कि मेगाफोन कंपनी को खास इस रिकॉर्ड के लिए कलकत्ते में रिकॉर्ड प्रेसिंग प्लांट बनवानी पड़ी. इस गज़ल ने बेग़म अख़तर और बहज़ाद लखनवी, दोनों को मशहूर कर दिया.
बहुत सालों बाद बेग़म अख़्तर ने पीर मियां की बात याद करते हुए कहा, ‘काश पीर साहब शोहरत और दौलत के बदले मुझे थोड़े चैन और सुकून की दुआ दिए होते, तो थोड़ी खुशियां मेरे भी दामन में होतीं…’

बात 1944-45 की है. इश्तिय़ाक अहमद अब्बासी साहब से शादी के बाद बेग़म ने सालों तक गाना छोड़ दिया. ये बात जब बहजाद लखनवी साहब तक पहुंची, तो बहज़ाद साहब ने लिखना ही छोड़ दिया. एक मुशायरे के दौरान बहजाद लखनवी से उनके एक दोस्त ने पुछा, ‘जनाब, क्या हाल बना रखा है, कहीं इश्क-विश्क तो नहीं कर बैठे हो?’ इस पर बहज़ाद ने मुस्कुराते हुए कहा…
‘ऐ देखने वाले, मुझे हंस-हंस के न देखो,
तुमको भी मोहब्बत कहीं मुझसा न बना दे.’

बंटवारे के बाद बहज़ाद साहब पाकिस्तान जा बसे. वहां एक मुशायरे में किसी ने बहज़ाद साहब से एक कलाम पढ़ने की फ़रमाइश की. पर बहज़ाद साहब चुपचाप ही बैठे रहे. तब किसी ने छेड़ते हुए उनसे कहा, ‘आपको दीवाना तो बना ही दिया है बेग़म अख़्तर ने, अब संभल भी जाओ, अब तो ये दो मुल्कों की बात है.’ इस पर बहज़ाद साहब ने चुप्पी तोड़ी और कहा, ‘मियां बात दिलों की है, ये मुल्क को बीच में क्यों लाया जाए’ और फिर अपना एक शेर सुनाया,
‘दुनियां को इल्म क्या है, ज़माने को क्या खबर,
दुनियां भुला चुका हूं, तुम्हारे ख्याल में.’

कुछ अर्से बाद बेग़म अख़्तर से किसी ने यही सवाल पुछा, ‘क्या आप बहज़ाद लखनवी से प्यार करती हैं?’ बेग़म ने बिना किसी झिझक के जवाब दिया, ‘हां, मैं बहज़ाद से प्यार करती हूं. और क्यों न करूं… जिसने मेरे गाना छोड़ने पर लिखना ही छोड़ दिया, उसे प्यार न करूं तो किसे करूं.’

बात 1951-1952 की होगी. बॉम्बे सेंट्रल रेलवे स्टेशन प्लेटफॉर्म से लखनऊ जाने वाली ट्रेन के फर्स्ट क्लास कूपे में मल्लिका-ए-गज़ल, हिन्दुस्तान की मायनाज़ गायिका बेग़म अख़्तर मौजूद थीं. अभी ट्रेन खुलने ही वाली थी कि एक काली शेरवानी और उजला पायजामा पहने शख्स दौड़ता हुआ उस डिब्बे में दाखिल हुआ. उसने कागज का एक पुर्जा बेग़म को दिया, साथ ही मिन्नत की, बऱाय मेहरबानी इसे ट्रेन खुलने पर ही पढ़ेंगी. वो शख़्स कोई और नहीं, जाने-माने शायर शकील बदांयूनी थे. बेग़म ने शकील की बात मान ली और उस कागज़ को तकिए के नीचे दबा दिया. रात जब गहराने लगी, तो बेग़म को उस कागज के टुकड़े की याद आई. कागज में लिखी इबारत कुछ इस तरह थी,

‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया.
यूं तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया.’

चलती ट्रेन में बेग़म ने अपना हारमोनियम निकाला और रातभर इस गज़ल पर काम करती रहीं. 4-5 बज रहे थे सुबह के, जब ट्रेन भोपाल पहुंची. राग भैरवी का वक्त था और ये गज़ल राग भैरवी में तैयार हो चुकी थी.

एक हफ्ते के अंदर ये गज़ल बेग़म ने लखनऊ रेडियो स्टेशन से पेश की और पूरे हिंदुस्तान ने इस गज़ल को हाथों-हाथ लिया. इस गज़ल जितनी मशहूर गज़ल शायद ही कोई हो. कहते हैं, गज़ल का मतलब ‘ऐ मोहब्बत’ और ‘ऐ मोहब्बत’ का मतलब बेगम अख़्तर. बेगम की ‘ऐ मोहब्बत’ सुनकर ऐसा लगता है मानो आधी रात को दूर किसी वीराने से आहिस्ता-आहिस्ता उनींदी सी कोई आवाज़ उठ रही हो. बेगम अख़्तर तो सिलेब्रिटी थी हीं, लेकिन इस गज़ल ने उन्हें लेजेंड बना दिया, बुलंदी की आखिरी मंजिल तक पहुंचा दिया.

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे’ बेग़म का सिग्नेचर ट्यून हो गई, लेकिन कुछ विरोधाभासों के कारण बेग़म ने इसके बाद शकील को गाना छोड़ दिया और काफी अर्से तक शकील को नहीं गाया. पर जब दोबारा शकील की गज़ल गई, तो उसका कोई जवाब न था…

‘मेरे हम-नफस मेरे हम-नवा,
मुझे दोस्त बना के दगा न दे.
मैं हूं दर्द-ए-इश्क से जां-ब-लब,
मुझे जिंदगी की दुआ न दे.’



6/16/18